सोमवार, 2 दिसंबर 2013

ऐसी लागी लगन 

जिस तरह से भारतीय संस्कृति में हिंदू धर्मगुरुओं का महत्व सदियों से कायम है, उसी तरह देश की राजनीति में उनकी चर्चा हमेशा से रही है। फिर बात अगर चुनावी माहौल की हो तो मध्यप्रदेश सहित अन्य चुनावी क्षेत्र अपने-अपने राजनैतिक गुरुओं के सानिध्य में मार्गदर्शन लेते नजर आ रहे हैं। इन धर्मगुरुओं पर राजनेताओं का अटूट विश्वास ही इन्हें राजनैतिक मार्गदर्शक के रूप में विशिष्ट स्थान प्रदान करता है....

प्रदेश के सियासी हलकों में आध्यात्मिक झुकाव सहसा बढ़ गया है। टिकट के लिए हाथ-पांव मारने वाले हों या उम्मीदवारी तय होने के बाद जीत की आशा से लबरेज राजनीति के खिलाड़ी, सभी धार्मिकता के प्रवाह में बहे चले जा रहे हैं। उन्हें जहां से भी आशीर्वाद या चमत्कार की जरा-सी भी आशा है, वहां मत्था टेकने से वे कतई गुरेज नहीं करते। लिहाजा, धर्मगुरुओं के यहां आने वाले सफेद कुर्ताधारियों की संख्या में खासा इजाफा हो गया है। वे हर हाल में टिकट और जीत चाहते हैं। जिन धर्मगुरुओं की राजनीति में पैठ है, उनके शागिर्द दिल्ली के राजनीतिक गलियारों के अलावा मठों व धार्मिक स्थलों पर भी देखे जा सकते हैं। राजनेताओं के बीच छाए हुए ऐसे ही धर्मगुरुओं में से एक हैं रावतपुरा सरकार के नाम से मशहूर संत रविशंकर। इनका नाम चंबल क्षेत्र के रावतपुरा गांव में हनुमान मंदिर बनने के साथ ही मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के राजनेताओं के बीच पहचाना जाने लगा। वे पॉलिटिकल साधु के रूप में पहचाने जाते हैं। पूर्व गृह राज्यमंत्री डॉ. गोविंद सिंह के साथ उनके संबंध जगजाहिर हैं। उनके नाम से रायपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए कार्य देखते ही बनते हैं। उनके ट्रस्ट रावतपुरा सरकार एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स ने फार्मेसी, नर्सिंग, आधुनिक विज्ञान और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना न सिर्फ मध्यप्रदेश, बल्कि छत्तीसगढ़ में भी की। सूूत्रों के अनुसार रावतपुरा सरकार एक संत के रूप में 1990 से प्रसिद्ध हुए। उस समय उनकी उम्र महज सत्रह साल थी। जल्दी ही उनकी आध्यात्मिक शक्ति का अंदाजा राजनेताओं को हुआ और मध्यप्रदेश के कुछ प्रमुख सांसदों की गिनती उनके भक्तों के रूप में होने लगी। गोपाल भार्गव और प्रभात झा ऐसे ही नामों में से एक हैं। उमा भारती और दिग्विजय सिंह अक्सर उनसे संपर्क करते हैं। सत्यनारायण शर्मा जो फिलहाल छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में हैं, रावतपुरा सरकार के प्रिय भक्तों में से एक हैं।
चुनावी दंगल में उतरे उम्मीदवारों में कोई वैष्णो देवी के दर्शन कर मन्नत मांग रहा है तो कोई नर्मदा तट पर चातुर्मास कर रहे संत महात्माओं का आशीर्वाद ले रहा है। ऐसे ही संतों में एक हैं भय्यू जी महाराज।
सूर्योदय आश्रम मिशन के प्रणेता उदय सिंह देशमुख उर्फ  भय्यू जी महाराज कभी मॉडल रह चुके हैं और आज वह कई राजनेताओं के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। आध्यात्मिक गुरु होने के बावजूद हर दल के नेताओं से उनके नजदीकी सम्बंध हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, नितिन गडकरी, उद्धव ठाकरे और विलासराव देशमुख से उनके अच्छे सम्बंध हैं।
मध्यप्रदेश के शुजालपुर में जन्मे उदय सिंह देशमुख उन लोगों में से हैं, जिन्हें कार्पोरेट जगत और मॉडलिंग की दुनिया रास नहीं आई। उन्होंने उस चकाचौंध की दुनिया को छोड़कर समाज सुधार का अभियान छेड़ा। इसलिए समाज ने उन्हें नया नाम दिया, भय्यू जी महाराज। 44 वर्षीय भय्यू जी महाराज को देखकर पहली नजर में लगता नहीं कि वह कोई संत हैं।
उनके ट्रस्ट द्वारा किसानों के लिए धरतीपुत्र सेवा अभियान और भूमि सुधार, जल, मिट्टी व बीज परीक्षण प्रयोगशाला, बीज वितरण योजना चलाई जाती है। विजयवर्गीय और रमेश मंडोला उनके करीबी हैं। इसी तरह कनकेश्वरी देवी के परम भक्तों मे से एक हैं कैलाश विजयवर्गीय, रमेश मंडोला और युवा भाजपा सांसद विश्वास सारंग जिन्हें उनके आश्रम में अक्सर देखा जाता है। कनकेश्वरी देवी को उनके भजनों के लिए जाना जाता है। उनके कार्यक्रम प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में आयोजित होते रहते हैं। जिन दिनों भोपाल में उनके भाषण हुए थे तब विजयवर्गीय के घर वे ठहरी थीं और इस साध्वी के सम्मान में उनके घर को दीवाली की तरह रोशनी से सजाया गया था। संतों के मुरीद उनके सम्मान में कोई कमी नहीं रहने देते। स्वामी अवधेशानंद के मुरीदों में कांग्रेस नेता अजय सिंह का नाम सबसे पहले आता है। स्वामी जी साल में कम से कम एक बार प्रवचन के लिए भोपाल अवश्य आते हैं और वे जब भी यहां आते हैं, अजय सिंह के अतिथि होते हैं। पिछली बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पत्नी साधना सिंह के साथ अवधेशानंद जी गिरि के श्रीमद्भागवत कथा प्रसंग में शामिल हुए थे। आधुनिक तकनीकी और वो भी खासतौर से कंप्यूटर का प्रयोग अपने भक्तों को मार्गदर्शन देने के लिए करने वाले नामदेव दास त्यागी को कंप्यूटर बाबा के नाम से जाना जाता है। 2006 में उन्होंने दावा किया था कि वे लोगों की समस्या का समाधान उतनी ही जल्दी कर सकते हैं जितनी जल्दी कंप्यूटर करता है। उनका आश्रम इंदौर में एरोड्रम रोड पर गोमतगिरि के पास है। सन 2006 में  बाबा उस समय लोगों की नजरों में आए जब उन्होंने इंदौर कलेक्टर विवेक अग्रवाल के विरोध में भूख हड़ताल की थी। विवादों से घिरे बाबा के अनुयायियों में कैलाश विजयवर्गीय और उनके करीबी रमेश मंडोला का नाम लिया जाता है। देपालपुर के कांग्रेस सांसद सत्यनारायण पटेल उनके परम भक्तों में से एक हैं। सन 90 में राम मंदिर आंदोलन के बाद से संत महात्माओं का प्रत्यक्ष पदार्पण राजनीति में देखते ही बनता है जिसकी चर्चा निरंतर जारी रहती है। मध्यप्रदेश की राजनीति में एक ओर जहां कई साधु-संतों ने हाथ आजमाया, वहीं ऐसे भी कई नाम हैं जो प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से अलग रहते हुए भी राजनेताओं के सलाहकार और कर्ताधर्ता के रूप में छाए रहते हैं। इन्हीं में जगद गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज का नाम प्रसिद्ध है। मध्यप्रदेश के राजनेताओं के बीच शंकराचार्य का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। यद्यपि अक्सर इन्हें कांग्रेसी शंकराचार्य के नाम से संबोधित किया जाता है लेकिन भाजपा के कई दिग्गज भी इनके परम भक्त हैं। जब वे भोपाल आते हैं तो शिवराज सिंह चौहान, दिग्विजय सिंह और बाबूलाल गौर उनसे आशीर्वाद लेने जाते हैं। गोटेगांव स्थित उनके आश्रम में बड़ी संख्या में राजनेताओं को देखा जाता है।



श्रद्धा, भक्ति और विश्वास


सास-बहू से अलग हटकर छोटे परदे पर पौराणिक धारावाहिकों का प्रसारण बढ़ता जा रहा है। इन धारावाहिकों से दर्शकों की श्रद्धा जुड़ी हुई है। तभी तो दर्शकों की भक्ति और विश्वास का ख्याल रखते हुए वे उनकी हर कसौटी पर खरा उतरने का प्रयास करते हैं। इन भूमिकाओं के लिए कड़ी मेहनत के साथ ही पौराणिक पात्रों के बारे में पूरी जानकारी और भारी मेकअप व कपड़े पहनना भी उनके काम का एक हिस्सा होता है। कभी दर्शक इन्हें भगवान की तरह पूजते हैं तो कभी संघर्ष के बीच खास मुकाम बनाए रखने की जद्दोजहद के बीच टीवी की टीआरपी में वे आगे बढ़ते जाते हैं...
लाइफ ओके पर प्रसारित देवों के देव महादेव में भगवान शिव की भूमिका में मोहित रैना की चर्चा हर घर में है। कॉमर्स में स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले मोहित रैना चार्टर्ड अकाउंटेंट की तैयारी कर रहे थे लेकिन इस बीच उनका चयन इस शो के लिए हुआ और वे टीवी अभिनेता बन गए।
मोहित रैना ने इससे पहले मिथुन चक्रवर्ती के साथ फिल्म डॉन मुथु में काम किया है। वे साई फाई टीवी शो अंतरिक्ष, चेहरा, बंदिनी और गंगा की धीज में नजर आए। 31 साल के मोहित अपने स्वर्गीय पिता के साथ अक्सर अमरनाथ मंदिर जाते थे और खुद भी भगवान शिव के भक्त हैं। भगवान शिव की भूमिका के लिए मोहित को तैयार होने में 90 मिनट लगते हैं उसके बाद काफी समय उनके मेकअप को फाइनल टच देने में चला जाता है। मोहित को इस बात की खुशी है कि लोग उन्हें शिव के रूप में पसंद करते हैं। इसके अतिरिक्त मोहित रैना कहते हैं कि शिव के चरित्र के विभिन्न शेड्स हैं जैसे रोमांस, एक्शन आदि। सच तो यह भी है कि अब तक महादेव को कैलेंडर आर्ट तक सीमित रखा गया था लेकिन इस धारावाहिक की वजह से शिव के व्यक्तित्व की उन बातों को भी प्रचारित किया जा रहा है जो अब तक आम जनता की निगाह से छुपी हुई थीं। लोगों के बीच होने पर उन्हें भगवान का स्थान दिया जाता है। लोग चाहते हैं कि वे उन्हें आशीर्वाद दें। उनसे अधिक उम्र के लोग भी उनके चरण स्पर्श करते हैं। इसी तरह अपने चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान सदैव बनाए रखने वाले सौरभ राज जैन स्टार प्लस पर प्रसारित महाभारत में भगवान कृष्ण की भूमिका में हैैं। 28 साल के सौरभ ने एमबीए किया है और इन दिनों वे भगवान कृष्ण से संबंधित अलग-अलग किताबें पढ़कर उनके बारे में अपनी जानकारी बढ़ा रहे हैं। सौरभ ने इसके पहले जय जय जय श्री कृष्ण में भगवान विष्णु की भूमिका की थी। वे एक कुशल नर्तक भी हैं। धोती, मुकुट, मेकअप और भारी कपड़े पहनने में उन्हें कभी असुविधा नहीं होती। सौरभ के अनुसार कृष्ण की ऊर्जा को मैं अपने अंदर महसूस करता हूं। दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले महाभारत में भगवान कृष्ण को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया था, स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले महाभारत में कृष्ण की भूमिका उससे अलग है जो दर्शकों को लुभा रही है। सौरभ अपने अनुभव को याद करते हुए कहते हैं कि एक बार एक महिला अपने नवजात शिशु को मेरे पास लेकर आई और कहने लगी कि आप कृष्ण हैं। इसे आशीर्वाद दीजिए। मैंने उसे समझाया कि मैं भी एक आम इंसान हूं, भगवान कृष्ण नहीं लेकिन जब वह नहीं मानी तो मैंने उस बच्चे को आशीर्वाद दिया। पौराणिक पात्रों के अनुरूप दिखने के लिए महाभारत में भीष्म की भूमिका में आरव चौधरी दर्शकों की कसौटी पर खरे उतरे हैं। 43 साल के आरव ने इस धारावाहिक के लिए अपना वजन बॉडी बिल्डर रोहित शेखर के मार्गदर्शन में बारह  से चौदह किलो तक बढ़ाया। आरव पिछले दो दशकों से दर्शकों का मनोरंजन करते रहे हैं। इससे पहले दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले महाभारत में भीष्म की भूमिका मुकेश खन्ना ने अदा की थी जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। उसी भूमिका पर दूसरी बार बनने वाले महाभारत में खरा उतरना आरव के लिए मुश्किल था। आरव ने हर चुनौती का सामना किया। आरव कहते हैं कि भीष्म हर उम्र के लोगों को प्रेरित करते हैं। इस किरदार के लिए मैंने जी तोड़ मेहनत की है। आरव शूटिंग के समय दस किलो का मुकुट, लगभग उतनी ही भारी तलवार और अन्य वजनदार एक्सेसरीज पहनते हैं। इस भूमिका के लिए वे कश्मीर की वादियों में भी कड़ी ठंड के बीच शूटिंग करते और उसके बाद अपने फिटनेस शेड्यूल को भी बनाए रखते हैं। आरव ये मानते हैं कि अपने वचन के पक्के भीष्म और आरव के स्वभाव में बहुत समानता है। भीष्म जो कहते थे, वो कर दिखाते थे इसी तरह आरव भी अपनी बात के पक्के हैं। आरव की नजरों में इस भूमिका के लिए हमारे देश में दो ही कलाकार उपयुक्त हैं। एक अमिताभ बच्चन जिनका व्यक्तित्व भीष्म पितामह से मिलता-जुलता है और दूसरा डेनी डेनजोंग्पा जो अच्छे पिता, पति और बेटे हैं। ट्विटर पर वे आरेवियन के नाम से छाए रहते हैं। उनके फॉलोअर्स में सबसे ज्यादा संख्या लड़कियों की है। आरव के अनुसार उनसे मिलने वाले कई लोग उनसे अपने प्रसिद्ध डायलॉग बोलने का आग्रह करते हैं। आरव ने पिछले बीस सालों में फिल्मी जगत में बहुत संघर्ष किया। वे कहते हैं अगर कभी उन्हें भीष्म से मिलने का मौका मिले तो वे इस क्षेत्र में किए संघर्ष के बदले उनसे अपने सुरक्षित कैरियर की मांग करेंगे। सहारा वन पर प्रसारित गणेश लीला में नारद मुनि की भूमिका में धीरज मंगलानी को दर्शकों ने सराहा। एक बार फिर वे इसी भूमिका में कलर्स पर प्रसारित जय जगजननी मां दुर्गा में नजर आ रहे हैं। धीरज के अनुसार नारद मुनि को उनकी चुगलखोरी की वजह से लोग जानते हैं लेकिन उनकी भावनाएं बहुत अच्छी थीं, जिन्हें भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में पहले से ही पता चल जाता था। धीरज यही रोल प्रज्ञा चैनल में सूर्य पुराण और सोनी पर बबोसा मेरे भगवान के लिए भी कर रहे हैं। उनके पास देवों के देव महादेव से भी प्रस्ताव आया था लेकिन वे नारद मुनि की भूमिका से संतुष्ट हैं इसलिए उन्होंने किसी और भूमिका के लिए मना कर दिया।
बॉक्स में
बदल गया दौर
अगर पिछले उदाहरणों को देखा जाए तो दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले रामायण में अरुण गोविल राम की भूमिका में व महाभारत में नीतीश भारद्वाज कृष्ण की भूमिका में बहुत चर्चित थे, लेकिन जैसे ही उनके धारावाहिकों पर विराम लगा तो वह भी लोगों की यादों से गायब हो गए। अब जो कलाकार पौराणिक धारावाहिकों में अभिनय कर रहे हैं वे ये मानते हैं कि समय बदल गया है। एक माध्यम के  रूप में आज टेलीविजन पहले की तुलना में अधिक सशक्त है। बॉलीवुड का हर टॉप अभिनेता टीवी पर अपनी मौजूदगी दर्ज करना चाहता है। साथ ही टेलीविजन के कलाकार भी बॉलीवुड में बहुत सफल हो रहे हैं इसलिए अब छोटा पर्दा 'छोटाÓ नहीं रहा है।

दर्द जब हद से गुजर जाए

देश-विदेश के मशहूर खिलाड़ी हर दिल पर राज करते हैं। उनके पास बेशुमार दौलत है, और दर्द बांटने के लिए एक पार्टनर भी, फिर भी उनकी जिंदगी में कई बार ऐसे लम्हे आते हैं जब वे डिप्रेशन का सामना करते नजर आते हैं। पिछले दिनों ऐसा ही कुछ इंग्लैंड क्रिकेट टीम के अनुभवी बल्लेबाज जोनाथन ट्रॉट के साथ भी हुआ...

