गुरुवार, 13 अगस्त 2015

फर्राटा दौड़ के बेताज बादशाह
उसैन बोल्ट




ओलंपिक चैंपियन और विश्व रिकॉर्डधारी धारक उसैन बोल्ट ने लंदन डायमंड लीग में 100 मीटर दौड़ जीतकर विश्व चैंपियनशिप के लिए अपने प्रतिद्वंद्वियों को चेतावनी दी है। उसेन बोल्ट विश्व एथलेटिक्स में एक ऐसा नाम है जो न जाने आने वाले कितने सालों तक इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेगा। वल्र्ड चैंपियनशिप हो या फिर ओलंपिक, हर जगह बोल्ट की बादशाहत कायम है।
उसेन बोल्ट के बारे में कहा जाता है कि उनका मुकाबला सिर्फ रफ्तार ही कर सकती है। जब बोल्ट स्कूल में पढ़ते थे, तब तेज गेंदबाजी करते थे। बॉलिंग रन-अप पर उनकी तेज रफ्तार देखकर स्कूल के क्रिकेट कोच ने उन्हें सलाह दी कि वे क्रिकेट छोड़ें और एथलेटिक्स में जाएं। बोल्ट ने खुद को क्रिकेट के मैदान से अलग तो कर लिया पर क्रिकेट में उनकी रुचि कम नहीं हुई। आज भी बोल्ट कहते हैं, मैं क्रिकेट प्रेमी हूं और मुझे बहुत आनंद आता है जब मैं क्रिकेट खिलाडिय़ों को खेलते हुए देखता हूं। बीजिंग ओलंपिक 2008 में उसैन बोल्ट नामक आंधी ने जैसे दूसरे पदक विजेताओं की नींद ही उड़ा दी थी। बोल्ट ने बीजिंग ओलंपिक में 100 मीटर, 200 मीटर और 4 गुणा 100 मीटर की रेस जीती थी। 1986 में जमैका में जन्मे उसैन बोल्ट पर अगले महीने बीजिंग में होने वाली विश्व चेंपियनशिप के दौरान सभी की निगाहें रहेंगी। इस सत्र में सौ मीटर दौड़ में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन अमेरिका के जस्टिन गैटलिन के नाम है जिन्हें बोल्ट पछाडऩा चाहते हैं। साथ ही बोल्ट के मन में 2016 में रियो दे जनेरो के ओलंपिक खेलों के बाद अपना करियर समाप्त करने से पहले कुछ और ओलंपिक पदक जीतने की चाह है लेकिन और क्या है उसैन बोल्ट में जो उन्हें खास बनाता है? तो सबसे पहले उनके संयम की तारीफ की जानी चाहिए। उसैन बोल्ट ने जिस तरह से अपनी लोकप्रियता और निजी जीवन में संतुलन बनाकर रखा है वो वाकई काबिले तारीफ है। इसके बाद जो शब्द उनके लिए जहन में आता है वो है परिपक्वता। हालांकि उसैन बोल्ट की इमेज मौज-मस्ती करने वाले एक युवा की है जिसे गाने-बजाने का भी शौक है जो डांस करना पसंद करता है लेकिन बीजिंग ओलंपिक के बाद बोल्ट ने कुछ बेहद समझदारी वाले निर्णय भी लिए हैं जिससे उनकी परिपक्वता का पता चलता है। साथ ही दुनिया भर में नाम कमाने के बाद  उन्होंने अभी तक अपने इर्द-गिर्द वही दोस्त और परिवार वाले रखे हैं जो उनके मुश्किल भरे समय में जब वे चोटों से जूझ रहे थे और खराब फॉर्म से गुजर रहे थे, उनके लिए खड़े रहे। आज भी उसैन के सबसे नजदीकी दोस्त वहीं हैं जो उनके साथ स्कूल में थे। नुजेंट वाल्कर और उनके भाई सडिकी बोल्ट ऐसे ही नामों में से एक हैं। रही बात उसैन के इलाके की, तो जब से उन्होंने दुनिया भर में नाम कमाना शुरू किया है तब से उनके गांव शेरवुड कंटेंट का तो जैसे नक्शा ही बदल गया है। उनकी उपलब्धियों की वजह ये यह गांव अब दुनिया भर में जमैका पर्यटन वाले बिलबोर्ड्स पर अपनी जगह बना चुका है। आज भी उनके परिवार की सादगी एक मिसाल कही जाती है। उसैन बोल्ट के माता-पिता से मिलने पर पता ही नहीं चलता कि उनके बेटे को विश्व भर में पहचाना जाता है। उनके पिता वेलेस्ली बोल्ट अब भी अपनी राशन की दुकान पर मछली और सब्जियां बेचते हैं और उसैन के लाख मना करने के बाद भी उन्हें यही काम पसंद है।

चेहरे जो बोल्ट की सफलता के साझेदार हैं
-ग्लेन माइल्स- कोच ग्लेन माइल्स 2004 में उसैन बोल्ट की दौडऩे की प्रतिभा से बेहद प्रभावित हुए। छोटी उम्र में ही बोल्ट बड़े से बड़े जमैका के धावकों को पीछे छोड़ दिया करते थे। यहीं से बोल्ट के इस हुनर को कोच माइल्स ने पहचाना और उन पर जमकर मेहनत की।
-रिकी सिम्स- पेस स्पोर्ट्स मैनेजमेंट एक ऐसी कंपनी है जो दुनिया भर के एथलेटिक्स के लिए ब्रांडिंग का काम करती है। बोल्ट इस कंपनी से 16 साल की उम्र से जुड़ गए थे। जिसके बाद बोल्ट की ट्रेनिंग का सारा खर्च इस कंपनी ने उठाया।
-एवरल्ड एडवर्ड्स- एक धावक के तौर पर उसैन बोल्ट को किस तरह की फिजिकल ट्रेनिंग करनी है इसकी पूरी जिम्मेदारी एडवर्ड पर है।
-नजेंट वॉकर- नजेंट उसैन बोल्ट की बेवसाइट के एक्जीक्यूटीव मैनेजर हैं, जो बोल्ट के सारे बिजनेस पर ध्यान देते हैं। नजेंट बोल्ट के कोच के साथ मिलकर इनके ट्रेनिंग की रूपरेखा भी देखते है।
-गिना फोर्ड-गिना यूसेन बोल्ट की टीम की सबसे मुख्य सदस्य हैं, क्योंकि गिना पर बोल्ट के लिए स्पॉन्सर लाने की पूरी जिम्मेदारी है।
-नोरमैन पीयर्ट- नोरमैन बोल्ट के बिजनेस मैनेजर हैं। बोल्ट के बैंक बैलेंस की देख-रेख के साथ ही उन्हें किस ब्रैंड के लिए ऐड करना है, किस इवेंट में जाना है, इसकी पूरी जिम्मेदारी नोरमैन पर है।



दोस्ती का पैगाम
तरक्की के नाम

बॉलीवुड में राज है इन तीनों खान का जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री की जान कहा जाता है। सलमान खान, शाहरुख खान और आमिर खान, ये तीनों वो नाम हैं जिनके बीच कभी दुश्मनी तो कभी दोस्ती के किस्से हमेशा चर्चा में रहते हैं। एक दौर वो था जब इन तीनों खान के बीच दुश्मनी को कई इवेंट के बीच देखा गया वहीं पिछले साल अर्पिता खान की शादी से लेकर अब प्रमोशनल इवेंट तक इन्हें एक दूसरे की तारीफ करते देखा जाता है। इनके बीच गहराते रिश्ते दुश्मनों को दोस्ती का पैगाम तो देते ही है साथ ही एक दूसरे की तरक्की के बदलते समीकरण पर भी नजर डालते हैं...

