सोमवार, 2 दिसंबर 2013

ऐसी लागी लगन 

जिस तरह से भारतीय संस्कृति में हिंदू धर्मगुरुओं का महत्व सदियों से कायम है, उसी तरह देश की राजनीति में उनकी चर्चा हमेशा से रही है। फिर बात अगर चुनावी माहौल की हो तो मध्यप्रदेश सहित अन्य चुनावी क्षेत्र अपने-अपने राजनैतिक गुरुओं के सानिध्य में मार्गदर्शन लेते नजर आ रहे हैं। इन धर्मगुरुओं पर राजनेताओं का अटूट विश्वास ही इन्हें राजनैतिक मार्गदर्शक के रूप में विशिष्ट स्थान प्रदान करता है....

प्रदेश के सियासी हलकों में आध्यात्मिक झुकाव सहसा बढ़ गया है। टिकट के लिए हाथ-पांव मारने वाले हों या उम्मीदवारी तय होने के बाद जीत की आशा से लबरेज राजनीति के खिलाड़ी, सभी धार्मिकता के प्रवाह में बहे चले जा रहे हैं। उन्हें जहां से भी आशीर्वाद या चमत्कार की जरा-सी भी आशा है, वहां मत्था टेकने से वे कतई गुरेज नहीं करते। लिहाजा, धर्मगुरुओं के यहां आने वाले सफेद कुर्ताधारियों की संख्या में खासा इजाफा हो गया है। वे हर हाल में टिकट और जीत चाहते हैं। जिन धर्मगुरुओं की राजनीति में पैठ है, उनके शागिर्द दिल्ली के राजनीतिक गलियारों के अलावा मठों व धार्मिक स्थलों पर भी देखे जा सकते हैं। राजनेताओं के बीच छाए हुए ऐसे ही धर्मगुरुओं में से एक हैं रावतपुरा सरकार के नाम से मशहूर संत रविशंकर। इनका नाम चंबल क्षेत्र के रावतपुरा गांव में हनुमान मंदिर बनने के साथ ही मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के राजनेताओं के बीच पहचाना जाने लगा। वे पॉलिटिकल साधु के रूप में पहचाने जाते हैं। पूर्व गृह राज्यमंत्री डॉ. गोविंद सिंह के साथ उनके संबंध जगजाहिर हैं। उनके नाम से रायपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए कार्य देखते ही बनते हैं। उनके ट्रस्ट रावतपुरा सरकार एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स ने फार्मेसी, नर्सिंग, आधुनिक विज्ञान और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना न सिर्फ मध्यप्रदेश, बल्कि छत्तीसगढ़ में भी की। सूूत्रों के अनुसार रावतपुरा सरकार एक संत के रूप में 1990 से प्रसिद्ध हुए। उस समय उनकी उम्र महज सत्रह साल थी। जल्दी ही उनकी आध्यात्मिक शक्ति का अंदाजा राजनेताओं को हुआ और मध्यप्रदेश के कुछ प्रमुख सांसदों की गिनती उनके भक्तों के रूप में होने लगी। गोपाल भार्गव और प्रभात झा ऐसे ही नामों में से एक हैं। उमा भारती और दिग्विजय सिंह अक्सर उनसे संपर्क करते हैं। सत्यनारायण शर्मा जो फिलहाल छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में हैं, रावतपुरा सरकार के प्रिय भक्तों में से एक हैं।
चुनावी दंगल में उतरे उम्मीदवारों में कोई वैष्णो देवी के दर्शन कर मन्नत मांग रहा है तो कोई नर्मदा तट पर चातुर्मास कर रहे संत महात्माओं का आशीर्वाद ले रहा है। ऐसे ही संतों में एक हैं भय्यू जी महाराज।
सूर्योदय आश्रम मिशन के प्रणेता उदय सिंह देशमुख उर्फ  भय्यू जी महाराज कभी मॉडल रह चुके हैं और आज वह कई राजनेताओं के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। आध्यात्मिक गुरु होने के बावजूद हर दल के नेताओं से उनके नजदीकी सम्बंध हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, नितिन गडकरी, उद्धव ठाकरे और विलासराव देशमुख से उनके अच्छे सम्बंध हैं।
