शनिवार, 24 नवंबर 2012

एक और एक ग्यारह
देश के प्रसिद्ध उद्योगपति अगर उद्योग जगत में छाए रहने का दम रखते हैं तो उनकी पत्नी भी कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए कभी बिजनेसवुमेन के रूप में तो कभी सामाजिक कार्यों को बखूबी पूरा करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। एक हमसफर के तौर पर वे एक दूजे के लिए एक एक और दो नहीं बल्कि एक और एक ग्यारह की ताकत रखते हैं....
लक्षमी मित्तल ब्रिटेन के सबसे अमीरों में शुमार है। उनकी काम के प्रति व्यस्तता को देखते हुए उनकी पत्नी लक्ष्मी मित्तल इंडोनेशिया में स्टील बिजनेस को संभाल रही हैं। उषा मुंबई में विकलांग ब"ाों के लिए स्थापित किए गए जयवकील स्कुल की जिम्मेदारियां बखूबी निभाती हैं। भारत में महिलाओं की शिक्षा की दिशा में कार्य कर रही उषा मित्तल इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी की जिम्मेदारी भी संभालती हैं। विप्रो चैयरमेन अजीम प्रेमजी देश के बड़े उद्योगपति होने के बाद भी लोगों के सामने आने से अक्सर बचते हैं। अजीम प्रेमजी गरीब ब"ाों की शिक्षा के प्रति प्रतिबद्ध हैं। अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में से 2 बिलियन डॉलर वे इसी दिशा में खर्च करते हैं। उनकी पत्नी यासमीन प्रेमजी इस चैरिटी की डायरेक्टर हैं। यासमीन एक लेखिका के रूप में अपनी खास पहचान रखती हैं। उनका उपन्यास डेज ऑफ गोल्ड एंड सेपिया बहुत पसंद किया गया। वह पिछले बारह सालों से सामाजिक कार्यों में व्यस्त हैं। सॉफ्टवेयर उद्योगपति नारायणमूर्ति इंफोसिस टेक्नोलॉजी लिमिटेड के सह संस्थापक हैं। नारायण ने इस कंपनी की शुरूआत महज 10,000 रूपए से की थी जो उन्हें उनकी पत्नी सुधा मूर्ति ने दिए थे। आज उनकी कंपनी भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है जिसे आईटी हब के रूप में जाना जाता है। कुछ सालों पहले मूर्ति और सुधा ने
5.2 मिलियन डॉलर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को इंडियन क्लासिक्स का अनुवाद प्रकाशित करने के लिए दिए।
सुधा एक समाज सेविका और लेखक के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है। वे गेट फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी सदस्यों में से एक हैं।
2006 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। सुधा समय-समय पर समाज सेवा और शिक्षा में दिए गए अपने अमूल्य योगदान के लिए सम्मानित की जा चुकी  हैं। मुकेश और नीता अंबानी का नाम न सिर्फ उद्योग जगत में बल्कि मनोरंजन की दुनिया में भी छाया रहता है। मुकेश ने अपने पिता के रिलायंस एंपायर की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। नीता धीरूभाई अंबानी इंटरनेशन स्कूल की संस्थापक हैं और शिक्षा से संबंधित कई कार्यों के साथ उनका नाम जुड़ा हुआ है। रियल हीरोज अवार्ड्स की शुरूआत रिलायंस फाउंडेशन की ही देन हैं। इसी तरह अनिल अंबानी अगर रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप को सुशोभित करते हैं तो टीना सामाजिक कार्यों में व्यस्त दिखाई देती हैं। वे कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही समकालीन भारतीय कला की मुख्य संरक्षक के रूप में भी जानी जाती हैं। मशहूर उद्योगपति जेएसडब्ल्यू स्टील के चैयरमेन स"ान जिंदल की कंपनी भारत में तीसरी सबसे बड़ी स्टील कंपनी मानी जाती है। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी। आज वे एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स के एक्स प्रेसिडेंट भी है। स"ान का साथ उनकी हमसफर संगीता जिंदल ने पूरी तरह दिया है। वह जेएसडब्ल्यू ग्रुप के जेएसडब्ल्यू फाउंडेशन की निदेशक है। यह संस्था स्थास्थय, शिक्षा, आवास और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने की दिशा में कार्य करती है। वह हंपी फाउंडेशन की चैयरपर्सन हैं जो भारत की धरोहरों के संरक्षण की दिशा में कार्य करती है। देश के इन उद्योगपतियों ने काम के बल पर दुनिया भर में अपना लोहा मनवाया है। आदि गोदरेज दुनिया के सबसे अमीर पारसी हैं। वे औद्योगिक कार्यों के अतिरिक्त परोपकारी कार्यों में भी संलग्र रहते हैं। उनकी पत्नी परमेश्वर गोदरेज समाज सेविका के रूप में जानी जाती हैं। परमेश्वर आलीशान पार्टियों को आयोजित करने की कला भी बखूबी जानती है। ओपेरा विन्फ्रे  की भारत यात्रा के दौरान परमेश्वर द्वारा दी गई पार्टी आज भी लोगों की जुबान पर है। वह गेट्स फाउंडेशन की बोर्ड मेंबर और गेरे फाउंडेशन के अलावा आहवान संगठन से भी जुड़ी हुई हैं। नंदन नीलकेणी इंफोसिस के सह संस्थापक और सीईओ के रूप में जाने जाते हैं। वे इस पद पर मार्च
2002 से अप्रैल 2007 तक रहे। फिलहाल वे यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के चैयरमेन हैं। नंदन को भारत में नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टेवयर एंड सर्विस कंपनिज और बैंगलोर में इंडस इंटरप्रेनयोर की स्थापना करने का श्रेय भी प्राप्त है। वे वल्र्ड इकोनोमिक फोरम फाउंडेशन और बॉम्बे हेरिटेज फंड के लिए सलाहकार के रूप में भी कार्य करते हैं। उनकी पत्नी रोहिनी निलकेणी पब्लिक चैरिटेबल फाउंडेशन आघर््यम की चैयरपर्सन हैं। वे 2001 से गंदी बस्तियों में पानी और साफ-सफाई की स्थिति सुधारने की दिशा में कार्य कर रही हैं। रोहिणी कई सालों से एक पत्रकार, लेखक और समाज सेविका के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। वे प्रथम बुक्स की सह संस्थापक है जो ब"ाों को अलग-अलग भाषाओं में कम कीमत पर किताबें उपलब्ध कराने में मदद करती है। वह प्रथम इंडिया एजुकेशन इनिशिएटिव और संघमित्रा रूरल फायनेंशियल सर्विस की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स भी हैं।
उनकी संस्था माइक्रोक्रेडिट कार्यक्रम के अंतर्गत गरीबों के लिए फंड एकत्रित करती है। वे जुलाई 2002 से जुलाई 2008 तक अक्षरा फाउंडेशन की चैयरपर्सन थी। नुस्ली वाडिया एक उद्योगपति, टेक्सटाइल मैग्रेट के नाम से जाने जाते हैं। नुस्ली वाडिया रियल स्टेट के बिजनेस में जाना-माना नाम है। वे बॉम्बे डाइंग के चैयरमेन हैं। उनकी पत्नी मौरीन वाडिया हैं। मौरीन की मुलाकात नुस्ली से एयर इंडिया विमान में हुई और जल्दी ही उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया। मौरीन कंपनी के ब्रांड प्रमोशन में योगदान देती हैं। वह फेमिना मिस इंडिया की प्रायोजक  के तौर पर पहचानी जाती हैं और ऐसे कई इवेंट्स में संलग्र रहती हैं जिससे उनके ब्रांड को पहचान मिल सके। ग्लैमर की दुनिया में छाए रहने का मौरीन को बेहद शौक है और अपने इस शौक को वे बखूबी पूरा भी करती हैं। वह फैशन और स्टाइल मैगजीन ग्लेडरेग्स की संपादक है। वे वार्षिक ग्लेडरेग्स मॉडल ऑफ द ईयर और मिसेज इंडिया कांटेस्ट की प्रायोजककर्ता भी हैं।


































































































































































































शनिवार, 17 नवंबर 2012

जब दिल किसी का टूटे
माता-पिता के रिश्तों में जब दरार आती है तो इसका असर उनके बच्चों की परवरिश पर भी पूरी तरह होता है। कई बार वे विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भी आगे बढ़ते जाते हैं और कई बार ये भी होता है कि ऐसे हालात उनकी बर्बादी की वजह बनकर सामने आते हैं। इस के माध्यम से रिश्तों के बिगड़ते ताने-बाने का असर आम जन को प्रभावित करने वाले सेलेब्स के बच्चों के जीवन को किस तरह से प्रभावित करता है, ये दर्शाने का प्रयास किया गया है...

