शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015


सेहत के साथी

सेहत की दुनिया में जिन एक्सपर्ट का नाम सबसे पहले आता है, उन्हें फिटनेस के प्रति बेहद जागरुक कहे जाने वाले सितारे भी अपना फिटनेस गुरू मानते हैं...

शिवोहम
फिटनेस एक्सपर्ट और लाइफ स्टाइल गुरु शिवोहम वेट लिफ्टिंग और जिमनास्टिक के माध्यम से अब तक आमिर खान, जैकलीन फर्नांडिस, अर्जुन कपूर, रणवीर सिंह, जैकी भगनानी और श्रद्घा कपूर की बॉडी बना चुके हैं।  शिवोहम एक्सरसाइज से पहले 15-20 मिनट तक मेडिटेशन को जरूरी समझते हैं। रात को देर तक जगने और अल्कोहल का सेवन करने से वे दूर रहते हैं। शिवहोम अपने क्लाइंट्स की डाइट का ख्याल तो रखते ही हंै साथ ही वे ताजा फल और प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व फैट युक्त डाइट लेना पसंद करते हैं।
फिटनेस मंत्र
मेहनत करो और स्मार्ट रहो। हमेशा हाइजेनिक फूड खाओ और वो क ाम करो जिससे आपको मानसिक शांति मिलती हो।
यासमीन कराचीवाला
यासमीन को देश की सबसे अच्छी फिटनेस ट्रेनर और पायलेट्स एक्सपर्ट माना जाता है। वे कैटरीना कैफ, करीना कपूर खान और दीपिका पादुकोण की फिटनेस गुरू हैं। यासमीन कहती है कई महिलाएं दीपिका की तरह एब्स, कैटरीना की तरह पैर और बिपाश जैसे हाथों की बनावट चाहती हैं। बॉलीवुड सितारों का प्रभाव आम लोगों पर हमेशा रहता है और वे उन्हीं की तरह अपना फिगर भी चाहते हैं। यहां लोगों को यह भी समझना चाहिए कि ये सितारे सिर्फ जादू की छड़ी घुमाकर मनचाहा फिगर नहीं पाते, बल्कि इसके लिए कड़ी मेहनत भी करते हैं। यासमीन ने खुद देखा है कि कैटरीना कैफ ने शीला की जवानी या धूम 3 में अपने लुक के लिए कितना पसीना बहाया है।  साथ ही अपनी डाइट का भी पूरा ख्याल रखा है। एक निश्चित फिटनेस लेवल को पाने के लिए यह जरूरी है कि ऐसे लक्ष्य बनाएं जिन्हें आप लंबे समय तक फॉलो कर सकें। यास्मीन की जिम काफी मॉर्डन है, जिसमें फिटनेस से जुड़ी कई आधुनिक मशीनें हैं। बॉडी के हर पार्ट के हिसाब से इन मशीनों को डिजाइन किया गया है। यास्मीन के इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक्ट्रेस की तस्वीरों को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है। जरीन खान ने भी अपना वजन यास्मीन की जिम और टिप्स के साथ कम किया था।
फिटनेस मंत्र
किसी की देखादेखी एक्सरसाइज न करें, बल्कि
अपने बॉडी शेप के अनुसार एक्सरसाइज का चयन करें।
डैनी पांडे
जब लोग शेप में आने का सोचते हैं तो सबसे पहले भुखा रहना शुरू कर देते हैं। वे जल्दी रिजल्ट चाहते हैं इसीलिए कई बार फैट को बर्न करने वाले सप्लीमेंट्स लेना शुरू कर देते हैं, लेकिन इससे हमेशा बॉडी को नुकसान ही होता है। इससे अच्छा है हेल्दी डाइट लें और वजन घटाएं। साथ ही जिस तरह से जिंदगी में अपने काम और फायनेंस को संतुलित करना जरूरी है, उसी तरह अपनी भावनाओं को संतुलित रखे। अगर मन आपके काबू में नहीं है तो वजन कम करना मुश्किल है। ये कहना है डैनी पांडे का।  डैनी बिपाशा बसु, कुणाल कपूर, लारा दत्ता और अभय देओल की फिटनेस ट्रेनर हैं।
