रंगों में बिखरी रंगकर्म की छाप
जवा मेहता
संस्थापक जवा जोशी क्रिएटिव आट्र्स,
क्रिएटिव हेड, क्रिएटिव एप्रोच, लेेंक्सिंगटन, मास, बोस्टन
वरिष्ठ रंगकर्मी सतीश मेहता की बेटी जवा मेहता पिछले चौदह सालों से रंगकर्म के साथ ही पेंटिंग की दुनिया में उनके होम टाउन लेंक्सिंगटन में अपनी क्रिएटिव कंपनी का संचालन कर रही हैं। इस साल उन्हें कला जगत में विशेष योगदान के लिए बोस्टन में वुमेन ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। अब तक उन्होंने 250 नाटकों और 15 लघु फिल्मों में अभिनय किया है। एक मुलाकात देश का नाम विदेशों में रोशन करने वाली जवा के साथ....
जवा एब्सट्रेक्ट और लैंडस्केप दोनों तरह की पेंटिंग बनाती हैं। वे गहरे रंगों का इस्तेमाल करना पसंद करती हैं। पिछले साल जवा ने विभिन्न प्रदर्शनी के दौरान भारतीय गांवों को अपने चित्रों द्वारा दर्शाया था और इस साल वे भारतीय लोक नृत्य पर आधारित पेंटिंग बना रही हैं। इसी साल जवा ने बोस्टन पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित एनप्लेन एयर आउटडोर पेंटिंग इवेंट्स के तहत वहां के प्रमुख सात पेंटरों के साथ लाइव पेंटिंग बनाई। रंगों की दुनिया में खास स्थान बना लेना जवा के लिए आसान नहीं था। उनके इस सफर की शुरुआत भोपाल से कुछ इस तरह से हुई। जवा ने अपने घर में बचपन से रंगकर्म का माहौल देखा। उनके माता-पिता को लगता था कि जवा भी उन्हीं की तरह थियेटर की दुनिया में नाम कमाएंगी लेकिन जवा की रुचि पेंटिंग में थी। उन्होंने लक्ष्मीनारायण भारद्वाज से पेंटिंग की शिक्षा ली। महज तेरह साल की उम्र में जवा ने एब्सट्रेक्ट पेंटिंग बनाने की शुरुआत की। जवा ने फाइन आर्ट में पीएचडी किया और शादी के बाद वे बोस्टन चली गईं। पिछले साल पेरेलेक्स इंटरनेशनल आर्ट शो के दौरान उनके चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। वर्ष 2012 में लेंक्सिंगटन में ही जवा का सोलो आर्ट शो आयोजित हुआ था। वर्ष 2001 में इन्हें अटलांटा में गैलरी शो के दौरान सिल्वर अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा भोपाल, इंदौर, भिलाई, नागपुर और उज्जैन सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में जवा की पेंटिंग प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। जवा ने बोस्टन सहित अटलांटा में सीनियर वेब डिजाइनर साहित मल्टीमीडिया वेब डिजाइनर के तौर पर काम किया। इससे पहले वर्ष 1998 से मार्च 2000 तक भारत में सीनियर ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर काम किया। उनकी पेंटिंग में थियेटर की छाप दिखाई देती है। बोस्टन स्थित जवा के आर्ट स्कूल में हर साल लगभग 60-70 बच्चे पेंटिंग सीखते हैं। इन विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए चित्रों की प्रदर्शनी का वर्ष में दो बार आयोजन होता है। विदेश और अपने देश की कला संस्कृति में अंतर बताते हुए जवा कहती हैं कि हमारे देश में नए कलाकारों को बढ़ावा देने में लोग हिचकिचाते हैं लेकिन विदेशों में उन्हें प्रोत्साहित न करने वाले कला के कद्रदानों की कमी नहीं है। हालांकि कला के प्रति अब भारतवासियों का नजरिया तेजी से बदला है और वे श्रेष्ठ कलाकारों की अहमियत समझने लगे हैं। रंगों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को दर्शाने के साथ ही जवा ने बोस्टन में हिंदी मंच नाम की संस्था की स्थापना की। यह संस्था बच्चों को ड्रामा सिखाती है। इस काम में उनके पति हेतल जोशी का सहयोग सराहनीय है। जवा की सफलता का श्रेय हेतल सहित पिता सतीश मेहता और मां ज्योत्सना मेहता को है। जवा के अनुसार काम करने के लिए सबसे जरूरी इच्छाशक्ति का होना है। अगर इच्छाशक्ति प्रबल है तो काम के वक्त आने वाली हर मुश्किल से पार पाया जा सकता है। हाल ही में उनकी संस्था के विद्यार्थियों ने जिस नाटक का मंचन किया था जिसका नाम था पंडित और उसकी गाय। ये नाटक पंचतंत्र की कहानियों पर आधारित था। जवा चाहती हैं कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में विदेशियों को भी पता चले और वे इसकी कीमत समझें। विदेश में रहने वाले भारतीय जवा की इस कोशिश में पूरी तरह उनके साथ हैं। वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे अपने देश की संस्कृति से जुड़े रहें। जवा के अनुसार मेरे विद्यार्थियों में से कोई एक भी अगर इस कला को आगे बढ़ा सका तो उस दिन मेरी मेहनत सफल हो जाएगी।
जवा मेहता
संस्थापक जवा जोशी क्रिएटिव आट्र्स,
क्रिएटिव हेड, क्रिएटिव एप्रोच, लेेंक्सिंगटन, मास, बोस्टन
वरिष्ठ रंगकर्मी सतीश मेहता की बेटी जवा मेहता पिछले चौदह सालों से रंगकर्म के साथ ही पेंटिंग की दुनिया में उनके होम टाउन लेंक्सिंगटन में अपनी क्रिएटिव कंपनी का संचालन कर रही हैं। इस साल उन्हें कला जगत में विशेष योगदान के लिए बोस्टन में वुमेन ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। अब तक उन्होंने 250 नाटकों और 15 लघु फिल्मों में अभिनय किया है। एक मुलाकात देश का नाम विदेशों में रोशन करने वाली जवा के साथ....