जब अभिभावकों का ब्रेकअप होता है तो विपरीत प्रभाव उनके बच्चों के जीवन को भी पूरी तरह प्रभावित करता है। ऐसे बच्चे किसी भी तरह का कमिटमेंट करने से डरते हैं, क्योंकि उनके मन में यह भावना हमेशा रहती है कि वे अपने माता-पिता की तरह किसी भी करार को पूरा नहीं कर पाएंगे। युवराज सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही है। जिस युवा क्रिकेटर की सारी दुनिया दीवानी है, वह अपने घर में कई बार मां-बाप के बीच आई दरार की वजह से परेशान होते देखे गए हैं। यही हाल शाहिद कपूर का भी है। उनके पिता पंकज कपूर और मां नीलिमा अजीम के अलग होने के बाद वे अपने जीवन में भी किसी से वादा करने में अक्सर डरते हैं। लोगों का यह भी कहना है कि करीना के साथ उनके संबंध भी इसी तरह की असुरक्षा के चलते टूटे। शाहिद को आज भी लगता है कि शादी करने से ज्यादा जरूरी अपने कैरियर पर ध्यान देना है इसीलिए वे शादी के बंधन में बंधने के बजाय अपने कैरियर में स्थायित्व का प्रयास करते नजर आते हैं। ऐसे कलाकारों में वे अकेले नहीं हैं, जबकि 40 की उम्र से आगे निकल चुकी तब्बू आज भी शादी की बात आने पर इस सवाल का जवाब देने से कतराती हैं। महेश भट्ट जब अपने पुत्र राहुल और उसकी मां को छोड़कर चले गए तो राहुल कई सालों तक इस सदमे से निकल नहीं पाए। मनोचिकित्सक डॉ. काकोली रॉय कहती हैं कि माता-पिता के अलग होने पर बच्चे में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है। इस भावना को दूर करके आगे बढऩे में उसे लंबा समय लगता है। वे माता-पिता जो बच्चे के सुरक्षित रहने की सबसे बड़ी वजह होते हैं, उनके न रहने पर उसका खुद को असहाय महसूस करना स्वाभाविक ही है। सच तो यह है कि बच्चों को बचपन से सिखाया जाता है कि माता-पिता के रिश्ते से बड़ा रिश्ता दुनिया में दूसरा नहीं है और जब यही अभिभावक अलग होते हैं तो बच्चे का रिश्तों पर से विश्वास उठने लगता है। ऐसे बच्चे आसानी से अपने लिए जीवनसाथी का चयन नहीं कर पाते। अगर कहीं ऐसे अभिभावकों के बच्चे संबंधों को स्वीकार कर भी लेते हैं तो उनके संंबंध बिगड़ते भी देर नहीं लगती। स्कॉटिश एक्टर गेरारर्ड बटलर मानते हैं कि मेरे पेरेंट्स जब अलग हो गए तो मेरे साथ एक अनजाना डर हमेशा रहने लगा। फिर भी मैं सोचता हूं कि उनके दरकते रिश्तों को ढोने से ज्यादा अच्छा है मैं स्वच्छंद जीवन जीने लगूं। मनोवैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि जब इन बच्चों को कहीं से आसरा नहीं मिलता तो वे अपनी आजादी को ही अपना सहारा समझकर जीने की कोशिश करने लगते हैं। धीरे-धीरे ये आजादी उन पर इतनी हावी होने लगती है कि परिवार के मायने वे भूल जाते हैं। उनके लिए बंदिशों में रहने वाले परिवार से दूर ऐसी आजादी सब कुछ हो जाती है। इन बच्चों के लिए अपनी शादीशुदा जिंदगी को निभा कर दिखाना भी किसी चुनौती से कम नहीं होता। जैसा कि फिलहाल करीना कपूर के लिए कहा जा रहा है। एक ज्योतिष द्वारा उनकी शादीशुदा जीवन की तबाही की भविष्यवाणी की जो प्रतिक्रिया करीना ने व्यक्त की वो उनके गुस्से को पूरी तरह प्रकट करती है। अपनी मां बबीता और पिता रणधीर कपूर के अलग होने के बाद उन्होंने न सिर्फ कामयाबी के शिखर को छुआ, बल्कि लोगों के सामने यह आदर्श भी स्थापित किया कि अभिनय की जो कला उन्हें विरासत में मिली उस पर वे खरी उतरने की योग्यता भी रखती हैं। कई बार यह भी देखा गया है कि जिन अभिभावकों का विवाह सफल नहीं होता, उनके बच्चे भी विवाह करने पर सामंजस्य स्थापित करने में असफल होते हैं। अभिनेत्री रेखा ने माता-पिता के तलाक होने के बाद घर के बुरे हालातों से तो सामना किया ही, लेकिन उनका खुद का वैवाहिक जीवन दो बार शादी करने के बाद भी कभी सुखमय नहीं रहा। प्रतिमा बेदी और कबीर बेदी के संबंधों की दरार उनके बच्चों को भी प्रभावित करती रही। उनकी बेटी पूजा बेदी ने कुछ ही फिल्मों में अपने अभिनय के जौहर दिखाने के बाद कैरियर को आगे बढ़ाने के बजाय वैवाहिक जीवन बिताना अधिक पसंद किया। 1990 में फरहान इब्राहिम फर्नीचरवाला से उनकी पहली मुलाकात हुई और जल्दी ही दोनों ने शादी कर ली। सन 2000 में उनका तलाक हो गया। अब वे अपने दो बच्चों के साथ अकेली रहती हैं। राहुल भट्ट ने अपने माता-पिता की जो हालत देखी है उससे सबक लेते हुए वे आज भी कहते हैं कि मेरे लिए अपनी पत्नी के साथ संबंधों को निभाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हमारे संबंधों का विपरीत प्रभाव बच्चों के जीवन को बर्बाद करने की वजह बने। कई बार यह भी होता है कि माता-पिता के संबंधों में दरार को देखते हुए बच्चे आदर्श स्थापित करने की पूरी कोशिश करते हैं और फिर उसमें सफल भी होते हैं। नीना गुप्ता और विवियन रिचड्र्स की बेटी मसाबा गुप्ता ऐसे ही बच्चों का एक जीवंत उदाहरण है। मसाबा कहती हैं, अगर माता-पिता अपने रिश्तों को निभा न सकें तो उनके बच्चों की जिम्मेदारी ऐसे में और भी बढ़ जाती है। कोशिश तो यह होना चाहिए कि वे अपने संबंधों की नींव ज्यादा समझदारी से रखें।
शक्ति दे मां

एक नारी होने के नाते शक्ति की परीक्षा मां दुर्गा ने भी दी थी और आज भी महिलाएं अपनी शक्ति का परिचय देकर लोगों के सामने मिसाल कायम करने का दम रखती हैं।  बात करें उन महिला प्रशासनिक अधिकारियों की, जिन्होंने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए नारी शक्ति का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया है....

मोनिका शुक्ला
एडिशनल एस पी, ट्रैफिक पुलिस
न्यू मार्केट में सोने के गहनों की चोरी का मामला मुझे याद है। ईव्स मिरेकल से सात-आठ किलो सोना चोरी हुआ था। जिस संदिग्ध व्यक्ति पर हमें शक था उसे बुलाकर पूछताछ की गई लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। बाद में उसके फोन की डिटेलिंग से पता चला कि उसी व्यक्ति ने बार-बार उस क्षेत्र में फोन किया था। उस व्यक्ति ने पूछताछ के बाद अपना अपराध स्वीकार किया और बताया कि उसके घर में स्थित कुएं के अंदर लगी मोटर में उसने सोना छिपाया था। वो सारा सोना हमने उस कुएं से बरामद किया था। जब मैं शाहजहांनाबाद में सीएसपी थी, तो काजी कैंप में ट्रक से टकराने पर एक बच्ची की मृत्यु हो गई थी। गुस्से में आकर लोगों ने तोडफ़ोड़ करना शुरू की। मैंने अपनी टीम के साथ फायरिंग करके भीड़ को नियंत्रित किया।
आत्मविश्वास बढ़ेगा
अपने फैसले खुद लेना सीखें। परिवार की सलाह से फैसले करना अच्छी बात है लेकिन अंतिम निर्णय आपका अपना होना चाहिए। इससे आपमें आत्मविश्वास बढ़ेगा।
अरुणा मोहन राव

एडीजी महिला सेल
1989 में जब मैं परिवेक्षक अधिकारी थी तो रायपुर में रेल लाइट एरिया से लगातार शिकायत मिल रही थी। वहां की पहली लेडी पुलिस ऑफिसर होने की वजह से मुझे वहां जाकर जांच करने को कहा गया। इस केस में वहां पदस्थ कमिश्नर और कलेक्टर ने भी हमारी बहुत मदद की और वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं के व्यवस्थापन की व्यवस्था की गई। मुझे ये संतुष्टि थी कि हमारे प्रयासों से उन महिलाओं की जिंदगी सुधर गई। मुझे वो केस भी याद है जब मैं धमतरी में एसडीओपी थी और वहां एक लड़की की मृत्यु हो गई थी। कुछ लोगों ने शिकायत की कि उसकी हत्या की गई है। जांच के बाद पता चला कि वह जिस घर में नौकरानी थी उसी घर के मालिक ने उसका शारीरिक शोषण किया था। जब वह गर्भवती हो गई तो उसका गर्भपात करवाया गया और उसी दौरान उसकी मृत्यु हो गई। मैंने वहां के एसडीएम की मदद लेकर उस लड़की की लाश को खुदवाया और जब उसका पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि सारी बात सच थी। बाद में उस डॉक्टर को जिसने उस लड़की का गर्भपात किया था और उस व्यक्ति को जिसने लड़की का शारीरिक शोषण किया था, सजा सुनाई गई।
आत्मनिर्भर बनें
आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनें ताकि आप अपनी जरूरतों के लिए किसी पर निर्भर न रहें। अपने अधिकारों के लिए लडऩा सीखें। अगर आपके साथ अन्याय होता है तो उसके खिलाफ कदम उठाने की हिम्मत रखें।
रुचि वर्धन मिश्र
एसपी राजगढ़

जब मैं भोपाल में एडीशनल एसपी थी तो बेडिय़ा समाज की कई छोटी-छोटी लड़कियों के गायब होने का मामला सामने आया था। इन लड़कियों को कड़ी मेहनत के बाद अलग-अलग शहरों जैसे नागपुर, मुंबई और शिवपुरी आदि स्थानों से बरामद किया गया। इस केस में कई अपराधियों की गिरफ्तारी भी हुई। इसमें सबसे कम उम्र की जिस लड़की को बरामद किया था उसकी उम्र चार साल थी, जिन्हें वेश्यावृत्ति के लिए ले जाया जा रहा था।
संभव किया जा सकता है
अगर आप परेशान हैं तो पूरे विश्वास के साथ उस समस्या का समाधान ढंूढें। आजकल ऐसी कई संस्थाएं हैं जो आपकी मदद करने के लिए बनाई गई हैं। पारिवारिक सदस्यों की मदद से हर असंभव काम को संभव किया जा सकता है।


अनुराधा शंकर सिंह
आईजी, इंदौर
कई बार ऐसे केस सामने आते हैं जब लगता है कि इसे सुलझाना मुश्किल होगा लेकिन एक से एक कड़ी जुड़ती जाती है और मुश्किल आसान हो जाती है। जब मैं भोपाल में डीआईजी थी, उन दिनों वहां बंगलादेशी डकैतों का बहुत आतंक था। एक के बाद एक रोज ही डकैती के मामले सामने आते थे। डकैतों को पकडऩे के लिए एक टीम गठित की गई और जल्दी ही उन डकैतों को पकडऩे में हम कामयाब रहे। ऐसा ही एक केस उन दिनों का है जब मैं विदिशा में एसपी थी। वहां जगन्नाथ रथ यात्रा के समय मेला लगता है। उस मेले में एक साथ पांच लोगों की हत्या कर दी गई थी। तीन-चार महीनों तक जांच जारी रही और अंतत: अपराधी पकड़े गए।

भरोसा रखना सीखें
महिलाओं को सबसे पहले अपनी योग्यता पर भरोसा रखना सीखना चाहिए। हमेशा ईमानदारी के साथ प्रयास करके आगे बढ़ें।
सुफिया कुरैशी मुद्गल
उपनिरीक्षक, मध्यप्रदेश पुलिस

कुछ दिनों पहले ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग की चोरी हुई थी। इस प्रकरण में जांच तभी संभव थी जब ऑनलाइन शेयरिंग और इससे संबंधित तकनीकी ज्ञान की जानकारी हो। इस केस के लिए सारी जानकारी इक_ा करने और तकनीकी बातों को जानने में मेहनत भी खूब हुई और अच्छे परिणाम सामने आने पर संतुष्टि भी मिली। ये लगा कि मैं अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से निभा सकी।

आगे बढऩे का प्रयास करें
अपने कर्तव्यों को निभाने के साथ-साथ अपनी विशेषताओं को समझते हुए आगे बढऩे का प्रयास करें। सफलता उन्हें मिलती है जिनमें इसे पाने का जज्बा होता है।
कवर स्टोरी
जब हुई किताबों से दोस्ती

सारा संसार किताबों में समाया हुआ है। किताबों से अच्छा कोई दोस्त भी नहीं हो सकता। हम जो मुकाम हासिल करते हैं वो किताब की ही बदौलत मिलता है। दुनिया देखने के लिए नजरिया इन किताबों से ही मिलता है। हर व्यक्ति के संघर्ष के दिनों में किताबें उसका साथ देने और हौसला बढ़ाने का काम बखूबी करती हैं। प्रस्तुत हैं किताबों को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानने वाले चंद ऐसे लेखकों के विचार जिनके जीवन में किताबों का प्रभाव देखते ही बनता है...