मध्यप्रदेश के शुजालपुर में जन्मे उदय सिंह देशमुख उन लोगों में से हैं, जिन्हें कार्पोरेट जगत और मॉडलिंग की दुनिया रास नहीं आई। उन्होंने उस चकाचौंध की दुनिया को छोड़कर समाज सुधार का अभियान छेड़ा। इसलिए समाज ने उन्हें नया नाम दिया, भय्यू जी महाराज। 44 वर्षीय भय्यू जी महाराज को देखकर पहली नजर में लगता नहीं कि वह कोई संत हैं।
उनके ट्रस्ट द्वारा किसानों के लिए धरतीपुत्र सेवा अभियान और भूमि सुधार, जल, मिट्टी व बीज परीक्षण प्रयोगशाला, बीज वितरण योजना चलाई जाती है। विजयवर्गीय और रमेश मंडोला उनके करीबी हैं। इसी तरह कनकेश्वरी देवी के परम भक्तों मे से एक हैं कैलाश विजयवर्गीय, रमेश मंडोला और युवा भाजपा सांसद विश्वास सारंग जिन्हें उनके आश्रम में अक्सर देखा जाता है। कनकेश्वरी देवी को उनके भजनों के लिए जाना जाता है। उनके कार्यक्रम प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में आयोजित होते रहते हैं। जिन दिनों भोपाल में उनके भाषण हुए थे तब विजयवर्गीय के घर वे ठहरी थीं और इस साध्वी के सम्मान में उनके घर को दीवाली की तरह रोशनी से सजाया गया था। संतों के मुरीद उनके सम्मान में कोई कमी नहीं रहने देते। स्वामी अवधेशानंद के मुरीदों में कांग्रेस नेता अजय सिंह का नाम सबसे पहले आता है। स्वामी जी साल में कम से कम एक बार प्रवचन के लिए भोपाल अवश्य आते हैं और वे जब भी यहां आते हैं, अजय सिंह के अतिथि होते हैं। पिछली बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पत्नी साधना सिंह के साथ अवधेशानंद जी गिरि के श्रीमद्भागवत कथा प्रसंग में शामिल हुए थे। आधुनिक तकनीकी और वो भी खासतौर से कंप्यूटर का प्रयोग अपने भक्तों को मार्गदर्शन देने के लिए करने वाले नामदेव दास त्यागी को कंप्यूटर बाबा के नाम से जाना जाता है। 2006 में उन्होंने दावा किया था कि वे लोगों की समस्या का समाधान उतनी ही जल्दी कर सकते हैं जितनी जल्दी कंप्यूटर करता है। उनका आश्रम इंदौर में एरोड्रम रोड पर गोमतगिरि के पास है। सन 2006 में  बाबा उस समय लोगों की नजरों में आए जब उन्होंने इंदौर कलेक्टर विवेक अग्रवाल के विरोध में भूख हड़ताल की थी। विवादों से घिरे बाबा के अनुयायियों में कैलाश विजयवर्गीय और उनके करीबी रमेश मंडोला का नाम लिया जाता है। देपालपुर के कांग्रेस सांसद सत्यनारायण पटेल उनके परम भक्तों में से एक हैं। सन 90 में राम मंदिर आंदोलन के बाद से संत महात्माओं का प्रत्यक्ष पदार्पण राजनीति में देखते ही बनता है जिसकी चर्चा निरंतर जारी रहती है। मध्यप्रदेश की राजनीति में एक ओर जहां कई साधु-संतों ने हाथ आजमाया, वहीं ऐसे भी कई नाम हैं जो प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से अलग रहते हुए भी राजनेताओं के सलाहकार और कर्ताधर्ता के रूप में छाए रहते हैं। इन्हीं में जगद गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज का नाम प्रसिद्ध है। मध्यप्रदेश के राजनेताओं के बीच शंकराचार्य का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। यद्यपि अक्सर इन्हें कांग्रेसी शंकराचार्य के नाम से संबोधित किया जाता है लेकिन भाजपा के कई दिग्गज भी इनके परम भक्त हैं। जब वे भोपाल आते हैं तो शिवराज सिंह चौहान, दिग्विजय सिंह और बाबूलाल गौर उनसे आशीर्वाद लेने जाते हैं। गोटेगांव स्थित उनके आश्रम में बड़ी संख्या में राजनेताओं को देखा जाता है।


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