जोनाथन ट्रॉट लम्बे समय से चली आ रही तनाव सम्बंधी समस्या के कारण एशेज शृंखला बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौट गए। वह इस समस्या से उबरने के लिए अनिश्चितकाल तक  क्रिकेट से ब्रेक ले रहे हैं। ट्रॉट ये भी मानते हैं कि इस समय वे अपनी टीम को 100 फीसदी योगदान नहीं दे पा रहे हैं। डिप्रेशन के चलते इंग्लैंड के क्रिकेटर मार्कस ट्रेस्कोथिक ने अंतर्राष्टï्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। बत्तीस वर्षीय ट्रेस्कोथिक पिछले कुछ वर्षों से तनाव संबंधी बीमारी से जूझ रहे हैं और इस कारण विदेश यात्रा में उन्हें काफी परेशानी हो रही थी। ट्रेस्कोथिक ने अपना आखिरी टेस्ट मैच पाकिस्तान के खिलाफ ओवल के मैदान में अगस्त 2006 में खेला था। वर्ष 2006 के आखिर में ट्रेस्कोथिक को ऑस्ट्रेलिया दौरे से लौटना पड़ा था और इसके बाद से ही वे किसी विदेशी दौरे पर नहीं गए। इस दौरान उन्हें ये महसूस हो रहा था जैसे वे कैंसर जैसी किसी जानलेवा बीमारी के शिकार हैं। वे कहते हैं डिप्रेशन के दौरान मुझे उन लोगों की तकलीफें समझ में आईं जो आत्महत्या कर लेते हैं। यहां ये समझना जरूरी है कि ये इंसान की कमजोरी नहीं, बल्कि बीमारी होती है। ये बीमारी किसी को नहीं छोड़ती। फिर चाहे वह सेरेना विलियम जैसी मशहूर टेनिस खिलाड़ी ही क्यों न हो। ग्यारह बार गे्रंड स्लेम का खिताब जीतने वाली टेनिस चैंपियन ने अपने जीवन में डिप्रेशन का सामना उस समय किया, जब उनकी बहन येतुंडे की अचानक मृत्यु हो गई। सेरेना अपने अनुभव को याद करते हुए कहती हैं कि उस वक्त मुझे ये अहसास हो रहा था जैसे सारी दुनिया मेरे लिए खत्म हो गई है। मैं ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी और मुझे अकेले रहने की सख्त जरूरत थी। जब मुझ पर मानसिक दबाव नहीं होता तभी मैं खेल के दौरान अपना शत-प्रतिशत दे सकती हूं लेकिन उस समय मेरे लिए सबसे जरूरी खेल में प्रदर्शन की चिंता किए बिना मुश्किल हालातों से बाहर आना था। एक बार डिप्रेशन हो जाने पर उससे उबर पाना आसान नहीं होता। ओलंपिक में 800 और 1500 मीटर दौड़ जीतने वाली केली होम्स मानसिक अवसाद का बयान करते हुए कहती हैं कि जब मुझे डिप्रेशन हुआ तो ऐसा लग रहा था जैसे जीवन की सारी आशाएं खत्म हो गई हैं। मैं कैंची से अपने हाथ की नस काट लेना चाहती थी। आगे क्या होगा इसके बारे में सोचना भी मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। उस वक्त मेरे जीवन में कुछ भी सुखद कहलाने के लायक नहीं था। एक बार डिप्रेशन के चंगुल में फंस जाने पर उससे बाहर आना मेेरे साथ-साथ किसी के लिए आसान नहीं होता। इंग्लैंड के पूर्व विकेट कीपर और पहले समलैंगिक क्रिकेटर स्टीव डेविस 2012 में अपने दोस्त टॉम मेनार्ड की मृत्यु के बाद डिप्रेशन में आ गए। डिप्रेशन के चलते खुद को खेल से दूर रखने वाले खिलाडिय़ों में इंग्लैंड विकेटकीपर टीम एंब्रोस का नाम शामिल है। उन्होंने 2009 से क्रिकेट मैच नहीं खेला। वे खुद यह मानते हैं कि उनकी दिमागी हालत टीम के साथ पूरा इंसाफ करने के लायक नहीं है। आस्ट्रेलिया के फास्ट बॉलर शॉन टेट ने 2008 में क्रिकेट से यह कहकर ब्रेक लिया कि उनके दिमाग को आराम करने की जरूरत है।

सुर मिले न साज


एक दौर वो था जब किसी संगीतकार के साथ अपने सुर मिलाने के लिए देश के महान गायक घंटों रियाज करते थे और उसके बाद गाने की रिकार्डिंग की जाती थी। आज के दौर में युवा गायकों को संगीतकारों के साथ रिकार्डिंग और रिहर्सल करने का मौका भी नहीं मिलता क्योंकि वे अपने साउंड ट्रेक स्टूडियो में ई-मेल करके भेज देते हैं, जिसे साउंड इंजीनियर की मदद से रिकार्ड कर लिया जाता है। बाद में जो क मी दिखती है उसे आधुनिक तकनीकी की मदद से छिपा लिया जाता है। नए युग की तकनीकी जितनी युवाओं की मदद कर रही है, उतना ही उसका नुकसान संगीतकारों का सानिध्य छिन जाने के रूप में सामने आ रहा है। क्या ये मशीनेें संगीत में जान डालने का काम भी कर सकती हैं। अगर हां तो वो समय दूर नहीं जब देश के उम्दा गायक इसी चक्रव्यूह में अपना भविष्य खोते नजर आएंगे...

 स्नेहा पंत तकरीबन 15 साल पहले दिल्ली से मुंबई आई थीं। उनमें गायिकी की वो सारी खूबी थी जो किसी भी कुशल गायक के लिए जरूरी होती है। उन्होंने किराना घराना से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। कल्याण जी-आनंद जी ने उनकी आवाज की तारीफ की और 1998 में स्नेहा ने सा रे गा मा पा में श्रेया घोषाल को हराकर खूब नाम कमाया था। स्नेहा ने 2001 में सुभाष घई की फिल्म 'यादेेंÓ मेें दिल की दुनिया में गाना गाया था। फिल्म के संगीतकार अनु मलिक इस गाने के लिए उनकी आवाज को परफेक्ट मानते हैं। उसके बाद हर दूसरी फिल्म के लिए नई आवाज की तलाश करने वाले संगीतकारों के बीच स्नेहा की मधुर आवाज गुम हो गई।
हिंदी फिल्मी जगत में एक वो दौर था जब संगीतकारों को सुपरस्टार माना जाता था लेकिन अब हर दूसरी फिल्म में सुनाई देने वाली नई आवाज को श्रोता सुनते हैं और जल्दी ही भूल जाते हैं। इस दौर में फिल्म निर्माण की नई तकनीकी का असर गायकी पर भी दिखाई देता है। इस बात से आज भी इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी भी फिल्म की सफलता में उस फिल्म के संगीत का बड़ा हाथ होता है। दर्शकों का उस गाने के गायकों से भावनात्मक लगाव पैदा होता है। फिर चाहे वो मोहम्मद रफी हों या किशोर कुमार। यहां तक कि जब 1949 में फिल्म दिल्लगी में सुरैया के मशहूर गीत तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी और 1954 में मिर्जा गालिब का गाना दिल-ए-नादान रिलीज हुई तो उनकी आवाज के दीवाने मैरिन ड्राइव पर सुरैया के घर के सामने उनकी एक झलक के लिए रोज घंटों खड़े रहते थे। लता मंगेशकर के लिए बड़े गुलाम अली खान कहते थे कमबख्त कभी बेसुरी नहीं होती।
आज के संदर्भ में संगीत की समझ रखने वाले महान गायकों से अलग वो दौर जारी है जहां आवाज की मधुरता पर किसी का ध्यान नहीं है। गैंग ऑफ वासेपुर के लिए स्नेहा खांवलकर पटना की दो हाउसवाइफ को गाने के लिए लेकर आई थी। जिंदगी न मिलेगी दोबारा में रितिक रोशन, अभय देओल और फरहान अख्तर पर फिल्माया गया सेनोरिटा गीत के लिए प्रोडक्शन हाउस से जुड़े लोगों की आवाज ली गई थी। तलाश में सुमन श्रीधर, लुटेरा में शिल्पा राव, मिका सिंह और शेफाली की आवाज आज युवाओं के बीच छाई हुई है। गायिका महालक्ष्मी अय्यर के अनुसार अगर आपकी आवाज दूसरों से अलग है तो उसे पसंद करने वालों की कमी नहीं है। कैलाश खेर भी इस बात से सहमत हैं और कहते हैं कि गायकी में बदलाव इस दौर की परंपरा साबित हो रही है। इस बदलाव का असर देश के स्थापित गायक सोनू निगम, सुनिधि चौहान, शान और केके के संगीत कैरियर को भी प्रभावित कर रहा है जिसकी वजह से उनकी आवाज भी अब कम ही सुनाई देती है। किसी जमाने की वो धारणा जिसमें राजेश खन्ना के लिए किशोर कुमार की, आमिर खान के लिए उदित नारायण की आवाज को उपयुक्त माना जाता था, अब नहीं रही। नूतन और मधुबाला के हर गाने को लता मंगेशकर की आवाज से पहचाना जाता था लेकिन गायक अभिजीत भट्टाचार्य का कहना है कि आज किसी गायिका द्वारा बीस गाने गाने के बाद भी कोई उसका नाम नहीं जानता। संगीतकार राम संपथ के अनुसार इस युग के संगीतकार स्वतंत्र हैं और वे अलग-अलग तरह की आवाज के साथ प्रयोग करना पसंद करते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम सुर के साथ समझौता करते हैं। कुछ हटकर सुनने की चाह इस समय के श्रोताओं में इस हद तक है जिसके चलते वे कुछ करने की धुन में हमेशा दिखाई देते हैं। शांतनु मोइत्रा ने परिणिता के लिए यह कोशिश की थी कि आवाज में क्लासिकल कम हो जो वेबसाइट पर युवाओं की पसंद बन सके। इसकी एक बड़ी वजह भारतीय सिनेमा में महिलाओं के पात्र में जिस तरह का बदलाव हुआ है, उसका असर गायकी पर भी दिखाई देता है। कुछ दशक पहले आम भारतीय महिला की आवाज के लिए लता मंगेशकर और लीक से हटकर गानों के लिए आशा भोंसले की आवाज को उपयुक्त माना जाता था। 1990 तक आर्केस्ट्रा में रहने वाले सौ लोगों को रिकार्डिंग से पहले अलग-अलग विभाजित किया जाता था। फिर ओ पी नैयर, अनिल बिस्वास और नौशाद इस बात पर भी ध्यान देते थे कि जिस अभिनेता के लिए गीत गाया जा रहा है, उस गायक के अनुसार आवाज को रूपांतरित किया जाए। इन बातों का ध्यान रखते हुए राज कपूर खुद रिकार्डिंग के समय स्टूडियो में मौजूद रहते थे। आजकल की जाने वाली रिकार्डिंग एक छोटे कमरे तक सीमित होकर रह गई है जहां गाने के अलग-अलग हिस्सों को अलग समय में रिकार्ड किया जाता है। अभिजीत भट्टाचार्य के अनुसार इन दिनों रिकार्डिंग के समय संगीतकार भी वहां रहना जरूरी नहीं समझते। वे ई-मेल से अपना ट्रेक भेज देते हैं और साउंड इंजीनियर गायक के साथ उसे रिकार्ड करता है। पूरा गाना एक दिन में कभी रिकार्ड नहीं होता। एक गायक को सबसे बुरा उस समय लगता है जब उससे कहा जाता है आप एक्सप्रेशन दीजिए बाकी हम संभाल लेंगे। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कभी सुर की तान पर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाले फिल्मी जगत में आज बेसुरापन गलत नहीं माना जाता। इसके बाद भी युवा गायक मानते हैं कि संगीत जगत में रचनात्मकता खत्म नहीं हुई है। आधुनिक तकनीकी की मदद से किसी गायक की आवाज की कमियों को तो छुपाया जा सकता है लेकिन आवाज में जान नहीं डाली जा सकती। गायकी की ये वही विशेषता है जिसका जवाब देना किसी के लिए भी मुश्किल ही होगा।

शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

सियासत की चाह में सेलिब्रिटी


चारों तरफ चुनाव के चर्चे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनैतिक पार्टियां चर्चित चेहरों को अपनी पार्टी में उतार रही हैं। नंदन नीलकेणी बैंगलोर से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। रिटायर्ड आर्मी चीफ जनरल वी के सिंह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर मौजूद थे। एथलीट कृष्णा पूनिया कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडऩे को तैयार हैं और ओलंपिक चैंपियन राज्यवर्धन सिंह राठौर चुनाव लडऩे के कारण सैन्य सेवा से इस्तीफा दे चुके हैं। सच तो यह है कि  राजनीति जो करवाए कम है। किसी ने अपनी नौकरी दांव पर लगा दी तो कोई अपने शानदार फिल्मी कैरियर को छोड़कर राजनैतिक दांवपेंच सीखते देखे जा रहे हैं...
  2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के 52 साल पुराने रिकॉर्ड को तोडऩे वाली डिस्कस थ्रोअर पूनिया ने कांग्रेस के टिकट पर राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया है। नवंबर में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनावों के लिए पूनिया को सदुलपुर से टिकट मिलने की उम्मीद है। एथेंस ओलंपिक्स में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौर औपचारिक तौर पर बीजेपी के साथ जुड़ गए। ओलंपिक में शूटिंग में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौर ने राजनीति में आगाज करते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया। गौरतलब है कि राठौर ने 2004 में भारत को एथेंस ओलंपिक में डबल ट्रैप शूटिंग में सिल्वर मेडल दिलाया था। राठौर के अनुसार खेलों में जो मेरी उपलब्धि है, वो व्यक्तिगत है लेकिन राजनीति मेरे जीवन को संपूर्णता प्रदान करेगी। सेलिब्रिटीज का राजनीति में पदार्पण नया नहीं है। साल दर साल कई सेलेब्स राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। इस लिस्ट में सुनील दत्त, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, राज बब्बर, शत्रुघ्न सिन्हा, गोविंदा, कीर्ति आजाद और मोहम्मद अजहरउद्दीन का नाम शामिल है। इसके अलावा अन्य क्षेत्रों से भी चुनावी मैदान में उतरने वाले दिग्गजों की कमी नहीं है जैसे आर्मी से बी सी खंडूरी और जे एफ आर जेकब, डिप्लोमेसी से शशि थरूर या विज्ञान जगत से राजा रमन्ना। शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं कि सेलिब्रिटी का राजनीति में आना अपनी मर्जी से विवाह करने जैसा है। इस परंपरा के चलते राजनैतिक पार्टियां लोगों के दिलों पर राज करने वाली इन हस्तियों को अपनी शक्ति मानती हैं और अधिक से अधिक क्षेत्रों में इन्हें उतारने की कोशिश में लगी रहती हैं।
सेलेब्स इसे शोहरत और शक्ति का शॉर्टकट मानते हैं। अब जबकि देश के राजनेताओं को भ्रष्टाचार सहित अपराध और जातिगत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, तब उनकी पार्टी में किसी नए सितारे का आगमन ताजी हवा के झोंके की तरह है। यही वजह है कि इंफोसिस के पूर्व सीईओ और विशिष्ट पहचान पत्र प्राधिकरण के अध्यक्ष नंदन नीलकेणी कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। 2012 में फोब्र्स मैगजीन की ओर से सबसे अमीर भारतीयों में शुमार किये गये नीलकेणी अपने गृह राज्य कर्नाटक से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। कहा तो यह जा रहा है कि  कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद नीलकेणी के समक्ष उनकी पार्टी के टिकट पर चुनाव लडऩे की पेशकश की है। कांग्रेस की तरह भाजपा ने राजेश खन्ना और सुनील दत्त को अपनी पार्टी के उम्मीदवार बनाकर चुनावी मैदान में उतारा था। हालांकि इससे पहले पार्टी के इन सदस्यों की कोई राजनैतिक पृष्ठभूमि नहीं थी लेकिन लोगों के बीच इनकी पॉवर को पहचानते हुए ये फैसला लिया गया। गौरतलब है कि राम जन्मभूमि का मुद्दा जिस समय हावी था, उन्हीं दिनों दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत हर घर में देखे जाते थे।  तब राम की भूमिका में अरुण गोविल, सीता की भूमिका में दीपिका और रावण की भूमिका निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी को राजनीति में उतारा गया था। ये बात अलग है कि राजनीति में आने वाले सभी सेलिब्रिटी इस क्षेत्र में सफल नहीं रहे और कई ऐसे भी हैं जिन्होंने जल्दी ही राजनीति से दूरी बना ली। तुलसी के रूप में टीवी पर छाई रहने वाली स्मृति ईरानी ने राजनीति में भी कामयाबी हासिल की। यद्यपि 2004 में वे कपिल सिब्बल से हार गई थीं लेकिन इस हार से उन्हें कोई खास नुकसान नहीं हुआ। वे आज भी उनकी पार्टी की मुख्य सदस्य मानी जाती हैं।
देखा जाए तो सितारों की प्रसिद्धि हर बार राजनैतिक पार्टियों के लिए फायदे का सौदा नहीं होती। 2009 में दक्षिण भारत के मशहूर फिल्म अभिनेता चिरंंजीवी की प्रजा राज्यम पार्टी द्वारा आयोजित रैली में लाखों लोग देखे गए थे लेकिन वर्ष 2009 में हुए विधानसभा चुनावों में चिरंजीवी की पार्टी को 294 में से अठारह सीटों पर विजय प्राप्त हुई। इस सबसे अलग चर्चित चेहरों का ये विश्वास भी कायम है कि राजनीति में आने का लक्ष्य जनता की सेवा करना है इसलिए पार्टी के अन्य सदस्य क्या कर रहे हैं, इसकी वे परवाह नहीं करते। इस बात का समर्थन जयपुर के राजघराने से संबंध रखने वाली दीया कुमारी भी करती हैं जिन्होंने फिलहाल भाजपा में सदस्यता ग्रहण की है। राजनीति क्षेत्र ही ऐसा है जहां जो आज आसमां छूता नजर आता है, वहीं उसे कल जमीन का मुंह देखने में भी देर नहीं लगती। शत्रुघ्न सिन्हा और हेमा मालिनी ऐसे ही नामों में से एक है। वहीं धर्मेंद्र और अजहरुद्दीन राजनेताओं के बीच कभी-कभार देखे जाते हैं। इस बार चुनावी दंगल में कौन से सेलिब्रिटी क्या कमाल दिखाएंगे, ये तो वक्त ही बताएगा।

राइडिंग स्टार्स


घुड़सवारी करने वाले अपने शौक  के लिए किसी खास वक्त का इंतजार नहीं करते, बल्कि जब मन चाहा वे घोड़ों के साथ वक्त बिताने पहुंच जाते हैं। कई सितारे तो ऐसे हैं जिन्हें अपने इस शौक के चलते कई बार अस्पताल का मुंह देखना पड़ा, जिनमें से मेडोना भी एक हैं...