कविताओं में गहराई है
नीलेश रघुवंशी
मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखित मां, निर्मल वर्मा की कहानियां, अज्ञेय की शेखर एक जीवनी, विष्णु खरे का कविता संग्रह सबकी आवाज के परदे में, विनोद कुमार शुक्त, मुक्तिबोध, जयशंकर प्रसाद और नागार्जुन की कविताएं पढऩा मुझे पसंद है।  जयशंकर प्रसाद की कविताओं में गहराई है। मुक्तिबोध हिंदी के पहले विद्वान माने जाते हैं। उनकी विद्वता उनके साहित्य से पता चलती है। विष्णु खरे ने अपनी कविताओं के माध्यम से काव्य का पूरा ढांचा ही बदल दिया। मुझे लगता है कि इनकी किताबों से जीवन की दिशा ही बदली जा सकती है।
आज भी अच्छे साहित्यकारों की कमी नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि इतनी अधिक किताबें और पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जिनमें से अच्छी रचनाओं का चयन करना पाठकों के लिए मुश्किल हो जाता है। पाठकों की कमी होने के भी कई कारण हैं जिनमें सबसे पहला कारण लेखक और पाठक के बीच संवाद की कमी है। किताबें छपना आसान है लेकिन उसमें से अच्छी किताबों का चयन कर हर व्यक्ति को समय निकालकर उसका लाभ लेना चाहिए।
सोचने पर मजबूर कर दे
मंजूर एहतेशाम
प्रेमचंद की रचना गोदान और राही मासूम रजा द्वारा लिखित नया गांव पढ़कर उस समय के समाज और हालात का अंदाजा पूरी तरह लगाया जा सकता है। अगर नए लेखकों की बात करें तो नीलेश रघुवंशी ने एक कस्बे के नोट्स बहुत अच्छा लिखा है। इसी तरह अलका सराव ने कलिकथा की रचना बखूबी की है।
हर युग में लिखी गई किताबें उस वक्त के समाज और स्थितियों से अवगत कराती हैं। मुंशी प्रेमचंद ने गोदान के माध्यम से सदियों पहले किसानों के साथ होने वाले अत्याचारों का वर्णन बखूबी किया है। कृष्णा सोबती ने अपने उपन्यास जिंदगीनामा के माध्यम से जिंदगी की हकीकत को प्रदर्शित किया है।
एक महान रचना वो होती है जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर दे। महुआ मांझी का उपन्यास मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ, में उन्होंने आदिवासियों की परेशानियों को इतनी सजीवता के साथ प्रस्तुत किया है, जिसे पढ़कर उनकी समस्याओं का ज्ञान होता है और उनके लिए हमदर्दी होने लगती है। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा ही साहित्य समाज की दिशा बदलने का काम करता है।
दायरा सिमट रहा है
मालती जोशी
मैं जब स्कूल में थी तो मैंने शरतचंद्र चटोपाध्याय की महान रचना शरद साहित्य पढ़ी थी। उनकी इस रचना का प्रभाव मेरी कहानियों के रूप में भी दिखाई देता है। उन्होंने पुरुष होते हुए भी नारीमन की संवेदनाओं का सजीव चित्रण किया है।
अच्छी किताबें पढऩे वाले पाठकों की संख्या लगातार कम हो रही है। इसकी बहुत बड़ी वजह टीवी और मोबाइल के प्रति लोगों की गहरी रुचि भी है। लंबी कहानी पढऩे में पाठकों की रुचि दिखाई नहीं देती। साहित्य के लिए उनके पास समय नहीं है जिसके चलते साहित्य का दायरा सिमटता जा रहा है। आज जरूरत ऐसे साहित्य की रचना करने की है जिसे सरल भाषा और सीमित शब्दों में लिखा जाए ताकि कम समय में भी पाठक उसका लाभ ले सकें।

उर्मिला शिरीष
पढऩे की लगन खत्म हो गई
लियो टॉलस्टाय द्वारा लिखित अन्ना कारेनिना और प्रेमचंद का गोदान मानवीय मूल्यों, संबंधों और उस वक्त के समाज को प्रकट करती हैं। किताबें हमारी सोच को बदलने का काम बखूबी करती हैं। मैंने एक वो दौर देखा है जब लोगों को दिन-रात किताबों के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था, लेकिन आज पढऩे की लगन खत्म हो गई है। युवा पीढ़ी द्वारा किताबों के महत्व को समझने की सख्त जरूरत है।
लेखन दोयम दर्जे का है
राजेश जोशी
डॉ. तुलसी राम द्वारा लिखित मुर्दहिया, अरुण कमल का काव्य संग्रह मैं शंख महाशंख के अलावा किताब घर ने दूसरी बार दस कवियों के कविता संग्रह का प्रकाशन किया है, जो मुझे अच्छा लगा। रूसी लेखक रसूल हम्जौतौव की रचना मेरा दागिस्तान विशिष्टï शैली में लिखी गई है। मनोहर श्याम जोशी ने कुरू: कुरू: स्वाहा इतने रोचक अंदाज में लिखा है जिसे हर पाठक पढऩा चाहता है। भारतीय इंग्लिश लेखन दोयम दर्जे का है जिसके पाठक हमारे देश में अधिक हैं। इन किताबों के प्रति उनका आकर्षण हिंदी साहित्य की किताबों से अधिक दिखाई देता है।

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

म्हारो घाघरो जो घुम्यो

इंट्रो
एक बार फिर नवरात्रि की तैयारियां जोरों पर है। एक ओर शहर में जहां जगह-जगह झांकियां बनने की प्रक्रिया जोरों पर है, वहीं गरबा क्लासेस में गरबा सीखने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में उन गरबा प्रेमियों की भी कमी नहीं है, जो गरबा खेलते वक्त पहने जाने वाले परिधानों को फैशनेबल बनाने के लिए मुंहमांगी कीमत देने को तैयार हैं। खासतौर से इन्हीं लोगों के लिए शहर के फैशन डिजाइनर्स नए-नए प्रयोग करने में इन दिनों व्यस्त हैं। एक नजर नए फैशन ट्रेंड पर जो आपको गरबे की रौनक बनने में मदद करेगा...

ज्योति कुमार
फैशन डिजाइनर
ट्रेडिशन बुटिक
इस बार नवरात्रि में एंकल लेंथ वाले कॉटन के हरियाणवी क्रश लहंगे बनाने जा रही हूं। ये लहंगे एंकल लेंथ हैं, जिसकी वजह से लहंगे के गरबा खेलते समय पैरों में आकर फट जाने या गंदा होने का डर नहीं रहेगा। लहंगे के साथ चोली बेकलेस और मिरर वर्क वाली होगी। दुपट्टे बांधनी या लहरिया की डिजाइन वाले होंगे। कलर की अगर बात की जाए तो पारंपरिक रेड, रॉयल ब्ल्यू, यलो को रेड या ऑरेंज के साथ कांबिनेशन करके पहना जा सकता है।
लहंगे के साथ आक्सीडाइज्ड ज्वैलरी जिसमें बीड्स, स्टोन्स, डल गोल्ड की आर्टिफिशियल ज्वैलरी का चलन रहेगा।

आपकी सलाह
कोशिश ये होना चाहिए कि डांडिया खेलने के लिए इतनी सारी भीड़ में खड़े रहने के बाद आपकी ड्रेस इतनी खूबसूरत हो जिसकी वजह से आप दूसरों से अलग नजर आएं।

मुमताज
फैशन एक्सपर्ट
मैं इस बार अनारकली को लहंगे का विकल्प बनाकर पेश कर रहा हूं। लहंगा पहनने पर आपकी ड्रेस तीन पीस में हो जाती है, जबकि अनारकली दो पीस वाली ड्रेस है। नौ मीटर के घेर वाले अनारकली कुर्ते तैयार किए जा रहे हैं। इतने घेर वाले अनारकली कुर्ते भोपाल में इससे पहले किसी ने नहीं बनाए। जार्जेट, शिफॉन, बांधनी, जयपुरी प्रिंट के साथ बॉर्डर पर वर्क और जरी व जरदोजी वाले दुपट्टे कॉलेज गोइंग गल्र्स को लुभाएंगे। इन्हें डबल कलर वाले बनाया जा रहा है। इसके अलावा लांग फ्रं ट ओपन कुर्ते को गाउन केे रूप में पेश किया जा रहा है। अनारकली की लंबाई कम करके इसे स्टाइलिश बनाने की कोशिश की जा रही है। करांची पैटर्न वाले कुर्तों के साथ अम्ब्रेला पायजामे तैयार किए जा रहे हैं।
 लड़कों के लिए जामावार और ब्रोकेड की शेरवानी या कुर्ते पेश हैं। धोती के साथ शार्ट कुर्ते और बाघ या सिल्क के कुर्तों के साथ पटियाला सलवार अच्छी लगेगी।
आपकी सलाह
चमकीले कपड़ों का फैशन पूरे फेस्टिवल सीजन में छाया रहेगा। इसका फायदा उठाएं और अपनी ड्रेस को स्टाइल के साथ पहनकर गरबे में छा जाएं।
जुनैद खान
फैशन डिजाइनर
ग्लिटर बुटिक
मल्टी कली वाले लहंगे जैसे 36 या 52 कली वाले लहंगे तैयार किए जा रहे हैं। कॉटन युक्त इन लहंगों के साथ चौड़े गोटे का इस्तेमाल किया जा रहा है। शाम में हल्की सी ठंडक को देखते हुए ब्राइट कलर गरबा ड्रेस के लिए उपयुक्त होंगेे इसलिए मैजेंटा, मस्टर्ड, रेड कलर को सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है। लड़कों के लिए हल्के रंग की धोती के साथ गहरे रंग का कुर्ता तैयार किया जा रहा है। कुर्ते के लिए लड़के पर्पल, ब्लू, मस्टर्ड और ग्रीन कलर पसंद कर रहे हैं।
आपकी सलाह
गरबा ड्रेस के रूप में आप अपनी पसंद के अनुसार चाहे जो भी चुनें लेकिन सुविधा का भी ध्यान रखें, क्योंकि गरबा खेलते समय सुविधायुक्त परिधान भी जरूरी है।
पूर्वी सोजतिया
फैशन डिजाइनर

