सोमवार, 14 जनवरी 2013

कॉफी कल्चर


कॉफी हाउस में कॉफी की महक, वेटर का वो सादा लिबास, सिर पर ताज की तरह सजती नेहरू टोपी और सबसे अहम विचारधाराओं के संगम की अवधारणा को लिए तरह-तरह के लोगों के मिलने की लोकतांत्रित जगह कॉफी हाउस ही है। ठंड के मौसम में गर्म-गर्म कॉफी और गपशप के बीच कॉफी हाउस में युवाओं के बीच चलती बातचीत का दौर या साहित्यकारों की गोष्ठियों का माहौल देखते ही बनता है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कॉफी हाउस की तरह विदेशी ब्रांड के कॉफी शॉप छोटे शहरों में अपना रंग जमा रहे हैं। युवाओं और विद्वानों ने मिलकर कॉफी कल्चर को बनाए रखने में खासा योगदान दिया है...

कॉफी की लोकप्रियता हमेशा से ही गपशप और सृजनात्मक गतिविधियों से जुड़ी देखने को मिली है। गौरतलब है कि भारत के ख्यात लेखन, रंगमंच और अध्ययन-अध्यापन से जुड़े व्यक्तियों ने कॉफी हाउस में बैठ कॉफी के प्याले के साथ ही रचनात्मक कार्य किए हैं। ब्रितानी लेखिका जेके रॉलिंग्स ने स्थानीय कॉफी शॉप में हैरी पॉटर सीरीज की अधिकतर किताबों का लेखन किया था। यहां तक कि बड़ी क्रांतियों या आंदोलन के सूत्रपात्र में भी कॉफी आउटलेट ने मुख्य भूमिका निभाई। 60 के दशक के मध्य से फैला बंगाल का नक्सलवादी आंदोलन कॉफी हाउस में ही विस्तृत हुआ था। साथ ही 1695 में फ्रांस की राज्य क्रांति की जड़ें पर्शियन कैफे से जुड़ी थीं। चाहे जो कहिए, लोकप्रियता ने लीक से हटकर रंग लेना भी शुरू किया और कॉफी हाउस की तरह विदेशी ब्रांड के कॉफी शॉप मेट्रो सिटीज में खुलने लगे। वर्तमान युवा पीढ़ी ने इन्हीं कॉफी हाउस को गपशप का केंद्र बनाया। कॉफी शॉप अपनी अत्याधुनिक आंतरिक सज्जा और जंक फूड्स व कॉफी की कई वैराइटीज की वजह से युवाओं में पैठ बनाने में सफल रही हैं। 1990 के दशक में इंटरनेट एक्सेस करने और कॉफी का लुत्फ उठाने के बहाने कॉफी शॉप्स ने नया रूप साइबर कैफे का ले लिया। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इन्हीं स्थानों पर कई बड़े साइबर अपराध कॉफी के घंूट के साथ अंजाम दिए जाते हैं।

बॉक्स में
हर उम्र के लोग कॉफी हाउस में आते हैं। फिल्टर कॉफी पीने के अलावा यहां आने वालों को मसाला डोसा और सांभर वड़े का स्वाद पसंद आता है। शहर में चाहे कितने ही नए रेस्टोरेंट खुल जाएं लेकिन इंडियन कॉफी हाउस में आने वाले लोगों की संख्या में कभी कमी नहीं होती। इसकी वजह खाने की अच्छी गुणवत्ता और यहां का माहौल है।
एम बी हरिदास
एडीशनल जनरल मैनेजर
इंडियन कॉफी हाउस, बोर्ड हाउस चौराहा