रणदीप हुड्डा तनाव दूर करने का सबसे अच्छा मंत्र घुड़सवारी मानते हैं। हरियाणा के मोतीलाल नेहरू स्कूल में पढ़ाई के दौरान भी वे घुड़सवारी करते थे। हुड्डा कहते हैं कि मेरे लिए घुड़सवारी एक रोमांचक एडवेंचर है जो मेरे पसंदीदा खेलों में से एक है। सत्रह साल बाद रणदीप ने मुंबई आकर एकबार फिर अपने इस शौक को पूरा किया। फिल्मी जगत में आने के शुरुआती दौर में जब उनके पास काम की कमी थी तो वे अपना समय घुड़सवारी करने में ही बिताते थे। रणदीप के अनुसार तनाव दूर करने का सबसे अच्छा माध्यम हॉर्स राइडिंग है। रणदीप की तरह नसरुद्दीन शाह भी इस खेल के शौकीन हैं। ये दोनों ही मुंबई में एमेच्योर राइडर्स क्लब के सदस्य हैं। हॉलीवुड अभिनेत्रियों को भी घोड़ों की सवारी करना खूब रास आता है। पूर्व ग्लैमर मॉडल कैटी प्राइस मशहूर बिजनेस वूमेन के रूप में भी जानी जाती हैं। केटी ने राइडिंग की शुरुआत बचपन में की। उन दिनों को याद करते हुए वे कहती हैं कि मुझे सबसे अच्छा उस वक्त लगता था जब मैं मेरे छोटे भाई-बहनों के साथ अपने घर के अंागन में घोड़े के पीछे दौड़ लगाती थी। केटी ने घुड़सवारी का प्रशिक्षण लिया है और कई प्रतियोगिताएं भी जीती हैं। उन्हें ये भी सलाह दी गई थी कि वे ओलंपिक में प्रतिभागी बनें। वे चाइना में आयोजित हॉर्स फाइटिंग के दौरान जानवरों के साथ की जाने वाली निर्दयता के विरुद्ध भी आवाज उठाती रही हैं। अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध पॉप स्टार मेडोना के पास कई घोड़े हैं जिन्हें उनके कई म्यूजिक वीडियोज में भी देखा गया है।
2008 में अपने पति गाय रिची और बच्चों के साथ राजस्थान में छुट्टियां बिताने के दिनों में भी उन्हें घुड़सवारी करते देखा गया था। बिना हेलमेट के घुड़सवारी करने के लिए मेडोना की आलोचना  होती रही है। अप्रैल 2009 में हेम्पटंस में गर्मी की छुट्टियां बिताने के दौरान उन्होंने वोल्फर स्टेट वाइनयाड्र्स में ये शर्त भी रखी थी कि जिस समय वे राइडिंग करेंगी, तब वहां कोई और राइडिंग नहीं करेगा। उन्हीं दिनों घोड़े से गिरने के कारण
मेडोना को अस्पताल में भर्ती किया गया था। इससे पहले भी घोड़े से गिरने पर तीन बार उन्हें अस्पताल में दिन बिताने पड़े थे। बचपन से घुड़सवारी करने वाले सितारों को अपना ये शौक अभिनय जगत में हमेशा काम आता रहा है। राजीव खंडेलवाल ने 2008 में फिल्म 'खानÓ में एक पेशेवर घुड़सवार की भूमिका निभाई थी। इस भूमिका के लिए राजीव को घुड़सवारी का प्रशिक्षण नहीं लेना पड़ा, क्योंकि वे बचपन से घुड़सवारी करते रहे हैं। राजीव के पिता सेना में थे इसलिए बचपन से उन्हें राइडिंग सीखने को मिली। वे कहते हैं ये मेरा शौक है लेकिन मैं जानता हूं कि यह शौक होना और इसे पेशा बनाना दोनों में बेहद अंतर है। घोड़ों से एलर्जी रखने वाली केट मिडलटन ने पिछले साल अपने पति प्रिंस विलियम को खुश करने के लिए घुड़सवारी सीखी। विलियम की हमेशा से चाहत रही है कि मिडलटन उनके साथ घुड़सवारी करें क्योंकि उनके जीवन में शुरू से ही घोड़े महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। वह अपनी मां प्रिंसेस डायना को घुड़सवारी करते देखकर बड़े हुए हैं। उन्होंने बहुत जल्दी घुड़सवारी सीख ली थी। इसे सीखने से पहले ही उनके पास एक पोनी था। उनकी ख्वाहिश थी कि वे कैट के साथ घुड़सवारी करें।

काम संग करवाचौथ

वर्किं ग वूमन के लिए हर दिन चुनौतीपूर्ण होता है। फिर भी वे अपने सारे काम जिम्मेदारी के साथ पूरे करती हैं और साथ ही उन परंपराओं को सहेजती भी हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारी पहचान साबित होती हैं। हर बार की तरह इस बार भी करवाचौथ का दिन उन सभी वर्किंग वूमन के लिए भी खास है, जिन्हें समय पर ऑफिस के काम तो करना ही है लेकिन करवाचौथ के रीति-रिवाजों का ध्यान रखते हुए इस त्योहार की सारी परंपराएं भी निभानी हैं...

फैशन डिजाइनर पूर्वी सोजतिया के लिए करवाचौथ का विशेष महत्व है। इस दिन के लिए उन्हें पारंपरिक परिधान पहनना पसंद है। करवाचौथ पर वे साड़ी पहनती हैं और वेस्टर्न ड्रेस पसंद करने वाली युवतियों से यह कहना चाहती हैं कि अगर आप करवाचौथ पर भी वेस्टर्न ड्रेसेस पहनना चाहती हैं तो इंडो वेस्टर्न स्टाइल के कपड़े पहनें जो इस अवसर के लिए भी उपयुक्त हैं। पूर्वी अगर अपने बुटिक में व्यस्त हैं तो भी कुछ समय के लिए घर आकर पूजा करती हैं और फिर अपने काम में लग जाती हैं। माडर्न स्टाइल के अनुसार कपड़े पहनने की सलाह वे इस अवसर पर भी देती हैं। आप चाहे जो भी पहनें लेकिन स्टाइलिश बने रहने का भी ख्याल रखें, साथ ही काम के तनाव से दूर रहें और इस त्योहार का मजा लेें। वर्किंग वूमन के पास अपने प्रोफेशन को समय देने के लिए पूरा साल होता है लेकिन हर दिन करवाचौथ जैसा त्योहार नहीं आता जो खासतौर से महिलाओं के लिए ही बना है। तभी तो स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं नि:संतान व टेस्ट ट्यूब बेबी विशेषज्ञ डॉ. वर्षा जैन टाइम मैनेजमेंट को महत्व देती हैं। उनके अनुसार कामकाजी महिलाओं को टाइम मैनेज करना आना चाहिए। अगर वे इस गुण को सीख लेती हैं तो दूसरे कामों के साथ ही हमारे त्योहारों और रीति-रिवाजों को मनाना उनके लिए आसान हो जाता है। हां कई बार अपने प्रोफेशन की वजह से परंपराओं को निभाना आसान नहीं होता। करवाचौथ का व्रत रखकर वे दिनभर मरीजों की सेवा में व्यस्त रहती हैं और रात को अस्पताल के काम निपटाने के बाद व्रत खोलती हैं। वर्षा कहती हैं कि कई बार चांद निकलते ही व्रत खोलना मेरे लिए मुश्किल होता है क्योंकि उस समय मैं मरीजों के साथ होती हूं और वे मेरी प्राथमिकता हैं। फिर ये भी लगता है कि एक बार चांद निकला तो अब रात भर ही दिखेगा इसलिए जल्दबाजी नहीं करती। उनके अनुसार करवाचौथ से पति-पत्नी के भावनात्मक संबंध मजबूत होते हैं। फिर हम चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, इन परंपराओं का सम्मान तो सभी को करना चाहिए। रीति-रिवाजों को सहेजने का गुण महिलाओं में पारिवारिक माहौल को देखते हुए अपने आप ही आ जाता है। सफल एंडएवर की डायरेक्टर मनीषा आनंद पति-पत्नी को भावनात्मक रूप से जोड़े रखने का माध्यम करवाचौथ को मानती हैं। उनकी कोशिश होती है कि उस दिन व्रत होने की वजह से अपना काम एक दिन पहले ही पूरा कर लें।  मनीषा को अब भी कुछ साल पहले मनाया गया वह करवाचौथ याद है जब रात को अपने काम में व्यस्त होने की वजह से उन्होंने अपने ऑफिस की बिल्डिंग की छत पर ही पति के साथ व्रत खोला था। मनीषा कहती हैं करवाचौथ के दिन पति के लिए व्रत रख लेने से उनकी उम्र लंबी नहीं होती लेकिन मन में एक-दूसरे के प्रति श्रद्धा तो बढ़ती ही है। कुछ महिलाएं दूसरों का दिल दुखाकर व्रत रखती हैं और करवाचौथ से संबंधित सारे रीति-रिवाज पूरे करती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए व्रत रखने का कोई महत्व नहीं होता, जबकि व्रत की सार्थकता तो तब बनी रहती है जब कि सी का दिल दुखाए बिना व्रत रखा जाए। किसी को दुख देकर रखा गया व्रत कभी पूरा नहीं होता इसलिए करवाचौथ पर सबकी खुशियों का ख्याल रखें और खुद भी खुश रहेें। एजुकेशन एज की फाउंडर एडिटर अल्पना मिश्रा संयुक्त परिवार में रहती हैं। वे ये मानती हैं कि हर त्योहार की तरह करवाचौथ का मजा संयुक्त परिवार में ज्यादा आता है क्योंकि वहां अधिक लोग होने से खुशियों के मौके बढ़ जाते हैं। वे अपनी देवरानी के साथ मिलकर करवाचौथ की तैयारियां करती हैं। अल्पना कहती हैं आफिस के काम कभी खत्म नहीं होते लेकिन करवाचौथ जैसे त्योहार साल में एक बार ही आते हैं इसलिए इस त्योहार का आनंद लेना चाहिए। अन्य त्योहारों में रिश्तेदारों से मिलने और घर के काम करने में समय निकल जाता है लेकिन करवाचौथ पति के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करने का अच्छा माध्यम है। इस दिन ससुराल के सभी सदस्यों के साथ मिलकर पूजा करने और व्रत रखने का आनंद साल भर याद आता है।

सोमवार, 16 सितंबर 2013

रंगों में बिखरी रंगकर्म की छाप
जवा मेहता

संस्थापक जवा जोशी क्रिएटिव आट्र्स,
क्रिएटिव हेड, क्रिएटिव एप्रोच, लेेंक्सिंगटन, मास, बोस्टन



वरिष्ठ रंगकर्मी सतीश मेहता की बेटी जवा मेहता पिछले चौदह सालों से रंगकर्म के साथ ही पेंटिंग की दुनिया में उनके होम टाउन लेंक्सिंगटन में अपनी क्रिएटिव कंपनी का संचालन कर रही हैं। इस साल उन्हें कला जगत में विशेष योगदान के लिए बोस्टन में वुमेन ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। अब तक उन्होंने 250 नाटकों और 15 लघु फिल्मों में अभिनय किया है।   एक मुलाकात देश का नाम विदेशों में रोशन करने वाली जवा के साथ....

जवा एब्सट्रेक्ट और लैंडस्केप दोनों तरह की पेंटिंग बनाती हैं। वे गहरे रंगों का इस्तेमाल करना पसंद करती हैं। पिछले साल जवा ने विभिन्न प्रदर्शनी के दौरान भारतीय गांवों को अपने चित्रों द्वारा दर्शाया था और इस साल वे भारतीय लोक नृत्य पर आधारित पेंटिंग बना रही हैं। इसी साल जवा ने बोस्टन पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित एनप्लेन एयर आउटडोर पेंटिंग इवेंट्स के तहत वहां के प्रमुख सात पेंटरों के साथ लाइव पेंटिंग बनाई। रंगों की दुनिया में खास स्थान बना लेना जवा के लिए आसान नहीं था। उनके इस सफर की शुरुआत भोपाल से कुछ इस तरह से हुई।  जवा ने अपने घर में बचपन से रंगकर्म का माहौल देखा। उनके माता-पिता को लगता था कि जवा भी उन्हीं की तरह थियेटर की दुनिया में नाम कमाएंगी लेकिन जवा की रुचि पेंटिंग में थी। उन्होंने लक्ष्मीनारायण भारद्वाज से पेंटिंग की शिक्षा ली। महज तेरह साल की उम्र में जवा ने एब्सट्रेक्ट पेंटिंग बनाने की शुरुआत की। जवा ने फाइन आर्ट में पीएचडी किया और शादी के बाद वे बोस्टन चली गईं। पिछले साल पेरेलेक्स इंटरनेशनल आर्ट शो के दौरान उनके चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। वर्ष 2012 में लेंक्सिंगटन में ही जवा का सोलो आर्ट शो आयोजित हुआ था। वर्ष 2001 में इन्हें अटलांटा में गैलरी शो के दौरान सिल्वर अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा भोपाल, इंदौर, भिलाई, नागपुर और उज्जैन सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में जवा की पेंटिंग प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। जवा ने बोस्टन सहित अटलांटा में सीनियर वेब डिजाइनर साहित मल्टीमीडिया वेब डिजाइनर के तौर पर काम किया। इससे पहले वर्ष 1998 से मार्च 2000 तक भारत में सीनियर ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर काम किया। उनकी पेंटिंग में थियेटर की छाप दिखाई देती है। बोस्टन स्थित जवा के आर्ट स्कूल में हर साल लगभग 60-70 बच्चे पेंटिंग सीखते हैं। इन विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए चित्रों की प्रदर्शनी का वर्ष में दो बार आयोजन होता है। विदेश और अपने देश की कला संस्कृति में अंतर बताते हुए जवा कहती हैं कि हमारे देश में नए कलाकारों को बढ़ावा देने में लोग हिचकिचाते हैं लेकिन विदेशों में उन्हें प्रोत्साहित न करने वाले कला के कद्रदानों की कमी नहीं है। हालांकि कला के प्रति अब भारतवासियों का नजरिया तेजी से बदला है और वे श्रेष्ठ कलाकारों की अहमियत समझने लगे हैं। रंगों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को दर्शाने के साथ ही जवा ने बोस्टन में हिंदी मंच नाम की संस्था की स्थापना की। यह संस्था बच्चों को ड्रामा सिखाती है। इस काम में उनके पति हेतल जोशी का सहयोग सराहनीय है। जवा की सफलता का श्रेय हेतल सहित पिता सतीश मेहता और मां ज्योत्सना मेहता को है। जवा के अनुसार काम करने के लिए सबसे जरूरी इच्छाशक्ति का होना है। अगर इच्छाशक्ति प्रबल है तो काम के वक्त आने वाली हर मुश्किल से पार पाया जा सकता है। हाल ही में उनकी संस्था के विद्यार्थियों ने जिस नाटक का मंचन किया था जिसका नाम था पंडित और उसकी गाय। ये नाटक पंचतंत्र की कहानियों पर आधारित था। जवा चाहती हैं कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में विदेशियों को भी पता चले और वे इसकी कीमत समझें। विदेश में रहने वाले भारतीय जवा की इस कोशिश में पूरी तरह उनके साथ हैं। वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे अपने देश की संस्कृति से जुड़े रहें। जवा के अनुसार मेरे विद्यार्थियों में से कोई एक भी अगर इस कला को आगे बढ़ा सका तो उस दिन मेरी मेहनत सफल हो जाएगी।
बिंदास ब्वॉयज

एक वक्त वो था जब शहर का एक आम लड़का अपनी सीधी-सादी इमेज में रहते हुए उन सारे लड़कों का प्रतिनिधित्व विभिन्न फिल्मों के माध्यम से करता था, जिसे परफेक्ट हीरो मान लिया जाता था। वक्त के साथ जिस तरह से आज के लड़के बदले हैं, वही बदलाव बॉलीवुड के हीरों की इमेज में भी दिखाई देता है। अब वह सीधा सादा और परफेक्ट नहीं, बल्कि अक्खड़, मुंहफट और बिंदास ब्वॉय के रूप में दर्शकों के सामने है। इन दिनों हिट हुई कई फिल्मों ने युवाओं की ऐसी ही इमेज को सबके बीच ला खड़ा किया है....