इस नवरात्रि पर सॉलिड कलर लड़कियों और लड़कों दोनों की पहली पसंद है। ऑरेंज के साथ पिंक या ग्रीन के साथ यलो कलर को पसंद किया जा रहा है। फिल्म 'हीरोइनÓ में करीना कपूर ने जो लहंगे हलकट जवानी गाने में पहने हैं, वे फैशन में इन हैं। इसके साथ ही कपल्स अपनी पसंद के अनुसार एक जैसे गरबा आउटफिट्स तैयार करवा रहे हैं। गरबा ड्रेस के साथ एंटीक ज्वैलरी छाई हुई है। हर ड्रेस के साथ अलग-अलग ज्वैलरी पहनने वाले लोग अधिक हैं। एक बार फिर वुडन बैंगल्स को हाथ भरकर पहनना लड़कियां अधिक पसंद कर रही हैं। राजस्थानी कड़ों में व्हाइट के अलावा मल्टी कलर भी उपलब्ध हैं। मल्टी कलर की चूडिय़ां रेशम वर्क में भी मिल रही हैं। इन चूडिय़ों के टूटने का डर नहीं रहता इसलिए इन्हेंं अधिक संख्या में पसंद किया जा रहा है। हर ड्रेस के साथ मैचिंग एक्सेसरीज की मांग जोरों पर है। फैशन के ऐसे दीवानों की भी कमी नहीं है जो नवरात्रि में नौ दिनों तक खेले जाने वाले गरबे के हर दिन के लिए अलग-अलग ड्रेस और उसके साथ मैचिंग एक्सेसरीज का चुनाव कर रहे हैं। अगर बात डिजाइनर डांडिया की करें तो अपनी ड्रेस के साथ मैचिंग डांडिया पसंद किया जा रहा है। इन दिनों डिजाइनर डांडिया की 11 से 15 डिजाइन बाजार में आ गई हैं।
शुचि श्रीवास्तव
फैशन एवं टेक्सटाइल एक्सपर्ट
सेंटर हेड आईआईएफटी
इस बार नवरात्रि पर अनारकली कुर्ते और हमेशा की तरह डिजाइनर लहंगे छाए रहेंगे। लहंगे में ब्रोकेड के साथ मिरर वर्क किया गया है। अगर हम कलर की बात करें तो ब्राउन, रेड, मैरून, यलो और पिंक कलर की धूम रहेगी। लड़कों के लिए यलो, क्रीम, रेड, ऑरेंज, ब्ल्यू या ब्लैक कलर के कुर्तों के साथ पायजामा या धोती पर काम किया जा रहा है। उनके डिजाइनर कुर्तों को मिरर और काथा वर्क से सुंदर बनाया जा रहा है। डेनिम में पफ पॉकेट डेनिम के कुर्ते गरबा ड्रेस के रूप में इस साल देखने को मिलेंगे। इस स्टाइल में कुर्ते की जेब के पास से घेर ज्यादा और नीचे की तरफ  कम होता जाता है।
आपकी सलाह
कई लड़कियां हैवी वर्क वाले लहंगे पहनना पसंद करती हैं। इन लहंगों पर किया गया वर्क उलझकर खराब होने का डर बना रहता है इसलिए अधिक हैवी वर्क वाले परिधान सभी को पहनने से बचना चाहिए।


सलीका भी जरूरी है

- हैवी लहंगे को पहनने के लिए हैवी या जड़ाऊ नेकपीस आपको एथनिक लुक देगा।
- पुराना हैवी लहंगा पड़ा हो, तो उसे प्लेन टी-शर्ट के साथ पहनें, ये आपको परफेक्ट कैजुअल लुक देगा।
- ज्यादा हैवी ड्रेस के साथ दुपट्टा न लें।
- आई मेकअप को स्मोकी इफेक्ट दें। होंठों पर डार्क लिपस्टिक लगाने से बचें। सिर्र्फ ग्लॉस लगाएं।
- लहंगे के साथ आप डेनिम जैकेट भी पहन सकती हैं।
- हैवी हेयर स्टाइल से बचें।
- हैवी चोली यूं ही पड़ी हो तो
कंट्रास्ट कलर की प्लेन टी-शर्ट या टॉप पहनें। इसके ऊपर चोली आपको एथनिक लुक देगी।
- इस लुक में आप हेयर स्टाइल और मेकअप के साथ एक्सपेरिमेंट कर सकती हैं।


कुछ नया ट्राई करें
- हैवी दुपट्टा यूज में न आ रहा हो तो उसे कैजुअल टॉप व कोट के साथ पहनें।
- इसे स्कार्फ या स्टोन की तरह कैरी करें।
- मेकअप कम करें और बालों को खुला छोड़ दें।
- कम से कम एक्सेसरीज यूज करें। प्रिंटेड व एम्ब्रॉयडर्ड टॉप या जैकेट पहनने से बचें।

शनिवार, 22 सितंबर 2012


दिल से निभाई
दोस्ती
साहित्य समाज का दर्पण होता हे और इसलिए साहित्य के माध्यम से तमाम रिश्तों को साहित्यकार सदियों से बयां करते आए है। दोस्ती के इस खास दिन पर शहर के प्रसिद्ध साहित्यकार अपनी रचना के माध्यम से दोसती को बयां करने वाली उनकी रचनाओं के बारे में बता रहे हैं साथ ही उन्होंने खुद इस रिश्ते को गहराई से समझा है और आज भी वे तहे दिल से दोस्ती निभाना जानते हैं.....
बदलते वक्त के साथ दोस्ती शब्द के मायने भले ही कुछ लोगों के लिए बदल गए हो लेकिन ये विश्वास फिर भी कायम है कि दोस्ती का रिश्ता आज भी वही प्यार, समर्पण और अपनापन लिए हुए है जितना पहले था। दुनिया के सारे रिश्तों में एक सच्चे दोसत की दोसती का रिश्ता समय की धारा के साथ परिवर्तित नहीं बल्कि प्रगाढ़ हुआ है।
याद आई पहली कतार
इंदिरा दांगी
मैने एक साल पहले एक कहानी लिखी थी जिसका नाम था पहली कतार। इस कहानी में दिल्ली के एक युवक और एक महिला कवयित्री की मित्रता को दर्शाया गया है। इस कहानी के माध्यम से स्त्री और पुरुष के बीच दोस्ती की मार्यदाओं को भी व्यक्त किया है। इसमें कोई शक नहीं कि हम पाश्चात्य संस्कृति को पूरी तरह अपना चूके हैं लेकिन फिर भी जहां बात पुरुष और स्त्री के बीच दोस्ती की आती है तो वहां हमारे विचार सिर्फ उनके बीच प्रेम के बारे में ही सोचने लगते हैं जबकि सच तो यह है कि वे दोनों भी बहुूत अच्छे दोस्त हो सकते हैं।
मेरी दोस्ती
मेरी एक बचपन की सहेली है सीमा चौरसिया। जब भी कोई परेशानी आती है तो सबसे पहले मैं उसी को याद करती हूं। मुझे याद है मेरी डिलीवरी होने से पहले मैने उसे फोन किया और बताया कि डॉक्टर सर्जरी करने का कह रहे हें। जब मैं ऑपरेशन थियेटर से बाहर आई तोमैने देखा वह अपने छोटे छोटे बच्चों को घर छोड़कर मुझसे मिलने अस्पताल में आ गई। इस प्यार भरे रिश्ते को अपनाने के लिए ऐसा अपनापन ही तो चाहिए।
गरीब लड़की की कहानी
मालती जोशी
कइ्र साल पहले मैने एक  कहानी लिखी थी एक कर्ज एक अदायगी। ये कहानी एक गरीब आदिवासी लड़की की थी। उसकी फीस के पैसे चोरी हो जाते हैं तब सब बच्चे मिलकर चंदा करते हैं और उसक ी फीस जमा होती है। वो बच्ची ये बात याद रखती है इसलिए परीक्षा के समय होस्टल में फ्लू फैलने से जब दूसरी लड़कियां बीमार पड़ती है तो वह लड़की अपनी पढ़ाई छोड़कर सब लड़कियों की मदद करती है। कहीं न कहीं उस लड़की के मन में कर्ज उतारने की भावना इस हद तक होती है जो मदद के रूप में सामने आती है।
दोस्ती का जज्बा सारे जहां में मौजूद है। इस रिश्ते के बिना हमारा वजूद ही नहीं है। मैं तो इस उम्र में भी अपने जन्म दिन पर पुरानी सहेलियों को इकटठा करके उनके साथ वक्त बिताना पसंद करती हूं।
मुझे मेरी वो सहेली हमेशा याद आती है जिसकी पिछले साल मृत्यु हो गई। उसका नाम मनोरमा भ्रमो था। उसे अच्छे कपड़े और गहने पहनने का बहुत शौक था। वह अक्सर इस बात से नाराज रहती थी कि मैं इस तरह के शौक पर अधिक पैसा खर्च क्यों नहीं करती। उन दिनो मैं मुरैना के पास एक देहाती इलाके में थी। वह वहां आई और जब हम कहीं घूमने जाने लगे तो मैंने उसके बैग में से एक साड़ी निकालकर पहन ली। उसने साड़ी देखी तो कहने लगी मेरे जैसी साड़ी तुमने भी खरीद ली लेकिन ब्लाउज कितना पुराने फैशन का पहन रखा है। इसके बाद जब जीप से बाहर निकले तो जीप में रखी सुराही का पानी छलकने लगा। यह देखकर वह कहने लगी इसे यहां से हटाओ कही मेरी साउ़ी खराब हो गई तो? मैने कहा एक ही बात अगर वहां से हटाकर मैने मेरे पास रख ली तो ये भी तो तुम्हारी ही साड़ी है। जब उसे पूरी बात बताई तो वह खूब हंसी। उसके इस दुनिया के जाने के बाद भी ऐसी बहुत सारी यादें हमेशा याद आती है।

ज्ञान चतुर्वेदी
मेरे परम मित्र डा. अंजनी चौहान पर आधारित हास्य व्यंग्य लफ्ज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस रचना का शीर्षक है एक थे असु ओर एक थे बसु। अगले साल मेरे इसी मित्र को समर्पित मेरा उपन्यास पाठकों के समक्ष होगा। मैं उस दोसती में विशवास नहीं रखता जिसमें दिखावा हो। मैं ऐसी दोसती पसंद करता हूं जिसमें मेरे दोस्त मुझे मेरे गुणों के अलावा अवगुणों के साथ भी स्वीकार करें।
मेरे मित्र
मेरे मित्र डॉ. अंजनी चौहान और प्रभु जोशी को दोस्ती के लिए बनाए गए इस विशेष दिन पर जरूर याद करना चाहूगा। इन दोनों ने मुझे व्यंग्य के संस्कार सीखाएं। मैने इन्हीं से लेखन की कला को सीखा ओर समझा।
गोविंद मिश्र

1968 में मैने एक कहानी लिखी थी दोस्त जिसमें यह बताया गया था कि अपने मतलब के लिए लोग किस तरह से दोसती करते हैं ओर फिर काम पूरा हो जाने पर दोसत तोड़ देते हैं। मेरे 11 उपन्यासों में भी मैने जगह यह बताया है कि सच्चा दोसत वही है जो मुश्किल के वक्त आकर आपके साथ रहे। आज के संदर्भ में अगर बात करें तो इस रिश्ते को लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अपनाते हें और फिर भुल जातेहें। सच कहूं तो यह इतना खूबसूरत रिश्ता है जिसे अगर सच्चे दिल से निभाया जाए तो इसकी महक हमेशा बनी रहती है। अब लोगो में बर्दाश्त करने की हिम्मत नहीं रही इसलिए वे सिर्फ अच्छी बातें सुनना चाहते हैं और ऐसे में अगर कोई दोस्त उन्हं उनकी बुराईयों से अवगत कराए तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। मुझे मेरे दोसत वल्लभ सिद्धार्थ कीयाद आ गई जो महूरानी पुरा में रहता है। वो हमेशा मेरी खुशी में खुश होता रहा। उसे इस बात से बिल्कुल तकलीफ नहींहोती कि जिंदगी में मैने उससे ज्यादा शोहरत पाई। जिन दिनों मैं मुंबइ में था मेरे बेटे की स्वीमिंग पूल में गिरने से मौत हो गई थी। उन दिनों मेरे माता पिता को संभालने का जिम्मा उसी ने उठाया। वो चाहे पास रहे या दूर लेकिन जब भी मैं परेशान रहा उसने हमेशा मेरा साथ दिया। इसमें कोइ शक नहीं कि उसने दोस्ती दिल से निभाई ।













किस्मत के धनी
घरजमाई


कुछ लोगों को दुनिया भर के ऐशो-आराम अपने परिवार से विरासत में मिले होते हैं तो कुछ वो भी है जिन्हें चांदी का चम्मच चाहे विरासत में न मिला हो लेकिन देश के जाने-माने उद्योगपतियों की बेटियों से शादी करने के बाद जो दौलत और शोहरत इन्हें हासिल हुई है, उसके बल पर उन्हें किस्मत के धनी घर जमाई कहा जाता है। ये उनकी किस्मत ही है जिसके चलते कहीं वे कंपनी के मालिक तो कहीं करोड़ों-अरबों के शेयर होल्डर्स के रूप में एश करते नजर आते हैं......