जो लोग कई सालों से सलमान और शाहरुख खान के बीच चली आ रही दुश्मनी की बात करते थे वही अब उनके बीच बढ़ती दोस्ती की तारीफ कर रहे हैं। ये दोनों खान कभी इफ्तार पार्टी में तो कभी अपनी फिल्मों के प्रमोशन के दौरान एक दूसरे को सपोर्ट करते नजर आते हैं। पिछले दिनों सलमान ने ट्विटर के माध्यम से शाहरुख खान की अगली ईद पर रिलीज हो रही फिल्म रईस को  प्रमोट किया। उनका ट्विट था रई...स... आ रहा है। फिलहाल टीजर देखो और एंजॉय करो बेहद...। इसी तरह जब बजरंगी भाईजान का फस्र्ट लुक आउट हुआ था तब शाहरुख खान ने ट्विट किया था मुझे विश्वास है कि एक भाई का रिश्ता हीरो से हमेशा बड़ा होता है। इस साल ईद पर भाईजान आ रहे है। क्या आप बजरंगी भाईजान के फस्र्ट लुक को देखना चाहेंगे। आमिर खान ने भी इस फिल्म को अपने ट्विटर अकाउंट पर प्रमोट किया था। उनका ट्विट था जल्द आ रहा है भाईजान...बजरंगी भाईजान। सलमान के लिए शाहरुख और आमिर के दिल में जो दोस्ती का जज्बा है वह उनकी बातों और सोशल मीडिया पर कमेंट्स से पता चलता है। पिछले दिनों आमिर खान ने अपने दोस्त सलमान खान की ईद पर रिलीज हुई फिल्म 'बजरंगी भाईजानÓ की जमकर तारीफ करते हुए ट्विट किया था ''अभी अभी बजरंगी भाईजान देखकर आया। बेहतरीन। सलमान की अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म। सलमान का अब तक का सर्वश्रेष्ठ अभिनय।ÓÓ इससे सलमान के प्रति उनकी सद्भावना का पता चलता है। अगर बात सलमान और शाहरुख खान के रिश्तों की जाए तो ये कोई पुरानी बात नहीं है जब ये दोनों एक दूसरे से नफरत करते थे और आमिर खान को सलमान का पक्ष लेते हुए देखा जाता था। इसी बीच आमिर खान को जाने अनजाने ही सही लेकिन शाहरुख खान को अपनी तरक्की के लिए इस्तेमाल करते देखा गया। पिछले साल सलमान खान की बहन अर्पिता खान की शादी में इन तीनों खान को एक दूसरे से गले मिलते देखा गया। अर्पिता की शादी में शाहरुख खान संगीत सेरेमनी और रिसेप्शन में शामिल हुए वहीं आमिर भी शादी वाले दिन सलमान के साथ दिखें। दो साल पहले शाहरुख खान ने बाबा सिद्दिकी की इफ्तार पार्टी में सलमान को गले लगाया था। तभी से इनके बीच बनते रिश्तों के कयास लगाए जा रहे थे। आज हालत यह है कि जब शाहरुख खान से सलमान खान के बीते रिश्तों की बात की जाती है तो वह इस बारे में बात करना भी बोरिंग मानते हैं। उनका कहना है यही हाल आमिर और सलमान का भी है क्योंकि हमारे बीच संबंध कभी खराब थे ही नहीं। सच तो यह है कि ये तीनों खान फिल्म इंडस्ट्री में सफलता के उस शिखर पर है जहां उन्हें अपने प्रमोशन के लिए किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। इस बीच अगर उनमें से किसी एक की भी फिल्म किसी दूसरे की फिल्म को क्लेश करती हैं तो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे मानते हैं कि फिल्मों की रिलीजिंग डेट तय करना प्रोड्यूसर का काम है। अगले साल ईद पर सलमान खान की फिल्म सुल्तान और शाहरुख खान की फिल्म रईस एक साथ रिलीज हो रही है। इसको लेकर उनके बीच व्यक्तिगत रूप से कोई मन मुटाव या प्रतिस्पर्धा नजर नहीं आती बल्कि वे दोनों एक दूसरे की फिल्म को प्रमोट कर रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि लगभग पचास साल की उम्र का आंकड़ा पार करने के बाद आज भी हीरो की भूमिका में छाए रहने का दम रखने वाले ये तीनों खान शोबीज की दुनिया में रहते हुए घाटे का सौदा करना समझदारी नहीं मानते। पिछले कुछ सालों के दौरान एक दूसरे से दूर रहते हुए इन सितारों को भी निश्चित रूप से इस दुश्मनी के निगेटिव बिजनेस फैक्टर का अंदाज हो गया होगा। शाहरुख खान आज विशाल बिजनेस एंपायर के मालिक हैं वहीं सलमान खाने के फैंस की संख्या मिलियंस में गिनी जाती हैं। जब शाहरुख खान की फिल्म हैप्पी न्यू ईयर तीन सौ करोड़ क्लब में शामिल हुई थी तो सलमान खान ने शाहरुख की सफलता पर अपनी खुशी जाहिर की थी और उन्हें बॉलीवुड का किंग कहा था इसी तरह शाहरुख भी सलमान की कई फिल्मों पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दे चूके हैं। दोस्ती के बनते बिगड़ते अनुपात के बीच इन तीनों खान की प्रसिद्धि आज इस हद तक है जहां उनके लिए मर मिटने वाले श्रोताओं, अच्छी फिल्मों और उनके नाम पर मुंहमांगी रकम देने वाले निर्माता-निर्देशकों की कमी नहीं है। ऐसे में अगर इनके आपसी रिश्ते ही मजबूत न हो तो उसका असर इन्हें आदर्श मानने वाले दर्शकों की सोच को प्रभावित करता है। उम्र के पचासवें साल के करीब आते आते सलमान खान को भी यह समझ आ गया है कि दुश्मनों को दोस्त बनाने में जो मजा है वो किसी से ताउम्र दुश्मनी निभाने में नहीं है। तभी तो इन दिनों वे सोशल मीडिया के माध्यम से अपने फैंस को दोस्ती का संदेश दे रहे हैं। कुछ समय पहले उन्होंने अपने ट्विट में कहा था जिंदगी के सफर को खूबसूरत बनाओ। ट्विटर वार का हिस्सा बनने से ज्यादा अच्छा है प्यार की खुशबू लोगों में बीच फैलाओ। मैं फिल्म इंडस्ट्री में इसलिए नहीं आया हूं कि देखता रहूं किसके ट्विटर पर कितने फॉलोवर्स हैं और कौन किसे गिरा रहा है। अपनी दरियादिली के लिए मशहूर सलमान खान ने आमिर खान से हमेशा दोस्ती निभाई। 1994 में रिलीज अंदाज अपना अपना में जिस तरह की दोस्ती आमिर और सलमान के बीच परदे पर दिखाई दी थी वही आज भी कायम है। आमिर आज भी उन दिनों को याद करते हैं जब पहली पत्नी रीना से तलाक लेने के बाद उन्हें सलमान ने सिखाया था कि जीवन में कभी कभी परिस्थितियों के अनुसार खुद को बदलना जरूरी होता है। सलमान की यह सीख आज भी मुश्किल घड़ी में उन्हें सहारा देती है। सलमान ने आमिर की फिल्म धूम 3 को प्रमोट किया था जिस पर आमिर ने अपनी खुशी जाहिर की थी। आमिर ने सलमान की जय हो के प्रमोशन में मदद की और अपने दोस्त की तारीफ में यह भी कहा कि वे सितारों के पावर हाउस हैं जो सिर्फ बेल्ट हिला दे या चश्मा ठीक करते रहे तो भी उनकी फिल्म का जादू दर्शकों के सिर चढ़कर बोलता है।

