दिल से निभाई
दोस्ती
साहित्य समाज का दर्पण होता हे और इसलिए साहित्य के माध्यम से तमाम रिश्तों को साहित्यकार सदियों से बयां करते आए है। दोस्ती के इस खास दिन पर शहर के प्रसिद्ध साहित्यकार अपनी रचना के माध्यम से दोसती को बयां करने वाली उनकी रचनाओं के बारे में बता रहे हैं साथ ही उन्होंने खुद इस रिश्ते को गहराई से समझा है और आज भी वे तहे दिल से दोस्ती निभाना जानते हैं.....बदलते वक्त के साथ दोस्ती शब्द के मायने भले ही कुछ लोगों के लिए बदल गए हो लेकिन ये विश्वास फिर भी कायम है कि दोस्ती का रिश्ता आज भी वही प्यार, समर्पण और अपनापन लिए हुए है जितना पहले था। दुनिया के सारे रिश्तों में एक सच्चे दोसत की दोसती का रिश्ता समय की धारा के साथ परिवर्तित नहीं बल्कि प्रगाढ़ हुआ है।
याद आई पहली कतार
इंदिरा दांगी मैने एक साल पहले एक कहानी लिखी थी जिसका नाम था पहली कतार। इस कहानी में दिल्ली के एक युवक और एक महिला कवयित्री की मित्रता को दर्शाया गया है। इस कहानी के माध्यम से स्त्री और पुरुष के बीच दोस्ती की मार्यदाओं को भी व्यक्त किया है। इसमें कोई शक नहीं कि हम पाश्चात्य संस्कृति को पूरी तरह अपना चूके हैं लेकिन फिर भी जहां बात पुरुष और स्त्री के बीच दोस्ती की आती है तो वहां हमारे विचार सिर्फ उनके बीच प्रेम के बारे में ही सोचने लगते हैं जबकि सच तो यह है कि वे दोनों भी बहुूत अच्छे दोस्त हो सकते हैं।
मेरी दोस्ती
मेरी एक बचपन की सहेली है सीमा चौरसिया। जब भी कोई परेशानी आती है तो सबसे पहले मैं उसी को याद करती हूं। मुझे याद है मेरी डिलीवरी होने से पहले मैने उसे फोन किया और बताया कि डॉक्टर सर्जरी करने का कह रहे हें। जब मैं ऑपरेशन थियेटर से बाहर आई तोमैने देखा वह अपने छोटे छोटे बच्चों को घर छोड़कर मुझसे मिलने अस्पताल में आ गई। इस प्यार भरे रिश्ते को अपनाने के लिए ऐसा अपनापन ही तो चाहिए।
गरीब लड़की की कहानी
मालती जोशी कइ्र साल पहले मैने एक कहानी लिखी थी एक कर्ज एक अदायगी। ये कहानी एक गरीब आदिवासी लड़की की थी। उसकी फीस के पैसे चोरी हो जाते हैं तब सब बच्चे मिलकर चंदा करते हैं और उसक ी फीस जमा होती है। वो बच्ची ये बात याद रखती है इसलिए परीक्षा के समय होस्टल में फ्लू फैलने से जब दूसरी लड़कियां बीमार पड़ती है तो वह लड़की अपनी पढ़ाई छोड़कर सब लड़कियों की मदद करती है। कहीं न कहीं उस लड़की के मन में कर्ज उतारने की भावना इस हद तक होती है जो मदद के रूप में सामने आती है।
दोस्ती का जज्बा सारे जहां में मौजूद है। इस रिश्ते के बिना हमारा वजूद ही नहीं है। मैं तो इस उम्र में भी अपने जन्म दिन पर पुरानी सहेलियों को इकटठा करके उनके साथ वक्त बिताना पसंद करती हूं।