अगर हम ये बात करें कि दिल्ली में शीर्ष पर रहने वाला घर जमाई की बात करें तो टिमी सामा का नाम आता है। टिमी ने डीएलएफ ग्रुप की उत्तराधिकारी पिया सिंह से शादी की है। शादी से पहले टिमी एक्सपोर्ट के नाम से अपने परिवार का बिजनेस संभालते थे। सन् 2000 में टिमी ने लाइफ स्टाइल स्टोर 'कोमा होमÓ लांच किया। टिमी ने 2002 में देश के अलग-अलग शहरों में स्टोर लांच करने की योजना बनाई लेकिन उनकी ये योजना सफल नहीं हुई। यहां तक कि जो स्टोर उन दिनों शुरू हुए थे, वे भी जल्दी ही बंद हो गए। इस प्रोजेक्ट के असफल हो जाने के बाद टिमी ने अपने ससुर के डीएलएफ ब्रांड में एमडी के पद पर कार्य करना प्रारंभ किया। शादी से पहले टिमी ग्रीन पार्क स्थित अपने घर में रहते थे लेकिन शादी के बाद वे पिया के साथ औरंगजेब रोड़ स्थित एक आलीशान मकान में रहने लगे।
ये किस्मत का ही खेल है कि शादी से पहले जो लड़के अच्छी नौकरी पाने के लायक भी नहीं होते वही अरबपतियों की बेटियों से शादी के बाद दोनों हाथों में लड्डू लिए घुमते हैं। ऐसे ही नामों में शामिल है शिखर मल्होत्रा का नाम। शिखर ने टेक बिलियोनेयर शिव नादर की बेटी रोशनी नादर से विवाह किया। उनके पिता शिव की संपत्ति 5 बिलियन डॉलर है। शादी के पहले शिखर के पास होंडा कारों की डिस्ट्रीब्यूटरशिप थी। रोशनी से शादी के बाद शिखर शिव नादर स्कूल के सीईओ है। इस स्कूल का प्रोजेक्ट शिव नादर की मुख्य योजना में से एक है। रोशनी के करीबी मित्रों का कहना है कि शिखर के साथ वे पिछले साल दिल्ली की पॉश कॉलोनी में रहने लगी। इस जगह के लिए रोशनी को उनके पिता ने 100 करोड़ दिए थे। पिता की संपत्ति का फायदा जितना उनकी बेटी को मिलता है उतना ही उस जमाई को भी जो बेटी के सुख-दुख का साथी होता है। ऐसे जमाई दुख में चाहे बेटी का साथ न दे लेकिन उसकी संपत्ति का पूरा सुख लेने से वे नहीं चूकते। तभी तो हमारे देश के साथ विदेशों में भी ऐसे कई जमाई बाबू है जो ससुर की संपत्ति पर घात लगाए बैठे हैं। इन्हीं में एक नाम अर्जुन प्रसाद का है। अमेरिका में बैंकर रहे अर्जुन ने प्रसिद्ध मीट एक्सपोर्टर मोईन कुरैशी की बेटी पर्निया से से शादी की। मोईन ने अपनी बेटी को उपहार स्वरूप अमान के भव्य सर्विस अपार्टमेंट में रहने के लिए घर दिया। मोईन के बिजनेस को संभालने की जिम्मेदारी अब अर्जुन के कंधों पर है। अर्जुन की पत्नी पर्निया बॉलीवुड की फिल्मों में अभिनेत्री बनने का सपना देखती थी लेकिन फिलहाल इस सपने को पूरा न होते हुए देखकर वे डिजाइनर वियर लांच कर रही हैं। इन घर जमाईयों की जमात में ऐसे नामों की भी कमी नहीं जिन्होंने लंबे समय तक ससुर के पैसों पर ऐश किया और फिर बेटी को छोड़कर खुद अपना राज स्थापित कर आज शान से जी रहे हैं। अंतर्राष्टï्रीय बिजनेस की दुनिया में इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता ने ऋषि सुनाक से शादी की। ऋषि के साथ अक्षता की मुलाकात स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान हुई। गौरतलब है कि अक्षता इंफोसिस में 1.41 प्रतिशत की शेयर होल्डर हैं। वह 1,600 करोड़ की मालिक हैं जबकि ऋषि एक साधारण परिवार से संबंध रखते हैं। अक्षता को ग्लोबल सिटीजन के तौर पर भी जाना जाता है। वे महिलाओं के उत्थान की दिशा में भी प्रयासरत हैं। ऋषि ने बिजनेस प्रशासन की डिग्री हार्वर्ड और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से प्राप्त की है। बिजनेस वल्र्ड में एक बड़ा बदलाव इस बात से भी दिखाई देने लगा है कि पहले इस क्षेत्र में लड़कों का वर्चस्व अधिक था लेकिन अब विदेशों से उच्च शिक्षा प्राप्त कर लड़कियां भी पिता के बिजनेस में महती भूमिका अदा कर रही हैं। निश्चित रूप से उनकी इस भूमिका का लाभ पति को भी होता है। फ्युचर ग्रुप के सीईओ किशोर बियानी की बेटी आश्निी बियानी ने अमेरिका में केलॉग ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से डिग्री प्राप्त की और उसके बाद पिता के बिजनेस की कमान संभाली। उनकी पहचान फ्युचर ग्रुप के 'फ्युचरÓ के  तौर पर की जाती है। आश्निी के पिता किशोर के अनुसार उच्च बिजनेस वर्ग की बड़ी श्रंृखला हमारे देश में बनती जा रही है। इस कड़ी से जुडऩे वालो लोगों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और उसी गति से बढ़ रहे हैं उनमें परस्पर शादी-ब्याह के अवसर भी। इस वर्ग में अपनी सुविधा के अनुसार लोग संबंधों का ताना- बाना बुनने में लगे रहते हैं। यहां मौजूद लोग एक-दूसरे की पावर पहचाते हैं और उसी आधार पर संबंधों का बनना तय होता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो पैसों की पॉवर शादी-ब्याह तय करने में भी काम आती है। कि शोर की बेटी आश्निी बियानी ने वेदांत ग्रुप के हेड अनिल अग्रवाल के भतीजे विराज डीडवानिया से विवाह किया। विराज और आश्निी दोनों अपने परिवार के बिजनेस को विवाह के बाद भी पूरी तरह संभाल रहे हैं। फर्क बस इतना है कि कभी अगर विराज अपने बिजनेस में डावांडोल होने लगे तो आश्निी के बिजनेस एंपायर में हाथ आजमा सकता है या आश्निी चाहे तो अपने बिजनेस के अलावा विराज के बिजनेस में अपने अनुभव के आधार पर कुछ नया कर सकती है। इसे कहते हैं दोनों हाथों में लड्डïूू होना। यहां प्यार नहीं पैसा बड़ी चीज है।


आज के रॉकस्टार

वे जिन्हें हर पल को अपने तरीके से जीने का खास अंदाज देना पसंद है, बाजार में नित नई टेक्रॉलॉजी के साथ तामलेम बिठाए रखना उन्हें खूब भाता है। खुद को अपडेट रखने की वे कोई भी कोशिश बाकी नहीं रखते।  वे है आज के रॉकस्टार जिन्हें युवा कहकर देश की शान यूं ही नही माना जाता। उनके लिए बचपन में पढ़ाई जाने वाली पूरी अल्फाबेट के मायने बदल गए है। अब वो ऐसी अल्फाबेट पर अमल करना चाहते हैं जिसे बनाया भी खुद उन्होंने अपने लिए है। ये अल्फाबेट जनरेशन एक्स के नए फंडे कुछ इस तरह बयां करती है....

ए ---एप्पल--- यूथ के लिए अब ए फॉर एप्पल नहीं बल्कि ए फॉर आईपॉड है। ये वो एपल है जिसने गैजेट की दुनिया में धूम मचा दी है। आइपॉड से लेकर आइपैड तक स्टीव जॉब्स ने
जिस तकनीकी को यूथ से मिलवाया है, उसका वे भरपूर एंज्वॉय करते हैं।