अनुज राक्यान
अनुज को जूस डिटॉक्स ट्रेंड भारत में लाने का श्रेय दिया जाता है। चेतन भगन और लीसा रे के वे फिटनेस गुरु हैं। खुद अनुज के शब्दों में लगभग दस साल पहले मैं वजन कर करने के लिए हेल्दी डाइट को लेकर कंफ्युज था। तभी मैने ये मेहसूस किया कि ऐसे कई लोग हंै जो हैल्थ और फिटनेस के बारे में यह मानते हैं कि जूस पीने से वजन कम होता है, लेकिन ऐसा नहीं है, अगर आप उसी मात्रा में फल या सब्जियां खाते हैं तो अलग से जूस पीने की जरूरत नहीं है। वैट मेनेजमेंट के लिए विटामिन को सही मात्रा में लेना न भुलें। अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं और साथ ही निश्चित अंतराल के बाद डिटॉक्सिफिकेशन पर ध्यान दें।
फिटनेस मंत्र
अनुशासनबद्घ जीवन शैली अपनाएं और फिट रहें। फिट रहने के लिए जितना जरूरी अच्छी डाइट को अपनाना है उतना ही ध्यान पर्याप्त नींद
लेने पर भी होना चाहिए।

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

छोटे शहरों के लाल
करेंगे वल्र्ड कप में कमाल 


इस बार विश्वकप में जिन भारतीय खिलाडिय़ों का चयन हुआ है, उनमें से अधिकांश खिलाड़ी भारत के छोटे
शहरों से हैं। ये वे खिलाड़ी है जिन्होंने पिछले कुछ सालों में क्रिकेट मैचों के दौरान सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर अपनी योग्यता जाहिर की है। एक बार फिर देश की 125 करोड़ जनता की उम्मीदें धोनी और उनकी टीम से हैं। अब देखना यह है कि इस विश्व कप के दौरान अधिकांश छोटे शहरों से आए धुरंधर खिलाड़ी क्या अपने देश को विश्व कप दिला सकेंगे...
झारखण्ड के रांची जैसे छोटे शहर के निवासी महेंद्र सिंह धोनी कभी गेंद पर पूरी ताकत से प्रहार कर उसे सीमा रेखा से बाहर भेजते हुए या कभी विकेट कीपर की सामान्य कद काठी से जुदा अपने गठीले बदन से गेंद की दिशा में छलांग लगाते हुए क्रिकेट मैच के दौरान देखे जाते हैं। कभी अखबार के पन्नों पर छपे विज्ञापनों में तो कभी टेलीविजन स्क्रीन पर धोनी छाए रहते हैं। क्रिकेट की सीमारेखा के आर-पार महेंद्र सिंह धोनी की ये छवियां एक आम भारतीय के मन में कभी ना कभी दस्तक जरूर देती हैं। इस तरह महेंद्र सिंह धोनी बीते एक दशक में भारत के सबसे कामयाब क्रिकेटर रहे हैं। इस एक दशक के दौरान उनका हर अंदाज स्टाइल बन गया। आज भी पार्थिव पटेल,अजय रातरा और दिनेश कार्तिक जैसे युवा दिग्गज खिलाड़ी उन्हीं के दिखाए हुए रस्ते पर चलना पसंद करते हैं।
 2007 में वनडे कॅरियर की शुरुआत करने वाले रोहित गुरुनाथ शर्मा महाराष्टï्र के नागपुर में जन्में है। रोहित उन चुनिंदा खिलाडिय़ों में से हैं, जिनकी तारीफ करने वालों की कमी नहीं है। साथ ही इस विश्व कप में भी उनसे कई आशाएं की जा रही है। उनके खेल के स्टाइल और तकनीक का कमाल यह है कि जब वो 2007-08 में ट्राई सीरीज के लिए ऑस्ट्रेलिया गए थे तो पूर्व क्रिकेटर इयान चैपल ने उन्हें आने वाले दौर में विश्व क्रिकेट का सबसे करिश्माई