दर्द जब हद से गुजर जाए
देश-विदेश के मशहूर खिलाड़ी हर दिल पर राज करते हैं। उनके पास बेशुमार दौलत है, और दर्द बांटने के लिए एक पार्टनर भी, फिर भी उनकी जिंदगी में कई बार ऐसे लम्हे आते हैं जब वे डिप्रेशन का सामना करते नजर आते हैं। पिछले दिनों ऐसा ही कुछ इंग्लैंड क्रिकेट टीम के अनुभवी बल्लेबाज जोनाथन ट्रॉट के साथ भी हुआ...
जोनाथन ट्रॉट लम्बे समय से चली आ रही तनाव सम्बंधी समस्या के कारण एशेज शृंखला बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौट गए। वह इस समस्या से उबरने के लिए अनिश्चितकाल तक क्रिकेट से ब्रेक ले रहे हैं। ट्रॉट ये भी मानते हैं कि इस समय वे अपनी टीम को 100 फीसदी योगदान नहीं दे पा रहे हैं। डिप्रेशन के चलते इंग्लैंड के क्रिकेटर मार्कस ट्रेस्कोथिक ने अंतर्राष्टï्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। बत्तीस वर्षीय ट्रेस्कोथिक पिछले कुछ वर्षों से तनाव संबंधी बीमारी से जूझ रहे हैं और इस कारण विदेश यात्रा में उन्हें काफी परेशानी हो रही थी। ट्रेस्कोथिक ने अपना आखिरी टेस्ट मैच पाकिस्तान के खिलाफ ओवल के मैदान में अगस्त 2006 में खेला था। वर्ष 2006 के आखिर में ट्रेस्कोथिक को ऑस्ट्रेलिया दौरे से लौटना पड़ा था और इसके बाद से ही वे किसी विदेशी दौरे पर नहीं गए। इस दौरान उन्हें ये महसूस हो रहा था जैसे वे कैंसर जैसी किसी जानलेवा बीमारी के शिकार हैं। वे कहते हैं डिप्रेशन के दौरान मुझे उन लोगों की तकलीफें समझ में आईं जो आत्महत्या कर लेते हैं। यहां ये समझना जरूरी है कि ये इंसान की कमजोरी नहीं, बल्कि बीमारी होती है। ये बीमारी किसी को नहीं छोड़ती। फिर चाहे वह सेरेना विलियम जैसी मशहूर टेनिस खिलाड़ी ही क्यों न हो। ग्यारह बार गे्रंड स्लेम का खिताब जीतने वाली टेनिस चैंपियन ने अपने जीवन में डिप्रेशन का सामना उस समय किया, जब उनकी बहन येतुंडे की अचानक मृत्यु हो गई। सेरेना अपने अनुभव को याद करते हुए कहती हैं कि उस वक्त मुझे ये अहसास हो रहा था जैसे सारी दुनिया मेरे लिए खत्म हो गई है। मैं ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी और मुझे अकेले रहने की सख्त जरूरत थी। जब मुझ पर मानसिक दबाव नहीं होता तभी मैं खेल के दौरान अपना शत-प्रतिशत दे सकती हूं लेकिन उस समय मेरे लिए सबसे जरूरी खेल में प्रदर्शन की चिंता किए बिना मुश्किल हालातों से बाहर आना था। एक बार डिप्रेशन हो जाने पर उससे उबर पाना आसान नहीं होता। ओलंपिक में 800 और 1500 मीटर दौड़ जीतने वाली केली होम्स मानसिक अवसाद का बयान करते हुए कहती हैं कि जब मुझे डिप्रेशन हुआ तो ऐसा लग रहा था जैसे जीवन की सारी आशाएं खत्म हो गई हैं। मैं कैंची से अपने हाथ की नस काट लेना चाहती थी। आगे क्या होगा इसके बारे में सोचना भी मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। उस वक्त मेरे जीवन में कुछ भी सुखद कहलाने के लायक नहीं था। एक बार डिप्रेशन के चंगुल में फंस जाने पर उससे बाहर आना मेेरे साथ-साथ किसी के लिए आसान नहीं होता। इंग्लैंड के पूर्व विकेट कीपर और पहले समलैंगिक क्रिकेटर स्टीव डेविस 2012 में अपने दोस्त टॉम मेनार्ड की मृत्यु के बाद डिप्रेशन में आ गए। डिप्रेशन के चलते खुद को खेल से दूर रखने वाले खिलाडिय़ों में इंग्लैंड विकेटकीपर टीम एंब्रोस का नाम शामिल है। उन्होंने 2009 से क्रिकेट मैच नहीं खेला। वे खुद यह मानते हैं कि उनकी दिमागी हालत टीम के साथ पूरा इंसाफ करने के लायक नहीं है। आस्ट्रेलिया के फास्ट बॉलर शॉन टेट ने 2008 में क्रिकेट से यह कहकर ब्रेक लिया कि उनके दिमाग को आराम करने की जरूरत है।
देश-विदेश के मशहूर खिलाड़ी हर दिल पर राज करते हैं। उनके पास बेशुमार दौलत है, और दर्द बांटने के लिए एक पार्टनर भी, फिर भी उनकी जिंदगी में कई बार ऐसे लम्हे आते हैं जब वे डिप्रेशन का सामना करते नजर आते हैं। पिछले दिनों ऐसा ही कुछ इंग्लैंड क्रिकेट टीम के अनुभवी बल्लेबाज जोनाथन ट्रॉट के साथ भी हुआ...