बी-ब्लक्कबेरी--गैजेट की दुनिया में भारी एक्सेसरीज से दूर उनके लिए बना है ब्लैकबेरी। ये स्लीक स्मार्टफोन जनरेशन एक्स की लाजवाब पसंद की पहचान है। कॉलेज जाने वाले यहां तक की स्कूल गोइंग किड्स भी इसमें ई मेल आई का उपयोग करने से पहले ब्लैक बेरी मेसेंजर पिन को ऑपरेट बखूबी जानते हैं।
सी---कूल---कूल रहने के लिए यूथ को चाहिए एक जोड़ी ब्रांडेड शुज। ऐसे शुज जो सुविधाजनक होने के साथ ही उन्हें ब्रांडेड भी साबित करें। कलर कोई भी हो चलेगा जैसे यलो, ग्रीन, प्रिंटेड, चैक्स वाला या उल्टी सीधी कैसी भी डिजाइनदार।
डी-ड्रेन पाइप पेंट्स-बैगी जींस का यूथ से कोई लेना देना नहीं है। ये वक्त है फिटेड जींस का, फिगर अगर वो स्किन टाइट हो तो क्या कहने।
डी से बना डार्क नाइट बेटमेन का नया अवतार है। जनरेशन एक्स को इसके पात्रों से अपनों जैसा प्यार है।
इ-एनर्जी ड्रिंक-वे खूब पढ़ते हैं, खूब खेलते हैं और पार्टी वो भी खूब करते हैं। पार्टी प्लेयर्स इन यूथ को एनर्जी ड्रिंक भी ऐसे चाहिए जिससे उनके स्टेटस का पता चल सकें। लड़कियों पर रौब जमाने के लिए इन ड्रिंक की सिप बार-बार लेने से वे इंकार नहीं करते। ई से ही ई बुक भी हो सकता है। जब यूथ के बीच हर चीज वर्चुअल हो रही है तो फिर बार बार किताबों के पन्ने पलटने में वे दिलचस्पी नहीं रखते। 
एफ--फेसबुक --ई मेल सिर्फ काम के लिए है। जब बात दोस्तों के  बीच हो तो वे इस्तेमाल करते हैं फेसबुक का। फेसबुक पर चेटिंग के लिए वे रात भर जगते है और तो और कॉलेज से बंक मारकर भी अपने इस शौक को पूरा करते हैं।
जी--गूगल--आपके हर सवाल का जवाब गूगल के पास है। फिर बात चाहे किसी साधारण से सवालों के जवाब का हो या मुश्किल से मुश्किल जवाबों को ढूंढने का।
एच-हुक्काह
एक ऐसी जगह जहां आपको एरोमेटिक तंबाकू बाउल में रखा हुआ नहीं बल्कि पाइप में भरा हुआ मिलेगा। इस मौके पर जहां चार यार मिले नहीं कि पहुंच गए शहर के हुक्का लाउंज में। एच से बना हैरी पोटेर। यूथ अपने इस आइकन के बारे में हर बात जानना चाहते हैं। वो जो हैरी पोटर बनकर दर्शकों के सामने आया और सात किताबों से लेकर आठ फिल्मों में छाया गया।
आई--इंटर्नशिप --उन्हें सिर्फ अपनी पढ़ाई पूरी करने की ही जल्दी नहीं है बल्कि वे इंटर्नशिप के बारे में भी पूरी जानकारी रखते हैं। वे इस विषय मे भी अपडेट रहना चाहते हैं कि डिग्री लेने के बाद इंटर्नशिप कहां से और कैसे करेंगे। जानकारियों का खजाना उनके दिमाग के बक्से में बंद रहता है।
जे-जस्ट डायल--किसी रेस्टारेंट, सर्विस सेंटर या एजुकेशन सेंटर के बारे में जानने के लिए उन्हें भारी-भरकम डायरेक्टरी देखने की जरूरत नहीं पड़ती। वे बस इंटरनेट पर क्लिक करते हैं और नंबर फौरन पता चला जाता है। उन्हें ऐसे ही स्मार्ट नहीं कहा जाता।
के--कपूर और खान --बॉलीवुड के खान(शाहरुख, सलमान और आमिर) का जलवा यूथ के सिर चढ़ कर बोलता है लेकिन इनके साथ ही कपूर जैसे रणवीर, शाहिद, सोनम और करीना के भी ये दीवाने हैं। और तो और रणबीर क ी बारात में जाने की अरमान ये कब से अपने दिल में दबाए बैठे हैं।
-एल--लैपटॉप--डेस्कटॉप का जमाना अब इनके लिए पुराना हो गया। अब वक्त है लैपटॉप का। पोर्टेबिलिटी इस जनरेशन की जरूरत है जिसे पूरा करना ये बखूबी जानते हैं।
एम-मॉल और मल्टीप्लेक्स-एक ही जगह अगर एक्सेसरीज, ब्रांडेड कपड़े, सेलून,टॉकिज और तो और कॉफी हाउस से लेकर लजीज खाने का मजा मिले तो कही और जाने की क्या जरूरत है। यूथ की इन सारी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही शहर में नए नए मॉल और मल्टीप्लेक्स खुलते जा रह हे।
एन-नाइट आउल-जल्दी सोना और जल्दी उठना...ये शब्द उनके लिए बने ही नहीं है। वे रात को देर तक जगने और सुबह देर तक सोने में यकीन रखते हैं। फिर अगर उन्हें पढाई से छुट्टी मिल जाए तो रात भर पाटी और दोस्तों के साथ मस्ती के सिवा और चाहिए भी क्या।
ओ-ऑन द गो-उनके आध से जयादा काम रास्ते में ही पूरे हो जो है। आते जाते स्मार्टफोन की मदद स वे मेल चेक करना, नई योजनाएं बनाना या गर्लफ्रेंड के साथ वक्त लंबी बातचीत जैसे काम ऑन द गो ही पूरे करते हैं।
पी-पब्लिक डिस्प्ले-उन्हें अपने हर काम को शानदार तरीके से बताना अच्छा लगता है। उन्होंने अपने पड़ोसियों के साथ होली कैसे मनाई या अपने प्यारे डॉगी को वे कहां घुमाना पसंद करते, इस तरह की सारी बातें
फेसबुक पर फोटो के साथ शेयर करे वे अपनी शान बताने में कोई हर्ज नहीं समझते।
क्यू-क्वीन लाइक-यंग गल्र्स के लिए हर दिन क्रिव की तरह बना है। वे कॉलेज जाना भी इसी अंदाज में पसंद करती है। जब पार्टी या अपने किसी दोस्त के साथ डेटिंग पर जाना हो तो उनका शाही अंदाज देखते ही बनता है।
आर-रियलिटी टीवी-देशी और विदेशी सारे रियलिटी टीवी शोज उन्हें खूब भाते हैं। इन शो में अपनी किस्मत आजमाना या अपने मनपसंद यूथ को इन शोज के माध्यम से देखना सब यूथ की पहली पसंद है।
एस-स्माइल-अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना वे हरदम पसंद नहीं करते। अगर किसी बात को लेकर वे नाराज है तो उनकी नाराजगी फौरन चेहरे पर जाहिर हो जाती है। अगर वे खुश हे तो हंसता मुस्कुराता चेहरा चमकने भी जल्दी ही लग जाता है।
टी-टी 20
क्रिकेट के इस मैच को देखना उन्हें खूब भाता है। क्रिकेट के सितारे उनके दिल मे बसते हैं। इन्हें आइकन मानने वाले यूथ अपनी हर स्टाइल में धोनी या सचिन के साथ विराट और सहवाग की नकल करते देखे जाते हैं।
यू-यूबेर-इस शब्द ने सुपर को यूथ की डिक्षनरी से अलग हटा दिया है। अब उन्हें सुपर हॉट  कहलाना पसंद नहीं बल्कि वे उबेर कूल या उबेर हॉट जेसे शब्दों का प्रयोग करने लगे हैँ।
वी-वीलेन-ऐसे युवाओं की भी कमी नहीं जो सिर्फ बॉलीवुड के हीरो की ही नहीं बल्कि विलेन की नकल भी खूब करते हैं। इस चाहत में उन्हीं की तरह बाल कटवाना या कानों में बाली पहनना, उन्हें सब मंजूर है।
डब्ल्यू-वीकिपीडिया-ज्ञान का खजाना उनके पास वीकिपीडिया की मदद से ही पहुचा है। किसी भी मुददे पर दोसतों के बीच छाए  रहने के लिए वे वीकिपीडिया की मदद से अपनी जानकारियों को हमेशा अपडेट रखते हैँ।
एक्स-एक्स बॉक्स-जनरेशन एक्स के लिए बना है एक्स बॉक्स  जिसकी मदद से वे सारे आउटडोर गेमस का मजा घर बैठे कंप्यूटर पर ही ले लेते हैं।
वाय-यू टयूब-आस्कर अवार्ड अगर आप देखना भुल गए हो तो टू टयूब पर जाइए और देखिए किसकी किस्मत का सितारा रहा  बुलंदी पर। इतना ही नहीं दुनिया में हो रही घटनाओं की सारी जानकारी यूथ को इसकी माध्यम से मिलती रहती है।
जेड-जिंगर-केएफसी का जिंगर बर्गर जितना यूथ को अच्छा लगता है उतना शायद ही किसी को भाता है। जंक फूड के बारे में कोई चाहे कितना ही बुरा भला कहे लेकिन इसकी दीवानगी यूथ पर हमेशा हावी रही है।

















































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मेरा पैशन मोटर स्पोट्र्स
गौरी गुप्ता


जिंदगी में जीने के लिए एक मकसद बहुत जरूरी है। जब कोई मकसद न रहे तो जिंदगी का मजा कम होने लगता है। ये कहना है श्रीनगर से शुरू होने वाली थर्ड मुगल रैली 2012 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाली गौरी गुप्ता का। गौरी ने विभिन्न मोटर स्पोट्र्स में 19 घंटे और 640 किमी लगातार गाड़ी चलाई है। संगिनी के इस अंक में एक मुलाकात गौरी गुप्ता के साथ....

मुझे खुशी हो
जब मेरे बच्चे बड़े होने लगे तो इस बात का अहसास हुआ कि मुझे भी कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे महिलाओं को प्रोत्साहन मिले और मुझे खुशी हो। एक बार मैंने अपनी सहेली के साथ मोटर स्पोट्र्स रैली देखी। इस खेल को देखने के बाद मुझे ये लगा कि जब अन्य महिलाएं इस खेल में विजेता बन सकती हैं तो मैं क्यों नहीं। पहली बार 2010 में दिल्ली में आयोजित होनेे वाली मोटर स्पोट्र्स रैली में मेरा तीसरा स्थान रहा।

मेरा सपना है
मेरा सपना है कि इस वर्ष अक्टूबर से प्रारंभ होने वाली रेड्डïी हिमालय डेकोर में प्रथम स्थान प्राप्त करूं। इससे पहले भी मैं इस प्रतियोगिता का हिस्सा बनी थी लेकिन मेरी गाड़ी के टायर पंचर हो जाने की वजह से मैं हार गई।

योग्य नहीं समझा जाता
मेरी प्रेरणा मैं अपनी मां ज्योत्स्ना कंवर और पिताजी एम पी कंवर को मानती हूं। उन्होंने मुझे इस बात का अहसास दिलाया कि एक औरत को अपना अस्तित्व बनाने के लिए किसी आदमी की जरूरत नहीं होती। अगर वो एक बच्चे को जन्म दे सकती है तो उस हर काम को करने की शक्ति भी रखती है जिसके योग्य उसे नहीं समझा जाता।

खेल में आगे आएं
मुझे इस बात का अफसोस है कि पूरे मध्यप्रदेश में मोटर स्पोट्र्स में मेरे अलावा कोई प्रतिभागी नहीं है। मैं चाहती हूं कि अधिक से अधिक लड़कियां इस खेल में आगे आएं। हम में जो एनर्जी है उसका पूरा उपयोग हमें जरूर करना चाहिए। मुझे लगता है मेरे अंदर जो एनर्जी है वो सड़क पर गाड़ी चलाते समय निकलती है।

जीत कर जाना है
जब मैं मोटर स्पोट्र्स का हिस्सा बनती हूंू तो मेरे दिमाग में सिर्फ एक बात रहती है कि मुझे अपने बच्चों की खातिर यहां से जीत कर जाना है। जब वे मुझे ट्राफी के साथ घर में प्रवेश करते हुए देखते हैं तो उनके चेहरे पर जो खुशी होती है उसे देखने के लिए मैं कितनी भी मेहनत करने को तैयार रहती हूं। मैं चाहती हूं कि मेरे पेरेंट्स की तरह अन्य पेरेंट्स भी अपनी लड़कियों पर विश्वास दिखाएं और ये लड़कों का खेल है, ऐसा समझना छोड़कर अपनी लड़कियों को आगे बढऩे का मौका दें।

सुरक्षा करना जानती हैं
कच्ची रोड पर गाड़ी चलाते समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। मुझे लगता है कि लड़कियों से अच्छा ड्राइवर कोई नहीं हो सकता। वे अपनी सुरक्षा करना जानती हैं। जिस आत्मविश्वास के बल पर हम जीत सकते हैं वो उनमें हमेशा रहता है। यही बातें हर खेल में विजेता बनने के लिए जरूरी भी होती हैं।

