हक की बात
हक के साथ
देशभर में महिला अधिकारों की बात बड़े ही जोर-शोर से उठाई जा रही है। सच्चाई यह भी है कि देश की अधिकांश महिलाओं को सही मायनों में उनके अधिकारों की जानकारी ही नहीं है। एक ओर अगर हम उनकी सुरक्षा को लेकर आज नए अधिकारों की मांग कर रहे हैं तो दूसरी ओर इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि जो अधिकार उन्हें प्राप्त हैं, सबसे पहले वे उन अधिकारों के प्रति जागरूक हों....
सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता व शर्मीलेपन का ताज पहनाया
जाता है, जिसके बोझ से दबी महिला कई बार जानकारी होते हुए भी अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाती। बहुत से मामलों में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ हो रही घटनाएं हिंसा हैं और इससे बचाव के लिए कोई कानून भी है। आमतौर पर शारीरिक प्रताडऩा यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है।
इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंतर्गत मारपीट से लेकर कैद में रखना, खाना न देना व दहेज के लिए प्रताडि़त करना आदि आता है, के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सजा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताडऩा की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताडऩा के केस ज्यादा होते हैं।
इस तकलीफ को आमतौर पर एक सीमा तक महिलाएं बर्दाश्त करती हैं, क्योंकि परंपरा के नाम पर बचपन से वे यह सहती रहती हैं, लेकिन घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 इन स्थितियों में भी महिला की मदद करता है। इस बारे में अधिवक्ता इंदिरा शुक्ला कहती हैं कि यह धारा महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है जो उन्हें दुर्गा का रूप प्रदान करती है। खास बात यह है कि घरेलू हिंसा अधिनियम में सभी महिलाओं के अधिकार की रक्षा की संभावना है। इसके तहत विवाहित महिला के साथ-साथ अविवाहित, विधवा, बगैर शादी के साथ रहने वाली महिला, दूसरी पत्नी के तौर पर रहने वाली महिला व 18 वर्ष से कम उम्र के लड़की व लड़का सभी को संरक्षण देने का प्रयास किया गया है। इस कानून में घर में रहने का अधिकार, संरक्षण, बच्चों की कस्टडी व भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार महिलाओं को मिलता है, जो किसी और कानून में संभव नहीं है।
इतनी सुविधाओं के बावजूद अगर कहीं कमी है तो महिलाओं के जागरूक होने में है। इस समय उन्हें उनके हितों का ध्यान रखते हुए जो अधिकार मिले हैं, वो पर्याप्त हैं। इन अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने के लिए वर्कशॉप का आयोजन होना चाहिए। इसका लाभ अधिक से अधिक महिलाओं को मिलेगा। कुछ महिलाएं अगर इन अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहती भी हैं तो कभी भावनात्मक संबंध सामने आ जाते हैं तो कभी समाज में अपमानित होने की वजह से वे आवाज उठाने से डरती हैं। उनके अपने डर की वजह से ही उन्हें न्याय नहीं मिल पाता। अगर बात आज के परिदृश्य में की जाए तो उन महिलाओं की कमी नहीं जो आसमान छू रही हैं पर यह भी सच है कि महिलाओं व लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा भी सीमा से आगे बढ़ रही है। हर व्यक्ति जन्म से ही कुछ अधिकार लेकर आता है चाहे वह जीने का अधिकार हो या विकास के लिए अवसर प्राप्त करने का, परंतु इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर किए जा रहे भेदभाव की वजह से महिलाएं इन अधिकारों से वंचित रह जाती हैं। इसी विचार के चलते महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु हमारे संविधान में अलग से कानून बनाए गए हैं या समय-समय पर इनमें संशोधन किया गया है। इन अधिकारों की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना भी अब आसान है। इस बारे में अधिवक्ता संतोष मालवीय कहते हैं कि महिला अधिकारों को लेकर प्रशासन ने कुछ किताबें जारी की हैं। इन किताबों में महिलाओं के अधिकार सहित महिला आयोग, मानव अधिकार आयोग और अदालत संबंधी सारी जानकारी उपलब्ध है। इन किताबों को हर महिला को पढऩा चाहिए। इस बारे में आपस में एक-दूसरे से बातचीत करने पर कानून संबंधी सारी जानकारी मिलना मुश्किल है लेकिन अपने अधिकारों को जानने के लिए ये किताबें हर महिला की मददगार साबित हो सकती हैं।
हिम्मत की कमी है
महिला अधिकारों के बारे में अगर किसी अशिक्षित महिला को जानकारी नहीं है तो बात समझ में आती है लेकिन अगर शिक्षित महिलाएं इस बारे में सजग नहीं हैं तो यह स्थिति दुखद है। मैंने यह भी देखा है कि महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी तो है लेकिन उनमें हिम्मत की कमी है। कई बार सामाजिक और पारिवारिक मजबूरियों की वजह से वे जुर्म सहती रहती हैं। मैं कहना चाहूंगी कि अब तक आपने बहुत धीरज रखा लेकिन अब वक्त आ गया है जब चुप रहकर नहीं, बल्कि अपने अधिकारों को पाकर आगे बढ़ें।
उपमा रॉय
अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग
समीक्षा भी जरूरी है
एक बार फिर यह खबर है कि इस साल महिला दिवस पर मुख्यमंत्री महिलाओं के लिए नई योजनाओं की घोषणा करेंगे लेकिन पिछले साल जिन योजनाओं की घोषणा की गई थी, उनके परिणामों की जानकारी किसी को नहीं है। अभी जरूरत नई योजनाओं को लागू करने के साथ ही इस बात की भी है कि पिछले साल की योजनाओं की समीक्षा हो। ये सारी बातें सिर्फ कागजों तक ही सीमित क्यों हैं?