बल्लेबाज बताया था। कमेंट्री बॉक्स में रमीज राजा से लेकर सुनील गावस्कर तक और ड्रेसिंग रूम में तेंदुलकर से लेकर धोनी इस युवा बल्लेबाज की प्रतिभा का कायल रहा है। मुंबई से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले रोहित ने वह समय भी देखा है जब उनके पास फीस भरने के पैसे भी नहीं हुआ करते थे। ये रोहित का क्रिकेट के प्रति जूनून ही था कि स्कूल टूर्नामेंट में कई बेहतरीन प्रदर्शन के बाद रोहित को मुंबई अंडर-20 के चुन लिया गया। ये रोहित की योग्यता ही थी कि आईपीएल में डेक्कन चार्जर्स ने रोहित को खिलाने के लिए तीन करोड़ से ज्यादा की बोली लगाई। रोहित की लोकप्रियता का अंदाजा लगाने के लिए ये काफी है लेकिन रोहित की मां और उनके कोच की माने तो इन सब के बावजूद रोहित में कोई बदलाव नहीं आया। आज ऐशो-आराम की जिंदगी जीने के बाद भी अपनी तंगहाली के दिल वे कभी नहीं भुलते।
टीम इंडिया की सनसनी उमेश यादव नागपुर के रहने वाले हैं। कभी खेतों में काम करने वाले उमेश यादव ने क्रिकेट में पदार्पण किया और फिर टीम इंडिया की जरूरत बन गए। उमेश यादव टीम इंडिया के स्ट्राईक गेंदबाज हैं। पिछले एक साल में कप्तान धोनी का भरोसा उन पर बहुत बढ़ा है। टीम इंडिया को इस विश्वकप को जिताने में गेंदबाजों का बहुत अहम रोल होने वाला है। उसमें उमेश यादव की स्टीक लाईन-लेंथ और तेज गेंदबाजी भारत के विश्व कप का सपना पूरा कर सकती है। उमेश यादव टीम इंडिया के ऐसे गेंदबाज है  जिनके नाम वनडे क्रिकेट में 154.8 किमी/प्रतिघंटे की गेंद भी दर्ज है।
कहते हैं प्रतिभाएं जगह की मौहताज नहीं होती। यह बात मोहम्मद शमी के लिए सटीक है।
उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जैसे छोटे से शहर समीप के गांव से निकलकर टीम इंडिया का हिस्सा बने मोहम्मद शमी ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। शमी के सिर पर क्रिकेट का जुनून इस कदर हावी था कि वह अपने कोच बदरुद्दीन के साथ गांव से ट्रेन में बैठकर मुरादाबाद आते और यहां पर क्रिकेट का अभ्यास करते। जब कोचिंग लेने का समय समाप्त हो जाता तब भी वे नेट्स पर ट्रेनिंग लिया करते थे। बाद में यही कड़ी मेहनत रंग लाई। प्रतिभा होने के बावजूद उन्हें जब उत्तरप्रदेश की टीम में जगह नहीं मिली तो वे अपना भाग्य आजमाने के लिए बंगाल चले गए। उत्तरप्रदेश के क्लबों में उन्होंने जो कुछ सीखा था, उसका असर जल्दी ही दिखने लगा और वे बंगाल की टीम की गेंदबाजी के प्रमुख अस्त्र बन गए।
अपने शहर का नाम आज विश्व भर मे रोशन करने वाले ऐसे ही महान क्रिकेटर हैं सुरेश रैना। उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद में सुरेश रैना का जन्म हुआ और यहीं वे पले-बढ़े। रैना भारत के एक मात्र ऐसे क्रिकेटर हैं जिन्होंने टेस्ट, वनडे और टी-20 में टीम इंडिया की तरफ से शतक ठोका है। इस विश्व कप के लिए रैना कहते हैं यह नया टूर्नामेंट है और हम अच्छे प्रदर्शन को तत्पर हैं। हम जीत के भूखे हैं और विश्व कप से बड़ा कोई टूर्नामेंट नहीं हो सकता। हम पाजीटिव सोच के साथ एक दूसरे के साथ का लुत्फ उठाते हुए मैदान में शानदार प्रदर्शन करेंगे।
