शनिवार, 22 सितंबर 2012


दिल से निभाई
दोस्ती
साहित्य समाज का दर्पण होता हे और इसलिए साहित्य के माध्यम से तमाम रिश्तों को साहित्यकार सदियों से बयां करते आए है। दोस्ती के इस खास दिन पर शहर के प्रसिद्ध साहित्यकार अपनी रचना के माध्यम से दोसती को बयां करने वाली उनकी रचनाओं के बारे में बता रहे हैं साथ ही उन्होंने खुद इस रिश्ते को गहराई से समझा है और आज भी वे तहे दिल से दोस्ती निभाना जानते हैं.....
बदलते वक्त के साथ दोस्ती शब्द के मायने भले ही कुछ लोगों के लिए बदल गए हो लेकिन ये विश्वास फिर भी कायम है कि दोस्ती का रिश्ता आज भी वही प्यार, समर्पण और अपनापन लिए हुए है जितना पहले था। दुनिया के सारे रिश्तों में एक सच्चे दोसत की दोसती का रिश्ता समय की धारा के साथ परिवर्तित नहीं बल्कि प्रगाढ़ हुआ है।
याद आई पहली कतार
इंदिरा दांगी
मैने एक साल पहले एक कहानी लिखी थी जिसका नाम था पहली कतार। इस कहानी में दिल्ली के एक युवक और एक महिला कवयित्री की मित्रता को दर्शाया गया है। इस कहानी के माध्यम से स्त्री और पुरुष के बीच दोस्ती की मार्यदाओं को भी व्यक्त किया है। इसमें कोई शक नहीं कि हम पाश्चात्य संस्कृति को पूरी तरह अपना चूके हैं लेकिन फिर भी जहां बात पुरुष और स्त्री के बीच दोस्ती की आती है तो वहां हमारे विचार सिर्फ उनके बीच प्रेम के बारे में ही सोचने लगते हैं जबकि सच तो यह है कि वे दोनों भी बहुूत अच्छे दोस्त हो सकते हैं।
मेरी दोस्ती
मेरी एक बचपन की सहेली है सीमा चौरसिया। जब भी कोई परेशानी आती है तो सबसे पहले मैं उसी को याद करती हूं। मुझे याद है मेरी डिलीवरी होने से पहले मैने उसे फोन किया और बताया कि डॉक्टर सर्जरी करने का कह रहे हें। जब मैं ऑपरेशन थियेटर से बाहर आई तोमैने देखा वह अपने छोटे छोटे बच्चों को घर छोड़कर मुझसे मिलने अस्पताल में आ गई। इस प्यार भरे रिश्ते को अपनाने के लिए ऐसा अपनापन ही तो चाहिए।
गरीब लड़की की कहानी
मालती जोशी
कइ्र साल पहले मैने एक  कहानी लिखी थी एक कर्ज एक अदायगी। ये कहानी एक गरीब आदिवासी लड़की की थी। उसकी फीस के पैसे चोरी हो जाते हैं तब सब बच्चे मिलकर चंदा करते हैं और उसक ी फीस जमा होती है। वो बच्ची ये बात याद रखती है इसलिए परीक्षा के समय होस्टल में फ्लू फैलने से जब दूसरी लड़कियां बीमार पड़ती है तो वह लड़की अपनी पढ़ाई छोड़कर सब लड़कियों की मदद करती है। कहीं न कहीं उस लड़की के मन में कर्ज उतारने की भावना इस हद तक होती है जो मदद के रूप में सामने आती है।
दोस्ती का जज्बा सारे जहां में मौजूद है। इस रिश्ते के बिना हमारा वजूद ही नहीं है। मैं तो इस उम्र में भी अपने जन्म दिन पर पुरानी सहेलियों को इकटठा करके उनके साथ वक्त बिताना पसंद करती हूं।
मुझे मेरी वो सहेली हमेशा याद आती है जिसकी पिछले साल मृत्यु हो गई। उसका नाम मनोरमा भ्रमो था। उसे अच्छे कपड़े और गहने पहनने का बहुत शौक था। वह अक्सर इस बात से नाराज रहती थी कि मैं इस तरह के शौक पर अधिक पैसा खर्च क्यों नहीं करती। उन दिनो मैं मुरैना के पास एक देहाती इलाके में थी। वह वहां आई और जब हम कहीं घूमने जाने लगे तो मैंने उसके बैग में से एक साड़ी निकालकर पहन ली। उसने साड़ी देखी तो कहने लगी मेरे जैसी साड़ी तुमने भी खरीद ली लेकिन ब्लाउज कितना पुराने फैशन का पहन रखा है। इसके बाद जब जीप से बाहर निकले तो जीप में रखी सुराही का पानी छलकने लगा। यह देखकर वह कहने लगी इसे यहां से हटाओ कही मेरी साउ़ी खराब हो गई तो? मैने कहा एक ही बात अगर वहां से हटाकर मैने मेरे पास रख ली तो ये भी तो तुम्हारी ही साड़ी है। जब उसे पूरी बात बताई तो वह खूब हंसी। उसके इस दुनिया के जाने के बाद भी ऐसी बहुत सारी यादें हमेशा याद आती है।