अगर ये कहा जाए कि एक फिल्म सिर्फ मनोरंजन की वजह से सफल होती है तो सही नहीं होगा क्योंकि फिल्म को मनोरंजन से कहीं ज्यादा इस बात के लिए याद किया जाता है कि सिनेमा हॉल के अंधेरे में कैद न रहकर वह आपकी-हमारी जिंदगी की उन खाली जगहों में दाखिल होती जाती है, जहां हम खुद को झांकते हैं। साथ ही उन  सच्चाई और सपनों के बीच हम कुछ सवाल भी  मन में जोड़ पाते हैं। इस साल बॉलीवुड में बनने वाली ऐसी ही फिल्मों में से एक है फुकरे।
फुकरे मतलब गुड फॉर नथिंग किस्म के युवा। जेब से कड़के, किसी काम के नहीं, लेकिन ऊंचेसपने। हमेशा जुगाड़ में लगे रहते हैं कि किस तरह से सपने पूरे हों और बुरे काम करने में भी हिचकते नहीं हैं। ऐसे ही चार फुकरों की कहानी में जान डाली है पुलकित सम्राट के किरदार ने।
सरकारी स्कूल में पढऩे वाले दो छात्र हनी (पुलकित सम्राट) और चूचा (वरुण शर्मा) ऊंचे कॉलेज में जाने के सपने देखते हैं ताकि लड़कियों को पटा सकें । एक ही क्लास पास करने में कई साल लगाने वाले इन छात्रों को पता है कि वे इतने नंबर नहीं ला पाएंगे कि उन्हें मनपसंद कॉलेज में एडमिशन मिल सके। गलत रास्तों पर चलते हुए वे जिस परेशानी से गुजरते हैं, उसे ही फकरे में बयां किया गया है। ये कहानी स्ट्रीट स्मार्ट फुकरे लोगों की है, इसलिए संवादों में उसी तरह के शब्दों को शामिल किया है, जैसी वे भाषा बोलते हैं। ंै
युवाओं के दिल की कहानी बताने में इस साल काई पो छे ने सफलता का परचम लहराया। फिल्म काई पो छे में सुशांत सिंह राजपूत ने ईशान के किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है। ईशान पर क्रिकेट का जुनून सवार है। वह स्वभाव से आक्रामक है और क्रिकेट के प्रति अपनी दीवानगी के चलते वह कोई भी चुनौती लेने को तैयार रहता है। ऊपर से वह गुस्सैल और असंवेदनशील लगता है लेकिन अंदर से नर्म दिल है। फिल्म में ईशान का किरदार मौजूदा सिस्टम के प्रति नाराजगी जाहिर करता है।
फिल्म आशिकी 2 में आदित्य राय कपूर ने नशे में डूबे गायक और प्रेमी की भूमिका को पूरी तरह जिया है। फिल्म में आरोही शिरके एक बड़ी गायिका बनना चाहती है और उसकी मुलाकात जाने-माने गायक राहुल जयकर से होती है।  राहुल उसकी आवाज को सुनकर उसके कैरियर को एक मुकाम दिलाने में जुट जाता है लेकिन इस सारे चक्कर में उसका कैरियर अपने हाथ से फिसलने लगता है। राहुल शराब और हताशा के सागर में गुम हो जाता है। वह गुस्सैल, अपनी प्रेमिका की सफलता से जलने वाला, मर्जी का मालिक और अपने आसपास के लोगों से लड़ाई झगड़ा करने से न घबराने वाला है। आशिकी 2 ने आदित्य रॉय कपूर की बॉलीवुड में राह बदलने का काम बखूबी किया है। फिल्म ने चार दिन में 24.75 करोड़ रुपए का कारोबार किया। इन दिनों आम चेहरे वाले लड़के हीरो की भूमिका में खरे उतरते नजर आ रहे हैं। रांझणा फिल्म के नायक कुंदन के रूप में धनुष की दो चीजों के लिए दीवानगी देखते ही बनती है। पहला जोया जिससे वह बहुत प्यार करता है और दूसरा उसका शहर बनारस। छोटे शहरों में बसने वाले आम प्रेमी की कहानी रांझणा दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में पूरी तरह सफल रही। उसका एकतरफा प्यार एक बार फिर शाहरुख खान की फिल्म डर या अंजाम की याद दिलाता है। इरोस इंटरनेशनल की फिल्म इस फिल्म से कंपनी को पहले वीकेंड पर 31.5 करोड़ की कमाई हुई। इस साल की सुपर हिट फिल्म ये जवानी है दीवानी उन सारे युवाओं को खासा प्रभावित कर गई जो लाइफ इज एक पार्टी में यकीन करते हैं। फिल्म में नैना 'दीपिका पादुकोणÓ, बनी 'रणबीर कपूरÓ, अवि 'आदित्य रॉय कपूरÓ और अदिति 'कल्कि कोचलिनÓ चारों दोस्त हैं। सभी कॉलेज से पासआउट हुए हंसमुख समूह हैैं जो कि अपनी लाइफ हंसते-हंसते जीना चाहते हैं।
इनकी सोच तेजी से बदलती भावनाओं को बिल्कुल सही तरीके से पेश करती है। जो बताती है कि दोस्ती, प्यार और रिश्ते एक दूसरे को जोड़े रखते हैं। बनी मस्त जीवन जीने में विश्वास करता है जिसे तेज रफ्तार से जीना पसंद है और वो कहीं ठहरना नहीं चाहता। बनी का कमिटमेंट फोबिया उसे आज के युवाओं से जोड़ता है। नैना एक साधारण प्यार को सपनों की तरह जीने वाली पढऩे में तेज लड़की है। वहीं अवि और अदिति एक ऐसे अहसास के साथ जी रहे हैं जो आधुनिक समाज में समलैंगिकता को स्वीकार करने की छूट देता है। आम युवाओं को यह कहानी कहीं न कहीं अपने ही जीवन से जुड़ी हुई नजर आती है और फिल्म की यही बात इसे ब्लॉकबस्टर बनाने में सफल रही है।
हम दो
हमारे...



दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। एक वे जो ब"ो की चाहत में दिन-रात मन्नतें मांगते नहीं थकते और दूसरे वे जो ब"ाों के बिना आराम से जिंदगी गुजारने की ख्वाहिश रखते हैं। ऐशोआराम से भरपूर अपने जीवन में इन्हें ब"ाों की जरूरत कभी महसूस नहीं होती। क्या धीरे-धीरे हम उस परंपरा की तरफ बढ़ रहे हैं जब हम दो हमारे दो नहीं, बल्कि हम दो और हमारे कुछ भी नहीं तक परिवार सीमित होकर रह जाएगा....

ओपेरा विंफ्रे  और उनके पार्टनर स्टेडमेन ग्राहम एक दूसरे के साथ 1986 से रह रहे हैं। विंफ्रे ने कभी इस बात पर अफसोस नहीं किया कि उनके ब"ो नहीं हैं, बल्कि वे ये मानती हैं कि साउथ अफ्रीका के ओपेरा विंफ्रे लीडरशिप अकेडमी में शिक्षारत सभी लड़कियां उन्हीं की बेटियां हैं। वे कहती हैं ब"ो न होने की बात मैं कभी सोचती भी नहीं। इस अकेडमी में अभी 152 लड़कियां हैं। यह सोच सिर्फ विदेशी महिलाओं की ही नहीं है,  बल्कि हमारे देश में भी तेजी से बढ़ती भागदौड़ के बीच ब"ाों की जिम्मेदारी कुछ लोगों के लिए धीरे-धीरे बोझ बनती जा रही है। जॉर्ज क्लूनी ने हीट मैगजीन को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि एक दिन एक ब"ाा मेरे घर के पास आकर रुक गया। मुझे उस वक्त ये अहसास हुआ कि मैं किसी ब"ो का पिता बनकर नहीं रह सकता। मैं कई बार एंजेलिना जोली और ब्रेड पिट से कहता हूं कि वे कुछ दिन अपने ब"ाों के साथ मेरे घर आकर रहें ताकि मुझे ये महसूस हो कि जब घर में ब"ो रहते हैं तो कैसा लगता है। ऐसा नहीं है कि पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का ब'चों के प्रति रुझान कम हुआ है लेकिन ब"ाों को प्यार करने वाली महिलाएं भी खुद ब"ो नहीं चाहतीं। इवा मेंडिस कहती हैं मुझे ब"ाों से प्यार है लेकिन मैं ब"ो को जन्म देने की इ'छा नहीं रखती क्योंकि उनके साथ रात को जाग नहीं सकती। मुझे रात को नींद खराब करना बिल्कुल अ'छा नहीं लगता। यद्यपि रेखा ने ब"ाों की चाहत कई बार अपने इंटरव्यू में व्यक्त की है लेकिन हाल ही में दिए गए अपने इंटरव्यू में उन्होंने ये कहा कि एक ब"ो की परवरिश के लिए मां और पिता दोनों की जरूरत होती है लेकिन मेरे साथ पति के न रहने पर मुझे ये अहसास हुआ कि ब"ो नहीं हुए तो अ'छा ही हुआ। मेरे लिए ब"ाों की अकेले परवरिश करना मुश्किल था। आज महिलाएं अपने परिवार के लिए रोल मॉडल हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय काउंसिल द्वारा देश के चार बड़े शहरों में किए गए सर्वे के अनुसार 18 साल से अधिक उम्र की 7& प्रतिशत लड़कियां मानती हैं कि शादी के बाद ब"ो हो जाने पर उनकी आजादी खत्म हो जाएगी।
87 प्रतिशत लड़कियां शादी के बाद निकट भविष्य में ब"ाों को जन्म देना नहीं चाहतीं। शबाना आजमी ने जावेद अख्तर से शादी की। शबाना के ब"ो नहीं हैं। फरहान और जोया अख्तर जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी के ब"ो हैं। 29 वर्षीय कल्किी कोचलिन जब अपनी सहेलियों को उनके ब"ाों के साथ देखती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होता है कि उनकी जिंदगी में ब"ाों की जरूरत ही नहीं है क्योंकि वे शादी के बाद से ही दो ब"ाों की परवरिश कर रही हैं। उनके लिए कल्कि का पांच साल का भाई और अनुराग की पहली पत्नी की बारह साल की बेटी उनके अपने ही ब"ो हैं। कल्कि के ऐसे कई दोस्त हैं जो अपना ब"ाा नहीं चाहते। उनके पति अनुराग को भी ब"ो की ख्वाहिश नहीं है। कल्कि कहती हैं कि अब धीरे-धीरे हमारे समाज में ऐसा माहौल बढ़ता जा रहा है जहां ब"ाों से अधिक दूसरी प्राथमिकताओं की ओर लोग ध्यान दे रहे हैं। अन्य प्राथमिकताओं को महत्व देना कभी-कभी इतना जरूरी हो जाता है जिसके चलते ब"ाों की चाहत धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। ये कहना है प्रसिद्ध लेखिका अद्वैत काला का। &5 वर्षीय दिल्ली निवासी अद्वैत काला को लगता है कि अब महिलाओं की प्राथमिकताओं में ब"ो नहीं रहे। कई बार वे इस विषय पर भ्रम की स्थिति में रहती हैं, बल्कि कभी-कभी वे मेरी तरह अपनी राय स्पष्ट व्यक्त करती हैं। महिलाओं के पास अब नौ महीने तक ब"ाों को अपनी कोख में रखने और तकलीफ सहने का न तो समय है और न ही साहस। इस समय उन महिलाओं की भी कमी नहीं जो ये कहती हैं कि अगर भविष्य में कभी ब"ाों की जरूरत महसूस भी हो तो सरोगसी या अनाथ आश्रम से ब"ाों को गोद लेने जैसे विकल्पों को अपनाकर वे ब"ो की कमी को पूरा करना Óयादा पसंद करेंगी।

शनिवार, 13 जुलाई 2013

तस्वीरों में समाया मौसम मस्ताना 


कैमरा हाथ में रखना और इससे तस्वीरें खींचने का शौक तो सभी रखते हैं लेकिन हर मौसम को अपनी नजरों से देखना और प्रकृति के हर रंग की तस्वीरें कैमरे में कैद करने का हुनर सिर्फ फोटोग्राफर्स ही जानते हैं। बात अगर बारिश की हो तो इन फोटोग्राफर्स का कैमरे के प्रति जुनून देखते ही बनता है। हरी भरी वादियों और बारिश का मजा लेते नटखट बच्चों की तस्वीरें इनके कैमरे में तरह-तरह के एंगल से नजर आती हैं। शहर के फोटोग्राफर्स प्रकृति का मिजाज समझते हुए इसका भरपूर फायदा इन दिनों ले रहे हैं। सुहाने मौसम में एक नजर फोटोग्राफर्स की क्लिक पर...

मांडव का है अपना मजा
भावना जायसवाल
बारिश के मौसम में मालवांचल का हर क्षेत्र विशेष आकर्षण रखता है। इस मौसम में फोटो शूट करने की सबसे अच्छी जगह ओंकारेश्वर, महेश्वर और मांडव है। इसके अलावा ओरछा और चंदेरी हर फोटोग्राफर के लिए विशेष महत्व रखता है। प्रकृति इस समय पूरे शबाब पर है। ऐसे में अगर कुछ लोग यह मानते हैं कि बारिश का मौसम फोटोग्राफी के लिए उपयुक्त नहीं है तो ये उनकी गलत सोच है, जबकि इस मौसम से अच्छी फोटोग्राफी किसी अन्य मौसम में हो ही नहीं सकती। हमारी धरोहरों को देखने के शौकीन लोगों को अपनी ये तमन्ना जरूर पूरी करना चाहिए क्योंकि हर चीज पानी में साफ हो जाने की वजह से बहुत खूबसूरत दिखाई देती है। वेसे फोटोग्राफी करने का सबसे अच्छा समय सुबह व शाम माना जाता है लेकिन जिस समय बारिश होना बंद हो जाती है और बादल बिल्कुल साफ नजर आते हैं, उससे अच्छा समय फोटोग्राफी के लिए नहीं हो सकता।
बरतें सावधानी
- अगर इस मौसम में आप घूमने जा रहे हैं तो जिस होटल में रुकना है, उसके बारे में पूरी जानकारी पहले से ही रखें।
- ये मौसम एडवेंचर के लिए बना है इसलिए घर में रहने के बजाय घूमने-फिरने का पूरा आनंद लें।
जंगलों के बीच फोटोग्राफी
हेमंत वायंगकर
बारिश में जंगल की हरियाली को अपने कैमरे में कैद करने का अपना ही मजा है। जब तेज बारिश हो तब घने जंगलों में जाना मुश्किल होता है लेकिन बारिश कम होते ही जंगलों में वन्य प्राणियों और हरे भरे पेड़ों की तस्वीरें लेना मुझे बेहद पसंद है। इस नजरिए से बांधवगढ़ और कान्हा जाना मैं पसंद करता हूं। भोपाल में बड़े तालाब के विभिन्न दृश्य और इसके आसपास के स्थानों जैसे भीमबैठका की तस्वीरें बहुत अच्छी आती हैं। मेरे लिए सूर्योदय के बाद का समय फोटोग्राफी के लिए उपयुक्त है। इस समय प्रकृति के प्राकृतिक रंग बिल्कुल साफ दिखाई देते हैं। कुछ ऐसी तस्वीरें सिर्फ इसी मौसम में ली जा सकती हैं जैसे पानी में भीग रहे लोग, तेज पानी के बीच छतरी का उल्टा हो जाना, भीगते हुए बच्चे, छपाक से पानी में कूदना या बूंदों को हाथ में संजो लेना आदि जिन्हें हर युवा फोटोग्राफर्स को अपने कैमरे मेें
कैद करना चाहिए।
बरतें सावधानी
- जब भी घूमने जाएं तो अपने साथ कैमरा जरूर लेकर जाएं ताकि यादों को कैमरे में कैद किया जा सके।
- सुरक्षित स्थान से फोटोग्राफी करें। सिर्फ घूमने-फिरने ही नहीं, बल्कि चारों दिशाओं में फैली हरी भरी वादियों के बीच फोटोग्राफी करने के लिए भी घर से बाहर निकलें।
आंगन में प्रकृति का आनंद
शिशिर दीक्षित
इन दिनों मैं घर के आंगन में विभिन्न प्राकृतिक दृश्यों की फोटोग्राफी कर रहा हूं। पंछियों द्वारा पेड़ों पर घोंसले बनाना, कीट पतंगे, बारिश में फूलों पर पानी की बूंदों का जमा हो जाना मेरे प्रिय विषय हैं। वैसे मुझे मध्यप्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों जैसे झाबुआ और ढिंढोरी में फोटोग्राफी करना पसंद है। बारिश का मजा लेने के लिए भोपालवासियों को कहीं और जाने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि यहां की खूबसूरती का निखार बारिश में देखते ही बनता है। वन विहार, केरवा डैम के आसपास बने गांव, रातीबढ़ और नीलबढ़ की तस्वीरें बहुत अच्छी आती हैं।
बरतें सावधानी
- इन दिनों उत्तराखंड में आई विपदा की वजह से लोगों में बारिश को लेकर डर स्वाभाविक है। कई बार आप जहां जाते हैं वहां के स्थानीय निवासियों द्वारा दी गई जानकारी के बाद भी लोग उनका पालन नहीं करते और बाद में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है इसलिए अगर आपको कोई पहले से सचेत करे तो उसकी बात ध्यान से सुनें और उस पर अमल भी करें।
- फिसलने वाले जूते पहनने से बचें। अपने साथ दवाइयां ले जाना न भूलें।
बेबी से पहले बेबीमून
ब्रिटेन के शाही परिवार का अगला वारिस दुनिया में कब आएगा, पिछले काफी वक्त से इसको लेकर कयास लगते रहे हैं। एक मीडिया रिपोर्ट ने दावा किया है कि केट मिडलटन की डिलिवरी डेट तेरह जुलाई होगी। केट के मां बनने की खबर से लेकर बेबीमून के सफर तक की हर बात सुर्खियों में रही। इसी के साथ केट मिडलटन और प्रिंस विलियम का बेबीमून एक बार फिर गर्भावस्था के दौरान बेबीमून पर लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। बेबी के जन्म से पहले बेबीमून का ट्रेंड न सिर्फ अमेरिका, बल्कि भारत में भी तेजी से बढ़ रहा है...

