कवर स्टोरी
जब हुई किताबों से दोस्ती
सारा संसार किताबों में समाया हुआ है। किताबों से अच्छा कोई दोस्त भी नहीं हो सकता। हम जो मुकाम हासिल करते हैं वो किताब की ही बदौलत मिलता है। दुनिया देखने के लिए नजरिया इन किताबों से ही मिलता है। हर व्यक्ति के संघर्ष के दिनों में किताबें उसका साथ देने और हौसला बढ़ाने का काम बखूबी करती हैं। प्रस्तुत हैं किताबों को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानने वाले चंद ऐसे लेखकों के विचार जिनके जीवन में किताबों का प्रभाव देखते ही बनता है...
कविताओं में गहराई है
नीलेश रघुवंशी
मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखित मां, निर्मल वर्मा की कहानियां, अज्ञेय की शेखर एक जीवनी, विष्णु खरे का कविता संग्रह सबकी आवाज के परदे में, विनोद कुमार शुक्त, मुक्तिबोध, जयशंकर प्रसाद और नागार्जुन की कविताएं पढऩा मुझे पसंद है। जयशंकर प्रसाद की कविताओं में गहराई है। मुक्तिबोध हिंदी के पहले विद्वान माने जाते हैं। उनकी विद्वता उनके साहित्य से पता चलती है। विष्णु खरे ने अपनी कविताओं के माध्यम से काव्य का पूरा ढांचा ही बदल दिया। मुझे लगता है कि इनकी किताबों से जीवन की दिशा ही बदली जा सकती है।
आज भी अच्छे साहित्यकारों की कमी नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि इतनी अधिक किताबें और पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जिनमें से अच्छी रचनाओं का चयन करना पाठकों के लिए मुश्किल हो जाता है। पाठकों की कमी होने के भी कई कारण हैं जिनमें सबसे पहला कारण लेखक और पाठक के बीच संवाद की कमी है। किताबें छपना आसान है लेकिन उसमें से अच्छी किताबों का चयन कर हर व्यक्ति को समय निकालकर उसका लाभ लेना चाहिए।
सोचने पर मजबूर कर दे
मंजूर एहतेशाम
प्रेमचंद की रचना गोदान और राही मासूम रजा द्वारा लिखित नया गांव पढ़कर उस समय के समाज और हालात का अंदाजा पूरी तरह लगाया जा सकता है। अगर नए लेखकों की बात करें तो नीलेश रघुवंशी ने एक कस्बे के नोट्स बहुत अच्छा लिखा है। इसी तरह अलका सराव ने कलिकथा की रचना बखूबी की है।
हर युग में लिखी गई किताबें उस वक्त के समाज और स्थितियों से अवगत कराती हैं। मुंशी प्रेमचंद ने गोदान के माध्यम से सदियों पहले किसानों के साथ होने वाले अत्याचारों का वर्णन बखूबी किया है। कृष्णा सोबती ने अपने उपन्यास जिंदगीनामा के माध्यम से जिंदगी की हकीकत को प्रदर्शित किया है।
एक महान रचना वो होती है जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर दे। महुआ मांझी का उपन्यास मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ, में उन्होंने आदिवासियों की परेशानियों को इतनी सजीवता के साथ प्रस्तुत किया है, जिसे पढ़कर उनकी समस्याओं का ज्ञान होता है और उनके लिए हमदर्दी होने लगती है। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा ही साहित्य समाज की दिशा बदलने का काम करता है।
दायरा सिमट रहा है
मालती जोशी
मैं जब स्कूल में थी तो मैंने शरतचंद्र चटोपाध्याय की महान रचना शरद साहित्य पढ़ी थी। उनकी इस रचना का प्रभाव मेरी कहानियों के रूप में भी दिखाई देता है। उन्होंने पुरुष होते हुए भी नारीमन की संवेदनाओं का सजीव चित्रण किया है।