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कौन कहता है प्रतिद्विंदी कभी दोस्त नहीं हो सकते। हम तीनों बॉलीवुड के टॉप हीरो हैं लेकिन इससे हमारी दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ता। हम अच्छे दोस्त हैं और रहेंगे।
आमिर खान

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मेरी तरह शाहरुख और आमिर खान को भी नंबर गेम से नफरत है। शाहरुख और आमिर खान मेरे दोस्त है इसलिए भाड़ में गया नंबर एक, दो, तीन। समझे क्या?
सलमान खान
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 'अब मैं और सलमान दोस्त बन गये हैं, इसलिए सबकुछ हम साथ में करेंगे। आप सबके लिए अगले साले रईस और सुल्तान का एक साथ रिलीज होना टकराव है लेकिन हमारे लिए नहीं है। कमाई का टकराव हो सकता है लेकिन हमारे लिए बराबर-बराबर मुनाफा होगा।Ó
शाहरुख खान

लेक्मे फैशन वीक में
बनारस की झलक

लेक्मे फैशन वीक में रितु कुमार बनारस की पारंपरिक कला को अपने डिजाइन में पेश कर रही हैं। इससे पहले भी शाइना एन सी अपने शो के दौरान इस कला को प्रमोट कर चुकी हैं...

लगभग चालीस साल पहले बंगाल के एक छोटे से गांव में फेब्रिक डिजाईन से अपना करियर शुरू करने वाली रितु कुमार का नाम आज चोटी के डिजाइनर्स में गिना जाता है। हिंदुस्तान में बुटीक परंपरा की नींव रखकर एक नयी सभ्यता का उद्घोष तो रितु ने किया ही है। साथ ही भारतीय परिधानों के महत्व को बनाए रखकर उन्होंने अपने हुनर से इसमें नए रंग भरे हैं। उन्होंने भारत की सदाबहार पोशाक साड़ी और लहंगे को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाई। इन दिनों रितु कुमार की चर्चा लेक्मे फैशन वीक में उनके द्वारा बनारस की पारंपरिक कला को पहचान दिलाने के लिए हो रही है। सच तो यह है कि बनारस हमारे देश का एक ऐसा पवित्र शहर है जो न सिर्फ अपने धार्मिक महत्व बल्कि पारंपरिक कलाओं को सहेजने के लिए भी जाना जाता है। बनारस के महत्व को हमारे देश की जानी मानी फैशन डिजाइनर रितु कुमार ने बेहतर जाना और यहां के बनुकरों की डिजाइन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस साल संपन्न लेक्मे फैशन वीक में पेश करने का निर्णय लिया। बनारस के कारीगरों को समर्पित है रितु कुमार द्वारा डिजाइन किया गया वाराणसी वेवर्स जिसे वे लेक्मे फैशन वीक विंटर फेस्टिवल 2015 में प्रस्तुत कर रही हैं। गौरतलब है कि कुछ समय पहले ही मुंबई में डाक्टर भाऊ दाजी लाड संग्रहालय में डिजाइनर और पॉलिटिशियन शाइना एन सी ने
अपने कलेक्शन में बनारसी साड़ी को पेश किया था। इनके कलेक्शन को री इंवेंट बनारस नाम दिया गया था। शाइना के इस शो की शान मनीष मल्होत्रा, अबू जानी-संदीप खोसला और कृष्णा मेहता जैसे मशहूर फैशन डिजाइनर थे जिन्होंने इस पारंपरिक कला को दुनिया में पहचान दिलाने का समर्थन भी किया था। लेक्मे फैशन वीक में भारतीय हैंडलूम और टेक्सटाइल्स पर ये डिजाइनर्स 27 अगस्त को अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। एक बार फिर शाइना इस फैशन वीक के लिए भी मुंबई की भाऊ डाजी लाड संग्रहालय में एक खास प्रदर्शनी का आयोजन कर रही हैं जिसमें अनिता डोंगरे, कृष्णा मेहता और वरूण बहल की डिजाइन को दिखाया जाएगा। इस साल के लेक्मे फैशन वीक में रितु कुमार के पारंपरिक परिधानों का आधार पारंपरिक बुनाई है जैसे मेटेलिक ब्रोकेड्स के साथ सिल्क जिस पर सफेद धागे की बुनाई की गई है। बनारस में तैयार होने वाला यह एक ऐसा विशेष फेब्रिक है जो दुनिया में और कहीं नही मिलता। रितु ने अपनी डिजाइन में पारंपरिक एंब्रायडरी और प्रिंटिंग टेक्रीक को चाइनीज और मेटेलिक धागों से रिप्लेस किया है।
बनारस की कला को युवाओं द्वारा पसंद किया जाता है इसलिए ये जरूरी नहीं कि युवाओं के लिए डिजाइन किये जा रहे आउटफिट्स में हम बदलाव करें। ये कहना है रितु कुमार का जो बनारस की तारीफ करती नहीं थकती। भारत के फैशन डिजाइनर्स को हमारे देश की इस अभिन्न कला को आगे लाने की हर संभव कोशिश करना चाहिए ठीक उसी तरह जिस तरह देश के प्रतिष्ठित शो में रितु कुमार कर रही हैं।

शुक्रवार, 5 जून 2015

आपकी पहल बचाएगी
पर्यावरण

हम अगर पर्यावरण को बचाने की बात करें तो इसकी शुरूआत सबसे पहले हमें अपने घर और फिर समाज से करना होगी। इस बात को हमारे देश में रहने वाले वे पर्यावरणविद बहुत अच्छी तरह जानते हैं जिन्होंने छोटी सी पहल के बल पर देश और फिर दुनिया के पर्यावरण की दिशा बदलने का बीड़ा उठाया है। आज उन्हीं के प्रयासों ने ये साबित कर दिया है कि एक कोशिश भी पर्यावरण को बचाने की दिशा में बेहद कारगर साबित हो सकती है....

मेनका गांधी
राजनीति के अलावा मेनका गांधी पत्रकार भी रही हैं और एक पत्रिका की संपादक भी रह चुकी हैं। उन्होंने कानून और पशुओं पर आधारित बहुत-सी पुस्तकें लिखी हैं। भारत में पशु-अधिकारों के प्रश्न को मुख्यधारा में लाने का श्रेय मेनका गांधी को ही जाता है। सन 1992 में उन्होंने पीपल फार अनिमल्स नामक एक गैर सरकारी संगठन आरम्भ किया जो पूरे भारत में (पशु) आश्रय चलाता है। उन्हें बेजुबान पशुओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जाना जाता है।

ऐसे बचेगा पर्यावरण

हमारे समाज में होने वाली निर्दयता की शुरूआत सबसे पहले घर से तब होती है जब घरों में जानवरों को मारा जाता है या उनकी सही देखभाल नहीं की जाती। जानवरों पर आत्याचार कर हम अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं जिसे बच्चे देखते हैं और वो भी जानवरों के साथ घर के बड़ों की तरह अन्याय करने लगते हैं। अगर आप जानवरों के साथ हिंसापूर्ण व्यवहार कर रहे हैं तो समाज में शांति की कल्पना कैसे कर सकते हैं?