जोनाथन ट्रॉट लम्बे समय से चली आ रही तनाव सम्बंधी समस्या के कारण एशेज शृंखला बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौट गए। वह इस समस्या से उबरने के लिए अनिश्चितकाल तक क्रिकेट से ब्रेक ले रहे हैं। ट्रॉट ये भी मानते हैं कि इस समय वे अपनी टीम को 100 फीसदी योगदान नहीं दे पा रहे हैं। डिप्रेशन के चलते इंग्लैंड के क्रिकेटर मार्कस ट्रेस्कोथिक ने अंतर्राष्टï्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। बत्तीस वर्षीय ट्रेस्कोथिक पिछले कुछ वर्षों से तनाव संबंधी बीमारी से जूझ रहे हैं और इस कारण विदेश यात्रा में उन्हें काफी परेशानी हो रही थी। ट्रेस्कोथिक ने अपना आखिरी टेस्ट मैच पाकिस्तान के खिलाफ ओवल के मैदान में अगस्त 2006 में खेला था। वर्ष 2006 के आखिर में ट्रेस्कोथिक को ऑस्ट्रेलिया दौरे से लौटना पड़ा था और इसके बाद से ही वे किसी विदेशी दौरे पर नहीं गए। इस दौरान उन्हें ये महसूस हो रहा था जैसे वे कैंसर जैसी किसी जानलेवा बीमारी के शिकार हैं। वे कहते हैं डिप्रेशन के दौरान मुझे उन लोगों की तकलीफें समझ में आईं जो आत्महत्या कर लेते हैं। यहां ये समझना जरूरी है कि ये इंसान की कमजोरी नहीं, बल्कि बीमारी होती है। ये बीमारी किसी को नहीं छोड़ती। फिर चाहे वह सेरेना विलियम जैसी मशहूर टेनिस खिलाड़ी ही क्यों न हो। ग्यारह बार गे्रंड स्लेम का खिताब जीतने वाली टेनिस चैंपियन ने अपने जीवन में डिप्रेशन का सामना उस समय किया, जब उनकी बहन येतुंडे की अचानक मृत्यु हो गई। सेरेना अपने अनुभव को याद करते हुए कहती हैं कि उस वक्त मुझे ये अहसास हो रहा था जैसे सारी दुनिया मेरे लिए खत्म हो गई है। मैं ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी और मुझे अकेले रहने की सख्त जरूरत थी। जब मुझ पर मानसिक दबाव नहीं होता तभी मैं खेल के दौरान अपना शत-प्रतिशत दे सकती हूं लेकिन उस समय मेरे लिए सबसे जरूरी खेल में प्रदर्शन की चिंता किए बिना मुश्किल हालातों से बाहर आना था। एक बार डिप्रेशन हो जाने पर उससे उबर पाना आसान नहीं होता। ओलंपिक में 800 और 1500 मीटर दौड़ जीतने वाली केली होम्स मानसिक अवसाद का बयान करते हुए कहती हैं कि जब मुझे डिप्रेशन हुआ तो ऐसा लग रहा था जैसे जीवन की सारी आशाएं खत्म हो गई हैं। मैं कैंची से अपने हाथ की नस काट लेना चाहती थी। आगे क्या होगा इसके बारे में सोचना भी मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। उस वक्त मेरे जीवन में कुछ भी सुखद कहलाने के लायक नहीं था। एक बार डिप्रेशन के चंगुल में फंस जाने पर उससे बाहर आना मेेरे साथ-साथ किसी के लिए आसान नहीं होता। इंग्लैंड के पूर्व विकेट कीपर और पहले समलैंगिक क्रिकेटर स्टीव डेविस 2012 में अपने दोस्त टॉम मेनार्ड की मृत्यु के बाद डिप्रेशन में आ गए। डिप्रेशन के चलते खुद को खेल से दूर रखने वाले खिलाडिय़ों में इंग्लैंड विकेटकीपर टीम एंब्रोस का नाम शामिल है। उन्होंने 2009 से क्रिकेट मैच नहीं खेला। वे खुद यह मानते हैं कि उनकी दिमागी हालत टीम के साथ पूरा इंसाफ करने के लायक नहीं है। आस्ट्रेलिया के फास्ट बॉलर शॉन टेट ने 2008 में क्रिकेट से यह कहकर ब्रेक लिया कि उनके दिमाग को आराम करने की जरूरत है।
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