अच्छी किताबें पढऩे वाले पाठकों की संख्या लगातार कम हो रही है। इसकी बहुत बड़ी वजह टीवी और मोबाइल के प्रति लोगों की गहरी रुचि भी है। लंबी कहानी पढऩे में पाठकों की रुचि दिखाई नहीं देती। साहित्य के लिए उनके पास समय नहीं है जिसके चलते साहित्य का दायरा सिमटता जा रहा है। आज जरूरत ऐसे साहित्य की रचना करने की है जिसे सरल भाषा और सीमित शब्दों में लिखा जाए ताकि कम समय में भी पाठक उसका लाभ ले सकें।
उर्मिला शिरीष
पढऩे की लगन खत्म हो गई
लियो टॉलस्टाय द्वारा लिखित अन्ना कारेनिना और प्रेमचंद का गोदान मानवीय मूल्यों, संबंधों और उस वक्त के समाज को प्रकट करती हैं। किताबें हमारी सोच को बदलने का काम बखूबी करती हैं। मैंने एक वो दौर देखा है जब लोगों को दिन-रात किताबों के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था, लेकिन आज पढऩे की लगन खत्म हो गई है। युवा पीढ़ी द्वारा किताबों के महत्व को समझने की सख्त जरूरत है।
लेखन दोयम दर्जे का है
राजेश जोशी
डॉ. तुलसी राम द्वारा लिखित मुर्दहिया, अरुण कमल का काव्य संग्रह मैं शंख महाशंख के अलावा किताब घर ने दूसरी बार दस कवियों के कविता संग्रह का प्रकाशन किया है, जो मुझे अच्छा लगा। रूसी लेखक रसूल हम्जौतौव की रचना मेरा दागिस्तान विशिष्टï शैली में लिखी गई है। मनोहर श्याम जोशी ने कुरू: कुरू: स्वाहा इतने रोचक अंदाज में लिखा है जिसे हर पाठक पढऩा चाहता है। भारतीय इंग्लिश लेखन दोयम दर्जे का है जिसके पाठक हमारे देश में अधिक हैं। इन किताबों के प्रति उनका आकर्षण हिंदी साहित्य की किताबों से अधिक दिखाई देता है।
जब हुई किताबों से दोस्ती
सारा संसार किताबों में समाया हुआ है। किताबों से अच्छा कोई दोस्त भी नहीं हो सकता। हम जो मुकाम हासिल करते हैं वो किताब की ही बदौलत मिलता है। दुनिया देखने के लिए नजरिया इन किताबों से ही मिलता है। हर व्यक्ति के संघर्ष के दिनों में किताबें उसका साथ देने और हौसला बढ़ाने का काम बखूबी करती हैं। प्रस्तुत हैं किताबों को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानने वाले चंद ऐसे लेखकों के विचार जिनके जीवन में किताबों का प्रभाव देखते ही बनता है...
कविताओं में गहराई है
नीलेश रघुवंशी
मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखित मां, निर्मल वर्मा की कहानियां, अज्ञेय की शेखर एक जीवनी, विष्णु खरे का कविता संग्रह सबकी आवाज के परदे में, विनोद कुमार शुक्त, मुक्तिबोध, जयशंकर प्रसाद और नागार्जुन की कविताएं पढऩा मुझे पसंद है। जयशंकर प्रसाद की कविताओं में गहराई है। मुक्तिबोध हिंदी के पहले विद्वान माने जाते हैं। उनकी विद्वता उनके साहित्य से पता चलती है। विष्णु खरे ने अपनी कविताओं के माध्यम से काव्य का पूरा ढांचा ही बदल दिया। मुझे लगता है कि इनकी किताबों से जीवन की दिशा ही बदली जा सकती है।
आज भी अच्छे साहित्यकारों की कमी नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि इतनी अधिक किताबें और पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जिनमें से अच्छी रचनाओं का चयन करना पाठकों के लिए मुश्किल हो जाता है। पाठकों की कमी होने के भी कई कारण हैं जिनमें सबसे पहला कारण लेखक और पाठक के बीच संवाद की कमी है। किताबें छपना आसान है लेकिन उसमें से अच्छी किताबों का चयन कर हर व्यक्ति को समय निकालकर उसका लाभ लेना चाहिए।