वंदना शिवा

वंदना शिवा एक दार्शनिक और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं जिन्होंने पर्यावरण संबंधी नारी अधिकारवादी कई पुस्तकों की रचना की है। चिपको आंदोलन में गौरा देवी के साथ-साथ वंदना शिवा ने पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए पेड़़ों के चारों तरफ मानव चक्र तैयार करने की पद्धति को अपनाया। वैश्वीकरण के मॉडल को वंदना शिवा ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाया और पर्यावरण संरक्षण को अंतर्राष्ट्रीय फोरम का मुद्दा बनाया। उन्होंने कृषि और खाद्य पदार्थ के व्यवहार एवं प्रतिमान में परिवर्तन लाने के लिए संघर्ष किया है। सबसे अहम बात है कि शिवा ने जैव-नीतिशास्त्र के मुद्दे को उठाया जो तारीफ के काबिल है। उन्होंने  पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से महिला सशक्तिकरण की बात की है।

ऐसे बचेगा पर्यावरण

एक तरफ तो आप बद्रीनाथ, और केदारनाथ पूजा करने जा रहे हैं, पर दूसरी ओर ऐसी ही पवित्र जगह प्रदूषण फैला रहे हैं। अगर हम लद्दाख की बात करें तो वहां की सरकार ने यह कानून बनाया है कि सैलानी प्लास्टिक का कूड़ा अपने साथ वापस ले कर जाएंगे, वे उसे कहीं छोड़ नहीं सकते। अगर इसी तरह की नीतियां हर जगह बनने लगें तो कूड़ा करकट देखने को ही नहीं मिलेगा।

सुनीता नारायण

सुनीता नारायण की गिनती उन महिलाओं में होती है, जो वैज्ञानिक तथ्यों के लिए किसी के खिलाफ भी मोर्चा खोल सकती हैं। पेप्सी और कोका कोला में खतरनाक कीटनाशकों की उपस्थिति की बात कहकर उन्होंने न केवल भारतीय राजनीति बल्कि कारपोरेट जगत में भी भूचाल ला दिया था। इसी तरह बड़ी कंपनियों के शहद में एंटीबायोटिक होने की बात कहकर सनसनी फैला दी । अनुसंधान परियोजना और सार्वजनिक अभियानों की शृंखला में सुनीता ने हमेशा सक्रिय भूमिका निभाई है। सुनीता की महान उपलब्धियों की कारण भारत सरकार ने 2005 में उन्हें 'पदमश्रीÓ अवार्ड से सम्मानित किया था।

ऐसे बचेगा पर्यावरण
सुनीता नारायण के शब्दों में पर्यावरण आंदोलन की ताकत है सूचना, जन-समर्थन, ज्ञान आधारित निर्णय प्रक्रिया व संपर्क तंत्र और ये ही औपचारिक संस्थानों की कमजोरी हैं। हम आंदोलन की इस ताकत का समावेश शासकीय संस्थानों में कैसे कर सकते हैं? पर्यावरण आंदोलन के समक्ष अगली बड़ी चुनौती यही है।

अनुपम मिश्र
अनुपम मिश्र जाने माने गांधीवादी पर्यावरणविद् हैं। पर्यावरण के लिए वह तब से काम कर रहे हैं, जब देश में पर्यावरण का कोई विभाग नहीं खुला था। बगैर बजट के मिश्र ने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस बारीकी से खोज-खबर ली है, वह आज भी करोड़ों रुपए बजट वाले विभागों और परियोजनाओं के लिए संभव नहीं हो पाया है। उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का महत्वपूर्ण काम किया है। वे 2001 से दिल्ली में स्थापित सेंटर फार एनवायरमेंट एंड फूड सिक्योरिटी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। उनकी पुस्तक आज भी खारे हैं तालाब, ब्रेल सहित 13 भाषाओं में प्रकाशित हुई जिसकी 1 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। 1996 में उन्हें देश के सर्वोच्च इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

ऐसे बचेगा पर्यावरण
 अनुपम मिश्र कहते हैं हर युग का एक एजेंडा होता है, इस युग में विकास एजेंडा है, जिसमें खेती शब्द कहीं नहीं है। इस युग में विकास का मतलब  है बड़ी-बड़ी बिल्डिंग। प्राकृतिक संसाधनों को रुपए में कैसे बदलें, कोयला बिक जाए और लौह अयस्क बाहर बिक जाए। आजकल सारी पार्टियों का एजेंडा एक है। देश का विकास तुरंत करना। हम प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से विकास करना चाहते हैं पर यह क्यों नहीं समझते कि जब कृषि का विकास होगा ही नहीं तो मानव जाति का विकास कैसे संभव है।

माइक पांडे
प्रसिद्ध पर्यावरणविद माइक पांडे महज जंगली जीवन पर फिल्म बनाने वाले फिल्मकार ही नहीं हैं बल्कि वे एक एनजीओ के साथ मिलक र लड़कियों और उनके माता-पिता के लिए सलाहकार का काम भी करते हैं। इसके अलावा उन्होंने साबरमती आश्रम में न्यूरोपैथी की शिक्षा भी ली है और होम्योपैथिक डॉक्टर के तौर पर प्रशिक्षण भी हासिल किया है ताकि वे जिन आदिवासी लोगों के साथ जंगल में काम करते हैं, उनके बीमार पडऩे पर उनकी मदद कर सकें। माइक पांडे की कोशिशों की वजह से जंगली जानवरों की कई प्रजातियों को फायदा मिला है। भारतीय समुद्र में व्हेल शार्क को फिल्माने के लिए उन्हें कई पुरस्कारों साहित तीन बार प्रतिष्ठित ग्रीन ऑस्कर सम्मान प्राप्त है।

ऐसे बचेगा पर्यावरण
भारतवासियों की विडंबना यह है कि आज पर्यावरण की बिगड़ती हुई भयावह स्थिति को देखने के बाद भी वे हवा और पानी को लेकर संवेदनशील नहीं हैं। हमें यह सोचना चाहिए कि हम कैसी प्रगति की ओर बढ़ते जा रहे है? हमें यह नहीं भूलना चाहिए जब हम नदियों को आपस में जोड़ेंगे तो एक नदी का जहरीला पानी दूसरी नदी में भी जाएगा। ऐसा भी हो सकता है कि कोई नदी सूख जाए। अच्छा तो यह होगा कि इन्हीं पैसों को खर्च कर परंपरागत स्त्रोतों को फिर से जिंदा किया जाए। क्या यह सही नहीं होगा कि नदियों को आपस में जोडऩे के अलावा दूसरे विकल्प तलाशे जाएं? जरूरत तो सिर्फ इच्छाशक्ति की है।

एम वाय योगनाथन

पर्यावरणविद के रूप में एम वाय योगनाथन की कहानी बहुत दिलचस्प है। योगनाथान कोयंबटूर के ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन में कंडक्टर का काम करते थे। उन्हे पढऩा लिखना भी नहीं आता था लेकिन फिर भी पेड़ों का महत्व वे समझते थे। धीरे धीरे उन्होंने पेड़ लगाने की शुरूआत की। पिछले छब्बीस सालों में वे लगभग 38,000 पेड़ लगा चुके हैं। योगनाथन को लगता है कि उनका अशिक्षित होना पर्यावरण को बचाने की राह में कहीं भी रूकावट नहीं रहा। आज वे तमिलनाडु के विभिन्न स्कूलों में विद्यार्थियों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं।

ऐसे बचेगा पर्यावरण
जब मैं स्कूल में बच्चों को वृक्षारोपण का महत्व समझाता हूं तो वे खुद भी पौधे लगाना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें सिर्फ समझाने से काम नहीं चलता बल्कि मैं खुद उनके साथ मिलकर वृक्षारोपण करता हूं। सच मानिए पर्यावरण को बचाने के लिए किया जाने वाला वृक्षारोपण बहुत ही आसान काम है। बस ऐसे पौधों को चुनें जिन्हें विकसित होने में कम देखभाल की जरूरत पड़े।

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015


सेहत के साथी

सेहत की दुनिया में जिन एक्सपर्ट का नाम सबसे पहले आता है, उन्हें फिटनेस के प्रति बेहद जागरुक कहे जाने वाले सितारे भी अपना फिटनेस गुरू मानते हैं...