 इस वक्त केट और प्रिंस विलियम का बेबीमून चर्चा में है। बेबीमून सिर्फ शाही परिवारों तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि अमेरिकन मीडिया हाउस द्वारा 2006 में किए गए सर्वे के अनुसार 59 प्रतिशत दंपति डिलीवरी से पहले बेबीमून का आनंद लेते हैं। बेबीमून की अवधारणा सिर्फ अमेरिका में ही नहीं, बल्कि भारत में भी है। इसे बढ़ावा देने के लिए हमारे देश के कई रिसोट्र्स और होटल्स विशेष ऑफर दे रहे हैं। बिजनेस वूमन पारुल ने केरल में बेबीमून का आनंद लिया। केरल की आयुर्वेदिक पद्धति और मसाज के बारे में पारुल को पहले से जानकारी थी। वहां की हरी भरी वादियों के बीच अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए उन्होंने मसाज सहित अन्य पद्धतियों का फायदा भी उठाया। मनोचिकित्सक डॉ. काकोली राय कहती हैं कि तेजी से प्रचलन में आया बेबीमून आपको सुकून की नींद सोने, एक दूसरे के साथ वक्त बिताने और प्यार भरे लम्हे जीने का भरपूर वक्त देता है। इसके फायदों को देखते हुए व्यस्त होने के बाद भी लोग बेबीमून पर जाना पसंद कर रहे हैं। जुलाई में केट मिडलटन की डिलीवरी से पहले इस शाही जोड़े ने वेस्टइंडीज के एक निजी आइसलैंड मस्टिक में बेबीमून मनाया। जिस भव्य विला में वे ठहरे थे उसका एक सप्ताह का किराया 30,000 डॉलर था। यहां उनकी निजता का पूरा ख्याल रखा गया। इस स्थान तक पहुंचने के लिए केट ने आठ घंटे की हवाई यात्रा की। समाजसेविका और टीवी एक्ट्रेस किम कारदाशियान ने बच्चे के जन्म से पहले रियो डि जेनेरियो में अपने प्रेमी केन्ये वेस्ट के साथ बेबीमून का मजा लिया। इस बारे में किम ने अपने ब्लॉग में लिखा
मुझे यह सुनकर दुख हो रहा है कि बच्चे के जन्म के बाद मैं कुछ समय तक उसके साथ यात्रा नहीं कर सकूंगी। गर्भावस्था में भी फैशन आइकन के रूप में प्रसिद्ध किम ने पांच इंच ऊंची हाई हील बेबीमून में भी पहनी। प्यार में डूबी इस जोड़ी का बेबीमून भी सुख्रियों में रहा जो ब्राजील की खूबसूरत वादियों में वक्त बिताने के बाद नाइजीरिया चला गया। गौरतलब है कि
पिछले महीने किम ने बेबी गर्ल को जन्म दिया। टीवी अभिनेत्री सांई और उनके पति शक्ति आनंद ने दो साल पहले बेबीमून की योजना अपने चंद दोस्तों के साथ बनाई। शक्ति इस बारे में कहते हैं  हमारी शादी को छह साल हो गए। अब वह समय आ गया है जब हमें परिवार को आगे बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए। उनके घर बच्चे का जन्म अगस्त में हुआ और इससे पहले ही सांई ने बेबीमून पर जाने की योजना बनाई। सांई के अनुसार बच्चे के जन्म के बाद कुछ सालों तक घूमना-फिरना मुश्किल रहेगा इसलिए उनके आने से पहले का समय कुछ खास होना चाहिए। सांई और शक्ति दोनों चाहते हैं कि उनके बच्चे का नाम संस्कृत के किसी शब्द से लिया जाए और इसीलिए दोनों ने संस्कृत की कई किताबें पढ़ डाली। अक्टूबर 2012 में विवेक ओबेराय अपनी पत्नी प्रियंका के साथ स्विट्जरलैंड बेबीमून के लिए गए थे। विवेक कहते हैं कि मेरी पत्नी और बहन दोनों की डिलीवरी एक ही महीने में होना है इसलिए मैं चाहता हूं कि अपने इस टूर में दोनों के लिए शॉपिंग करूं लेकिन घूमने-फिरने से ज्यादा ध्यान मुझे प्रियंका की खुशियों का भी रखना होगा ताकि गर्भावस्था में वह खुश रहे और एक स्वस्थ संतान को जन्म दे। गौरतलब है कि पिछले साल प्रियंका ने बेटे को जन्म दिया था।
बॉक्स में
-गर्भवस्था में सातवें महीने से पहले बेबीमून पर जाएं।
-सफर के दौरान भारी सामान उठाने से बचें।
-तैराकी करने और पहाड़ों पर चढऩे से बचें।
-अपने होटल या रेस्टोरेंट के पास स्थित अस्पताल की जानकारी अवश्य रखें।
कहां से आया बेबीमून
इस शब्द का उपयोग 1996 में सबसे पहले गर्भावस्था पर लेख लिखने वाली लेखिका शेला किटजिंगर ने किया था। यद्यपि उन्होंने बेबीमून को बच्चे के जन्म से पहले अभिभावकों को शांत और सुकून भरे पल साथ में बिताने के लिए प्रयुक्त किया था जिसे कुछ सालों बाद एक दूसरे के साथ घूमने फिरने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।
जब जाएं बेबीमून पर
-किसी स्पा में प्रेग्रेंसी मसाज करवाएं।
-समुद्र के किनारे वक्त गुजारें।
-खाने के दौरान पौष्टिकता का ध्यान रखें।
-प्रकृति के बीच पिकनिक की योजना बनाएं।
-बेबीमून पैकेज के बारे में पूरी जानकारी रखें और बजट के अनुरूप स्थान का चुनाव करें।

शनिवार, 11 मई 2013

मां से मैडम तक


घर में अगर वो मां की भूमिका निभाती हैं तो बाहर इन्हें मैडम कहने वालों की भी कमी नहीं है। देश की राजनैतिक ब्रिगेड में इनका खास स्थान है, वहीं स्टाइलिश पर्सनालिटी के रूप में भी वे छाई रहती हैं। अपनी-अपनी राजनैतिक पार्टी को मजबूत बनाने में वे कोई कमी नहीं रखना चाहती। इन्होंने अपनी राजनैतिक पार्टी की बागडोर मजबूती से थामने के अलावा मां की भूमिका भी बखूबी निभाई है....

प्रियंका गांधी
दमदार हस्ती- प्रियंका गांधी की राजनीति में भूमिका को विरोधाभास के रूप में देखा जाता है। हालांकि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस पार्टी के लिए लगातार चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई है। वे अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के निर्वाचन क्षेत्रों में एक लोकप्रिय व्यक्तित्व के रूप में छाई रहती हैं और लोगों को आकर्षित करने में सफल भी रही हैं।
वे करीबी हैं- राहुल गांधी और सोनिया गांधी की।
स्टाइल में भी नंबर वन- प्रियंका साड़ी पहने हुए जितनी खूबसूरत नजर आती हैं, उतने ही सलीके से वे शर्ट के साथ ट्राउजर पहनती हैं। भारतीय राजनीति में उनके डे्रस सेंस को पॉवर ड्रेसिंग का नाम दिया जाता है। लंबी आस्तीन वाले ब्लाउज के साथ कॉटन की साड़ी प्रियंका के स्टाइल सेंस का अंश है।
मां के रूप में- उनके दो बच्चे रेहान और मिराया हैं। वे कहती हैं कि मेरे बच्चे उनके आसपास स्थित सुरक्षा गार्ड की वजह से खुद को अन्य बच्चों से अलग महसूस करते हैं। उनके स्कूल में पढऩे वाले अन्य बच्चों में भी उन्हें लेकर उत्सुकता बनी रहती है लेकिन मैं उन्हें ये अहसास कराती हूं कि उन्हें अन्य बच्चों से अलग नहीं, बल्कि उन बच्चों जैसा ही बनना है। एक मां होने के नाते सही और गलत का अहसास कराना मेरा फर्ज भी है।
डिंपल यादव
डिंपल समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, विधानमंडल दल के नेता और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी हैं। वे कन्नौज से निर्विरोध सांसद चुनी गई हैं।
उनके करीबी हैं- मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव।
स्टाइल में भी आगे- स्टाइल के मामले में डिंपल की तुलना पाकिस्तान की हिना रब्बानी खार से की जाती है। तीन बच्चों की मां डिंपल की साड़ी पहनने का स्टाइल डिजाइनर्स के बीच भी उन्हें ग्लैमरस दिवा के रूप में पहचान दिलाता है।
मां के रूप में- उनके तीन बच्चे अदिति, अर्जुन और टीना हैं। डिंपल के अनुसार वे अपने बच्चों को गांवों में लेकर जाती हैं ताकि शहर के माहौल से दूर वे गांवों में बच्चों के साथ खेलें और वहां के शांत वातावरण को महसूस कर सकें।
किरण खेर
दमदार हस्ती -अभिनय के मंच पर चर्चित नाम है। वे पिछले तीन दशकों से फिल्मी दुनिया में छाई हुई हैं।
वे करीबी हैं- अरुण जेटली और नरेंद्र मोदी की।
उनकी स्टाइल- हैवी मेकअप, ब्रोकेड साड़ी और ज्वेलरी मनोरंजन की दुनिया के साथ-साथ  उनके राजनैतिक प्रोफाइल का भी हिस्सा है।
मां के रूप में - अभिनेत्री किरण खेर अपने बेटे सिकंदर खेर की परवाह किए बिना उस वक्त भी नहीं रह पाती, जब वह शूटिंग के लिए जाता है। वह कहती हैं कि मैं अपने बेटे को अभिनय से जुड़ी तमाम बारीकियां भी बताती हूं लेकिन ये बात अलग है कि वह उन बातों पर बहुत कम अमल करता है। एक मां होने के नाते अपने बेटे को फिल्म इंडस्ट्री के अच्छे-बुरे अनुभवों से अवगत कराना मेरी जिम्मेदारी भी है।
निर्मला सीतारमण
दमदार हस्ती- वे लंदन की एक रिसर्च कंपनी में कार्यरत थीं। हैदराबाद के परकला प्रभाकर नामक राजनैतिक विश्लेेषक के साथ उनका विवाह हुआ। उनका हैदराबाद में एक स्कूल है जिसे वे खुद संभालती थीं।
वे करीबी हैं- राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज की।
स्टाइल में भी आगे- वे अक्सर ग्रीन, पर्पल और ब्लू कलर की प्रिंटेड साड़ी पहने हुए नजर आती हैं। ज्वेलरी के रूप में उन्हें टॉप्स पहनना पसंद है।
मां के रूप में - निर्मला एक बेटी की मां हैं। देश में बढ़ती असुरक्षा के बीच अपनी बेटी के लिए उनकी चिंता इन शब्दों में बयां होती है- जब मैं मेरी बेटी की उम्र की थी तो कभी बड़े शहरों में नहीं रही। घर के बाहर का माहौल भी आज की तरह इतना असुरक्षित नहीं था लेकिन अगर मैं अपनी बेटी की बात करूं तो उसके घर से बाहर जाते ही मेरी चिंता बढ़ जाती है। हां, इतना जरूर है कि अब बेटियां परिस्थितियों के प्रति जागरूक हैं और खुद को संभालना जानती हैं।

शायना एन सी
दमदार हस्ती- वह फैशन डिजाइनर हैं। उनके पिता नाना चौदसामा मुंबई के शेरिफ पद से सम्मानित थे।
वो करीबी हैं- अरुण जेटली, नितिन गड़करी, नरेंद्र मोदी और एल के आडवाणी की।
स्टाइल में भी आगे- भाजपा प्रवक्ता के रूप में प्रसिद्ध ये फैशन डिजाइनर भारतीय राजनीति का एक ऐसा चेहरा है, जिसे वेस्टर्न और इंडियन दोनों तरह के आउटफिट पहने देखा जाता है।
मां के रूप में- शायना अपने बच्चों शनाया और अयान के साथ वक्त बिताकर अपनी थकान दूर करती हैं। उनके अनुसार हफ्ते भर के काम पूरे करने के बाद बच्चों के साथ लंदन के पार्क में समय बिताना पसंद है। पूना स्थित अपने घर में बच्चों के साथ समय बिताने से बढ़कर खुशी की बात एक मां होने के नाते मेरे लिए कुछ और नहीं हो सकती।
सुषमा स्वराज
दमदार हस्ती- वे भारत की पंद्रहवीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता चुनी गई हैं। इससे पहले वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में रह चुकी हैं और दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रही हैं।
वो करीबी हैं- राजनाथ सिंह और शिवराज सिंह चौहान की।
स्टाइल में भी आगे- माथे पर बड़ी बिंदी और बार्डर वाली साड़ी पहनना उन्हें खूब पसंद है।
मां के रूप में- मेरी बेटी बांसुरी के साथ बिताने के लिए मेरे पास समय की कमी चाहे रही हो लेकिन मैंने अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को हमेशा अलग-अलग ही रखा है। उसकी परीक्षा के दिनों में मैं उसके साथ रहती थी। मैं ये जानती हूं कि एक बच्चे के जीवन में जो भूमिका मां निभा सकती है, वो कोई और नहीं।
स्मृति ईरानी
दमदार हस्ती- स्मृति ईरानी 2003 में 'क्योंकि सास भी कभी बहू थीÓ टीवी धारावाहिक में तुलसी विरानी की भूमिका के बाद मशहूर हो गई थीं। वे 2004 से राजनीति में सक्रिय हैं।
वे करीबी हैं- नरेंद्र मोदी की।
स्टाइल में भी आगे- पारंपरिक साड़ी पहनने की शौकीन स्मृति का पल्लू डालने का स्टाइल परदे के आगे और पीछे बदलता रहता है।
मां के रूप में- स्मृति कहती हैं कि हर संडे बच्चों को समय दे पाना या घर में रहना मेरे लिए मुश्किल होता है लेकिन जब भी वक्त मिलता है मैं उसी दिन को संडे मानकर बच्चों के साथ वक्त बिताती हूं। अपने फार्म हाउस जाकर उनके साथ केरम खेलना या मिलकर किसी पुरानी साड़ी से टेंट बनाना उनकी खुशी में रंग जाने जैसा होता है।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013


ब्रेक तो बनता है


भारत के अरबपति अगर काम के मामले में कोई समझौता नहीं करते तो उनकी यही हालत आराम के मामले में भी होती है। अतिव्यस्त दिनचर्या के बाद जब बात काम से ब्रेक लेने की होती है तो वे दुनिया की सैर पर चल पड़ते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि उनके आरामगाह भी उन्हीं की तरह खास होते हैं...