सोचने पर मजबूर कर दे
मंजूर एहतेशाम
प्रेमचंद की रचना गोदान और राही मासूम रजा द्वारा लिखित नया गांव पढ़कर उस समय के समाज और हालात का अंदाजा पूरी तरह लगाया जा सकता है। अगर नए लेखकों की बात करें तो नीलेश रघुवंशी ने एक कस्बे के नोट्स बहुत अच्छा लिखा है। इसी तरह अलका सराव ने कलिकथा की रचना बखूबी की है।
हर युग में लिखी गई किताबें उस वक्त के समाज और स्थितियों से अवगत कराती हैं। मुंशी प्रेमचंद ने गोदान के माध्यम से सदियों पहले किसानों के साथ होने वाले अत्याचारों का वर्णन बखूबी किया है। कृष्णा सोबती ने अपने उपन्यास जिंदगीनामा के माध्यम से जिंदगी की हकीकत को प्रदर्शित किया है।
एक महान रचना वो होती है जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर दे। महुआ मांझी का उपन्यास मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ, में उन्होंने आदिवासियों की परेशानियों को इतनी सजीवता के साथ प्रस्तुत किया है, जिसे पढ़कर उनकी समस्याओं का ज्ञान होता है और उनके लिए हमदर्दी होने लगती है। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा ही साहित्य समाज की दिशा बदलने का काम करता है।
दायरा सिमट रहा है
मालती जोशी
मैं जब स्कूल में थी तो मैंने शरतचंद्र चटोपाध्याय की महान रचना शरद साहित्य पढ़ी थी। उनकी इस रचना का प्रभाव मेरी कहानियों के रूप में भी दिखाई देता है। उन्होंने पुरुष होते हुए भी नारीमन की संवेदनाओं का सजीव चित्रण किया है।
अच्छी किताबें पढऩे वाले पाठकों की संख्या लगातार कम हो रही है। इसकी बहुत बड़ी वजह टीवी और मोबाइल के प्रति लोगों की गहरी रुचि भी है। लंबी कहानी पढऩे में पाठकों की रुचि दिखाई नहीं देती। साहित्य के लिए उनके पास समय नहीं है जिसके चलते साहित्य का दायरा सिमटता जा रहा है। आज जरूरत ऐसे साहित्य की रचना करने की है जिसे सरल भाषा और सीमित शब्दों में लिखा जाए ताकि कम समय में भी पाठक उसका लाभ ले सकें।
उर्मिला शिरीष
पढऩे की लगन खत्म हो गई
लियो टॉलस्टाय द्वारा लिखित अन्ना कारेनिना और प्रेमचंद का गोदान मानवीय मूल्यों, संबंधों और उस वक्त के समाज को प्रकट करती हैं। किताबें हमारी सोच को बदलने का काम बखूबी करती हैं। मैंने एक वो दौर देखा है जब लोगों को दिन-रात किताबों के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था, लेकिन आज पढऩे की लगन खत्म हो गई है। युवा पीढ़ी द्वारा किताबों के महत्व को समझने की सख्त जरूरत है।
लेखन दोयम दर्जे का है
राजेश जोशी
डॉ. तुलसी राम द्वारा लिखित मुर्दहिया, अरुण कमल का काव्य संग्रह मैं शंख महाशंख के अलावा किताब घर ने दूसरी बार दस कवियों के कविता संग्रह का प्रकाशन किया है, जो मुझे अच्छा लगा। रूसी लेखक रसूल हम्जौतौव की रचना मेरा दागिस्तान विशिष्टï शैली में लिखी गई है। मनोहर श्याम जोशी ने कुरू: कुरू: स्वाहा इतने रोचक अंदाज में लिखा है जिसे हर पाठक पढऩा चाहता है। भारतीय इंग्लिश लेखन दोयम दर्जे का है जिसके पाठक हमारे देश में अधिक हैं। इन किताबों के प्रति उनका आकर्षण हिंदी साहित्य की किताबों से अधिक दिखाई देता है।
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