शिवोहम
फिटनेस एक्सपर्ट और लाइफ स्टाइल गुरु शिवोहम वेट लिफ्टिंग और जिमनास्टिक के माध्यम से अब तक आमिर खान, जैकलीन फर्नांडिस, अर्जुन कपूर, रणवीर सिंह, जैकी भगनानी और श्रद्घा कपूर की बॉडी बना चुके हैं।  शिवोहम एक्सरसाइज से पहले 15-20 मिनट तक मेडिटेशन को जरूरी समझते हैं। रात को देर तक जगने और अल्कोहल का सेवन करने से वे दूर रहते हैं। शिवहोम अपने क्लाइंट्स की डाइट का ख्याल तो रखते ही हंै साथ ही वे ताजा फल और प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व फैट युक्त डाइट लेना पसंद करते हैं।
फिटनेस मंत्र
मेहनत करो और स्मार्ट रहो। हमेशा हाइजेनिक फूड खाओ और वो क ाम करो जिससे आपको मानसिक शांति मिलती हो।
यासमीन कराचीवाला
यासमीन को देश की सबसे अच्छी फिटनेस ट्रेनर और पायलेट्स एक्सपर्ट माना जाता है। वे कैटरीना कैफ, करीना कपूर खान और दीपिका पादुकोण की फिटनेस गुरू हैं। यासमीन कहती है कई महिलाएं दीपिका की तरह एब्स, कैटरीना की तरह पैर और बिपाश जैसे हाथों की बनावट चाहती हैं। बॉलीवुड सितारों का प्रभाव आम लोगों पर हमेशा रहता है और वे उन्हीं की तरह अपना फिगर भी चाहते हैं। यहां लोगों को यह भी समझना चाहिए कि ये सितारे सिर्फ जादू की छड़ी घुमाकर मनचाहा फिगर नहीं पाते, बल्कि इसके लिए कड़ी मेहनत भी करते हैं। यासमीन ने खुद देखा है कि कैटरीना कैफ ने शीला की जवानी या धूम 3 में अपने लुक के लिए कितना पसीना बहाया है।  साथ ही अपनी डाइट का भी पूरा ख्याल रखा है। एक निश्चित फिटनेस लेवल को पाने के लिए यह जरूरी है कि ऐसे लक्ष्य बनाएं जिन्हें आप लंबे समय तक फॉलो कर सकें। यास्मीन की जिम काफी मॉर्डन है, जिसमें फिटनेस से जुड़ी कई आधुनिक मशीनें हैं। बॉडी के हर पार्ट के हिसाब से इन मशीनों को डिजाइन किया गया है। यास्मीन के इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक्ट्रेस की तस्वीरों को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है। जरीन खान ने भी अपना वजन यास्मीन की जिम और टिप्स के साथ कम किया था।
फिटनेस मंत्र
किसी की देखादेखी एक्सरसाइज न करें, बल्कि
अपने बॉडी शेप के अनुसार एक्सरसाइज का चयन करें।
डैनी पांडे
जब लोग शेप में आने का सोचते हैं तो सबसे पहले भुखा रहना शुरू कर देते हैं। वे जल्दी रिजल्ट चाहते हैं इसीलिए कई बार फैट को बर्न करने वाले सप्लीमेंट्स लेना शुरू कर देते हैं, लेकिन इससे हमेशा बॉडी को नुकसान ही होता है। इससे अच्छा है हेल्दी डाइट लें और वजन घटाएं। साथ ही जिस तरह से जिंदगी में अपने काम और फायनेंस को संतुलित करना जरूरी है, उसी तरह अपनी भावनाओं को संतुलित रखे। अगर मन आपके काबू में नहीं है तो वजन कम करना मुश्किल है। ये कहना है डैनी पांडे का।  डैनी बिपाशा बसु, कुणाल कपूर, लारा दत्ता और अभय देओल की फिटनेस ट्रेनर हैं।
अनुज राक्यान
अनुज को जूस डिटॉक्स ट्रेंड भारत में लाने का श्रेय दिया जाता है। चेतन भगन और लीसा रे के वे फिटनेस गुरु हैं। खुद अनुज के शब्दों में लगभग दस साल पहले मैं वजन कर करने के लिए हेल्दी डाइट को लेकर कंफ्युज था। तभी मैने ये मेहसूस किया कि ऐसे कई लोग हंै जो हैल्थ और फिटनेस के बारे में यह मानते हैं कि जूस पीने से वजन कम होता है, लेकिन ऐसा नहीं है, अगर आप उसी मात्रा में फल या सब्जियां खाते हैं तो अलग से जूस पीने की जरूरत नहीं है। वैट मेनेजमेंट के लिए विटामिन को सही मात्रा में लेना न भुलें। अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं और साथ ही निश्चित अंतराल के बाद डिटॉक्सिफिकेशन पर ध्यान दें।
फिटनेस मंत्र
अनुशासनबद्घ जीवन शैली अपनाएं और फिट रहें। फिट रहने के लिए जितना जरूरी अच्छी डाइट को अपनाना है उतना ही ध्यान पर्याप्त नींद
लेने पर भी होना चाहिए।