लिक्वर बेरोन विजय माल्या उनकी आकर्षक जीवनशैली के लिए मशहूर हैं। याच के प्रति उनका पे्रम जगजाहिर है। उन्हें आराम के लिए फ्रांस स्थित फ्रेंच रिवेरा जाना पसंद है। क्रूज और याच के लिए फ्रांस के इस क्षेत्र को उपयुक्त माना जाता है। बेशुमार दौलत के मालिक इन अरबपतियों में से किसी को समुद्र के किनारे छुट्टियां बिताना रास आता है तो किसी को वन्य जीवों के बीच वक्त बिताना अच्छा लगता है। दक्षिण अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क में वन्य जीवों के बीच सुकून तलाशना भारत के बिलियोनेयर मुकेश अंबानी को खूब भाता है। वे सन् 2000 में अपने परिवार के साथ यहां छुट्टियां मनाने गए थे। उसके बाद 2010 में अनिल अंबानी ने परिवार के साथ यहां वक्त बिताया। इस नेशनल पार्क की ताजी हवा और लक्जरी उन्हें खूब रास आती है। इस नेशनल पार्क में ऐसे कई वन्य जीव देखने को मिलते हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। इन जानवरों को शिकारियों से बचाने के लिए कू्रगर नेशनल पार्क का निर्माण किया गया है। साथ ही लक्जरी टेंट युक्त अर्नेस्ट हेमिंग्वे में ठहरने का आनंद लिया जा सकता है। यहां स्थित प्राइवेट लॉज में जकूजी की सुविधा भी उपलब्ध है। काम के बीच अगर कुछ वक्त आराम को दिया जाए तो काम की रफ्तार दोगुनी हो जाती है। आदित्य बिरला गु्रप के चेयरमैन कुमार बिड़ला इस बात को अच्छी तरह समझते हैं। तभी तो वे हर साल दस दिन की छुट्टियां लंदन या सेंट मोरिट्ज में बिताते हैं। हसीन वादियों के बीच बसे बेहद खूबसूरत सेंट मोरिट्ज के बारे में कहा जाता है कि यहां 322 दिन में एक बार मुश्किल से धूप निकलती है। सुहाने मौसम की वजह से शाही परिवारों को यहां ठहरना खूब भाता है। स्विट्जरलैंड की इंगेडियन घाटी में सेंट मोरिट्स के नाम से बेहद खूबसूरत रिसोर्ट बनाया गया है। यहां आने वाले मेहमानों को कई रोमांचक गतिविधियों में भाग लेने का मौका मिलता है। इस जगह का अल्पाइन गेटवे दुनिया भर के अरबपतियों की मनपसंद जगह है। आदित्य बिड़ला अपनी पत्नी नीरजा के साथ कई बार नए साल का जश्न मनाने लंदन पहुंचते हैं। गोदरेज समूह के चेयरमैन आदि गोदरेज जितनी
गंभीरता से अपने बिजनेस को संभालते हैं उसी गंभीरता से घूमने के लिए उपयुक्त शहरों का चयन भी करते हैं। उन्हें घूमने-फिरने और अपनी फिटनेस को बनाए रखने का बेहद शौक है। उन्हें दक्षिण अफ्रीका के सिंगिता लॉज गेम पार्क और इटली के अमाल्फी कोस्ट जाना अच्छा लगता है। अमाल्फी कोस्ट पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। यहां की रहस्यमय गुफाएं देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ जमा रहती है। यहां मौजूद चट्टानों और चमकदार खाडिय़ों का सौंदय देखते ही बनता है। ये तो रही साल के दूसरे दिनों की बात लेकिन जब मौका नए साल का जश्न मनाने का हो तो इन्हें याद आती है गोवा के समुद्र तटों की। वे अपनी पत्नी परमेश्वर के साथ गोवा के समुद्र तट पर नए साल की पार्टी का आनंद लेने निकल पड़ते हैं। स्टील टायकून के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मी मित्तल को अपने आराम के लिए ऐसे घर की तलाश थी, जहां पहुंचने के बाद उन्हें तरोताजा होने के लिए कहीं और न जाना पड़े। शायद इसीलिए उन्होंने लंदन में 18-19 केनसिंगटन पैलेस गार्डन को 128 मिलियन डॉलर देकर खरीदा। ये जगह छुट्टी मनाने के लिए उन्हें विशेष तौर पर पसंद है। दुनिया भर के तमाम ऐशोआराम के सारे साजो सामान के साथ इस बंगले में 12 बेडरूम और एक इंडोर पुल है। टर्किश स्टाइल वाले बाथरूम और 20 कारों की पार्किंग वाला यह घर अपने आप में किसी पर्यटक स्थल से कम नहीं है। उन्होंने एक घर स्विट्जरलैंड के सेंट मोरिट्ज में भी खरीदा है। लक्ष्मी निवास मित्तल की तरह सेंट मोरिट्ज बजाज गु्रप के चेयरमैन राहुल बजाज के मनपसंद स्थानों में से एक है। आसमान को छूते हुए एक से बढ़कर एक रिसोर्ट इस शहर की शान माने जाते हैं। वीकेंड का आनंद सभी अपने विशिष्ट अंदाज में लेते हैं। एस्सास समूह के निदेशक शशि और रवि रूजा फ्रांस के दक्षिणी क्षेत्र में छुट्टियां बिताते हैं। लंदन और मुंबई में उनके घर भी हैैं। कभी-कभी वे गुजरात में उनके फार्म हाउस भी चले जाते हैं। इस दौरान प्रॉन खाना उन्हें पसंद है।
रेमंड ग्रुप के हेड विजयपत सिंघानिया घूमने-फिरने की नई-नई जगह तलाशते रहते हैं। वे चाहे कहीं भी चले जाएं लेकिन लंदन की खूबसूरती उन्हें हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती  है। बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज को सेंट मोरिट्स के अलावा इंटरलाकेन छुट्टियां बिताने के लिए सबसे ज्यादा पसंद आता है। स्विट्जरलैंड के इस खूबसूरत शहर में हर साल लाखों पर्यटक छुट्टियां बिताने आते हैं। रतन टाटा के उत्तराधिकारी सायरस मिस्त्री अपने प्राइवेट जेट से यूरोप की यात्रा पर जाना पसंद करते हैं। सामाजिक समारोह में बहुत कम जाने वाले सायरस मिस्त्री का पूना स्थित फार्म हाउस 200 एकड़ में फैला हुआ है। उन्हें घुड़सवारी करने का बेहद शौक है। अपने इस शौक को वे इसी फार्म हाउस में पूरा करते हैं।


आईपीएल में लगा स्टाइल का सिक्सर 


ग्लैमरस स्पोर्टिंग इवेंट के नाम से अपनी खास पहचान रखने वाले आईपीएल खेलों में स्टाइलिश क्रिकेट खिलाडिय़ों की हर अदा देखते ही बनती है। भारतीय टीम के स्टाइलिश क्रिकेटर्स में सबसे आगे हैं विराट कोहली। वे स्टाइल के साथ-साथ सुविधा का भी पूरा ख्याल रखते हैं। वे अक्सर कैजुअल वियर को खास अंदाज में पहने हुए नजर आते हैं। औपचारिक अवसरों पर ब्लैक जींस के साथ व्हाइट और ब्लैक शर्ट पहने हुए उन्हें देखा जा सकता है। उनके चेहरे पर बिखरी हल्की सी मुस्कान दर्शकों को उनकी ओर आकर्षित करती है। अपने लुक्स के साथ अगर कोई नए-नए प्रयोग करता नजर आता है तो वो हैं महेंद्र सिंह धोनी और सचिन तेंदुलकर। अक्सर वे गहरे रंगों वाले टी शट्र्स पहनना पसंद करते हैं। उसके बाद बारी आती है जहीर खान की। वे उन क्रिकेटर्स में से एक हैं जो मौसम के अनुसार अपनी स्टाइल और कपड़ों को बदलने का शौक रखते हैं। वे सूट के अलावा लिनेन की ट्राउजर और जींस में भी आरामदायक महसूस करते हैं। उन्हें नाइक  के टी शट्र्स और जैकेट्स के साथ जींस पहनना पसंद है। औपचारिक अवसरों के लिए वे अपने खास टेलर से ही कपड़े सिलवाना पसंद करते हैं। दूसरों से अलग शॉन टैट भारतीय मॉडल्स के लिए प्रेरणादायी हैं। ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटर्स शॉन की चर्चा उस समय भी थी जब पिछले साल उन्होंने रैंप पर कैट वॉक किया था। पार्टी में वे क्लासिक और क्रिकेट की प्रेक्टिस के दौरान कैजुअल वियर पहने दिखाई देते हैं। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और सेक्सी हेयर स्टाइल वाले माइकल क्लार्क की स्टाइल युवाओं में देखते ही बनती है। लुक्स के मामले में सबसे ज्यादा स्कोर पाने वाले माइकल फैशन में इन रहने के लिए अपने वार्डरोब को बदलने की कला भी जानते हैं। उन्हें सबसे अच्छे कपड़े पहनने वाला और सबसे फैशनेबल क्रिकेटर्स के तौर पर देखा जाता है। दुर्भाग्य से चोट लगने की वजह से केविन पीटरसन की तरह वे भी इस बार आईपीएल में नजर नहीं आएंगे। फैशन को लेकर उनका कहना है कि युवाओं को अपने लिए उपयुक्त कपड़ों का चयन करने से ज्यादा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जो कपड़े वो पहन रहे हैं उसे किस तरह पहना जा रहा है। युवाओं के बीच जिस क्रिकेटर का स्टाइल छाया रहता है, उनमें सुरेश रैना का नाम शामिल है। सुरेश के कूल स्टाइल को परफेक्ट बनाए रखने में उनके वार्डरोब का सबसे बड़ा हाथ है। सुरेश को फैशनेबल कपड़े खरीदना और पहनना अच्छा लगता है। एक से बढ़कर एक स्टाइलिश क्रिकेटर की लिस्ट में ब्रेट ली किसी से कम नहीं हैं। उनकी रॉकस्टार स्टाइल को देखते ही युवा उन पर फिदा हुए बिना नहीं रहते। लड़कियों के चहेते इस खिलाड़ी को कैजुअल वियर पहनना पसंद है। इस तरह के कपड़ों को ट्रेडिशनल टच के साथ पहनना वे जानते हैं। एक समय वो था जब युवराज सिंह का नाम कई बॉलीवुड अभिनेत्रियों के साथ जुड़ा। उन्हीं दिनों से युवराज अपने लुक्स और ड्रेसेस को लेकर सजग रहते हैं। बात चाहे प्रमोशनल इवेंट्स की हो या स्क्रीनिंग की, वे कैजुअल वियर के साथ स्मार्ट दिखने की कला जानते हैं। हॉटेस्ट क्रिकेटर्स के रूप में केविन पीटरसन की शैली सबसे अलग है। युवाओं में उनकी सेक्सी हेयर स्टाइल 'मोहाकÓ छाई रहती है। राहुल द्रविड़ उन खिलाडिय़ों में से एक हैं जिनके वार्डरोब में सोबर कपड़ों की भरमार है। स्टाइल के मामले में राहुल दूसरे खिलाडिय़ों से पीछे ही सही पर वे स्मार्ट ड्रेसिंग और जेंटल लुक की वजह से दर्शकों के चहेते खिलाड़ी बने रहते हैं। फैशनेबल बने रहना सबके लिए आसान नहीं रहता। ये बात अगर इरफान पठान के लिए कही जाए तो गलत नहीं होगा। इरफान फैशन से अलग सुविधायुक्त टी शट्र्स और ट्राउजर्स पहनने को तरजीह देते हैं। ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटर  ग्लैन मैक्सवेल  ट्रेंडी लुक को अपने लिए उपयुक्त नहीं मानते।
- ईसा बेल लेटी विराट कोहली की गर्लफ्रेंड हैं। फिलहाल वे मॉडल हैं और जल्दी ही बॉलीवुड फिल्मों में नजर आने की तैयारी कर रही हैं।
 -शिखर धवन की पत्नी आयशा मुखर्जी कुशल बॉक्सर होने के साथ ही दो बेटियों की मां हैं। मां बनने के बाद भी फैशन के प्रति उनकी समझ उनके पहनावे में झलकती है।
 -सांवली सलोनी और खूूबसूरत बालों वाली शेमोन जार्दिम जैक्स केलिस के दिल पर राज करती हैं। शेमोन इस हसीन मॉडल के साथ पिछले पांच सालों से डेटिंग कर रहे हैं।
- ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज मिशेल जॉनसन की पत्नी जेसिका बेटिच जॉनसन कराटे चैंपियन होने के साथ ही सक्सेसफुल डिजाइनर के तौर पर जानी जाती हैं।
- शेन वॉटसन की प्रेमिका ली फर लॉन्ग को नंबर वन वेग्स के नाम से जाना जाता है। इस मामले में उन्होंने विक्टोरिया बेकहम को भी पीछे छोड़ दिया है।
- जेनी किट्जमेन डेल स्टेन की पत्नी, साउथ अफ्रीका की मॉडल और अभिनेत्री हैं। स्टाइलिश क्रिकेट वेग्स की श्रेणी में जेनी किसी से कम नहीं हैं।
-ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट टीम कप्तान क्लार्क की पत्नी काइली मॉडल और प्रेजेंटर हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी काइली शियर कवर मेकअप की ब्रांड एंबेसेडर हैं। वे गाउन से लेकर शाट्र्स हर तरह की ड्रेस में अपने स्टाइल को बनाए रखना जानती हैं।

शनिवार, 2 मार्च 2013


हक की बात
हक के साथ



देशभर में महिला अधिकारों की बात बड़े ही जोर-शोर से उठाई जा रही है। सच्चाई यह भी है कि देश की अधिकांश महिलाओं को सही मायनों में उनके अधिकारों की जानकारी ही नहीं है। एक ओर अगर हम उनकी सुरक्षा को लेकर आज नए अधिकारों की मांग कर रहे हैं तो दूसरी ओर इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि जो अधिकार उन्हें प्राप्त हैं, सबसे पहले वे उन अधिकारों के प्रति जागरूक हों....

सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता व शर्मीलेपन का ताज पहनाया
जाता है, जिसके बोझ से दबी महिला कई बार जानकारी होते हुए भी अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाती। बहुत से मामलों में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ हो रही घटनाएं हिंसा हैं और इससे बचाव के लिए कोई कानून भी है। आमतौर पर शारीरिक प्रताडऩा यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है।
इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंतर्गत मारपीट से लेकर कैद में रखना, खाना न देना व दहेज के लिए प्रताडि़त करना आदि आता है, के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सजा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताडऩा की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताडऩा के केस ज्यादा होते हैं।
इस तकलीफ को आमतौर पर एक सीमा तक महिलाएं बर्दाश्त करती हैं, क्योंकि परंपरा के नाम पर बचपन से वे यह सहती रहती हैं, लेकिन घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 इन स्थितियों में भी महिला की मदद करता है। इस बारे में अधिवक्ता इंदिरा शुक्ला कहती हैं कि यह धारा महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है जो उन्हें दुर्गा का रूप प्रदान करती है। खास बात यह है कि घरेलू हिंसा अधिनियम में सभी महिलाओं के अधिकार की रक्षा की संभावना है। इसके तहत विवाहित महिला के साथ-साथ अविवाहित, विधवा, बगैर शादी के साथ रहने वाली महिला, दूसरी पत्नी के तौर पर रहने वाली महिला व 18 वर्ष से कम उम्र के लड़की व लड़का सभी को संरक्षण देने का प्रयास किया गया है। इस कानून में घर में रहने का अधिकार, संरक्षण, बच्चों की कस्टडी व भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार महिलाओं को मिलता है, जो किसी और कानून में संभव नहीं है।
इतनी सुविधाओं के बावजूद अगर कहीं कमी है तो महिलाओं के जागरूक होने में है। इस समय उन्हें उनके हितों का ध्यान रखते हुए जो अधिकार मिले हैं, वो पर्याप्त हैं। इन अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने के लिए वर्कशॉप का आयोजन होना चाहिए। इसका लाभ अधिक से अधिक महिलाओं को मिलेगा। कुछ महिलाएं अगर इन अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहती भी हैं तो कभी भावनात्मक संबंध सामने आ जाते हैं तो कभी समाज में अपमानित होने की वजह से वे आवाज उठाने से डरती हैं। उनके अपने डर की वजह से ही उन्हें न्याय नहीं मिल पाता। अगर बात आज के परिदृश्य में की जाए तो उन महिलाओं की कमी नहीं जो आसमान छू रही हैं पर यह भी सच है कि महिलाओं व लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा भी सीमा से आगे बढ़ रही है। हर व्यक्ति जन्म से ही कुछ अधिकार लेकर आता है चाहे वह जीने का अधिकार हो या विकास के लिए अवसर प्राप्त करने का, परंतु इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर किए जा रहे भेदभाव की वजह से महिलाएं इन अधिकारों से वंचित रह जाती हैं। इसी विचार के चलते महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु हमारे संविधान में अलग से कानून बनाए गए हैं या समय-समय पर इनमें संशोधन किया गया है। इन अधिकारों की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना भी अब आसान है। इस बारे में अधिवक्ता संतोष मालवीय कहते हैं कि महिला अधिकारों को लेकर प्रशासन ने कुछ किताबें जारी की हैं। इन किताबों में महिलाओं के अधिकार सहित महिला आयोग, मानव अधिकार आयोग और अदालत संबंधी सारी जानकारी उपलब्ध है। इन किताबों को हर महिला को पढऩा चाहिए। इस बारे में आपस में एक-दूसरे से बातचीत करने पर कानून संबंधी सारी जानकारी मिलना मुश्किल है लेकिन अपने अधिकारों को जानने के लिए ये किताबें हर महिला की मददगार साबित हो सकती हैं।