जवा एब्सट्रेक्ट और लैंडस्केप दोनों तरह की पेंटिंग बनाती हैं। वे गहरे रंगों का इस्तेमाल करना पसंद करती हैं। पिछले साल जवा ने विभिन्न प्रदर्शनी के दौरान भारतीय गांवों को अपने चित्रों द्वारा दर्शाया था और इस साल वे भारतीय लोक नृत्य पर आधारित पेंटिंग बना रही हैं। इसी साल जवा ने बोस्टन पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित एनप्लेन एयर आउटडोर पेंटिंग इवेंट्स के तहत वहां के प्रमुख सात पेंटरों के साथ लाइव पेंटिंग बनाई। रंगों की दुनिया में खास स्थान बना लेना जवा के लिए आसान नहीं था। उनके इस सफर की शुरुआत भोपाल से कुछ इस तरह से हुई। जवा ने अपने घर में बचपन से रंगकर्म का माहौल देखा। उनके माता-पिता को लगता था कि जवा भी उन्हीं की तरह थियेटर की दुनिया में नाम कमाएंगी लेकिन जवा की रुचि पेंटिंग में थी। उन्होंने लक्ष्मीनारायण भारद्वाज से पेंटिंग की शिक्षा ली। महज तेरह साल की उम्र में जवा ने एब्सट्रेक्ट पेंटिंग बनाने की शुरुआत की। जवा ने फाइन आर्ट में पीएचडी किया और शादी के बाद वे बोस्टन चली गईं। पिछले साल पेरेलेक्स इंटरनेशनल आर्ट शो के दौरान उनके चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। वर्ष 2012 में लेंक्सिंगटन में ही जवा का सोलो आर्ट शो आयोजित हुआ था। वर्ष 2001 में इन्हें अटलांटा में गैलरी शो के दौरान सिल्वर अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा भोपाल, इंदौर, भिलाई, नागपुर और उज्जैन सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में जवा की पेंटिंग प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। जवा ने बोस्टन सहित अटलांटा में सीनियर वेब डिजाइनर साहित मल्टीमीडिया वेब डिजाइनर के तौर पर काम किया। इससे पहले वर्ष 1998 से मार्च 2000 तक भारत में सीनियर ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर काम किया। उनकी पेंटिंग में थियेटर की छाप दिखाई देती है। बोस्टन स्थित जवा के आर्ट स्कूल में हर साल लगभग 60-70 बच्चे पेंटिंग सीखते हैं। इन विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए चित्रों की प्रदर्शनी का वर्ष में दो बार आयोजन होता है। विदेश और अपने देश की कला संस्कृति में अंतर बताते हुए जवा कहती हैं कि हमारे देश में नए कलाकारों को बढ़ावा देने में लोग हिचकिचाते हैं लेकिन विदेशों में उन्हें प्रोत्साहित न करने वाले कला के कद्रदानों की कमी नहीं है। हालांकि कला के प्रति अब भारतवासियों का नजरिया तेजी से बदला है और वे श्रेष्ठ कलाकारों की अहमियत समझने लगे हैं। रंगों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को दर्शाने के साथ ही जवा ने बोस्टन में हिंदी मंच नाम की संस्था की स्थापना की। यह संस्था बच्चों को ड्रामा सिखाती है। इस काम में उनके पति हेतल जोशी का सहयोग सराहनीय है। जवा की सफलता का श्रेय हेतल सहित पिता सतीश मेहता और मां ज्योत्सना मेहता को है। जवा के अनुसार काम करने के लिए सबसे जरूरी इच्छाशक्ति का होना है। अगर इच्छाशक्ति प्रबल है तो काम के वक्त आने वाली हर मुश्किल से पार पाया जा सकता है। हाल ही में उनकी संस्था के विद्यार्थियों ने जिस नाटक का मंचन किया था जिसका नाम था पंडित और उसकी गाय। ये नाटक पंचतंत्र की कहानियों पर आधारित था। जवा चाहती हैं कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में विदेशियों को भी पता चले और वे इसकी कीमत समझें। विदेश में रहने वाले भारतीय जवा की इस कोशिश में पूरी तरह उनके साथ हैं। वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे अपने देश की संस्कृति से जुड़े रहें। जवा के अनुसार मेरे विद्यार्थियों में से कोई एक भी अगर इस कला को आगे बढ़ा सका तो उस दिन मेरी मेहनत सफल हो जाएगी।
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