लगन की जरूरत है
मैं चाहती हंू कि एक बार राष्टï्रीय मोटर स्पोट्र्स रैली में लड़कों को हराकर आल राउंड फस्र्ट आऊं। उन्हें ये दिखा सकूं कि हम भी ताकत में किसी से कम नहीं हैं। फिर इसमें कोई शक नहीं कि किसी भी काम में सफलता के लिए सिर्फ लगन की जरूरत है। मैंने लगातार 19 घंटे और 640 किमी ड्राइविंग की है।

वे सफल रहीं
मैं अपना आदर्श ओपेरा विन्फ्रे को मानती हूं। उन्होंने उस समय अपने काम की शुरुआत की जब नीग्रो को हीनभावना की दृष्टिï से देखा जाता था। ऐसे समय भी वे खुद को साबित करने में सफल रही हैं। आज उनका नाम सारी दुनिया में सम्मान के साथ लिया जाता है।


यहां दिखाया अपना दम
- थार मोटर स्पोट्र्स रॉयल राजस्थान रैली 2012।
- तीसरी मुगल रैली कोप द डेम्स 2012।
- स्जोबा थंडर बोल्ड रैली में महिला प्रतिभागियों में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
- टाटा मोटर्स ब्लेज डि राजस्थान 2012 में महिला टीम में प्रथम स्थान।
- जे के मानसून राइड 2010 आल वूमन टीम में सेकंड रनर अप।
साहित्य में गुणवत्ता कम हो रही है
गोविंद मिश्र


वरिष्ठï साहित्यकार गोविंद मिश्र को 2008 में उनके उपन्यास कोहरे में कैद के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद पुरस्कार और व्यास सम्मान के अलावा सुब्रह्मïïïण्यम भारती सम्मान प्राप्त है। उनका लिखने का सफर अब भी जारी है। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश....

आप हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठिïत लेखक हैं। आपने अब तक 10 उपन्यास को शामिल करते हुए 50 पुस्तकें लिखी हैं। उपन्यास, कहानियां, यात्रा, कविताएं, निबंध लिखने के बाद क्या आप अब भी कुछ लिख रहे हैं?
मैंने एक बार कहा था कि मेरे लिए लिखना सांस लेने जैसा है। इस बात पर मुझे ताज्जुब होता है कि बिना लिखे कोई लेखक कैसे रह सकता है। लिखने का मतलब सिर्फ कागज पर उतारना नहीं है, बल्कि लिखने के क्रम में बने रहना है। फिलहाल मैंने अपना 11वां उपन्यास प्रकाशन को दिया है जिसका नाम है अरन्य तंत्र।
उपन्यास या कहानियों से ही क्या आपके लेखन की शुरुआत हुई थी?
जब मैं इंटर में पढ़ता था तो मैंने दो-तीन कहानियां लिखीं। उसके बाद जब मैं नौकरी करने लगा तो एक मित्र के यहां हफ्ते में एक दिन गोष्ठीï होती थी, जिसमें सभी मित्रों द्वारा जो भी लिखा जाता था वो सुनने को मिलता था। वहां मैंने कुछ गीत और कविताएं सुनाईं। पीछे मुड़कर देखता हूं तो ये समय वह था जब मेरी सृजनात्मकता माध्यम तलाश रही थी। इस दौर में कहानियों का लिखा जाना इस बात का प्रमाण है कि मेरी सृजनात्मकता की विधा कहानी या उपन्यास ही थी।
लेकिन इन सभी विधाओं में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
मुझे सबसे ज्यादा संतोष उपन्यास लिखने में उलझे रहने से मिलता है, क्योंकि वहां आप जीवन को उसके पूरे फैलाव, पेचिदगियों और गहराई से पकड़ते हुए चलते हैं। इस मायने में हर उपन्यास लेखन एक चुनौती के रूप में हमारे सामने होता है।
आपके उपन्यासों में एक ओर घोर यथार्थपरक उपन्यास तो दूसरी ओर कोमल उपन्यास शामिल है। ऐसा माना जाता है कि ये दो अलग-अलग लेखन की दिशाएं हैं। आप इन दोनों को एक साथ कैसे साधते हैं?
जीवन में इस तरह का वर्गीकरण होता है क्योंकि ये यथार्थ है या सिर्फ सौंदर्यï? कभी-कभी घोर यथार्थ में भी सौंदर्य छलक जाता है और सुंदरता का संसार तो यथार्थ से टकराता ही है। मैं यह सोचकर नहीं चलता कि अब मुझे यथार्थपरक लिखना है या दूसरी तरह का। जिस तरह के जीवन से उस समय टकराना हुआ और जिसने लिखने के लिए उकसाया उसी को पकडऩे के लिए चल दिया।
क्या आप ये मानते हैं कि साहित्य में राजनीति बढ़ती जा रही है?
ये सही है। कोई भी क्षेत्र आज राजनीति से
अछूता नहीं रह गया है। ये आचरण आज हमारे हर तीसरे व्यक्ति में देखा जा रहा है तो फिर साहित्य कैसे बचा रह सकता है। प्रदेशों में जिस विचारधारा वाली पार्टी की सरकार होती है, वे अपने चापलूसों को साहित्यकार बनाकर पेश करते हैं। साहित्य में जो पुराने लेखक हैं उनमें से कुछ अपने चापलूसों की सेना खड़ी कर वाहवाही कराते हैं। प्रकाशक अपने सीमित स्वार्थों के लिए नए लेखकों को प्रतिभावान बनाकर प्रस्तुत करते हैं और उन्हें लाखों के पुरस्कार देते हैं। साहित्य में स्तरता और गुणवत्ता की बातें कम होती जा रही हैं।
डर के आगे जीत है

रेणु महाजन- विक्रम अवार्ड प्राप्त फेंसर
इस साल मध्यप्रदेश से जिन 10 खिलाडिय़ों को विक्रम अवार्ड से सम्मानित किया गया, उनमें रेणु महाजन का नाम भी शामिल है। रेणु की मंजिल विक्रम अवार्ड नहीं, बल्कि इंटरनेशनल गेम्स में भारत को मेडल दिलाना है। फिलहाल वे 2016 में संपन्न होने वाली एशियन चैंपियनशिप की तैयारी कर रही हैं।

बहुत रुचि थी
बचपन में मैं बास्केटबाल खेलती थी। उन दिनों अलग-अलग खेलों को खेलने और खिलाडिय़ों को देखने में मेरी बहुत रुचि थी। तब मेरे भईया ने मुझे समझाया कि तुम टी टी नगर स्टेडियम में जाकर सीखो। जब मैंने स्टेडियम में सभी खेलों के बारे में जाना तो तलवारबाजी एक ऐसा खेल लगा जिसे खेलने में लड़कियां कम रुचि लेती हैं और मैंने इसी खेल को अपने लिए चुन लिया।
शुरुआती दौर में
मैंने जब इस खेल को खेलना शुरू किया था तो उस समय मैं 10वीं कक्षा में पढ़ती थी। सीखने के दौरान ही पहली बार मैंने अमृतसर में सीनियर नेशनल प्रतिस्पर्धा में भाग लिया था।

मां ने किया प्रोत्साहित
कई घरों में आज भी लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव किया जाता है लेकिन मेरी खुशनसीबी है कि मेरी मां और घर के अन्य सदस्यों ने हमेशा मुझे और मेरी बहन को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित किया। मेरी सफलता में सबसे बड़ा हाथ मेरी मां प्रमिला महाजन का है। उन्होंने कभी हमें घर के काम करने के लिए नहीं कहा।

खिलाडिय़ों को रियायत मिले
जब शहर से बाहर प्रतियोगिताओं के सिलसिले में जाना पड़ता है तो उसका असर निश्चित रूप से हमारी पढ़ाई और कॉलेज में उपस्थिति पर पड़ता है। यहां मैं स्कूल और कॉलेज प्रशासन से कहना चाहूंगी कि अगर एक खिलाड़ी देश के लिए जीतने का जज्बा रखता है और कड़ी मेहनत के लिए हरदम तैयार रहता है तो प्रशासन को भी हमें रियायत देनी चाहिए। फिर भी कई बार स्कूल और कॉलेजों में कई तरह की परेशानियों का सामना खिलाडिय़ों को करना पड़ता है।

तलवारबाजी के दौरान जब भी कभी मेरा आत्मविश्वास कम होने लगता है या किसी प्रतियोगिता में जीत नहीं पाते तो मेरे कोच भूपेंद्र सिंह चौहान हमेशा प्रोत्साहित करते हैं। वे समझाते हैं कि अगर आज हार गए तो कोई बात नहीं अब अगली प्रतियोगिता के लिए अधिक मेहनत पर ध्यान दो।

लड़कियां आगे आएं
कई लड़कियां इस क्षेत्र में इस वजह से नहीं आना चाहती क्योंकि उन्हें लगता है कि यह खेल लड़कियों के लिए नहीं है। इसमें चोट लग जाने का अधिक डर रहता है, जबकि सच तो यह है कि हर खेल में डर बना रहता है लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि डर के आगे जीत है।

देश का नाम रोशन करना है
मुझे तलवारबाजी के अलावा बास्केटबाल खेलना अच्छा लगता है। इस खेल की सबसे अच्छी बात यह है कि पूरी टीम के साथ मिलकर खेलने का मौका मिलता है। टीम भावना को समझने का यह बेहतर माध्यम है। फिलहाल मैं 3 घंटे सुबह और 3 घंटे शाम को प्रेक्टिस करती हूं। मेरा लक्ष्य 2016 में एशियन चैपिंयनशिप जीतकर देश का नाम रोशन करना है।

अलग पहचान बना पाएंगे
जो युवा तलवारबाजी में अपना हुनर दिखाना चाहते हैं उनसे कहना चाहूंगी कि धैर्य के साथ खेलें। पूरे समर्पण के साथ मेहनत करें तो सफलता अवश्य मिलेगी। इसके अलावा ऐसे खेलों को अपने लिए चुनें जिसमें सोलो खेलने का मौका मिलेगा। इससे आप अपनी अलग पहचान बना पाएंगे।
प्रस्तुति-शाहीन अंसारी

शनिवार, 28 जुलाई 2012

कम हो रहा है मुशायरों का दौर
अंजुम रहबर
शायरा

मशहूर शायरा अंजुम रहबर को शायरी करते हुए 35 साल हो गए हैं। इस बीच उन्होंने विदेशों के कई मुल्कों में अपनी शायरी के बल पर विशेष पहचान बनाई है। अंजुम कुछ यूं बयां करती हैं अपने जज्बात.....