हिम्मत की कमी है
महिला अधिकारों के बारे में अगर किसी अशिक्षित महिला को जानकारी नहीं है तो बात समझ में आती है लेकिन अगर शिक्षित महिलाएं इस बारे में सजग नहीं हैं तो यह स्थिति दुखद है। मैंने यह भी देखा है कि महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी तो है लेकिन उनमें हिम्मत की कमी है। कई बार सामाजिक और पारिवारिक मजबूरियों की वजह से वे जुर्म सहती रहती हैं। मैं कहना चाहूंगी कि अब तक आपने बहुत धीरज रखा लेकिन अब वक्त आ गया है जब चुप रहकर नहीं, बल्कि अपने अधिकारों को पाकर आगे बढ़ें।
उपमा रॉय
अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग


समीक्षा भी जरूरी है
एक बार फिर यह खबर है कि इस साल महिला दिवस पर मुख्यमंत्री महिलाओं के लिए नई योजनाओं की घोषणा करेंगे लेकिन पिछले साल जिन योजनाओं की घोषणा की गई थी, उनके परिणामों की जानकारी किसी को नहीं है। अभी जरूरत नई योजनाओं को लागू करने के साथ ही इस बात की भी है कि पिछले साल की योजनाओं की समीक्षा हो। ये सारी बातें सिर्फ कागजों तक ही सीमित क्यों हैं?
रोली शिवहरे
सामाजिक कार्यकर्ता


प्रयास अपने स्तर पर हो
एक महिला को उसके अधिकारों के बारे में जानकारी देने का काम आसपास की महिलाओं को अपने स्तर पर करना चाहिए। अगर हम किसी को परेशानी में देखते भी हैं तो यह उसकी समस्या है, बस इतना सोचकर पल्ला झाड़ लेते हैं, जब तक ये मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक परेशानी बनी रहेगी।
दीप्ति सिंह
सचिव, म.प्र. कांग्रेस कमेटी, अध्यक्ष, प्रियदर्शनी संस्था


महिलाओं को मिले अधिकार
- घरेलू हिंसा के खिलाफ
- दहेजी विरोधी कानून
- प्लांटेशन लेबर एक्ट
- संपत्ति में बराबर का अधिकार
- वेतन में बराबरी का अधिकार
- मातृत्व लाभ कानून
- स्पेशल मैरिज एक्ट
- सती विरोधी कानून
- गर्भपात कानून

लंबा हुआ इनका इंतजार
- महिला आरक्षण बिल
बिल में महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण देने की बात है लेकिन इस बिल का शुरू से ही विरोध हो रहा है। राज्यसभा ने इस बिल को 9 मार्च को पारित किया था, परंतु लोकसभा में अब तक इस पर वोटिंग नहीं हुई है। लोकसभा में पेश करने पर सपा इस बिल को फाड़ चुकी है। तब से यह बिल दोबारा लोकसभा में नहीं आया है।
- हिंदू विवाह कानून संशोधन बिल, 2012
इस कानून में तलाक को आसान बनाने के प्रावधान किए गए हैं। इसमें दोनों पक्ष तलाक के लिए राजी होने की स्थिति में महिला के  लिए आसान शर्तें रखी गई हैं लेकिन यह बिल भी संसद में लंबित है।
- कार्यस्थलों पर यौन उत्पीडऩ रोकथाम बिल
यह बिल कार्यस्थलों पर महिलाओं को सुरक्षित माहौल मुहैया करवाने के लिए लाया गया था।
- अश्लील चित्रण रोकथाम संशोधन बिल 2012
बिल में टीवी, अखबार और विज्ञापनों में महिलाओं को वस्तु की तरह परोसने की रोकथाम करने से संबंधित है। यह बिल मानसून सत्र 2012 में राज्यसभा में पेश हो चुका है।
- आपराधिक कानून संशोधन बिल 2012
यह बिल भी संसद में लंबित है। इसमें रेप तथा यौन हमलों को रोकने के प्रावधान हैं। इसके अंतर्गत यौन हमलों की शिकायत अब पुरुष भी कर सकते हैं।
- राजीव गांधी नेशनल क्रेच स्कीम फॉर दि चिल्ड्रन ऑफ वर्किंग मदर

दुनिया के मुकाबले कहां हैं भारत की महिलाएं
- शिशु मृत्यु दर (प्रति एक हजार जन्म पर) भारत में 73 प्रतिशत और दुनिया में 60 प्रतिशत
- मातृ मृत्यु दर (प्रति एक लाख जन्म पर) 570 प्रतिशत और दुनिया में 430 प्रतिशत
- महिला साक्षरता 58 प्रतिशत और 77.6 प्रतिशत
- विद्यालयों में बालिकाओं का पंजीकरण भारत में 47 प्रतिशत और दुनिया में 62 प्रतिशत
- महिलाओं की कमाई भारत में 26 प्रतिशत और 58 प्रतिशत
- सामान्य से कम वजन के बच्चे भारत में 53 प्रतिशत और 30 प्रतिशत
 - कुल जन्म दर भारत में 3.2 प्रतिशत और दुनिया में 2.9 प्रतिशत
- जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे भारत में 33 प्रतिशत और दुनिया में 17 प्रतिशत

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

स्वस्थ रहें
मस्त रहें
केन सपोर्ट संस्था के द्वारा घोषित आंकड़ों के अनुसार आज भारत में ढाई करोड़ लोग कैंसर के मरीज हैं और लगभग एक लाख कैंसर के मरीज हर साल बढऩे से कैंसर से पीडि़तोंं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी कैंसर को लेकर समाज में कई भ्रांतियां फैली हैं। लोगों में जागरूकता अभी भी कम है जिसकी वजह से कई बार रोगी इस रोग की गंभीरता को समझ ही नहीं पाते। सही समय पर और सही डॉक्टर की देखरेख से कैंसर का इलाज संभव है। इस भयावह बीमारी के बारे में हमने बात की शहर के प्रसिद्ध कैंसर रोग विशेषज्ञों से और जाने उनके अनुभव कुछ इस तरह...

इलाज संभव है
डॉ. श्याम अग्रवाल
कैंसर रोग विशेषज्ञ
डायरेक्टर, नवोदय कैंसर हॉस्पिटल
अगर शरीर में असामान्य लक्षण जैसे मुंह कम खुल रहा हो, खांसी में खून, पेशाब या मल-मूत्र में खून हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए क्योंकि ये सारे कैंसर के लक्षण हैं। लोग यह जानते हैं कि ये सारे कैंसर के लक्षण हैं, लेकिन फिर भी शरीर में असामान्य लक्षण दिखने पर लोग उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे रोग बढ़ जाता है। आश्चर्य तो इस बात का है कि सिगरेट और शराब के विज्ञापन से लेकर इन्हें बेचने वाली दुकानों पर वैधानिक चेतावनी भी लिखी होती है। उसके बाद भी लोग नहीं समझते और दूसरों की देखादेखी इस नेश का सेवन करते रहते हैं। स्कूलों के आसपास 100 मीटर तक तंबाकू की दुकान प्रतिबंधित है। यहां तक कि 18 साल से कम उम्र के व्यक्तियों को तंबाकू या गुटखा बेचने पर भी पाबंदी है। इसी तरह सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीने वालों को 200 रुपए जुर्माने का भी प्रावधान है लेकिन ये सारे नियम सिर्फ कागजों तक सीमित हैं। इन नियमों की अनदेखी करते हुए अधिकांश गुटखे की दुकानें स्कूलों के आसपास बनी हुई है जहां से विद्यार्थी इन्हें खरीदकर कम उम्र में ही इस नशे के आदी हो जाते हैं। इसी तरह हमारे देश में सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीने वालों को 200 रुपए जुर्माने की सजा का प्रावधान है लेकिन इन स्थानों पर सिगरेट पीना आम है जिसे कोई रोकने वाला नहीं है। अगर हम विदेशों की बात करें तो वहां सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीने पर 25000 जुर्माना लगता है इसलिए ऐसे स्थानों पर लोग धूम्रपान करने से डरते हैं लेकिन हमारे देश में अगर कहीं कोई व्यक्ति पकड़ा भी जाता है तो उसे ये मालूम है कि वह 200 रुपए देकर छूट जाएगा। कई सेलिब्रिटी कैंसर का इलाज विदेशों में करवा रहे हैं, जिससे आम लोगों को यह लगता है कि यहां कैंसर की सुविधाएं वहां से कम हैं, जबकि ऐसा नहीं है। जो इलाज युवराज सिंह को विदेशों में मिल रहा है वो कई साल पहले क्रिकेटर जे पी यादव को मैंने यहीं रहते हुए दिया था जिसकी वजह से वे आज भी स्वस्थ हैं और अभी तक क्रिकेट खेल रहे हैं। कुछ समय पहले एक युवती मेरे पास आई थी जिसके एक फेफड़े में पानी भर गया था। उसके बचने की उम्मीद कम थी लेकिन लगातार कुछ महीनों तक इलाज के बाद अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।

याद रखें
- कैंसर का इलाज संभव है इसलिए इसे लाइलाज बीमारी समझने की भूल न करें।
- इलाज के दौरान अपने दिमाग का इस्तेमाल करने के बजाय डॉक्टर की राय मानें।

जीवन शैली बदलें
डॉ. सुनील कुमार
डी.एम. मेडिकल ओंकोलॉजिस्ट
जवाहर लाल नेहरू, कैंसर हॉस्पिटल

भोपाल में कैंसर के सबसे ज्यादा मरीज मुंह के कैंसर के हैं। महिलाओं में गर्भाशय और बच्चेदानी का कैंसर सबसे ज्यादा हो रहा है। लोगों की अनियमित दिनचर्या और खान-पान की गलत आदतों का असर जानलेवा बीमारियों जैसे कैंसर के रूप में सामने आ रहा है। देर से शादी होने और डिलीवरी के बाद बच्चों को स्तनपान न करवाने की वजह से स्तन कैंसर का खतरा महिलाओं को ज्यादा रहता है। आजकल महिलाओं में सिगरेट और शराब पीने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है जो कैंसर के फैलने का मुख्य कारण होता है। इस समय सबसे ज्यादा कैंसर 30 से 60 साल के व्यक्तियों को हो रहा है। इसी उम्र के लोगों पर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में अगर लोग अपने सेहत की परवाह न करते हुए इस रोग के प्रति सतर्क नहीं रहते हैं तो पूरा परिवार इस गलती का खामियाजा भुगतता है। बच्चों में लिम्फोमा, ल्यूकेमिया और ब्रेन कैंसर अधिक हो रहा है। इसका मुख्य कारण गर्भावस्था के दौरान बार-बार एक्सरे होना या गलत दवाओं का इस्तेमाल होता है। बच्चे के जन्म के बाद भी अगर उसे बार-बार वायरल इंफेक्शन होता है तो कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है।
बरतें सावधानी
- इसका इलाज लंबे समय तक चलता है। इस दौरान मरीजों को धैर्य बनाए रखते हुए सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए।                         
- महिलाओं को गर्भाशय और बच्चेदानी के कैंसर से बचने के लिए पेप्समियर टेस्ट करवाएं।  सरवाइकल कैंसर और हेपेटाइटिस बी से बचने के लिए वैक्सीन बाजार में उपलब्ध है, इन्हें जरूर लगवाएं।

डॉ. प्रशांत कुमार जैन
कैंसर सर्जन
चिरायु हॉस्पिटल
रोबोट पद्धति वरदान है
कैंसर के लिए बनाई गई आधुनिक टारगेटेड थेरेपी के द्वारा बिना किसी साइड इफेक्ट के इलाज संभव है। इसके अलावा कीमोथेरेपी, रेडिएशन, आईएमआरटी और इम्युनोथेरेपी के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है। कैंसर के रोगियों के लिए रोबोट पद्धति वरदान साबित हो रही है। इस रोग से बचने के लिए सबसे पहले समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करना होगा। मेरे पास जो मरीज आते हैं, उनमें से कुछ का यह कहना है कि भोपाल के पानी में कैल्शियम की कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए वे तंबाकू के साथ चूना खाते हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। हमारे देश में लोगों का किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए देसी दवाएं लेने पर अटूट विश्वास है जिसकी वजह से बीमारी बढऩे का खतरा बना रहता है। मैंने अपनी टीम के साथ 6 महीने से लेकर 86 साल तक के मरीजों के कैंसर को ठीक किया है। एक महिला के मुंह से 13 किलो का ट्यूमर निकाला और उसका सफल इलाज भी किया। इसी तरह एक दूसरे केस में किडनी के ट्यूमर को ठीक किया।

मेरी सलाह है
- इस रोग से बचने के लिए प्रशासन कई सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है। कई अस्पतालों में मुफ्त इलाज उपलब्ध है। इन सुविधाओं का फायदा अवश्य उठाएं।
- कैंसर का इलाज किसी कैंसर विशेषज्ञ की देखरेख में ही करवाएं। हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो कैंसर जैसी भयावह बीमारी का इलाज भी विशेषज्ञों की राय के बिना करवाते रहते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि तमाम कोशिशों के बाद भी कैंसर के बारे में जागरूकता की कमी है।

मृत्युदर में कमी आई है
डॉ. टी पी साहू
कैंसर रोग विशेषज्ञ
विभागाध्यक्ष, चिरायु मेडिकल कॉलेज
पहले कैंसर होने पर जिस अंग में कैंसर है उसे शरीर से अलग कर दिया जाता था लेकिन अब आधुनिक तकनीकी की वजह से क्षतिग्रस्त अंग को बचाने पर जोर दिया जाता है। इस तकनीकी की वजह से कैंसर के मरीजों की मृत्युदर में कमी आई है। मेरे पास आष्टा से एक मरीज आया था जिसे फेफड़ों का कैंसर और टीबी दोनों थे। वो वेंटिलेटर पर था। चार महीने तक उसका इलाज जारी रहा। आज वह पूरी तरह स्वस्थ है। इस बीमारी से बचने के लिए सिर्फ कैंसर विशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि कैंसर के रोगी के लिए मनोवैज्ञानिक, आहार विशेषज्ञ, सलाहकार और फिजियोथेरेपिस्ट सभी को काम करना होगा।
एहतियात बरतें जैसे-
- कैंसर पूरी तरह से ठीक होने के बाद भी मरीज को इस डिप्रेशन से बाहर आने के लिए मनोवैज्ञानिक से राय लेना चाहिए।
- साइबरनाइस और रेडियो थेरेपी के माध्यम से कैंसर को जड़ से खत्म किया जा सकता है इसलिए इस बीमारी का पता चलने पर हिम्मत न हारें, बल्कि हिम्मत के साथ इलाज करवाने पर ध्यान दें।
भ्रांतियों को मिटाएं
डॉ. रवि गुप्ता
कैंसर सर्जन
डायरेक्टर, लेक सिटी हॉस्पिटल
अगर मुंह में छाले हों, लंबे समय तक खांसी या बुखार आए और शरीर के किसी भी अंग से असामान्य रक्तस्राव हो तो इन्हें कैंसर के लक्षण समझते हुए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। कई लोग यह मानते हैं कि कैंसर का इलाज बहुत महंगा है, जबकि ऐसा नहीं है। कुछ लोगों को लगता है कि बायोप्सी होने से कैंसर सारे शरीर में फैल जाता है और इसलिए वे बायोप्सी करवाना नहीं चाहते, जबकि बायोप्सी इसलिए की जाती है ताकि क्षतिग्रस्त ऊतकों को फैलने से रोका जा सके।

याद रखें
- कैंसर के मरीज के साथ रहने से अन्य व्यक्ति को भी कैंसर हो जाता है, जैसी भ्रांतियां दिमाग से निकाल दें।
- लोगों की कही बात पर विश्वास करने के बजाय कैंसर रोग विशेषज्ञ पर विश्वास करें और उसी के अनुसार उचित इलाज करवाएं।

सोमवार, 14 जनवरी 2013


मु_ी में है तकदीर हमारी
दामिनी के इस दुनिया से चले जाने के बाद जो आंधी आई है, उसने देश की हर लड़की को प्रभावित किया है। इसके चलते कहीं उन्हें घर से निकलते समय बैग में मिर्ची पाउडर रखने की सलाह दी जा रही है तो कहीं मार्शल आर्ट सीखकर आत्मरक्षा की बात पर बल दिया जा रहा है। वक्त चाहे करवट जैसे भी ले लेकिन फिर भी इन लड़कियों ने खुद को साबित करने की कसौटी पर खरा उतरने की चाहत हर हाल में पूरी करने की कसम खाई है। 12 जनवरी युवा दिवस पर वे खुद को किसी बंधन में बंधकर नहीं, बल्कि उन्मुक्त रूप से जो है उसी रूप में स्वीकार करते हुए आगे बढऩे की ख्वाहिश जाहिर करती हैं...