ज्ञान चतुर्वेदी
मेरे परम मित्र डा. अंजनी चौहान पर आधारित हास्य व्यंग्य लफ्ज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस रचना का शीर्षक है एक थे असु ओर एक थे बसु। अगले साल मेरे इसी मित्र को समर्पित मेरा उपन्यास पाठकों के समक्ष होगा। मैं उस दोसती में विशवास नहीं रखता जिसमें दिखावा हो। मैं ऐसी दोसती पसंद करता हूं जिसमें मेरे दोस्त मुझे मेरे गुणों के अलावा अवगुणों के साथ भी स्वीकार करें।
मेरे मित्र
मेरे मित्र डॉ. अंजनी चौहान और प्रभु जोशी को दोस्ती के लिए बनाए गए इस विशेष दिन पर जरूर याद करना चाहूगा। इन दोनों ने मुझे व्यंग्य के संस्कार सीखाएं। मैने इन्हीं से लेखन की कला को सीखा ओर समझा।
गोविंद मिश्र

1968 में मैने एक कहानी लिखी थी दोस्त जिसमें यह बताया गया था कि अपने मतलब के लिए लोग किस तरह से दोसती करते हैं ओर फिर काम पूरा हो जाने पर दोसत तोड़ देते हैं। मेरे 11 उपन्यासों में भी मैने जगह यह बताया है कि सच्चा दोसत वही है जो मुश्किल के वक्त आकर आपके साथ रहे। आज के संदर्भ में अगर बात करें तो इस रिश्ते को लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अपनाते हें और फिर भुल जातेहें। सच कहूं तो यह इतना खूबसूरत रिश्ता है जिसे अगर सच्चे दिल से निभाया जाए तो इसकी महक हमेशा बनी रहती है। अब लोगो में बर्दाश्त करने की हिम्मत नहीं रही इसलिए वे सिर्फ अच्छी बातें सुनना चाहते हैं और ऐसे में अगर कोई दोस्त उन्हं उनकी बुराईयों से अवगत कराए तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। मुझे मेरे दोसत वल्लभ सिद्धार्थ कीयाद आ गई जो महूरानी पुरा में रहता है। वो हमेशा मेरी खुशी में खुश होता रहा। उसे इस बात से बिल्कुल तकलीफ नहींहोती कि जिंदगी में मैने उससे ज्यादा शोहरत पाई। जिन दिनों मैं मुंबइ में था मेरे बेटे की स्वीमिंग पूल में गिरने से मौत हो गई थी। उन दिनों मेरे माता पिता को संभालने का जिम्मा उसी ने उठाया। वो चाहे पास रहे या दूर लेकिन जब भी मैं परेशान रहा उसने हमेशा मेरा साथ दिया। इसमें कोइ शक नहीं कि उसने दोस्ती दिल से निभाई ।













किस्मत के धनी
घरजमाई


कुछ लोगों को दुनिया भर के ऐशो-आराम अपने परिवार से विरासत में मिले होते हैं तो कुछ वो भी है जिन्हें चांदी का चम्मच चाहे विरासत में न मिला हो लेकिन देश के जाने-माने उद्योगपतियों की बेटियों से शादी करने के बाद जो दौलत और शोहरत इन्हें हासिल हुई है, उसके बल पर उन्हें किस्मत के धनी घर जमाई कहा जाता है। ये उनकी किस्मत ही है जिसके चलते कहीं वे कंपनी के मालिक तो कहीं करोड़ों-अरबों के शेयर होल्डर्स के रूप में एश करते नजर आते हैं......