मुझे मेरी वो सहेली हमेशा याद आती है जिसकी पिछले साल मृत्यु हो गई। उसका नाम मनोरमा भ्रमो था। उसे अच्छे कपड़े और गहने पहनने का बहुत शौक था। वह अक्सर इस बात से नाराज रहती थी कि मैं इस तरह के शौक पर अधिक पैसा खर्च क्यों नहीं करती। उन दिनो मैं मुरैना के पास एक देहाती इलाके में थी। वह वहां आई और जब हम कहीं घूमने जाने लगे तो मैंने उसके बैग में से एक साड़ी निकालकर पहन ली। उसने साड़ी देखी तो कहने लगी मेरे जैसी साड़ी तुमने भी खरीद ली लेकिन ब्लाउज कितना पुराने फैशन का पहन रखा है। इसके बाद जब जीप से बाहर निकले तो जीप में रखी सुराही का पानी छलकने लगा। यह देखकर वह कहने लगी इसे यहां से हटाओ कही मेरी साउ़ी खराब हो गई तो? मैने कहा एक ही बात अगर वहां से हटाकर मैने मेरे पास रख ली तो ये भी तो तुम्हारी ही साड़ी है। जब उसे पूरी बात बताई तो वह खूब हंसी। उसके इस दुनिया के जाने के बाद भी ऐसी बहुत सारी यादें हमेशा याद आती है।
ज्ञान चतुर्वेदी
मेरे परम मित्र डा. अंजनी चौहान पर आधारित हास्य व्यंग्य लफ्ज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस रचना का शीर्षक है एक थे असु ओर एक थे बसु। अगले साल मेरे इसी मित्र को समर्पित मेरा उपन्यास पाठकों के समक्ष होगा। मैं उस दोसती में विशवास नहीं रखता जिसमें दिखावा हो। मैं ऐसी दोसती पसंद करता हूं जिसमें मेरे दोस्त मुझे मेरे गुणों के अलावा अवगुणों के साथ भी स्वीकार करें।
मेरे मित्र
मेरे मित्र डॉ. अंजनी चौहान और प्रभु जोशी को दोस्ती के लिए बनाए गए इस विशेष दिन पर जरूर याद करना चाहूगा। इन दोनों ने मुझे व्यंग्य के संस्कार सीखाएं। मैने इन्हीं से लेखन की कला को सीखा ओर समझा।
गोविंद मिश्र
1968 में मैने एक कहानी लिखी थी दोस्त जिसमें यह बताया गया था कि अपने मतलब के लिए लोग किस तरह से दोसती करते हैं ओर फिर काम पूरा हो जाने पर दोसत तोड़ देते हैं। मेरे 11 उपन्यासों में भी मैने जगह यह बताया है कि सच्चा दोसत वही है जो मुश्किल के वक्त आकर आपके साथ रहे। आज के संदर्भ में अगर बात करें तो इस रिश्ते को लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अपनाते हें और फिर भुल जातेहें। सच कहूं तो यह इतना खूबसूरत रिश्ता है जिसे अगर सच्चे दिल से निभाया जाए तो इसकी महक हमेशा बनी रहती है। अब लोगो में बर्दाश्त करने की हिम्मत नहीं रही इसलिए वे सिर्फ अच्छी बातें सुनना चाहते हैं और ऐसे में अगर कोई दोस्त उन्हं उनकी बुराईयों से अवगत कराए तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। मुझे मेरे दोसत वल्लभ सिद्धार्थ कीयाद आ गई जो महूरानी पुरा में रहता है। वो हमेशा मेरी खुशी में खुश होता रहा। उसे इस बात से बिल्कुल तकलीफ नहींहोती कि जिंदगी में मैने उससे ज्यादा शोहरत पाई। जिन दिनों मैं मुंबइ में था मेरे बेटे की स्वीमिंग पूल में गिरने से मौत हो गई थी। उन दिनों मेरे माता पिता को संभालने का जिम्मा उसी ने उठाया। वो चाहे पास रहे या दूर लेकिन जब भी मैं परेशान रहा उसने हमेशा मेरा साथ दिया। इसमें कोइ शक नहीं कि उसने दोस्ती दिल से निभाई ।