इंडियन कॉफी हाउस में जाने के ऐसे कई शौकीन लोग शहर में मौजूद हैं जिनका दिन कॉफी हाउस में जाए बिना पूरा नहीं होता। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं प्रसिद्ध साहित्यकार उद्यन वाजपेयी। उद्यन कॉफी हाउस के महत्व को अपने शब्दों में कुछ इस तरह बयां करते हैं। कॉफी हाउस ऐसी लोकतांत्रिक जगह है जहां सबके साथ समान व्यवहार होता है। रेस्टोरेंंट के माहौल से कॉफी हाउस का माहौल बिल्कुल अलग होता है। मैं पिछले तीन साल से लगभग रोज ही कॉफी हाउस में जाता हूं। वहां कभी दोस्तों के साथ बातचीत तो कभी किताब लिखने या अन्य लेखकों की किताब पढऩे में समय बीतता है। अगर किसी से मिलना हो तो इससे अच्छी जगह कोई और नहीं होती। वैसे तो कॉफी हाउस की संस्कृति बहुत पुरानी है। इंग्लैंड और फ्रांस में बड़ी बहसें कॉफी हाउस में ही हुआ करती थीं। हमारे देश में जब यह संस्कृति पनपी तो राम मनोहर लोहिया जैसे महान राजनीतिज्ञ कॉफी हाउस में ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करने के लिए लोगों को बुलाते थे। उसके बाद कॉफी हाउस में लेखक, पत्रकार और चित्रकारों ने अपना समय बिताना शुरू किया। उद्यन वाजपेयी ने जाने-माने फिल्मकार मनीकौल के साथ एक फिल्म की पटकथा न्यू मार्केट स्थित कॉफी हाउस में बैठकर ही लिखी थी। कॉफी हाउस का मतलब अगर साहित्यकारों के लिए चिंतन-मनन का अच्छा केंद्र है तो युवाओं के लिए कम पैसों में फुल इंटरटेनमेंट की यह सस्ती और सुलभ जगह है। एक्सीलेंस कॉलेज के बीकॉम सेकंड ईयर के विद्यार्थी पलाश जैन कहते हैं कि अपने दोस्तों के साथ अगर मस्ती करने का मूड हो तो कॉफी हाउस की कोने वाली सीट सबसे अच्छी जगह होती है। वहां आपको परेशान करने वाला कोई नहीं होता। इसी तरह गर्लफ्रेंड को मनाने या वेलेंटाइन डे से लेकर फ्रेंडशिप डे पर हमारा वक्त इन्हीं कॉफी हाउस में फिल्टर कॉफी और कटलेट का आनंद लेते हुए बीतता है। इस सदी की महान लेखिका जे के रोलिंग को कॉफी हाउस के माहौल ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपनी किताबों का अधिकांश भाग वहीं बैठ कर पूरा किया। प्रसिद्ध चित्रकार अखिलेश की कॉफी हाउस से कॉलेज के दिनों की यादें जुड़ी हुई हैं। उन दिनों वे इंदौर में कॉलेज के पास स्थित कॉफी हाउस में वक्त बिताते थे। वे कहते हैं कि कॉफी हाउस में धड़कता हुआ जीवन दिखाई देता है। अगर किसी विषय पर दोस्तों की सलाह चाहिए तो उनके साथ कॉफी की चुस्कियों के बीच बैठकर देर तक बातचीत का दौर चलता रहता है। इस सार्वजनिक जगह पर भी एक तरफ बैठकर एकांत का अहसास होता है। बिजनेस वूमेन मानसी के लिए कॉफी हाउस अगर अपने कलीग के साथ डीलिंग करने की अच्छी जगह है तो शहर में मौजूद किटी पार्टियों की शौकीन महिलाएं यहां बैठकर इन पार्टियों को अंजाम देना पसंद करती हैं। कभी ताश के पत्तों के बीच समय बिताने या कभी सहेलियों की गॉसिप के लिए कॉफी हाउस को मुफीद जगह माना गया है। प्रसिद्ध कवि कुमार अंबुज कॉफी हाउस के कम होते महत्व के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि कॉफी हाउस की संस्कृति अब शहर में नहीं रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बढ़ती हुई व्यवसायिकता है। वे कहते हैं कि पहले मैं गुना में रहता था। काम के सिलसिले में भोपाल अक्सर आता था तो इंडियन कॉफी हाउस जरूर जाता था। उस वक्त जो लोग कॉफी हाउस में मिलते थे, उन्होंने अब जाना बंद कर दिया। लोगों का दृष्टिकोण बदला है। यहां ऐसे लोगों की अधिकता है जो अपना स्वार्थ सिद्ध होने के उद्देश्य से कॉफी हाउस में मिलने लगे हैं। इस दौरान अगर उन दो लोगों की बातचीत चलती रहे और कोई तीसरा पहुंच जाए तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। बदलते दौर में इंडियन कॉफी हाउस का माहौल जरूर बदला है लेकिन दूसरी टेबिल पर हो रही बातचीत से दूर अपनी टेबिल पर विचारों में मग्न हो जाना कुमार अंबुज को प्रभावित किए बिना नहीं रहता।

कमाल की है कॉफी
- 1822 में सबसे पहले फ्रेंचवासियों ने एस्प्रेसो मशीन का आविष्कार किया।
- कॉफी को यूरोप में अरेबियन वाइन के नाम से जाना जाता था।
- कॉफी की 50 से अधिक प्रजातियां दुनियाभर में मौजदू हैं।
- हर साल 50 बिलियन कप कॉफी पी जाती है जिसमें से 25 बिलियन कप कॉफी सिर्फ नाश्ते के दौरान ही खत्म हो जाती है।
- एस्प्रेसो कॉफी में 2.5 प्रतिशत वसा होती है, जबकि फिल्टर कॉफी में 0.6 प्रतिशत
वसा होती है।
- जापान में कॉफी स्पा है जहां लोग कॉफी के टब में बैठकर नहाने का मजा लेते हैं।
- इटली में इस वक्त 200,000 कॉफी शॉप्स हैं और अन्य स्थापित हो रहे हैं।
- पिछले तीन दशकों में पश्चिमी देशों के 90 प्रतिशत लोगों ने चाय छोड़कर कॉफी पीना शुरू किया है।

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