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

छोटे शहरों के लाल
करेंगे वल्र्ड कप में कमाल 


इस बार विश्वकप में जिन भारतीय खिलाडिय़ों का चयन हुआ है, उनमें से अधिकांश खिलाड़ी भारत के छोटे
शहरों से हैं। ये वे खिलाड़ी है जिन्होंने पिछले कुछ सालों में क्रिकेट मैचों के दौरान सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर अपनी योग्यता जाहिर की है। एक बार फिर देश की 125 करोड़ जनता की उम्मीदें धोनी और उनकी टीम से हैं। अब देखना यह है कि इस विश्व कप के दौरान अधिकांश छोटे शहरों से आए धुरंधर खिलाड़ी क्या अपने देश को विश्व कप दिला सकेंगे...
झारखण्ड के रांची जैसे छोटे शहर के निवासी महेंद्र सिंह धोनी कभी गेंद पर पूरी ताकत से प्रहार कर उसे सीमा रेखा से बाहर भेजते हुए या कभी विकेट कीपर की सामान्य कद काठी से जुदा अपने गठीले बदन से गेंद की दिशा में छलांग लगाते हुए क्रिकेट मैच के दौरान देखे जाते हैं। कभी अखबार के पन्नों पर छपे विज्ञापनों में तो कभी टेलीविजन स्क्रीन पर धोनी छाए रहते हैं। क्रिकेट की सीमारेखा के आर-पार महेंद्र सिंह धोनी की ये छवियां एक आम भारतीय के मन में कभी ना कभी दस्तक जरूर देती हैं। इस तरह महेंद्र सिंह धोनी बीते एक दशक में भारत के सबसे कामयाब क्रिकेटर रहे हैं। इस एक दशक के दौरान उनका हर अंदाज स्टाइल बन गया। आज भी पार्थिव पटेल,अजय रातरा और दिनेश कार्तिक जैसे युवा दिग्गज खिलाड़ी उन्हीं के दिखाए हुए रस्ते पर चलना पसंद करते हैं।
 2007 में वनडे कॅरियर की शुरुआत करने वाले रोहित गुरुनाथ शर्मा महाराष्टï्र के नागपुर में जन्में है। रोहित उन चुनिंदा खिलाडिय़ों में से हैं, जिनकी तारीफ करने वालों की कमी नहीं है। साथ ही इस विश्व कप में भी उनसे कई आशाएं की जा रही है। उनके खेल के स्टाइल और तकनीक का कमाल यह है कि जब वो 2007-08 में ट्राई सीरीज के लिए ऑस्ट्रेलिया गए थे तो पूर्व क्रिकेटर इयान चैपल ने उन्हें आने वाले दौर में विश्व क्रिकेट का सबसे करिश्माई बल्लेबाज बताया था। कमेंट्री बॉक्स में रमीज राजा से लेकर सुनील गावस्कर तक और ड्रेसिंग रूम में तेंदुलकर से लेकर धोनी इस युवा बल्लेबाज की प्रतिभा का कायल रहा है। मुंबई से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले रोहित ने वह समय भी देखा है जब उनके पास फीस भरने के पैसे भी नहीं हुआ करते थे। ये रोहित का क्रिकेट के प्रति जूनून ही था कि स्कूल टूर्नामेंट में कई बेहतरीन प्रदर्शन के बाद रोहित को मुंबई अंडर-20 के चुन लिया गया। ये रोहित की योग्यता ही थी कि आईपीएल में डेक्कन चार्जर्स ने रोहित को खिलाने के लिए तीन करोड़ से ज्यादा की बोली लगाई। रोहित की लोकप्रियता का अंदाजा लगाने के लिए ये काफी है लेकिन रोहित की मां और उनके कोच की माने तो इन सब के बावजूद रोहित में कोई बदलाव नहीं आया। आज ऐशो-आराम की जिंदगी जीने के बाद भी अपनी तंगहाली के दिल वे कभी नहीं भुलते।
टीम इंडिया की सनसनी उमेश यादव नागपुर के रहने वाले हैं। कभी खेतों में काम करने वाले उमेश यादव ने क्रिकेट में पदार्पण किया और फिर टीम इंडिया की जरूरत बन गए। उमेश यादव टीम इंडिया के स्ट्राईक गेंदबाज हैं। पिछले एक साल में कप्तान धोनी का भरोसा उन पर बहुत बढ़ा है। टीम इंडिया को इस विश्वकप को जिताने में गेंदबाजों का बहुत अहम रोल होने वाला है। उसमें उमेश यादव की स्टीक लाईन-लेंथ और तेज गेंदबाजी भारत के विश्व कप का सपना पूरा कर सकती है। उमेश यादव टीम इंडिया के ऐसे गेंदबाज है  जिनके नाम वनडे क्रिकेट में 154.8 किमी/प्रतिघंटे की गेंद भी दर्ज है।
कहते हैं प्रतिभाएं जगह की मौहताज नहीं होती। यह बात मोहम्मद शमी के लिए सटीक है।
उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जैसे छोटे से शहर समीप के गांव से निकलकर टीम इंडिया का हिस्सा बने मोहम्मद शमी ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। शमी के सिर पर क्रिकेट का जुनून इस कदर हावी था कि वह अपने कोच बदरुद्दीन के साथ गांव से ट्रेन में बैठकर मुरादाबाद आते और यहां पर क्रिकेट का अभ्यास करते। जब कोचिंग लेने का समय समाप्त हो जाता तब भी वे नेट्स पर ट्रेनिंग लिया करते थे। बाद में यही कड़ी मेहनत रंग लाई। प्रतिभा होने के बावजूद उन्हें जब उत्तरप्रदेश की टीम में जगह नहीं मिली तो वे अपना भाग्य आजमाने के लिए बंगाल चले गए। उत्तरप्रदेश के क्लबों में उन्होंने जो कुछ सीखा था, उसका असर जल्दी ही दिखने लगा और वे बंगाल की टीम की गेंदबाजी के प्रमुख अस्त्र बन गए।
अपने शहर का नाम आज विश्व भर मे रोशन करने वाले ऐसे ही महान क्रिकेटर हैं सुरेश रैना। उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद में सुरेश रैना का जन्म हुआ और यहीं वे पले-बढ़े। रैना भारत के एक मात्र ऐसे क्रिकेटर हैं जिन्होंने टेस्ट, वनडे और टी-20 में टीम इंडिया की तरफ से शतक ठोका है। इस विश्व कप के लिए रैना कहते हैं यह नया टूर्नामेंट है और हम अच्छे प्रदर्शन को तत्पर हैं। हम जीत के भूखे हैं और विश्व कप से बड़ा कोई टूर्नामेंट नहीं हो सकता। हम पाजीटिव सोच के साथ एक दूसरे के साथ का लुत्फ उठाते हुए मैदान में शानदार प्रदर्शन करेंगे।
गुजरात के नाडियाद का रहने वाला अक्षर पटेल बायें हाथ के एक अच्छे बल्लेबाज के साथ-साथ बायें हाथ के स्पिनर भी हैं। अक्षर को 2013 में आइपीएल की मुंबई इंडियन टीम के लिए चुना गया और 2014 में पंजाब की टीम के लिए उनका चयन हुआ।  इस होनहार खिलाड़ी पर चयनकर्ताओं समेत खुद कप्तान धोनी को काफी भरोसा है।
 मेरठ में रहने वाले भुवनेश्वर कुमार चैंपियंस ट्रॉफी और वेस्टइंडीज में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ चुके है। सच तो यह है कि भुवनेशवर की कहानी भारत के छोटे शहरों से आने वाले खिलाडिय़ों की कामयाबी जैसी ही है जिनके बारे में यूपी रणजी टीम के बल्लेबाज उमंग शर्मा का कहना है कि वो भले ही मेरा साथी है लेकिन उसने मुझे ये उम्मीद दी है कि मैं भी भारतीय टीम में खेल सकता हूं।
वल्लभगढ़, हरियाणा में जन्में मोहित शर्मा आईपीएल व रणजी ट्राफी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं। वे रणजी ट्राफी में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर इंडिया का लीडिंग विकेट टेकर गेंंदबाज बने और उसके बाद आईपीएल में भी उन्होंने अपनी ओर से उत्कृष्ट प्रदर्शन दिया। गुजरात के जामनगर का प्रतिनिधित्व करते हैं रविंद्र जडेजा।  रविन्द्र जब 17 साल के थे तभी उनकी मां लता बेन का एक सड़क हादसे में निधन हो गया। लता बेन का सपना था की उनका बेटा एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम की तरफ से खेले। जिस समय लता बेन का देहांत हुआ उसी दौरान रविन्द्र का चयन अंडर 19 वल्र्ड कप की टीम में हुआ था लेकिन मां के देहांत के बाद रविन्द्र का पूरा ध्यान क्रिकेट से हट गया तब उनकी बड़ी बहन नैना ने याद दिलाया की मां उन्हें भारतीय टीम में देखना चाहती थी। इसके बाद रविन्द्र ने क्रिकेट पर फोकस किया और वह मां के सपने को पूरा करने में सफल हुए।



शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

इश्क हवाओं में है


एक दौर वो था जब लड़का-लड़की को देखता है। एक दो मुलाकातें होती है और प्यार हो जाता है। लड़का उससे शादी की बात करता है और कई बार घरवालों की मर्जी से तो कभी उनके विरोध करने के बावजूद दोनों शादी कर लेते हैं। ये तो रहीं बीते दौर की बातें लेकिन अब जमाना सोशल मीडिया का है। आपको एक दूसरे से मिलने या देखने की जरूरत ही नहीं है। बस फेसबुक पर नैन मिले, व्हाट्सएप पर मैसेज हुए। बात बनीं तो ठीक और न बनीं तो दोनों अपने-अपने रास्ते पर दूसरे साथी की तलाश में फिर इंटरनेट सर्च करने में लग गए। सोशल मीडिया की वजह से इश्क का इजहार करना जितना आसान हुआ उतना ही मुश्किल रिश्तों के स्थायित्व को बनाए रखना भी  है। वेलेंटाइन वीक शुरू हो चुका है और आज है प्रपोज डे। प्यार के लिए बने इस खास दिन में  बात करें ऐसे ही युवाओं की जो इंटरनेट की दुनिया के बीच प्यार की फिजाओं में गुम हैं...