गुजरात के नाडियाद का रहने वाला अक्षर पटेल बायें हाथ के एक अच्छे बल्लेबाज के साथ-साथ बायें हाथ के स्पिनर भी हैं। अक्षर को 2013 में आइपीएल की मुंबई इंडियन टीम के लिए चुना गया और 2014 में पंजाब की टीम के लिए उनका चयन हुआ।  इस होनहार खिलाड़ी पर चयनकर्ताओं समेत खुद कप्तान धोनी को काफी भरोसा है।
 मेरठ में रहने वाले भुवनेश्वर कुमार चैंपियंस ट्रॉफी और वेस्टइंडीज में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ चुके है। सच तो यह है कि भुवनेशवर की कहानी भारत के छोटे शहरों से आने वाले खिलाडिय़ों की कामयाबी जैसी ही है जिनके बारे में यूपी रणजी टीम के बल्लेबाज उमंग शर्मा का कहना है कि वो भले ही मेरा साथी है लेकिन उसने मुझे ये उम्मीद दी है कि मैं भी भारतीय टीम में खेल सकता हूं।
वल्लभगढ़, हरियाणा में जन्में मोहित शर्मा आईपीएल व रणजी ट्राफी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं। वे रणजी ट्राफी में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर इंडिया का लीडिंग विकेट टेकर गेंंदबाज बने और उसके बाद आईपीएल में भी उन्होंने अपनी ओर से उत्कृष्ट प्रदर्शन दिया। गुजरात के जामनगर का प्रतिनिधित्व करते हैं रविंद्र जडेजा।  रविन्द्र जब 17 साल के थे तभी उनकी मां लता बेन का एक सड़क हादसे में निधन हो गया। लता बेन का सपना था की उनका बेटा एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम की तरफ से खेले। जिस समय लता बेन का देहांत हुआ उसी दौरान रविन्द्र का चयन अंडर 19 वल्र्ड कप की टीम में हुआ था लेकिन मां के देहांत के बाद रविन्द्र का पूरा ध्यान क्रिकेट से हट गया तब उनकी बड़ी बहन नैना ने याद दिलाया की मां उन्हें भारतीय टीम में देखना चाहती थी। इसके बाद रविन्द्र ने क्रिकेट पर फोकस किया और वह मां के सपने को पूरा करने में सफल हुए।



शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

इश्क हवाओं में है


एक दौर वो था जब लड़का-लड़की को देखता है। एक दो मुलाकातें होती है और प्यार हो जाता है। लड़का उससे शादी की बात करता है और कई बार घरवालों की मर्जी से तो कभी उनके विरोध करने के बावजूद दोनों शादी कर लेते हैं। ये तो रहीं बीते दौर की बातें लेकिन अब जमाना सोशल मीडिया का है। आपको एक दूसरे से मिलने या देखने की जरूरत ही नहीं है। बस फेसबुक पर नैन मिले, व्हाट्सएप पर मैसेज हुए। बात बनीं तो ठीक और न बनीं तो दोनों अपने-अपने रास्ते पर दूसरे साथी की तलाश में फिर इंटरनेट सर्च करने में लग गए। सोशल मीडिया की वजह से इश्क का इजहार करना जितना आसान हुआ उतना ही मुश्किल रिश्तों के स्थायित्व को बनाए रखना भी  है। वेलेंटाइन वीक शुरू हो चुका है और आज है प्रपोज डे। प्यार के लिए बने इस खास दिन में  बात करें ऐसे ही युवाओं की जो इंटरनेट की दुनिया के बीच प्यार की फिजाओं में गुम हैं...