रोली शिवहरे
सामाजिक कार्यकर्ता
प्रयास अपने स्तर पर हो
एक महिला को उसके अधिकारों के बारे में जानकारी देने का काम आसपास की महिलाओं को अपने स्तर पर करना चाहिए। अगर हम किसी को परेशानी में देखते भी हैं तो यह उसकी समस्या है, बस इतना सोचकर पल्ला झाड़ लेते हैं, जब तक ये मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक परेशानी बनी रहेगी।
दीप्ति सिंह
सचिव, म.प्र. कांग्रेस कमेटी, अध्यक्ष, प्रियदर्शनी संस्था
महिलाओं को मिले अधिकार
- घरेलू हिंसा के खिलाफ
- दहेजी विरोधी कानून
- प्लांटेशन लेबर एक्ट
- संपत्ति में बराबर का अधिकार
- वेतन में बराबरी का अधिकार
- मातृत्व लाभ कानून
- स्पेशल मैरिज एक्ट
- सती विरोधी कानून
- गर्भपात कानून
लंबा हुआ इनका इंतजार
- महिला आरक्षण बिल
बिल में महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण देने की बात है लेकिन इस बिल का शुरू से ही विरोध हो रहा है। राज्यसभा ने इस बिल को 9 मार्च को पारित किया था, परंतु लोकसभा में अब तक इस पर वोटिंग नहीं हुई है। लोकसभा में पेश करने पर सपा इस बिल को फाड़ चुकी है। तब से यह बिल दोबारा लोकसभा में नहीं आया है।
- हिंदू विवाह कानून संशोधन बिल, 2012
इस कानून में तलाक को आसान बनाने के प्रावधान किए गए हैं। इसमें दोनों पक्ष तलाक के लिए राजी होने की स्थिति में महिला के लिए आसान शर्तें रखी गई हैं लेकिन यह बिल भी संसद में लंबित है।
- कार्यस्थलों पर यौन उत्पीडऩ रोकथाम बिल
यह बिल कार्यस्थलों पर महिलाओं को सुरक्षित माहौल मुहैया करवाने के लिए लाया गया था।
- अश्लील चित्रण रोकथाम संशोधन बिल 2012
बिल में टीवी, अखबार और विज्ञापनों में महिलाओं को वस्तु की तरह परोसने की रोकथाम करने से संबंधित है। यह बिल मानसून सत्र 2012 में राज्यसभा में पेश हो चुका है।
- आपराधिक कानून संशोधन बिल 2012
यह बिल भी संसद में लंबित है। इसमें रेप तथा यौन हमलों को रोकने के प्रावधान हैं। इसके अंतर्गत यौन हमलों की शिकायत अब पुरुष भी कर सकते हैं।
- राजीव गांधी नेशनल क्रेच स्कीम फॉर दि चिल्ड्रन ऑफ वर्किंग मदर
दुनिया के मुकाबले कहां हैं भारत की महिलाएं
- शिशु मृत्यु दर (प्रति एक हजार जन्म पर) भारत में 73 प्रतिशत और दुनिया में 60 प्रतिशत
- मातृ मृत्यु दर (प्रति एक लाख जन्म पर) 570 प्रतिशत और दुनिया में 430 प्रतिशत
- महिला साक्षरता 58 प्रतिशत और 77.6 प्रतिशत
- विद्यालयों में बालिकाओं का पंजीकरण भारत में 47 प्रतिशत और दुनिया में 62 प्रतिशत
- महिलाओं की कमाई भारत में 26 प्रतिशत और 58 प्रतिशत
- सामान्य से कम वजन के बच्चे भारत में 53 प्रतिशत और 30 प्रतिशत
- कुल जन्म दर भारत में 3.2 प्रतिशत और दुनिया में 2.9 प्रतिशत
- जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे भारत में 33 प्रतिशत और दुनिया में 17 प्रतिशत
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