रिचा की मुलाकात अपने फेसबुक फें्रड्स के माध्यम से राहुल से हुई। दोनों ने एक दूसरे को फेसबुक पर देखा और चैटिंग शुरू कर दी। इस बारे में रिचा कहती हैं, सोशल मीडिया की वजह से हमें एक दूसरे को जानने का मौका मिला। हमने कभी एक दूसरे से मोबाइल पर बात नहीं की और न ही कभी मिलने की जरूरत महसूस हुई। बस फेसबुक पर बातें होती रही। फिर एक दिन राहुल ने फेसबुक पर मुझे प्रपोज करते हुए पूछा -क्या तुम मुझसे शादी करोगी? इससे पहले राहुल से होने वाली बात उसकी ओर मुझे खींचती रही और तभी मैंने सोच लिया था कि इससे अच्छा जीवन साथी मुझे दूसरा नहीं मिल सकता। मैंने इंस्टाग्राम पर उसकी तस्वीरें पोस्ट करके अपने दोस्तों से उनकी राय मांगी और दोस्तों की राय जानने के बाद राहुल को हां कर दी। प्रपोज करने का ये वही ट्रेंड है जो पिछले कुछ सालों से युवाओं के बीच चलन में है। सोशल मीडिया और यू ट्यूब की वजह से प्यार का इजहार करने वाले पल अब निजी न होकर सार्वजनिक हो गए हैं, जिन्हें दो प्यार करने वालों के साथ-साथ उनके अन्य दोस्त भी सोशल मीडिया पर जानते हैं।
सिर्फ एक बटन दबाते हुए दिल से निकले हर शब्द आपके प्यार के गवाह बन जाते हैं। सोशल मीडिया पर अपने प्यार का इजहार करने वाले युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है। 2012 में मेन्स हेल्थ पत्रिका द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार 30 प्रतिशत लड़कियां मोबाइल पर दोस्तों को मैसेज और ई मेल करने से पहले अपनी सगाई की तस्वीरें और रिलेशनशिप स्टेटस को फेसबुक पर बदलती हैं। खास बात तो यह है कि लड़कों की तरह लड़कियां भी प्यार को दिल से लगाकर बैठने के बजाय इसे एंज्वॉयमेंट या फन का नाम देना पसंद करती हैं। 28 वर्षीय आर्यन दो साल से जिस लड़की के साथ लव रिलेशनशिप में है, उसके साथ फेसबुक पर हुई हर बात को हमेशा संजोकर रखना चाहते हैं, ताकि जीवन भर जब भी अपने पहले प्यार को याद करें तो इन्हें देख सकें। उन्होंने अपने दोस्तों और घर वालों के लिए यू ट्यूब पर 22 मिनट की मिनी मूवी बनाई है। इस बारे में आर्यन का कहना है कि मुझे लोगों को सरप्राइज देना पसंद है। इस बार वेलेंटाइन डे पर
इससे अच्छा सरप्राइज और क्या हो सकता है।
अगर सरप्राइज की ही बात करें तो अपने लव प्रपोजल को ट्विटर पर व्यक्त करना इस वजह से भी अच्छा है, क्योंकि आपके दोस्तों की भारी भीड़ ट्विटर पर कम होती है। 140 शब्दों में मन की बात ट्विटर के माध्यम से कहना आपके पार्टनर को यकीनन पसंद आएगा। अच्छा तो यह होगा कि आप अपने साथी के साथ बात करके ट्विटर का टाइम तय कर लें ताकि जब आप दोनों के पास वक्त हो उसी समय ट्विटर पर आसानी से बात हो सके । प्यार के दीवाने ऐसे युवाओं की भी कमी नहीं जो दिन भर चाहे कितने ही व्यस्त क्यों न हो, लेकिन दिन में एक बार सोशल मीडिया पर हुए सारे अपडेट चेक करने का वक्त निकाल ही लेते हैं। फिर चाहे ट्विटर हो या इंस्टाग्राम जिसकी वजह से अब तक न जाने कितने दिल एक हुए हैं। इंस्टाग्राम सहित कई सोशल नेटवर्किंग साइट्स सरहद की दीवार तोड़कर युवाओं को एक कर देती हैं। इस बारे में 26 वर्षीय श्रेया कहती हैं मैंने इंस्टाग्राम पर अपनी एक फोटो पोस्ट की। साथ ही एक कमेंट लिखा-मैं ऐसे जीवनसाथी को ढूंढ रही हूं, जिसकी पसंद और नापसंद मुझसे मिलती हो। अगर आप मेरी फोटो को पसंद करते हैं और मेरे बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो मुझसे दोस्ती करें। इसे पढ़कर अमेरिका की मल्टीनेशनल कंपनी मेें कार्यरत शांतनु ने भी अपनी फोटो इंस्टाग्राम पर अपलोड की। साथ ही मुझे दोस्ती का प्रपोजल भी दिया। धीरे-धीरे हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला। दुनिया भर के दीवानों को एक दूजे के करीब लाने और मिलने-मिलाने का मौका इंटरनेट की वजह से जिस तरह पिछले कुछ सालों से हो रहा है, ऐसा पहले कभी न था। इससे जहां नए रिश्तों में नजदीकियां बढ़ती हैं वही पुराने रिश्ते या बरसों से एक दूजे से न मिलने वाले प्रेमी भी फिर से एक डोर में बंध जाते हैं। सोशल मीडिया द्वारा अपने दिल की हर बात एक क्लिक के साथ ही अपने पार्टनर तक पहुंचाते हैं और चंद मिनटों में
उनकी प्रतिक्रिया जान भी जाते हैं। शायद इसी वजह से मोबाइल पर लंबी बात करना युवाओं को कई बार रास नहीं आता। प्यार के लेटेस्ट इंटरनेट ट्रेंड को अपनाने से पहले ये भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी हंसी, खुशी, उदासी, गुस्सा या फिर छेड़छाड़ यहां सिर्फ शब्दों के माध्यम से बयां होती है इसलिए मैसेज करने से पहले सिर्फ दिल का ही नहीं बल्कि दिमाग का भी इस्तेमाल करें ताकि प्यार का सागर नेट के माध्यम से ही सही पर गहरा होता रहे।
उम्मीद की शमा जलती रहे
 
 जीवन और मौत के बीच जब फासला कम हो रहा हो तो जीवन को जीने और समझने का नजरिया बदल जाता है। ऐसे मुश्किल समय में किताबें प्रेरणा बनकर हमारे साथ होती है। शायद इस बात को समझते हुए कैंसर का सामना कर रही महान हस्तियों ने अपने अनुभवों को किताबों के माध्यम से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है। उनकी ये किताबें कैंसर के मरीजों की जिंदगी में उम्मीद की किरण के समान है। आज यही किताबें कैंसर का मुकाबला कर रहे लाखों मरीजों की जिंदगी में उम्मीद की शमा जलाए हुए हैं...

साइकिलिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग की किताब इट्स नॉट अबाउट द बाइक -माई जर्नी बैक टू लाइफ कभी कैंसर के मरीज रहे क्रिकेटर युवराज सिंह को जीवन में आगे बढऩे के लिए प्रेरित करती है। हॉकी खिलाड़ी जुगराज सिंह ने भी वर्ष २००३ में सड़क दुर्घटना के बाद इसी किताब को पढ़ा था। इस किताब में आखिर ऐसा क्या है कि कोई भी खिलाड़ी मुश्किल वक्त में इसे जरूर पढ़ता है। यह किताब दरअसल जिंदगी की चुनौतियों से लडऩा सिखाती है। लांस आर्मस्ट्रांग की भाषा में कहें, तो दर्द अस्थायी होता है, जो एक मिनट, एक दिन, एक घंटे या फिर एक साल तक आपको परेशान कर सकता है, पर उस दर्द की वजह से अगर आप मैदान छोड़ दें, तो उसकी पीड़ा ताउम्र सताती है।
शायद कम ही लोग जानते होंगे कि जब लांस ऑर्मस्ट्रांग की च्कीमोथेरेपीज् चल रही थी, तब भी उन्होंने अपना अभ्यास नहीं छोड़ा था। कैंसर की विकसित स्टेज को खुद में पाले रहने के बाद भी आर्मस्ट्रांग को रेसिंग ट्रैक ही नजर आता था। हां, एक वक्त ऐसा जरूर आया, जब उन्हें लगा कि शायद उन्हें साइकिलिंग छोडऩी होगी, पर ऐसे मुश्किल वक्त में ऑर्मस्ट्रांग खुद ही अपनी प्रेरणा बन गए। यह किताब इतनी लोकप्रिय इसीलिए भी हुई, क्योंकि इसमें लोगों को अपनी बीमारी से जूझने के लिए च्मेडिकलीज् कोई मदद भले न मिली हो, पर च्मेंटलीज् काफी मदद मिली। आम तौर पर खिलाड़ी अपनी चोट व बीमारी को छिपाते हैं। वे खुद को कमजोर व लाचार कभी नहीं पेश करना चाहते हैं लेकिन ऑर्मस्ट्रांग जब अपनी बीमारी का जिक्र करते हैं, तो बिल्कुल आम इंसान बन जाते हैं। आर्मस्ट्रांग ने जब कैंसर की लड़ाई जीतने के बाद दोबारा च्टूर द फ्रांसज् में हिस्सा लिया, तो पहले से ज्यादा बेहतर च्टाइमिंगज् और बेहतर रिकॉर्ड के साथ जीत हासिल की। यह रेस दुनिया के सबसे कठिन खेलों में शुमार है। करीब तीन हफ्ते तक चलने वाली इस रेस के दौरान उन्हें ऊंचे-नीचे और पहाड़ी रास्तों से गुजरना होता है। यही खासियत है, जो मुश्किलों से जूझ रहे खिलाडिय़ों को अपने अंदर छिपे च्चैंपियनज् को दोबारा ढूढऩे के लिए प्रेरित करती है। लांस ने कैंसर जैसी बीमारी से लडऩे के बाद इस किताब को लिखकर लोगों को जिस तरह से प्रेरणा दी है उसी की वजह से उनके बाद भी कैंसर के कई रोगियों ने किताबों के माध्यम से इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
टाइम मैगजीन के पूर्व मैनेजिंग एडीटर वाल्टर इसाकसन ने स्टीव जॉब्स की आत्मकथा लिखने से पहले बैंजामिन फ्रेंकलिन और हेनरी किसिंगर की आत्मकथा लिखी थी। ६५६ पन्नों की स्टीव जॉब्स की आत्मकथा में उन्होंने स्टीव के कैंसर से जुझते हुए अंतिम दिनों को संजोया है। इसाकसन ने लिखा है कि २००४ में जब एपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स को कैंसर का पता चला तो डॉक्टर द्वारा दी गई ऑपरेशन की सलाह को मानने के बजाय उन्होंने माइक्राबायोटिक डाइट से अपनी बिमारी को नियंत्रित करना चाहा। मरने से पहले उन्हें इस बात का पछतावा भी रहा कि वक्त रहते उन्होंने डॉक्टर की सलाह क्यों नहीं मानी। इसाकसन ने जॉब्स के लगभग २० इंटरव्यू लिए और उसके बाद उनके परिचितों, दोस्तों और पारिवारिक सदस्यों से बात करके उनकी बॉयोग्राफी लिखी। एक बार वाल्टर ने जॉब्स से पूछा कि आपने ऑपरेशन क्यों नहीं करवाया तो उनका जवाब था कि मैं नहीं चाहता था कि मेरे शरीर को खोला जाए। अंत में जब जॉब्स का ऑपरेशन हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि कैंसर उनके पूरे शरीर में फैल चुका था। जीवन और मौत के बीच जब फासला कम हो रहा हो तो जीवन को जीने और समझने का नजरिया बदल जाता है। क्रिकेटर युवराज सिंह ने अपने हौसलों से न सिर्फ कैंसर से अपनी जंग में जीत हासिल की, बल्कि मैदान में वापसी भी करके दिखाया। अपनी बीमारी को छुपाकर रखने वाले अन्य सेलिब्रिटीज से इतर युवराज ने अपनी किताब च्द टेस्ट ऑफ माई लाइफ-फ्रॉम क्रिकेट टू कैंसर एंड बैकज् में अपने जीवन को खुलकर शेयर किया। अपनी किताब में वे लिखते हैं, च्एक खिलाड़ी के तौर पर हमें दर्द सहना सिखाया जाता है। हम शरीर का प्रशिक्षण और पोषण इस तरह करते हैं कि दिमाग तन की चिंता से मुक्त रह सके।ज् मेडियास्टिनल सेमिनोमा के लिए कीमोथेरेपी कराने के दौरान युवराज ने यह फैसला किया कि वे कीमो के दौरान अपने शरीर की प्रतिक्रिया को नियमित ट्विटर पर शेयर करेंगे। इसके लिए उन्होंने वीडियो डायरी भी बनाई। अपने बाल उडऩे, खाना न पचने संबंधी तमाम बातों और दवा के असर को लोगों से शेयर किया। तब से अब तक यूवीकेन ट्रस्ट के जरिए वे कैंसर पीडि़तों के लिए काम कर रहे हैं।
मॉडल से अभिनेत्री बनी लीसा रे को नूसरत फतेह अली खां के एलबम आफरीन आफरीन से प्रसिद्धि मिली। २००९ में उन्हें मल्टीपल मायलोमा से ग्रस्त पाया गया। दस महीने बाद ही उन्होंने खुद को इस बीमारी से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट द्वारा ठीक कर लिया। इस बीमारी से उबरने के बाद लीसा रे ने जेसोन देहनी से विवाह कर ये साबित किया कि कैंसर के मरीज भी सामान्य जीवन जी सकते हैं। आज वे अपने ब्लॉग द यलो डायरीज के माध्यम से कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए लिखती हैं। उनका कहना है कि इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों के लिए बीमारी पर होने वाले खर्च और आम लोगों के बीच जिंदगी की जददेजहद तो मुश्किल है ही साथ ही शारीरिक कमजोरी से जूझ पाना भी तकलीफदायक होता है। ऐसे में जो मरीज कैंसर के नाम से घबराकर जिंदगी से हार मान लेते हैं, उनके लिए मैं काम रही हूं। मैंने दिल्ली स्थित शिलादित्य सेनगुप्ता की संस्था के साथ काम करना शुरू किया जो कैंसर के मरीजों के मदद करते हैं। लीजा ने कॉकटेल डिजाइनर साड़ी लाइन की शुरूआत की है जिससे मिलने वाली सारी रकम वे कैंसर पेशेंट्स की मदद करने में देती हैं।

कैंसर के उपचार के दौरान मुझे लांस आर्मस्ट्रॉन्ग से काफी प्रेरणा मिलती थी। उन्हें भी वही कैंसर था, जो मुझे था। तब लगा कि मुझे भी किताब लिखना चाहिए जो दूसरे लोगों के लिए प्रेरक हो सकती है। शुरुआत में दूसरे सेलिब्रिटी की तरह मैं भी लोगों के सामने नहीं आना चाहता था, पर जब स्थिति को स्वीकार कर लिया, तब लगा कि मुझे ऐसा करना चाहिए, जो अन्य लोगों को अपनी लड़ाई लडऩे में मदद करे। तभी मैंने किताब लिखने का निर्णय लिया।
 च्द टेस्ट ऑफ माई लाइफ फ्रॉम क्रिकेट टू कैंसर एंड बैकज् का एक अंश