अगर हम ये बात करें कि दिल्ली में शीर्ष पर रहने वाला घर जमाई की बात करें तो टिमी सामा का नाम आता है। टिमी ने डीएलएफ ग्रुप की उत्तराधिकारी पिया सिंह से शादी की है। शादी से पहले टिमी एक्सपोर्ट के नाम से अपने परिवार का बिजनेस संभालते थे। सन् 2000 में टिमी ने लाइफ स्टाइल स्टोर 'कोमा होमÓ लांच किया। टिमी ने 2002 में देश के अलग-अलग शहरों में स्टोर लांच करने की योजना बनाई लेकिन उनकी ये योजना सफल नहीं हुई। यहां तक कि जो स्टोर उन दिनों शुरू हुए थे, वे भी जल्दी ही बंद हो गए। इस प्रोजेक्ट के असफल हो जाने के बाद टिमी ने अपने ससुर के डीएलएफ ब्रांड में एमडी के पद पर कार्य करना प्रारंभ किया। शादी से पहले टिमी ग्रीन पार्क स्थित अपने घर में रहते थे लेकिन शादी के बाद वे पिया के साथ औरंगजेब रोड़ स्थित एक आलीशान मकान में रहने लगे।
ये किस्मत का ही खेल है कि शादी से पहले जो लड़के अच्छी नौकरी पाने के लायक भी नहीं होते वही अरबपतियों की बेटियों से शादी के बाद दोनों हाथों में लड्डू लिए घुमते हैं। ऐसे ही नामों में शामिल है शिखर मल्होत्रा का नाम। शिखर ने टेक बिलियोनेयर शिव नादर की बेटी रोशनी नादर से विवाह किया। उनके पिता शिव की संपत्ति 5 बिलियन डॉलर है। शादी के पहले शिखर के पास होंडा कारों की डिस्ट्रीब्यूटरशिप थी। रोशनी से शादी के बाद शिखर शिव नादर स्कूल के सीईओ है। इस स्कूल का प्रोजेक्ट शिव नादर की मुख्य योजना में से एक है। रोशनी के करीबी मित्रों का कहना है कि शिखर के साथ वे पिछले साल दिल्ली की पॉश कॉलोनी में रहने लगी। इस जगह के लिए रोशनी को उनके पिता ने 100 करोड़ दिए थे। पिता की संपत्ति का फायदा जितना उनकी बेटी को मिलता है उतना ही उस जमाई को भी जो बेटी के सुख-दुख का साथी होता है। ऐसे जमाई दुख में चाहे बेटी का साथ न दे लेकिन उसकी संपत्ति का पूरा सुख लेने से वे नहीं चूकते। तभी तो हमारे देश के साथ विदेशों में भी ऐसे कई जमाई बाबू है जो ससुर की संपत्ति पर घात लगाए बैठे हैं। इन्हीं में एक नाम अर्जुन प्रसाद का है। अमेरिका में बैंकर रहे अर्जुन ने प्रसिद्ध मीट एक्सपोर्टर मोईन कुरैशी की बेटी पर्निया से से शादी की। मोईन ने अपनी बेटी को उपहार स्वरूप अमान के भव्य सर्विस अपार्टमेंट में रहने के लिए घर दिया। मोईन के बिजनेस को संभालने की जिम्मेदारी अब अर्जुन के कंधों पर है। अर्जुन की पत्नी पर्निया बॉलीवुड की फिल्मों में अभिनेत्री बनने का सपना देखती थी लेकिन फिलहाल इस सपने को पूरा न होते हुए देखकर वे डिजाइनर वियर लांच कर रही हैं। इन घर जमाईयों की जमात में ऐसे नामों की भी कमी नहीं जिन्होंने लंबे समय तक ससुर के पैसों पर ऐश किया और फिर बेटी को छोड़कर खुद अपना राज स्थापित कर आज शान से जी रहे हैं। अंतर्राष्टï्रीय बिजनेस की दुनिया में इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता ने ऋषि सुनाक से शादी की। ऋषि के साथ अक्षता की मुलाकात स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान हुई। गौरतलब है कि अक्षता इंफोसिस में 1.41 प्रतिशत की शेयर होल्डर हैं। वह 1,600 करोड़ की मालिक हैं जबकि ऋषि एक साधारण परिवार से संबंध रखते हैं। अक्षता को ग्लोबल सिटीजन के तौर पर भी जाना जाता है। वे महिलाओं के उत्थान की दिशा में भी प्रयासरत हैं। ऋषि ने बिजनेस प्रशासन की डिग्री हार्वर्ड और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से प्राप्त की है। बिजनेस वल्र्ड में एक बड़ा बदलाव इस बात से भी दिखाई देने लगा है कि पहले इस क्षेत्र में लड़कों का वर्चस्व अधिक था लेकिन अब विदेशों से उच्च शिक्षा प्राप्त कर लड़कियां भी पिता के बिजनेस में महती भूमिका अदा कर रही हैं। निश्चित रूप से उनकी इस भूमिका का लाभ पति को भी होता है। फ्युचर ग्रुप के सीईओ किशोर बियानी की बेटी आश्निी बियानी ने अमेरिका में केलॉग ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से डिग्री प्राप्त की और उसके बाद पिता के बिजनेस की कमान संभाली। उनकी पहचान फ्युचर ग्रुप के 'फ्युचरÓ के  तौर पर की जाती है। आश्निी के पिता किशोर के अनुसार उच्च बिजनेस वर्ग की बड़ी श्रंृखला हमारे देश में बनती जा रही है। इस कड़ी से जुडऩे वालो लोगों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और उसी गति से बढ़ रहे हैं उनमें परस्पर शादी-ब्याह के अवसर भी। इस वर्ग में अपनी सुविधा के अनुसार लोग संबंधों का ताना- बाना बुनने में लगे रहते हैं। यहां मौजूद लोग एक-दूसरे की पावर पहचाते हैं और उसी आधार पर संबंधों का बनना तय होता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो पैसों की पॉवर शादी-ब्याह तय करने में भी काम आती है। कि शोर की बेटी आश्निी बियानी ने वेदांत ग्रुप के हेड अनिल अग्रवाल के भतीजे विराज डीडवानिया से विवाह किया। विराज और आश्निी दोनों अपने परिवार के बिजनेस को विवाह के बाद भी पूरी तरह संभाल रहे हैं। फर्क बस इतना है कि कभी अगर विराज अपने बिजनेस में डावांडोल होने लगे तो आश्निी के बिजनेस एंपायर में हाथ आजमा सकता है या आश्निी चाहे तो अपने बिजनेस के अलावा विराज के बिजनेस में अपने अनुभव के आधार पर कुछ नया कर सकती है। इसे कहते हैं दोनों हाथों में लड्डïूू होना। यहां प्यार नहीं पैसा बड़ी चीज है।