वहीं से हुई शुरुआत
 मेरे बाबा (वालिद) मरहूम एम एच रहबर अपने जमाने के मशहूर शायरों में से एक थे। घर में शायराना माहौल था। शायरों का आना-जाना और शेर पढ़कर एक-दूसरे को सुनाना मैंने अपने घर में सुना। उन्हीं को देखकर मैंने 17 साल की उम्र में मुशायरों में पढऩा शुरू किया। उस वक्त मैं अपने बाबा के लिखे शेर पढ़ती थी। धीरे-धीरे मैंने खुद शेर लिखना शुरू किए और फिर जो सिलसिला चला वो आज तक जारी है।
कुछ यूं था वो शेर
मैंने जब शायरी करना शुरू की तो कई बार मुझसे गलती भी हो जाती थी। मेरी सारी गलतियों को दुरुस्त करने का काम मेरे बाबा करते थे। शायरी करते हुए मुझे 35 साल हो गए। मेरा पहला शेर था-
जी रही हूं मैं गम उठाने को
ताकि बांटूं खुशी जमाने को।
तेरा नक्शेकदम जो मिल जाए
वो भी काफी है सिर झुकाने को।

अब तैयार हो रही सीडी
मैंने विदेशी मुल्कों में कई बार शिरकत की है और अपनी शायरी से श्रोताओं के दिलों में खास जगह बनाई है। एक जमाना वो भी था जब मैं सुबह दिल्ली में शेर पढ़ती थी तो रात को पाकिस्तान के मुशायरों में शामिल हो जाती थी। अपनी दो किताबों के पूरे हो जाने के बाद फिलहाल मैं अपनी गजलों की एक सीडी तैयार कर रही हूं। इंटरनेट के दौर में अपनी शायरी लोगों तक पहुंचाने का सबसे अच्छा जरिया यही है और इसी के माध्यम से मैं चाहती हूं कि मेरी शायरी युवा पढ़ेें। इसी सीडी की शुरुआत में जो गजल है, उसके बोल कुछ यूं हैं
खोलकर चाहतों का दरवाजा
राह तकना भी बंद कर देगा।
मेरे परदेसी लौट आ वरना
दिल धड़कना भी बंद कर देगा।

देखने को नहीं मिलता
मैं हिंदी और उर्दू दोनों मुशायरों में जाती हूं। जिस तरह से मुशायरों का दौर कम हो रहा है वो तो चिंता का विषय है ही, लेकिन इसके साथ ही  मुशायरों के गिरते स्तर को सुधारने के विषय में भी कदक उठाए जाने चाहिए। कहा जाता है कि तहजीब हर मुशायरे की जान होती है लेकिन अब पहले जैसी तहजीब भी मुशायरों में देखने को नहीं मिलती।

सारी जिंदगी याद रहते हैं
मेरे मनपसंद शायर वसीम बरेवली, राहत इंदौरी और मुनव्वर राना हैं। मैंने गुजरे जमाने के शायरों को भी काफी पढ़ा है और उनके कलाम दिल के करीब हैं। उनमें से किसी एक का नाम बताना मुश्किल है क्योंकि हर शायर का अंदाज दूसरे शायर से जुदा होता है। कभी-कभी ये भी होता है कि कोई शायर कई शेर कहने के बाद भी श्रोताओं को प्रभावित नहीं कर पाता तो कभी ये भी होता है कि किसी शायर के एक या दो शेर ही लोगों को सारी जिंदगी याद रहते हैं।

वो हैं मेरी प्रेरणा
जब मैं छोटी थी तो मेरी प्रेरणा मेरे बाबा थे। जब शादी हुई तो राहत इंदौरी और अब मेरा बेटा समीर राहत मेरे लिए प्रेरणा हैं। वह मेरी कमियों को बताता है तो अच्छाइयों की तारीफ भी करता है।

वो जल्दी थक जाते हैं
जो श्रोता मेरी शायरी पसंद करते हैं उनकी शुक्रगुजार हूं और जो युवा शायर अब अपनी शायरी से इस क्षेत्र में आगे आ रहे हैं उनसे कहना चाहूंगी कि शायरी को अपनी जिंदगी का एक हिस्सा मानकर उस पर काम करेें। धीरे-धीरे मंजिलों को पार करना सीखें। ये याद रखेें जो तेज चलते हैं वो जल्दी थक जाते हैं।
प्रस्तुति-शाहीन अंसारी
बोल इंग्लिश बोल

आप चाहे अंग्रेजी में बात करना न जानते हों लेकिन फिर भी अपना रौब जमाने के लिए इस भाषा में बात करना आपके लिए शान की बात है। कई बार इसी आदत के चलते आप हंसी का पात्र भी बन जाते हैं। ये परेशानी आपकी ही नहीं, बल्कि हमारे देश के अधिकांश उन लोगों की है जिनके लिए अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग अपनी इमेज को सुधारने का सबसे अच्छा माध्यम बन चुका है। हमारे फिल्मी सितारे भी फिल्मों में अंग्रेजी का जमकर बैंड बजाते हैं। सच तो यह है कि इन्हीं की देखा-देखी लोग टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करना गलत नहीं मानते। जरा सोचकर देखिए किसी भाषा का इस तरह मजाक बनाना क्या वाकई सही है......
  हमारे देश में रहने वाले अधिकांश लोग हिंदी भाषा का सही प्रयोग नहीं करते, वहीं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हर हिंदुस्तानी चाहे गलत ही सही लेकिन इंग्लिश बोलने का शौक भी रखता है। इंग्लिश को हमने अपनी दिनचर्या में कुछ इस तरह शामिल कर लिया है जिसके चलते ऑफिस से लेकर हर घर में इसे बोले बिना काम नहीं चलता। इंग्लिश ने हमारे देश में जो प्रभाव छोड़ा है वो अन्य कोई विदेशी भाषा नहीं छोड़ सकी। यहां तक कि अंग्रेजों द्वारा भारत छोडऩे के चार दशक बाद भी इसकी छाप भारतीयों पर ज्यों की त्यों है। इस भाषा के गलत प्रयोग को बढ़ावा देने का श्रेय बोल बच्चन जैसी फिल्मों को जाता है। इसमें अजय देवगन की कॉमेडी दर्शकों को खूब पसंद आई। अजय ने अंग्रेजी की टांग तोडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इस फिल्म का डायलॉग साले को कुत्ते की मौत मारूंगा को अजय कहते हैं ब्रदर इन लॉ विल डाई टॉमीस डेथ। इसी तरह का डायलॉग है मैं तुम्हें छटी का दूध याद दिला दूंगा को आई विल मेक यू रिमेम्बर मिल्क नंबर 6। ऐसी ही एक और जबरदस्त अंग्रेजी की लाइन है वेन एल्डर गेट कोजी, यंगर्स डोन्ट पुट देयर नोजी मतलब जब बड़े बात करते हैं तो बीच में टोका नहीं करते। कई हद तक इस फिल्म के हिट होने की वजह भी इसी तरह के डायलॉग थे। खुद अजय ये मानते हैं कि वे ऐसे कई परिचितों को जानते हैं जो इंग्लिश बोलकर अपनी छवि सुधारने के चक्कर में कई बार इंग्लिश के गलत शब्दों का प्रयोग करते हैं।
हमारे देश की यह विडंबना ही है कि लोग उन्हें ही पढ़ा-लिखा मानते हैं जो अच्छी अंगे्रजी में बात कर सकते हैं इसीलिए लोग दूसरों के सामने खुद को पढ़ा-लिखा साबित करने के लिए टूटी-फूटी ही सही लेकिन इसी भाषा में बात करने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग अंग्रेजी के शब्दों का ऐसा उच्चारण करते हैं कि अर्थ का अनर्थ हो जाता है। हालांकि सच तो यह है कि हमारे यहां बनने वाली फिल्मों में ऐसे वाक्यों की संख्या बढ़ती जा रही है जो दर्शकों का मनोरजंन करने के लिए अंग्रेजी को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। देखा जाए तो हिंदी फिल्मों में अंग्रेजी शब्दों के गलत प्रयोग करने का सिलसिला अमिताभ बच्चन द्वारा अपनी सुपर हिट फिल्मों जैसे चुपके-चुपके, नमक हराम या अमर, अकबर एंथोनी से हुआ। अमिताभ यह मानते हैं कि दर्शकों के मनोरंजन के लिए उन्होंने हर फिल्म में अंग्रेजी को नए-नए स्टाइल में बोलना शुरू किया। जैसे उन्होंने फिल्म नमक हलाल में डायलॉग बोला था आई कैन टॉक इंग्लिश, आई कैन वॉक इंग्लिश, आई कैन लाफ इंग्लिश बिकॉज इंग्लिश इज ए फनी लैंग्वेज। अमिताभ कहते हैं कि फिल्मों में बोली जाने वाली टूटी-फूटी अंग्रेजी दर्शकों को लुभाती है, क्योंकि हम हिंदी भाषी हैं और यहां सही अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या बहुत कम है। शायद यही वजह है कि लोगों को टूटी-फूटी अंग्रेजी पसंद आती है। बीएसएस कॉलेज के विद्यार्थी निखिल वर्मा मानते हैं कि अगर अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को मनोरंजन का माध्यम बनाकर पेश किया जाता है तो इसमें गलत क्या है। लोगों को ऐसी अंग्रेजी खूब भाती है। ये कहना सिर्फ निखिल का ही नहीं, बल्कि ऐसे कई लोगों का है जो इसे 'फनी लैंग्वेजÓ कहना ज्यादा पसंद करते हैं।

ये फैशन बन गया है
अंग्रेजी में बात करना एक ऐसा फैशन बन गया है जिसे हर भारतीय अपनाना चाहता है लेकिन अंग्रेजी भाषा का पूरा ज्ञान न होने की वजह से सभी लोग इसे सही तरीके से बोलने में सक्षम नहीं होते। जब ऐसा नहीं हो पाता तो अपनी इमेज को बनाए रखने के लिए टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करने लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे अंग्रेजों द्वारा  हमारे देश छोडऩे के सदियों बाद भी हम उनकी मानसिकता से आजाद नहीं हुए।
अपराजिता शर्मा
प्रोफेसर, इंग्लिश
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय
बॉक्स में
 हमारी मजबूरी है
थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों में विज्ञान और चिकित्सा संबंधी विषय उन्हीं की मूल भाषा में पढ़ाए जाते हैं, लेकिन हमारे देश में स्कूलों से लेकर कॉलेजों में पढ़ाए जाने वाले अधिकांश विषय अंग्रेजी में होते हैं और इसीलिए विद्यार्थी बचपन से ही हिंदी की तरफ कम और अंग्रेजी की तरफ ज्यादा ध्यान देते हैं। हमारे देश में अंग्रेजी शक्ति की भाषा है ये इसी बात से साबित होता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत के स्वतंत्र होने पर सबसे पहले जो भाषण दिया था वो भी अंग्रेजी में ही था। तब से आज तक ये रिवाज कायम है। जो नेता हिंदी में बात करते हैं उन्हें कम पढ़ा-लिखा माना जाता है और जो अंग्रेजी में बोलते हैं उन्हें ही विद्वान माना जाता है। इस भाषा का प्रयोग करना हमारी मजबूरी हो गई है।
उद्यन वाजपेयी
साहित्यकार
भाषा की बात नहीं है
हिंदी सिनेमा में टूटी-फूटी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग आम लोगों को भी इस भाषा को इसी तरह से बोलने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे लोग खुद को स्मार्ट दिखाने के लिए अंग्रेजी के गलत शब्द या गलत उच्चारण का प्रयोग करते हैं। ये सिर्फ भाषा की बात नहीं है, बल्कि पश्चिमी सभ्यता को अपनाकर अपनी इज्जत बचाने की कोशिश हम सदियों से करते आ रहे हैं।
डॉ. काकोली रॉय
मनोचिकित्सक ---------------------------