रिचा की मुलाकात अपने फेसबुक फें्रड्स के माध्यम से राहुल से हुई। दोनों ने एक दूसरे को फेसबुक पर देखा और चैटिंग शुरू कर दी। इस बारे में रिचा कहती हैं, सोशल मीडिया की वजह से हमें एक दूसरे को जानने का मौका मिला। हमने कभी एक दूसरे से मोबाइल पर बात नहीं की और न ही कभी मिलने की जरूरत महसूस हुई। बस फेसबुक पर बातें होती रही। फिर एक दिन राहुल ने फेसबुक पर मुझे प्रपोज करते हुए पूछा -क्या तुम मुझसे शादी करोगी? इससे पहले राहुल से होने वाली बात उसकी ओर मुझे खींचती रही और तभी मैंने सोच लिया था कि इससे अच्छा जीवन साथी मुझे दूसरा नहीं मिल सकता। मैंने इंस्टाग्राम पर उसकी तस्वीरें पोस्ट करके अपने दोस्तों से उनकी राय मांगी और दोस्तों की राय जानने के बाद राहुल को हां कर दी। प्रपोज करने का ये वही ट्रेंड है जो पिछले कुछ सालों से युवाओं के बीच चलन में है। सोशल मीडिया और यू ट्यूब की वजह से प्यार का इजहार करने वाले पल अब निजी न होकर सार्वजनिक हो गए हैं, जिन्हें दो प्यार करने वालों के साथ-साथ उनके अन्य दोस्त भी सोशल मीडिया पर जानते हैं।
सिर्फ एक बटन दबाते हुए दिल से निकले हर शब्द आपके प्यार के गवाह बन जाते हैं। सोशल मीडिया पर अपने प्यार का इजहार करने वाले युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है। 2012 में मेन्स हेल्थ पत्रिका द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार 30 प्रतिशत लड़कियां मोबाइल पर दोस्तों को मैसेज और ई मेल करने से पहले अपनी सगाई की तस्वीरें और रिलेशनशिप स्टेटस को फेसबुक पर बदलती हैं। खास बात तो यह है कि लड़कों की तरह लड़कियां भी प्यार को दिल से लगाकर बैठने के बजाय इसे एंज्वॉयमेंट या फन का नाम देना पसंद करती हैं। 28 वर्षीय आर्यन दो साल से जिस लड़की के साथ लव रिलेशनशिप में है, उसके साथ फेसबुक पर हुई हर बात को हमेशा संजोकर रखना चाहते हैं, ताकि जीवन भर जब भी अपने पहले प्यार को याद करें तो इन्हें देख सकें। उन्होंने अपने दोस्तों और घर वालों के लिए यू ट्यूब पर 22 मिनट की मिनी मूवी बनाई है। इस बारे में आर्यन का कहना है कि मुझे लोगों को सरप्राइज देना पसंद है। इस बार वेलेंटाइन डे पर
इससे अच्छा सरप्राइज और क्या हो सकता है।
अगर सरप्राइज की ही बात करें तो अपने लव प्रपोजल को ट्विटर पर व्यक्त करना इस वजह से भी अच्छा है, क्योंकि आपके दोस्तों की भारी भीड़ ट्विटर पर कम होती है। 