आज के रॉकस्टार

वे जिन्हें हर पल को अपने तरीके से जीने का खास अंदाज देना पसंद है, बाजार में नित नई टेक्रॉलॉजी के साथ तामलेम बिठाए रखना उन्हें खूब भाता है। खुद को अपडेट रखने की वे कोई भी कोशिश बाकी नहीं रखते।  वे है आज के रॉकस्टार जिन्हें युवा कहकर देश की शान यूं ही नही माना जाता। उनके लिए बचपन में पढ़ाई जाने वाली पूरी अल्फाबेट के मायने बदल गए है। अब वो ऐसी अल्फाबेट पर अमल करना चाहते हैं जिसे बनाया भी खुद उन्होंने अपने लिए है। ये अल्फाबेट जनरेशन एक्स के नए फंडे कुछ इस तरह बयां करती है....

ए ---एप्पल--- यूथ के लिए अब ए फॉर एप्पल नहीं बल्कि ए फॉर आईपॉड है। ये वो एपल है जिसने गैजेट की दुनिया में धूम मचा दी है। आइपॉड से लेकर आइपैड तक स्टीव जॉब्स ने
जिस तकनीकी को यूथ से मिलवाया है, उसका वे भरपूर एंज्वॉय करते हैं।

बी-ब्लक्कबेरी--गैजेट की दुनिया में भारी एक्सेसरीज से दूर उनके लिए बना है ब्लैकबेरी। ये स्लीक स्मार्टफोन जनरेशन एक्स की लाजवाब पसंद की पहचान है। कॉलेज जाने वाले यहां तक की स्कूल गोइंग किड्स भी इसमें ई मेल आई का उपयोग करने से पहले ब्लैक बेरी मेसेंजर पिन को ऑपरेट बखूबी जानते हैं।
सी---कूल---कूल रहने के लिए यूथ को चाहिए एक जोड़ी ब्रांडेड शुज। ऐसे शुज जो सुविधाजनक होने के साथ ही उन्हें ब्रांडेड भी साबित करें। कलर कोई भी हो चलेगा जैसे यलो, ग्रीन, प्रिंटेड, चैक्स वाला या उल्टी सीधी कैसी भी डिजाइनदार।
डी-ड्रेन पाइप पेंट्स-बैगी जींस का यूथ से कोई लेना देना नहीं है। ये वक्त है फिटेड जींस का, फिगर अगर वो स्किन टाइट हो तो क्या कहने।
डी से बना डार्क नाइट बेटमेन का नया अवतार है। जनरेशन एक्स को इसके पात्रों से अपनों जैसा प्यार है।
इ-एनर्जी ड्रिंक-वे खूब पढ़ते हैं, खूब खेलते हैं और पार्टी वो भी खूब करते हैं। पार्टी प्लेयर्स इन यूथ को एनर्जी ड्रिंक भी ऐसे चाहिए जिससे उनके स्टेटस का पता चल सकें। लड़कियों पर रौब जमाने के लिए इन ड्रिंक की सिप बार-बार लेने से वे इंकार नहीं करते। ई से ही ई बुक भी हो सकता है। जब यूथ के बीच हर चीज वर्चुअल हो रही है तो फिर बार बार किताबों के पन्ने पलटने में वे दिलचस्पी नहीं रखते। 
एफ--फेसबुक --ई मेल सिर्फ काम के लिए है। जब बात दोस्तों के  बीच हो तो वे इस्तेमाल करते हैं फेसबुक का। फेसबुक पर चेटिंग के लिए वे रात भर जगते है और तो और कॉलेज से बंक मारकर भी अपने इस शौक को पूरा करते हैं।
जी--गूगल--आपके हर सवाल का जवाब गूगल के पास है। फिर बात चाहे किसी साधारण से सवालों के जवाब का हो या मुश्किल से मुश्किल जवाबों को ढूंढने का।
एच-हुक्काह
एक ऐसी जगह जहां आपको एरोमेटिक तंबाकू बाउल में रखा हुआ नहीं बल्कि पाइप में भरा हुआ मिलेगा। इस मौके पर जहां चार यार मिले नहीं कि पहुंच गए शहर के हुक्का लाउंज में। एच से बना हैरी पोटेर। यूथ अपने इस आइकन के बारे में हर बात जानना चाहते हैं। वो जो हैरी पोटर बनकर दर्शकों के सामने आया और सात किताबों से लेकर आठ फिल्मों में छाया गया।
आई--इंटर्नशिप --उन्हें सिर्फ अपनी पढ़ाई पूरी करने की ही जल्दी नहीं है बल्कि वे इंटर्नशिप के बारे में भी पूरी जानकारी रखते हैं। वे इस विषय मे भी अपडेट रहना चाहते हैं कि डिग्री लेने के बाद इंटर्नशिप कहां से और कैसे करेंगे। जानकारियों का खजाना उनके दिमाग के बक्से में बंद रहता है।
जे-जस्ट डायल--किसी रेस्टारेंट, सर्विस सेंटर या एजुकेशन सेंटर के बारे में जानने के लिए उन्हें भारी-भरकम डायरेक्टरी देखने की जरूरत नहीं पड़ती। वे बस इंटरनेट पर क्लिक करते हैं और नंबर फौरन पता चला जाता है। उन्हें ऐसे ही स्मार्ट नहीं कहा जाता।
के--कपूर और खान --बॉलीवुड के खान(शाहरुख, सलमान और आमिर) का जलवा यूथ के सिर चढ़ कर बोलता है लेकिन इनके साथ ही कपूर जैसे रणवीर, शाहिद, सोनम और करीना के भी ये दीवाने हैं। और तो और रणबीर क ी बारात में जाने की अरमान ये कब से अपने दिल में दबाए बैठे हैं।