कड़ी सजा मिले
दिव्यंका त्रिपाठी, अभिनेत्री, मॉडल
लड़कियों के साथ बढ़ती आपराधिक घटनाओं को रोकने की पहल उन अपराधियों को कड़ी सजा देकर करना चाहिए जिनके गुनाह की सजा मासूम लड़कियां सारी उम्र झेलती हैं। अरब देशों में अगर कोई छेडख़ानी करता है तो उस पर तुरंत कार्रवाई होती है लेकिन हमारे देश की विडंबना यही है कि सख्त कानून न होने के चलते अपराधी खुलेआम घूमते हैं या पकड़े जाने पर भी सजा होने में कई साल लग जाते हैं। पूरे देश में लड़कियों के साथ होने वाले अपराधों को देखते हुए बस यही कहंूगी कि सबकी इज्जत करें लेकिन विश्वास किसी पर न करें। कई बार आपके रिश्तेदार, पड़ोसी या मदद करने वाले लोग ही आपकी मासूमियत का फायदा उठाते हैं इसलिए सतर्क रहना सीखें।

संकल्प लें
- अगर आप शहर से बाहर रहती हों तो विशेष तौर से अपने घर के लोगों से प्रतिदिन संपर्क बनाए रखें। इसका फायदा उस समय भी मिलता है जब आप किसी मुसीबत में हों और उनसे बात न कर पाएं तो उन्हें इसी बात से शक हो जाएगा कि आज आपका फोन नहीं आया है। इसका मतलब यह है कि आप मुश्किल में हैं।
- अगर कहीं बाहर जा रहे हैं तो इस बात की जानकारी अपने करीबी दोस्तों और अभिभावकों को जरूर दें।
आवाज उठाना सीखें
अंशुल के सोनी
डायरेक्टर, एजी8 गु्रप

अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सीखें। हक की बात करें और अपना हक लेकर रहें। लड़कियों के साथ हो रहे अपराधों को रोकने की पहल सबसे पहले लड़कियों को ही करनी होगी। अगर सेना और पुलिस प्रशासन में लड़कियां अपने साहस का परिचय दे सकती हैं तो हम भी उन्हीं में से एक हैं जिन्हें पूरे आत्मविश्वास के साथ विषम परिस्थितियों में साहस बनाए रखना चाहिए।
संकल्प लें
- अपनी मर्जी से हर काम करने के बजाय घर वालों की सलाह जरूर लें।
-अपनी जिम्मेदारी हर व्यक्ति समझे और उसे अपने स्तर पर निभाने की कोशिश भी करे। हम दूसरों के मामले में क्यों पड़ें या दूसरों की परेशानी से हमें क्या मतलब जैसे विचारों को त्यागकर ये सोचें कि जो किसी दूसरे के साथ हुआ है, वो कभी आपके साथ भी हो सकता है।
हमें भी हक है
सुरभि होम्बल
नृत्यांगना
देश के विकास में जितना योगदान लड़कों ने दिया है, उतना ही लड़कियों का भी है। अगर विकास में भागीदारी दोनों की बराबर है तो फिर परिवार से लेकर समाज और विभिन्न मुद्दों पर लड़कों के पक्ष में बात क्यों की जाती है? अगर लड़कों को आगे बढऩे का हक है तो लड़कियां पीछे क्यों रहें? हां यह भी सच है कि लड़कियां कभी-कभी अपनी सीमा से बाहर हो जाती हैं या पहनावे पर ध्यान नहीं देती। इसके अलावा नशे की लत लड़कियों में जिस तेजी से बढ़ती जा रही है, उसके सेवन से बचें। साथ ही तमाम बंदिशों में खुद को कैद करने के बजाय अपनी सुरक्षा के बारे में खुद सोचें।
संक ल्प लें
- जब बस में कम लोग हों तो न बैठेें।
- ऑटों में भी अकेले बैठने से बचें।
- अगर आपके साथ कोई छेड़छाड़ करे तो जोर से चिल्लाएं ताकि आसपास खड़े लोगों का ध्यान उस ओर आकर्षित हो।   
सोच में बदलाव जरूरी है   
कीर्ति श्रीवास्तव
इंटीरियर डिजाइनर
लड़कियों की सुरक्षा के चाहे जितने उपाय अपना लिए जाएं लेकिन उन सबसे जरूरी है, लड़कों की सोच में बदलाव लाना। लड़कियों को अपने घर में ही सबसे पहले यह समझाया जाता है कि वह कमजोर है और उसका भाई ज्यादा शक्तिशाली। वे खुद को कमजोर समझते हुए ही बड़ी होती हैं और उनकी यही सोच उस वक्त भी बनी रहती है, जब उन पर किसी तरह का अत्याचार होता है। जब ईश्वर ने उनकी क्षमताओं को किसी तरह से कम नहीं आंका है तो लोग क्यों उन्हें अबला समझने की गलती करते हैं। हम जो हैं सो हैं और सबसे बेहतर है, इसी सोच को हर लड़की को अपनाने की जरूरत है।
संकल्प लें
 - आपके साथ हो रही किसी भी तरह की छेडख़ानी को चुप रहकर न सहें।
- ये याद रखें कि हर जगह पुलिस आपकी सुरक्षा के लिए नहीं पहुंच सकती इसलिए दूसरों के भरोसे रहने के बजाय अपनी रक्षा खुद करना सीखें।
संध्या चंद्राकर
कराटे खिलाड़ी
विक्रम अवार्डी
हमें अपनी बेहतरी के लिए सबसे पहले खुद पर विश्वास रखना होगा। मुश्किल हालातों में परेशानी उस वक्त बढ़ जाती है जब हम घबरा जाते हैं। मैं 19 साल से कराटे सीख रही हूं। कराटे सीखकर हम न सिर्फ खुद की, बल्कि परिवार या अपने आसपास दूसरों की रक्षा भी कर सकते हैं।
संकल्प लें
- हालात चाहे जो भी हों अपना विश्वास डगमगाने न दें।
- हर काम को करने की ताकत आप में है। इसे अपनी सफलता का मूल मंत्र मानकर चलें।

मानसिकता बदलें
बी के संधु
उपनिरीक्षक, थाना हबीबगंज
इंचार्ज, महिला हेल्प लाइन
बलात्कार जैसे अपराधों को रोकने के लिए लोग लड़कि यों के पहनावे पर पाबंदी लगाने की बात करते हैं लेकिन ये क्यों भूल जाते हैं कि जो लड़कियां सलवार कमीज पहन रही हैं उनके साथ भी बलात्कार हो रहा है या 3-4 साल की लड़कियां भी रैप की शिकार हो रही हैं तो फिर बात पहनावे की कहां है। यहां बात पुरुषों की मानसिकता में बदलाव लाने की होना चाहिए। इसके अलावा आम लोगों का संवेदनशील होना जरूरी है। अगर अपराध करना पाप है तो उसे होते देखकर चुप रहना भी पाप ही है।
विश्वास बनाए रखें
कुमुद सिंह
सचिव, सरोकार
दिल्ली में हुए गैंगरेप के बाद कई बच्चियों के माता-पिता मुझसे कहते हैं कि आप ही बताएं हम बेटियों को पैदा क्यों करें। तो मैं उनसे कहती हूं कि इस डर को निकालकर उन्हें अपनी रक्षा के लिए किस तरह शिक्षित किया जाए, इस बारे में विचार करना चाहिए। अपनी बेटियों को नजरें चुराकर नहीं, बल्कि आत्मविश्वास के साथ नजरें ऊंची करके चलना सिखाएं। कोई भी परेशानी आने पर बिना घबराए उसका सामना करना सिखाएं और उसका संबल बनाए रखने में मदद करें।
कॉफी कल्चर


कॉफी हाउस में कॉफी की महक, वेटर का वो सादा लिबास, सिर पर ताज की तरह सजती नेहरू टोपी और सबसे अहम विचारधाराओं के संगम की अवधारणा को लिए तरह-तरह के लोगों के मिलने की लोकतांत्रित जगह कॉफी हाउस ही है। ठंड के मौसम में गर्म-गर्म कॉफी और गपशप के बीच कॉफी हाउस में युवाओं के बीच चलती बातचीत का दौर या साहित्यकारों की गोष्ठियों का माहौल देखते ही बनता है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कॉफी हाउस की तरह विदेशी ब्रांड के कॉफी शॉप छोटे शहरों में अपना रंग जमा रहे हैं। युवाओं और विद्वानों ने मिलकर कॉफी कल्चर को बनाए रखने में खासा योगदान दिया है...

कॉफी की लोकप्रियता हमेशा से ही गपशप और सृजनात्मक गतिविधियों से जुड़ी देखने को मिली है। गौरतलब है कि भारत के ख्यात लेखन, रंगमंच और अध्ययन-अध्यापन से जुड़े व्यक्तियों ने कॉफी हाउस में बैठ कॉफी के प्याले के साथ ही रचनात्मक कार्य किए हैं। ब्रितानी लेखिका जेके रॉलिंग्स ने स्थानीय कॉफी शॉप में हैरी पॉटर सीरीज की अधिकतर किताबों का लेखन किया था। यहां तक कि बड़ी क्रांतियों या आंदोलन के सूत्रपात्र में भी कॉफी आउटलेट ने मुख्य भूमिका निभाई। 60 के दशक के मध्य से फैला बंगाल का नक्सलवादी आंदोलन कॉफी हाउस में ही विस्तृत हुआ था। साथ ही 1695 में फ्रांस की राज्य क्रांति की जड़ें पर्शियन कैफे से जुड़ी थीं। चाहे जो कहिए, लोकप्रियता ने लीक से हटकर रंग लेना भी शुरू किया और कॉफी हाउस की तरह विदेशी ब्रांड के कॉफी शॉप मेट्रो सिटीज में खुलने लगे। वर्तमान युवा पीढ़ी ने इन्हीं कॉफी हाउस को गपशप का केंद्र बनाया। कॉफी शॉप अपनी अत्याधुनिक आंतरिक सज्जा और जंक फूड्स व कॉफी की कई वैराइटीज की वजह से युवाओं में पैठ बनाने में सफल रही हैं। 1990 के दशक में इंटरनेट एक्सेस करने और कॉफी का लुत्फ उठाने के बहाने कॉफी शॉप्स ने नया रूप साइबर कैफे का ले लिया। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इन्हीं स्थानों पर कई बड़े साइबर अपराध कॉफी के घंूट के साथ अंजाम दिए जाते हैं।

बॉक्स में
हर उम्र के लोग कॉफी हाउस में आते हैं। फिल्टर कॉफी पीने के अलावा यहां आने वालों को मसाला डोसा और सांभर वड़े का स्वाद पसंद आता है। शहर में चाहे कितने ही नए रेस्टोरेंट खुल जाएं लेकिन इंडियन कॉफी हाउस में आने वाले लोगों की संख्या में कभी कमी नहीं होती। इसकी वजह खाने की अच्छी गुणवत्ता और यहां का माहौल है।
एम बी हरिदास
एडीशनल जनरल मैनेजर
इंडियन कॉफी हाउस, बोर्ड हाउस चौराहा

इंडियन कॉफी हाउस में जाने के ऐसे कई शौकीन लोग शहर में मौजूद हैं जिनका दिन कॉफी हाउस में जाए बिना पूरा नहीं होता। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं प्रसिद्ध साहित्यकार उद्यन वाजपेयी। उद्यन कॉफी हाउस के महत्व को अपने शब्दों में कुछ इस तरह बयां करते हैं। कॉफी हाउस ऐसी लोकतांत्रिक जगह है जहां सबके साथ समान व्यवहार होता है। रेस्टोरेंंट के माहौल से कॉफी हाउस का माहौल बिल्कुल अलग होता है। मैं पिछले तीन साल से लगभग रोज ही कॉफी हाउस में जाता हूं। वहां कभी दोस्तों के साथ बातचीत तो कभी किताब लिखने या अन्य लेखकों की किताब पढऩे में समय बीतता है। अगर किसी से मिलना हो तो इससे अच्छी जगह कोई और नहीं होती। वैसे तो कॉफी हाउस की संस्कृति बहुत पुरानी है। इंग्लैंड और फ्रांस में बड़ी बहसें कॉफी हाउस में ही हुआ करती थीं। हमारे देश में जब यह संस्कृति पनपी तो राम मनोहर लोहिया जैसे महान राजनीतिज्ञ कॉफी हाउस में ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करने के लिए लोगों को बुलाते थे। उसके बाद कॉफी हाउस में लेखक, पत्रकार और चित्रकारों ने अपना समय बिताना शुरू किया। उद्यन वाजपेयी ने जाने-माने फिल्मकार मनीकौल के साथ एक फिल्म की पटकथा न्यू मार्केट स्थित कॉफी हाउस में बैठकर ही लिखी थी। कॉफी हाउस का मतलब अगर साहित्यकारों के लिए चिंतन-मनन का अच्छा केंद्र है तो युवाओं के लिए कम पैसों में फुल इंटरटेनमेंट की यह सस्ती और सुलभ जगह है। एक्सीलेंस कॉलेज के बीकॉम सेकंड ईयर के विद्यार्थी पलाश जैन कहते हैं कि अपने दोस्तों के साथ अगर मस्ती करने का मूड हो तो कॉफी हाउस की कोने वाली सीट सबसे अच्छी जगह होती है। वहां आपको परेशान करने वाला कोई नहीं होता। इसी तरह गर्लफ्रेंड को मनाने या वेलेंटाइन डे से लेकर फ्रेंडशिप डे पर हमारा वक्त इन्हीं कॉफी हाउस में फिल्टर कॉफी और कटलेट का आनंद लेते हुए बीतता है। इस सदी की महान लेखिका जे के रोलिंग को कॉफी हाउस के माहौल ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपनी किताबों का अधिकांश भाग वहीं बैठ कर पूरा किया। प्रसिद्ध चित्रकार अखिलेश की कॉफी हाउस से कॉलेज के दिनों की यादें जुड़ी हुई हैं। उन दिनों वे इंदौर में कॉलेज के पास स्थित कॉफी हाउस में वक्त बिताते थे। वे कहते हैं कि कॉफी हाउस में धड़कता हुआ जीवन दिखाई देता है। अगर किसी विषय पर दोस्तों की सलाह चाहिए तो उनके साथ कॉफी की चुस्कियों के बीच बैठकर देर तक बातचीत का दौर चलता रहता है। इस सार्वजनिक जगह पर भी एक तरफ बैठकर एकांत का अहसास होता है। बिजनेस वूमेन मानसी के लिए कॉफी हाउस अगर अपने कलीग के साथ डीलिंग करने की अच्छी जगह है तो शहर में मौजूद किटी पार्टियों की शौकीन महिलाएं यहां बैठकर इन पार्टियों को अंजाम देना पसंद करती हैं। कभी ताश के पत्तों के बीच समय बिताने या कभी सहेलियों की गॉसिप के लिए कॉफी हाउस को मुफीद जगह माना गया है। प्रसिद्ध कवि कुमार अंबुज कॉफी हाउस के कम होते महत्व के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि कॉफी हाउस की संस्कृति अब शहर में नहीं रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बढ़ती हुई व्यवसायिकता है। वे कहते हैं कि पहले मैं गुना में रहता था। काम के सिलसिले में भोपाल अक्सर आता था तो इंडियन कॉफी हाउस जरूर जाता था। उस वक्त जो लोग कॉफी हाउस में मिलते थे, उन्होंने अब जाना बंद कर दिया। लोगों का दृष्टिकोण बदला है। यहां ऐसे लोगों की अधिकता है जो अपना स्वार्थ सिद्ध होने के उद्देश्य से कॉफी हाउस में मिलने लगे हैं। इस दौरान अगर उन दो लोगों की बातचीत चलती रहे और कोई तीसरा पहुंच जाए तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। बदलते दौर में इंडियन कॉफी हाउस का माहौल जरूर बदला है लेकिन दूसरी टेबिल पर हो रही बातचीत से दूर अपनी टेबिल पर विचारों में मग्न हो जाना कुमार अंबुज को प्रभावित किए बिना नहीं रहता।

कमाल की है कॉफी
- 1822 में सबसे पहले फ्रेंचवासियों ने एस्प्रेसो मशीन का आविष्कार किया।
- कॉफी को यूरोप में अरेबियन वाइन के नाम से जाना जाता था।
- कॉफी की 50 से अधिक प्रजातियां दुनियाभर में मौजदू हैं।
- हर साल 50 बिलियन कप कॉफी पी जाती है जिसमें से 25 बिलियन कप कॉफी सिर्फ नाश्ते के दौरान ही खत्म हो जाती है।
- एस्प्रेसो कॉफी में 2.5 प्रतिशत वसा होती है, जबकि फिल्टर कॉफी में 0.6 प्रतिशत
वसा होती है।
- जापान में कॉफी स्पा है जहां लोग कॉफी के टब में बैठकर नहाने का मजा लेते हैं।
- इटली में इस वक्त 200,000 कॉफी शॉप्स हैं और अन्य स्थापित हो रहे हैं।
- पिछले तीन दशकों में पश्चिमी देशों के 90 प्रतिशत लोगों ने चाय छोड़कर कॉफी पीना शुरू किया है।