140 शब्दों में मन की बात ट्विटर के माध्यम से कहना आपके पार्टनर को यकीनन पसंद आएगा। अच्छा तो यह होगा कि आप अपने साथी के साथ बात करके ट्विटर का टाइम तय कर लें ताकि जब आप दोनों के पास वक्त हो उसी समय ट्विटर पर आसानी से बात हो सके । प्यार के दीवाने ऐसे युवाओं की भी कमी नहीं जो दिन भर चाहे कितने ही व्यस्त क्यों न हो, लेकिन दिन में एक बार सोशल मीडिया पर हुए सारे अपडेट चेक करने का वक्त निकाल ही लेते हैं। फिर चाहे ट्विटर हो या इंस्टाग्राम जिसकी वजह से अब तक न जाने कितने दिल एक हुए हैं। इंस्टाग्राम सहित कई सोशल नेटवर्किंग साइट्स सरहद की दीवार तोड़कर युवाओं को एक कर देती हैं। इस बारे में 26 वर्षीय श्रेया कहती हैं मैंने इंस्टाग्राम पर अपनी एक फोटो पोस्ट की। साथ ही एक कमेंट लिखा-मैं ऐसे जीवनसाथी को ढूंढ रही हूं, जिसकी पसंद और नापसंद मुझसे मिलती हो। अगर आप मेरी फोटो को पसंद करते हैं और मेरे बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो मुझसे दोस्ती करें। इसे पढ़कर अमेरिका की मल्टीनेशनल कंपनी मेें कार्यरत शांतनु ने भी अपनी फोटो इंस्टाग्राम पर अपलोड की। साथ ही मुझे दोस्ती का प्रपोजल भी दिया। धीरे-धीरे हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला। दुनिया भर के दीवानों को एक दूजे के करीब लाने और मिलने-मिलाने का मौका इंटरनेट की वजह से जिस तरह पिछले कुछ सालों से हो रहा है, ऐसा पहले कभी न था। इससे जहां नए रिश्तों में नजदीकियां बढ़ती हैं वही पुराने रिश्ते या बरसों से एक दूजे से न मिलने वाले प्रेमी भी फिर से एक डोर में बंध जाते हैं। सोशल मीडिया द्वारा अपने दिल की हर बात एक क्लिक के साथ ही अपने पार्टनर तक पहुंचाते हैं और चंद मिनटों में
उनकी प्रतिक्रिया जान भी जाते हैं। शायद इसी वजह से मोबाइल पर लंबी बात करना युवाओं को कई बार रास नहीं आता। प्यार के लेटेस्ट इंटरनेट ट्रेंड को अपनाने से पहले ये भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी हंसी, खुशी, उदासी, गुस्सा या फिर छेड़छाड़ यहां सिर्फ शब्दों के माध्यम से बयां होती है इसलिए मैसेज करने से पहले सिर्फ दिल का ही नहीं बल्कि दिमाग का भी इस्तेमाल करें ताकि प्यार का सागर नेट के माध्यम से ही सही पर गहरा होता रहे।
उम्मीद की शमा जलती रहे
 
 जीवन और मौत के बीच जब फासला कम हो रहा हो तो जीवन को जीने और समझने का नजरिया बदल जाता है। ऐसे मुश्किल समय में किताबें प्रेरणा बनकर हमारे साथ होती है। शायद इस बात को समझते हुए कैंसर का सामना कर रही महान हस्तियों ने अपने अनुभवों को किताबों के माध्यम से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है। उनकी ये किताबें कैंसर के मरीजों की जिंदगी में उम्मीद की किरण के समान है। आज यही किताबें कैंसर का मुकाबला कर रहे लाखों मरीजों की जिंदगी में उम्मीद की शमा जलाए हुए हैं...

साइकिलिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग की किताब इट्स नॉट अबाउट द बाइक -माई जर्नी बैक टू लाइफ कभी कैंसर के मरीज रहे क्रिकेटर युवराज सिंह को जीवन में आगे बढऩे के लिए प्रेरित करती है। हॉकी खिलाड़ी जुगराज सिंह ने भी वर्ष २००३ में सड़क दुर्घटना के बाद इसी किताब को पढ़ा था। इस किताब में आखिर ऐसा क्या है कि कोई भी खिलाड़ी मुश्किल वक्त में इसे जरूर पढ़ता है। यह किताब दरअसल जिंदगी की चुनौतियों से लडऩा सिखाती है। लांस आर्मस्ट्रांग की भाषा में कहें, तो दर्द अस्थायी होता है, जो एक मिनट, एक दिन, एक घंटे या फिर एक साल तक आपको परेशान कर सकता है, पर उस दर्द की वजह से अगर आप मैदान छोड़ दें, तो उसकी पीड़ा ताउम्र सताती है।
शायद कम ही लोग जानते होंगे कि जब लांस ऑर्मस्ट्रांग की च्कीमोथेरेपीज् चल रही थी, तब भी उन्होंने अपना अभ्यास नहीं छोड़ा था। कैंसर की विकसित स्टेज को खुद में पाले रहने के बाद भी आर्मस्ट्रांग को रेसिंग ट्रैक ही नजर आता था। हां, एक वक्त ऐसा जरूर आया, जब उन्हें लगा कि शायद उन्हें साइकिलिंग छोडऩी होगी, पर ऐसे मुश्किल वक्त में ऑर्मस्ट्रांग खुद ही अपनी प्रेरणा बन गए। यह किताब इतनी लोकप्रिय इसीलिए भी हुई, क्योंकि इसमें लोगों को अपनी बीमारी से जूझने के लिए च्मेडिकलीज् कोई मदद भले न मिली हो, पर च्मेंटलीज् काफी मदद मिली। आम तौर पर खिलाड़ी अपनी चोट व बीमारी को छिपाते हैं। वे खुद को कमजोर व लाचार कभी नहीं पेश करना चाहते हैं लेकिन ऑर्मस्ट्रांग जब अपनी बीमारी का जिक्र करते हैं, तो बिल्कुल आम इंसान बन जाते हैं। आर्मस्ट्रांग ने जब कैंसर की लड़ाई जीतने के बाद दोबारा च्टूर द फ्रांसज् में हिस्सा लिया, तो पहले से ज्यादा बेहतर च्टाइमिंगज् और बेहतर रिकॉर्ड के साथ जीत हासिल की। यह रेस दुनिया के सबसे कठिन खेलों में शुमार है। करीब तीन हफ्ते तक चलने वाली इस रेस के दौरान उन्हें ऊंचे-नीचे और पहाड़ी रास्तों से गुजरना होता है। यही खासियत है, जो मुश्किलों से जूझ रहे खिलाडिय़ों को अपने अंदर छिपे च्चैंपियनज् को दोबारा ढूढऩे के लिए प्रेरित करती है। लांस ने कैंसर जैसी बीमारी से लडऩे के बाद इस किताब को लिखकर लोगों को जिस तरह से प्रेरणा दी है उसी की वजह से उनके बाद भी कैंसर के कई रोगियों ने किताबों के माध्यम से इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
टाइम मैगजीन के पूर्व मैनेजिंग एडीटर वाल्टर इसाकसन ने स्टीव जॉब्स की आत्मकथा लिखने से पहले बैंजामिन फ्रेंकलिन और हेनरी किसिंगर की आत्मकथा लिखी थी। ६५६ पन्नों की स्टीव जॉब्स की आत्मकथा में उन्होंने स्टीव के कैंसर से जुझते हुए अंतिम दिनों को संजोया है। इसाकसन ने लिखा है कि २००४ में जब एपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स को कैंसर का पता चला तो डॉक्टर द्वारा दी गई ऑपरेशन की सलाह को मानने के बजाय उन्होंने माइक्राबायोटिक डाइट से अपनी बिमारी को नियंत्रित करना चाहा। मरने से पहले उन्हें इस बात का पछतावा भी रहा कि वक्त रहते उन्होंने डॉक्टर की सलाह क्यों नहीं मानी। इसाकसन ने जॉब्स के लगभग २० इंटरव्यू लिए और उसके बाद उनके परिचितों, दोस्तों और पारिवारिक सदस्यों से बात करके