-एल--लैपटॉप--डेस्कटॉप का जमाना अब इनके लिए पुराना हो गया। अब वक्त है लैपटॉप का। पोर्टेबिलिटी इस जनरेशन की जरूरत है जिसे पूरा करना ये बखूबी जानते हैं।
एम-मॉल और मल्टीप्लेक्स-एक ही जगह अगर एक्सेसरीज, ब्रांडेड कपड़े, सेलून,टॉकिज और तो और कॉफी हाउस से लेकर लजीज खाने का मजा मिले तो कही और जाने की क्या जरूरत है। यूथ की इन सारी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही शहर में नए नए मॉल और मल्टीप्लेक्स खुलते जा रह हे।
एन-नाइट आउल-जल्दी सोना और जल्दी उठना...ये शब्द उनके लिए बने ही नहीं है। वे रात को देर तक जगने और सुबह देर तक सोने में यकीन रखते हैं। फिर अगर उन्हें पढाई से छुट्टी मिल जाए तो रात भर पाटी और दोस्तों के साथ मस्ती के सिवा और चाहिए भी क्या।
ओ-ऑन द गो-उनके आध से जयादा काम रास्ते में ही पूरे हो जो है। आते जाते स्मार्टफोन की मदद स वे मेल चेक करना, नई योजनाएं बनाना या गर्लफ्रेंड के साथ वक्त लंबी बातचीत जैसे काम ऑन द गो ही पूरे करते हैं।
पी-पब्लिक डिस्प्ले-उन्हें अपने हर काम को शानदार तरीके से बताना अच्छा लगता है। उन्होंने अपने पड़ोसियों के साथ होली कैसे मनाई या अपने प्यारे डॉगी को वे कहां घुमाना पसंद करते, इस तरह की सारी बातें
फेसबुक पर फोटो के साथ शेयर करे वे अपनी शान बताने में कोई हर्ज नहीं समझते।
क्यू-क्वीन लाइक-यंग गल्र्स के लिए हर दिन क्रिव की तरह बना है। वे कॉलेज जाना भी इसी अंदाज में पसंद करती है। जब पार्टी या अपने किसी दोस्त के साथ डेटिंग पर जाना हो तो उनका शाही अंदाज देखते ही बनता है।
आर-रियलिटी टीवी-देशी और विदेशी सारे रियलिटी टीवी शोज उन्हें खूब भाते हैं। इन शो में अपनी किस्मत आजमाना या अपने मनपसंद यूथ को इन शोज के माध्यम से देखना सब यूथ की पहली पसंद है।
एस-स्माइल-अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना वे हरदम पसंद नहीं करते। अगर किसी बात को लेकर वे नाराज है तो उनकी नाराजगी फौरन चेहरे पर जाहिर हो जाती है। अगर वे खुश हे तो हंसता मुस्कुराता चेहरा चमकने भी जल्दी ही लग जाता है।
टी-टी 20
क्रिकेट के इस मैच को देखना उन्हें खूब भाता है। क्रिकेट के सितारे उनके दिल मे बसते हैं। इन्हें आइकन मानने वाले यूथ अपनी हर स्टाइल में धोनी या सचिन के साथ विराट और सहवाग की नकल करते देखे जाते हैं।
यू-यूबेर-इस शब्द ने सुपर को यूथ की डिक्षनरी से अलग हटा दिया है। अब उन्हें सुपर हॉट  कहलाना पसंद नहीं बल्कि वे उबेर कूल या उबेर हॉट जेसे शब्दों का प्रयोग करने लगे हैँ।
वी-वीलेन-ऐसे युवाओं की भी कमी नहीं जो सिर्फ बॉलीवुड के हीरो की ही नहीं बल्कि विलेन की नकल भी खूब करते हैं। इस चाहत में उन्हीं की तरह बाल कटवाना या कानों में बाली पहनना, उन्हें सब मंजूर है।
डब्ल्यू-वीकिपीडिया-ज्ञान का खजाना उनके पास वीकिपीडिया की मदद से ही पहुचा है। किसी भी मुददे पर दोसतों के बीच छाए  रहने के लिए वे वीकिपीडिया की मदद से अपनी जानकारियों को हमेशा अपडेट रखते हैँ।
एक्स-एक्स बॉक्स-जनरेशन एक्स के लिए बना है एक्स बॉक्स  जिसकी मदद से वे सारे आउटडोर गेमस का मजा घर बैठे कंप्यूटर पर ही ले लेते हैं।
वाय-यू टयूब-आस्कर अवार्ड अगर आप देखना भुल गए हो तो टू टयूब पर जाइए और देखिए किसकी किस्मत का सितारा रहा  बुलंदी पर। इतना ही नहीं दुनिया में हो रही घटनाओं की सारी जानकारी यूथ को इसकी माध्यम से मिलती रहती है।
जेड-जिंगर-केएफसी का जिंगर बर्गर जितना यूथ को अच्छा लगता है उतना शायद ही किसी को भाता है। जंक फूड के बारे में कोई चाहे कितना ही बुरा भला कहे लेकिन इसकी दीवानगी यूथ पर हमेशा हावी रही है।

















































