शनिवार, 22 सितंबर 2012

डर के आगे जीत है

रेणु महाजन- विक्रम अवार्ड प्राप्त फेंसर
इस साल मध्यप्रदेश से जिन 10 खिलाडिय़ों को विक्रम अवार्ड से सम्मानित किया गया, उनमें रेणु महाजन का नाम भी शामिल है। रेणु की मंजिल विक्रम अवार्ड नहीं, बल्कि इंटरनेशनल गेम्स में भारत को मेडल दिलाना है। फिलहाल वे 2016 में संपन्न होने वाली एशियन चैंपियनशिप की तैयारी कर रही हैं।

बहुत रुचि थी
बचपन में मैं बास्केटबाल खेलती थी। उन दिनों अलग-अलग खेलों को खेलने और खिलाडिय़ों को देखने में मेरी बहुत रुचि थी। तब मेरे भईया ने मुझे समझाया कि तुम टी टी नगर स्टेडियम में जाकर सीखो। जब मैंने स्टेडियम में सभी खेलों के बारे में जाना तो तलवारबाजी एक ऐसा खेल लगा जिसे खेलने में लड़कियां कम रुचि लेती हैं और मैंने इसी खेल को अपने लिए चुन लिया।
शुरुआती दौर में
मैंने जब इस खेल को खेलना शुरू किया था तो उस समय मैं 10वीं कक्षा में पढ़ती थी। सीखने के दौरान ही पहली बार मैंने अमृतसर में सीनियर नेशनल प्रतिस्पर्धा में भाग लिया था।

मां ने किया प्रोत्साहित
कई घरों में आज भी लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव किया जाता है लेकिन मेरी खुशनसीबी है कि मेरी मां और घर के अन्य सदस्यों ने हमेशा मुझे और मेरी बहन को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित किया। मेरी सफलता में सबसे बड़ा हाथ मेरी मां प्रमिला महाजन का है। उन्होंने कभी हमें घर के काम करने के लिए नहीं कहा।

खिलाडिय़ों को रियायत मिले
जब शहर से बाहर प्रतियोगिताओं के सिलसिले में जाना पड़ता है तो उसका असर निश्चित रूप से हमारी पढ़ाई और कॉलेज में उपस्थिति पर पड़ता है। यहां मैं स्कूल और कॉलेज प्रशासन से कहना चाहूंगी कि अगर एक खिलाड़ी देश के लिए जीतने का जज्बा रखता है और कड़ी मेहनत के लिए हरदम तैयार रहता है तो प्रशासन को भी हमें रियायत देनी चाहिए। फिर भी कई बार स्कूल और कॉलेजों में कई तरह की परेशानियों का सामना खिलाडिय़ों को करना पड़ता है।

तलवारबाजी के दौरान जब भी कभी मेरा आत्मविश्वास कम होने लगता है या किसी प्रतियोगिता में जीत नहीं पाते तो मेरे कोच भूपेंद्र सिंह चौहान हमेशा प्रोत्साहित करते हैं। वे समझाते हैं कि अगर आज हार गए तो कोई बात नहीं अब अगली प्रतियोगिता के लिए अधिक मेहनत पर ध्यान दो।

लड़कियां आगे आएं
कई लड़कियां इस क्षेत्र में इस वजह से नहीं आना चाहती क्योंकि उन्हें लगता है कि यह खेल लड़कियों के लिए नहीं है। इसमें चोट लग जाने का अधिक डर रहता है, जबकि सच तो यह है कि हर खेल में डर बना रहता है लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि डर के आगे जीत है।

देश का नाम रोशन करना है
मुझे तलवारबाजी के अलावा बास्केटबाल खेलना अच्छा लगता है। इस खेल की सबसे अच्छी बात यह है कि पूरी टीम के साथ मिलकर खेलने का मौका मिलता है। टीम भावना को समझने का यह बेहतर माध्यम है। फिलहाल मैं 3 घंटे सुबह और 3 घंटे शाम को प्रेक्टिस करती हूं। मेरा लक्ष्य 2016 में एशियन चैपिंयनशिप जीतकर देश का नाम रोशन करना है।

अलग पहचान बना पाएंगे
जो युवा तलवारबाजी में अपना हुनर दिखाना चाहते हैं उनसे कहना चाहूंगी कि धैर्य के साथ खेलें। पूरे समर्पण के साथ मेहनत करें तो सफलता अवश्य मिलेगी। इसके अलावा ऐसे खेलों को अपने लिए चुनें जिसमें सोलो खेलने का मौका मिलेगा। इससे आप अपनी अलग पहचान बना पाएंगे।
प्रस्तुति-शाहीन अंसारी

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