उनकी बॉयोग्राफी लिखी। एक बार वाल्टर ने जॉब्स से पूछा कि आपने ऑपरेशन क्यों नहीं करवाया तो उनका जवाब था कि मैं नहीं चाहता था कि मेरे शरीर को खोला जाए। अंत में जब जॉब्स का ऑपरेशन हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि कैंसर उनके पूरे शरीर में फैल चुका था। जीवन और मौत के बीच जब फासला कम हो रहा हो तो जीवन को जीने और समझने का नजरिया बदल जाता है। क्रिकेटर युवराज सिंह ने अपने हौसलों से न सिर्फ कैंसर से अपनी जंग में जीत हासिल की, बल्कि मैदान में वापसी भी करके दिखाया। अपनी बीमारी को छुपाकर रखने वाले अन्य सेलिब्रिटीज से इतर युवराज ने अपनी किताब च्द टेस्ट ऑफ माई लाइफ-फ्रॉम क्रिकेट टू कैंसर एंड बैकज् में अपने जीवन को खुलकर शेयर किया। अपनी किताब में वे लिखते हैं, च्एक खिलाड़ी के तौर पर हमें दर्द सहना सिखाया जाता है। हम शरीर का प्रशिक्षण और पोषण इस तरह करते हैं कि दिमाग तन की चिंता से मुक्त रह सके।ज् मेडियास्टिनल सेमिनोमा के लिए कीमोथेरेपी कराने के दौरान युवराज ने यह फैसला किया कि वे कीमो के दौरान अपने शरीर की प्रतिक्रिया को नियमित ट्विटर पर शेयर करेंगे। इसके लिए उन्होंने वीडियो डायरी भी बनाई। अपने बाल उडऩे, खाना न पचने संबंधी तमाम बातों और दवा के असर को लोगों से शेयर किया। तब से अब तक यूवीकेन ट्रस्ट के जरिए वे कैंसर पीडि़तों के लिए काम कर रहे हैं।
मॉडल से अभिनेत्री बनी लीसा रे को नूसरत फतेह अली खां के एलबम आफरीन आफरीन से प्रसिद्धि मिली। २००९ में उन्हें मल्टीपल मायलोमा से ग्रस्त पाया गया। दस महीने बाद ही उन्होंने खुद को इस बीमारी से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट द्वारा ठीक कर लिया। इस बीमारी से उबरने के बाद लीसा रे ने जेसोन देहनी से विवाह कर ये साबित किया कि कैंसर के मरीज भी सामान्य जीवन जी सकते हैं। आज वे अपने ब्लॉग द यलो डायरीज के माध्यम से कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए लिखती हैं। उनका कहना है कि इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों के लिए बीमारी पर होने वाले खर्च और आम लोगों के बीच जिंदगी की जददेजहद तो मुश्किल है ही साथ ही शारीरिक कमजोरी से जूझ पाना भी तकलीफदायक होता है। ऐसे में जो मरीज कैंसर के नाम से घबराकर जिंदगी से हार मान लेते हैं, उनके लिए मैं काम रही हूं। मैंने दिल्ली स्थित शिलादित्य सेनगुप्ता की संस्था के साथ काम करना शुरू किया जो कैंसर के मरीजों के मदद करते हैं। लीजा ने कॉकटेल डिजाइनर साड़ी लाइन की शुरूआत की है जिससे मिलने वाली सारी रकम वे कैंसर पेशेंट्स की मदद करने में देती हैं।

कैंसर के उपचार के दौरान मुझे लांस आर्मस्ट्रॉन्ग से काफी प्रेरणा मिलती थी। उन्हें भी वही कैंसर था, जो मुझे था। तब लगा कि मुझे भी किताब लिखना चाहिए जो दूसरे लोगों के लिए प्रेरक हो सकती है। शुरुआत में दूसरे सेलिब्रिटी की तरह मैं भी लोगों के सामने नहीं आना चाहता था, पर जब स्थिति को स्वीकार कर लिया, तब लगा कि मुझे ऐसा करना चाहिए, जो अन्य लोगों को अपनी लड़ाई लडऩे में मदद करे। तभी मैंने किताब लिखने का निर्णय लिया।
 च्द टेस्ट ऑफ माई लाइफ फ्रॉम क्रिकेट टू कैंसर एंड बैकज् का एक अंश