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मेरा पैशन मोटर स्पोट्र्स
गौरी गुप्ता


जिंदगी में जीने के लिए एक मकसद बहुत जरूरी है। जब कोई मकसद न रहे तो जिंदगी का मजा कम होने लगता है। ये कहना है श्रीनगर से शुरू होने वाली थर्ड मुगल रैली 2012 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाली गौरी गुप्ता का। गौरी ने विभिन्न मोटर स्पोट्र्स में 19 घंटे और 640 किमी लगातार गाड़ी चलाई है। संगिनी के इस अंक में एक मुलाकात गौरी गुप्ता के साथ....

मुझे खुशी हो
जब मेरे बच्चे बड़े होने लगे तो इस बात का अहसास हुआ कि मुझे भी कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे महिलाओं को प्रोत्साहन मिले और मुझे खुशी हो। एक बार मैंने अपनी सहेली के साथ मोटर स्पोट्र्स रैली देखी। इस खेल को देखने के बाद मुझे ये लगा कि जब अन्य महिलाएं इस खेल में विजेता बन सकती हैं तो मैं क्यों नहीं। पहली बार 2010 में दिल्ली में आयोजित होनेे वाली मोटर स्पोट्र्स रैली में मेरा तीसरा स्थान रहा।

मेरा सपना है
मेरा सपना है कि इस वर्ष अक्टूबर से प्रारंभ होने वाली रेड्डïी हिमालय डेकोर में प्रथम स्थान प्राप्त करूं। इससे पहले भी मैं इस प्रतियोगिता का हिस्सा बनी थी लेकिन मेरी गाड़ी के टायर पंचर हो जाने की वजह से मैं हार गई।

योग्य नहीं समझा जाता
मेरी प्रेरणा मैं अपनी मां ज्योत्स्ना कंवर और पिताजी एम पी कंवर को मानती हूं। उन्होंने मुझे इस बात का अहसास दिलाया कि एक औरत को अपना अस्तित्व बनाने के लिए किसी आदमी की जरूरत नहीं होती। अगर वो एक बच्चे को जन्म दे सकती है तो उस हर काम को करने की शक्ति भी रखती है जिसके योग्य उसे नहीं समझा जाता।

खेल में आगे आएं
मुझे इस बात का अफसोस है कि पूरे मध्यप्रदेश में मोटर स्पोट्र्स में मेरे अलावा कोई प्रतिभागी नहीं है। मैं चाहती हूं कि अधिक से अधिक लड़कियां इस खेल में आगे आएं। हम में जो एनर्जी है उसका पूरा उपयोग हमें जरूर करना चाहिए। मुझे लगता है मेरे अंदर जो एनर्जी है वो सड़क पर गाड़ी चलाते समय निकलती है।

जीत कर जाना है
जब मैं मोटर स्पोट्र्स का हिस्सा बनती हूंू तो मेरे दिमाग में सिर्फ एक बात रहती है कि मुझे अपने बच्चों की खातिर यहां से जीत कर जाना है। जब वे मुझे ट्राफी के साथ घर में प्रवेश करते हुए देखते हैं तो उनके चेहरे पर जो खुशी होती है उसे देखने के लिए मैं कितनी भी मेहनत करने को तैयार रहती हूं। मैं चाहती हूं कि मेरे पेरेंट्स की तरह अन्य पेरेंट्स भी अपनी लड़कियों पर विश्वास दिखाएं और ये लड़कों का खेल है, ऐसा समझना छोड़कर अपनी लड़कियों को आगे बढऩे का मौका दें।

सुरक्षा करना जानती हैं
कच्ची रोड पर गाड़ी चलाते समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। मुझे लगता है कि लड़कियों से अच्छा ड्राइवर कोई नहीं हो सकता। वे अपनी सुरक्षा करना जानती हैं। जिस आत्मविश्वास के बल पर हम जीत सकते हैं वो उनमें हमेशा रहता है। यही बातें हर खेल में विजेता बनने के लिए जरूरी भी होती हैं।

लगन की जरूरत है
मैं चाहती हंू कि एक बार राष्टï्रीय मोटर स्पोट्र्स रैली में लड़कों को हराकर आल राउंड फस्र्ट आऊं। उन्हें ये दिखा सकूं कि हम भी ताकत में किसी से कम नहीं हैं। फिर इसमें कोई शक नहीं कि किसी भी काम में सफलता के लिए सिर्फ लगन की जरूरत है। मैंने लगातार 19 घंटे और 640 किमी ड्राइविंग की है।

वे सफल रहीं
मैं अपना आदर्श ओपेरा विन्फ्रे को मानती हूं। उन्होंने उस समय अपने काम की शुरुआत की जब नीग्रो को हीनभावना की दृष्टिï से देखा जाता था। ऐसे समय भी वे खुद को साबित करने में सफल रही हैं। आज उनका नाम सारी दुनिया में सम्मान के साथ लिया जाता है।


यहां दिखाया अपना दम
- थार मोटर स्पोट्र्स रॉयल राजस्थान रैली 2012।
- तीसरी मुगल रैली कोप द डेम्स 2012।
- स्जोबा थंडर बोल्ड रैली में महिला प्रतिभागियों में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
- टाटा मोटर्स ब्लेज डि राजस्थान 2012 में महिला टीम में प्रथम स्थान।
- जे के मानसून राइड 2010 आल वूमन टीम में सेकंड रनर अप।
साहित्य में गुणवत्ता कम हो रही है
गोविंद मिश्र


वरिष्ठï साहित्यकार गोविंद मिश्र को 2008 में उनके उपन्यास कोहरे में कैद के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद पुरस्कार और व्यास सम्मान के अलावा सुब्रह्मïïïण्यम भारती सम्मान प्राप्त है। उनका लिखने का सफर अब भी जारी है। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश....

आप हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठिïत लेखक हैं। आपने अब तक 10 उपन्यास को शामिल करते हुए 50 पुस्तकें लिखी हैं। उपन्यास, कहानियां, यात्रा, कविताएं, निबंध लिखने के बाद क्या आप अब भी कुछ लिख रहे हैं?
मैंने एक बार कहा था कि मेरे लिए लिखना सांस लेने जैसा है। इस बात पर मुझे ताज्जुब होता है कि बिना लिखे कोई लेखक कैसे रह सकता है। लिखने का मतलब सिर्फ कागज पर उतारना नहीं है, बल्कि लिखने के क्रम में बने रहना है। फिलहाल मैंने अपना 11वां उपन्यास प्रकाशन को दिया है जिसका नाम है अरन्य तंत्र।
उपन्यास या कहानियों से ही क्या आपके लेखन की शुरुआत हुई थी?
जब मैं इंटर में पढ़ता था तो मैंने दो-तीन कहानियां लिखीं। उसके बाद जब मैं नौकरी करने लगा तो एक मित्र के यहां हफ्ते में एक दिन गोष्ठीï होती थी, जिसमें सभी मित्रों द्वारा जो भी लिखा जाता था वो सुनने को मिलता था। वहां मैंने कुछ गीत और कविताएं सुनाईं। पीछे मुड़कर देखता हूं तो ये समय वह था जब मेरी सृजनात्मकता माध्यम तलाश रही थी। इस दौर में कहानियों का लिखा जाना इस बात का प्रमाण है कि मेरी सृजनात्मकता की विधा कहानी या उपन्यास ही थी।
लेकिन इन सभी विधाओं में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
मुझे सबसे ज्यादा संतोष उपन्यास लिखने में उलझे रहने से मिलता है, क्योंकि वहां आप जीवन को उसके पूरे फैलाव, पेचिदगियों और गहराई से पकड़ते हुए चलते हैं। इस मायने में हर उपन्यास लेखन एक चुनौती के रूप में हमारे सामने होता है।
आपके उपन्यासों में एक ओर घोर यथार्थपरक उपन्यास तो दूसरी ओर कोमल उपन्यास शामिल है। ऐसा माना जाता है कि ये दो अलग-अलग लेखन की दिशाएं हैं। आप इन दोनों को एक साथ कैसे साधते हैं?
जीवन में इस तरह का वर्गीकरण होता है क्योंकि ये यथार्थ है या सिर्फ सौंदर्यï? कभी-कभी घोर यथार्थ में भी सौंदर्य छलक जाता है और सुंदरता का संसार तो यथार्थ से टकराता ही है। मैं यह सोचकर नहीं चलता कि अब मुझे यथार्थपरक लिखना है या दूसरी तरह का। जिस तरह के जीवन से उस समय टकराना हुआ और जिसने लिखने के लिए उकसाया उसी को पकडऩे के लिए चल दिया।
क्या आप ये मानते हैं कि साहित्य में राजनीति बढ़ती जा रही है?
ये सही है। कोई भी क्षेत्र आज राजनीति से
अछूता नहीं रह गया है। ये आचरण आज हमारे हर तीसरे व्यक्ति में देखा जा रहा है तो फिर साहित्य कैसे बचा रह सकता है। प्रदेशों में जिस विचारधारा वाली पार्टी की सरकार होती है, वे अपने चापलूसों को साहित्यकार बनाकर पेश करते हैं। साहित्य में जो पुराने लेखक हैं उनमें से कुछ अपने चापलूसों की सेना खड़ी कर वाहवाही कराते हैं। प्रकाशक अपने सीमित स्वार्थों के लिए नए लेखकों को प्रतिभावान बनाकर प्रस्तुत करते हैं और उन्हें लाखों के पुरस्कार देते हैं। साहित्य में स्तरता और गुणवत्ता की बातें कम होती जा रही हैं।
डर के आगे जीत है

रेणु महाजन- विक्रम अवार्ड प्राप्त फेंसर
इस साल मध्यप्रदेश से जिन 10 खिलाडिय़ों को विक्रम अवार्ड से सम्मानित किया गया, उनमें रेणु महाजन का नाम भी शामिल है। रेणु की मंजिल विक्रम अवार्ड नहीं, बल्कि इंटरनेशनल गेम्स में भारत को मेडल दिलाना है। फिलहाल वे 2016 में संपन्न होने वाली एशियन चैंपियनशिप की तैयारी कर रही हैं।

बहुत रुचि थी
बचपन में मैं बास्केटबाल खेलती थी। उन दिनों अलग-अलग खेलों को खेलने और खिलाडिय़ों को देखने में मेरी बहुत रुचि थी। तब मेरे भईया ने मुझे समझाया कि तुम टी टी नगर स्टेडियम में जाकर सीखो। जब मैंने स्टेडियम में सभी खेलों के बारे में जाना तो तलवारबाजी एक ऐसा खेल लगा जिसे खेलने में लड़कियां कम रुचि लेती हैं और मैंने इसी खेल को अपने लिए चुन लिया।
शुरुआती दौर में
मैंने जब इस खेल को खेलना शुरू किया था तो उस समय मैं 10वीं कक्षा में पढ़ती थी। सीखने के दौरान ही पहली बार मैंने अमृतसर में सीनियर नेशनल प्रतिस्पर्धा में भाग लिया था।

मां ने किया प्रोत्साहित
कई घरों में आज भी लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव किया जाता है लेकिन मेरी खुशनसीबी है कि मेरी मां और घर के अन्य सदस्यों ने हमेशा मुझे और मेरी बहन को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित किया। मेरी सफलता में सबसे बड़ा हाथ मेरी मां प्रमिला महाजन का है। उन्होंने कभी हमें घर के काम करने के लिए नहीं कहा।

खिलाडिय़ों को रियायत मिले
जब शहर से बाहर प्रतियोगिताओं के सिलसिले में जाना पड़ता है तो उसका असर निश्चित रूप से हमारी पढ़ाई और कॉलेज में उपस्थिति पर पड़ता है। यहां मैं स्कूल और कॉलेज प्रशासन से कहना चाहूंगी कि अगर एक खिलाड़ी देश के लिए जीतने का जज्बा रखता है और कड़ी मेहनत के लिए हरदम तैयार रहता है तो प्रशासन को भी हमें रियायत देनी चाहिए। फिर भी कई बार स्कूल और कॉलेजों में कई तरह की परेशानियों का सामना खिलाडिय़ों को करना पड़ता है।

तलवारबाजी के दौरान जब भी कभी मेरा आत्मविश्वास कम होने लगता है या किसी प्रतियोगिता में जीत नहीं पाते तो मेरे कोच भूपेंद्र सिंह चौहान हमेशा प्रोत्साहित करते हैं। वे समझाते हैं कि अगर आज हार गए तो कोई बात नहीं अब अगली प्रतियोगिता के लिए अधिक मेहनत पर ध्यान दो।

लड़कियां आगे आएं
कई लड़कियां इस क्षेत्र में इस वजह से नहीं आना चाहती क्योंकि उन्हें लगता है कि यह खेल लड़कियों के लिए नहीं है। इसमें चोट लग जाने का अधिक डर रहता है, जबकि सच तो यह है कि हर खेल में डर बना रहता है लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि डर के आगे जीत है।

देश का नाम रोशन करना है
मुझे तलवारबाजी के अलावा बास्केटबाल खेलना अच्छा लगता है। इस खेल की सबसे अच्छी बात यह है कि पूरी टीम के साथ मिलकर खेलने का मौका मिलता है। टीम भावना को समझने का यह बेहतर माध्यम है। फिलहाल मैं 3 घंटे सुबह और 3 घंटे शाम को प्रेक्टिस करती हूं। मेरा लक्ष्य 2016 में एशियन चैपिंयनशिप जीतकर देश का नाम रोशन करना है।

अलग पहचान बना पाएंगे
जो युवा तलवारबाजी में अपना हुनर दिखाना चाहते हैं उनसे कहना चाहूंगी कि धैर्य के साथ खेलें। पूरे समर्पण के साथ मेहनत करें तो सफलता अवश्य मिलेगी। इसके अलावा ऐसे खेलों को अपने लिए चुनें जिसमें सोलो खेलने का मौका मिलेगा। इससे आप अपनी अलग पहचान बना पाएंगे।
प्रस्तुति-शाहीन अंसारी