शनिवार, 24 नवंबर 2012

एक और एक ग्यारह
देश के प्रसिद्ध उद्योगपति अगर उद्योग जगत में छाए रहने का दम रखते हैं तो उनकी पत्नी भी कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए कभी बिजनेसवुमेन के रूप में तो कभी सामाजिक कार्यों को बखूबी पूरा करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। एक हमसफर के तौर पर वे एक दूजे के लिए एक एक और दो नहीं बल्कि एक और एक ग्यारह की ताकत रखते हैं....
लक्षमी मित्तल ब्रिटेन के सबसे अमीरों में शुमार है। उनकी काम के प्रति व्यस्तता को देखते हुए उनकी पत्नी लक्ष्मी मित्तल इंडोनेशिया में स्टील बिजनेस को संभाल रही हैं। उषा मुंबई में विकलांग ब"ाों के लिए स्थापित किए गए जयवकील स्कुल की जिम्मेदारियां बखूबी निभाती हैं। भारत में महिलाओं की शिक्षा की दिशा में कार्य कर रही उषा मित्तल इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी की जिम्मेदारी भी संभालती हैं। विप्रो चैयरमेन अजीम प्रेमजी देश के बड़े उद्योगपति होने के बाद भी लोगों के सामने आने से अक्सर बचते हैं। अजीम प्रेमजी गरीब ब"ाों की शिक्षा के प्रति प्रतिबद्ध हैं। अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में से 2 बिलियन डॉलर वे इसी दिशा में खर्च करते हैं। उनकी पत्नी यासमीन प्रेमजी इस चैरिटी की डायरेक्टर हैं। यासमीन एक लेखिका के रूप में अपनी खास पहचान रखती हैं। उनका उपन्यास डेज ऑफ गोल्ड एंड सेपिया बहुत पसंद किया गया। वह पिछले बारह सालों से सामाजिक कार्यों में व्यस्त हैं। सॉफ्टवेयर उद्योगपति नारायणमूर्ति इंफोसिस टेक्नोलॉजी लिमिटेड के सह संस्थापक हैं। नारायण ने इस कंपनी की शुरूआत महज 10,000 रूपए से की थी जो उन्हें उनकी पत्नी सुधा मूर्ति ने दिए थे। आज उनकी कंपनी भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है जिसे आईटी हब के रूप में जाना जाता है। कुछ सालों पहले मूर्ति और सुधा ने
5.2 मिलियन डॉलर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को इंडियन क्लासिक्स का अनुवाद प्रकाशित करने के लिए दिए।
सुधा एक समाज सेविका और लेखक के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है। वे गेट फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी सदस्यों में से एक हैं।
2006 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। सुधा समय-समय पर समाज सेवा और शिक्षा में दिए गए अपने अमूल्य योगदान के लिए सम्मानित की जा चुकी  हैं। मुकेश और नीता अंबानी का नाम न सिर्फ उद्योग जगत में बल्कि मनोरंजन की दुनिया में भी छाया रहता है। मुकेश ने अपने पिता के रिलायंस एंपायर की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। नीता धीरूभाई अंबानी इंटरनेशन स्कूल की संस्थापक हैं और शिक्षा से संबंधित कई कार्यों के साथ उनका नाम जुड़ा हुआ है। रियल हीरोज अवार्ड्स की शुरूआत रिलायंस फाउंडेशन की ही देन हैं। इसी तरह अनिल अंबानी अगर रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप को सुशोभित करते हैं तो टीना सामाजिक कार्यों में व्यस्त दिखाई देती हैं। वे कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही समकालीन भारतीय कला की मुख्य संरक्षक के रूप में भी जानी जाती हैं। मशहूर उद्योगपति जेएसडब्ल्यू स्टील के चैयरमेन स"ान जिंदल की कंपनी भारत में तीसरी सबसे बड़ी स्टील कंपनी मानी जाती है। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी। आज वे एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स के एक्स प्रेसिडेंट भी है। स"ान का साथ उनकी हमसफर संगीता जिंदल ने पूरी तरह दिया है। वह जेएसडब्ल्यू ग्रुप के जेएसडब्ल्यू फाउंडेशन की निदेशक है। यह संस्था स्थास्थय, शिक्षा, आवास और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने की दिशा में कार्य करती है। वह हंपी फाउंडेशन की चैयरपर्सन हैं जो भारत की धरोहरों के संरक्षण की दिशा में कार्य करती है। देश के इन उद्योगपतियों ने काम के बल पर दुनिया भर में अपना लोहा मनवाया है। आदि गोदरेज दुनिया के सबसे अमीर पारसी हैं। वे औद्योगिक कार्यों के अतिरिक्त परोपकारी कार्यों में भी संलग्र रहते हैं। उनकी पत्नी परमेश्वर गोदरेज समाज सेविका के रूप में जानी जाती हैं। परमेश्वर आलीशान पार्टियों को आयोजित करने की कला भी बखूबी जानती है। ओपेरा विन्फ्रे  की भारत यात्रा के दौरान परमेश्वर द्वारा दी गई पार्टी आज भी लोगों की जुबान पर है। वह गेट्स फाउंडेशन की बोर्ड मेंबर और गेरे फाउंडेशन के अलावा आहवान संगठन से भी जुड़ी हुई हैं। नंदन नीलकेणी इंफोसिस के सह संस्थापक और सीईओ के रूप में जाने जाते हैं। वे इस पद पर मार्च
2002 से अप्रैल 2007 तक रहे। फिलहाल वे यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के चैयरमेन हैं। नंदन को भारत में नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टेवयर एंड सर्विस कंपनिज और बैंगलोर में इंडस इंटरप्रेनयोर की स्थापना करने का श्रेय भी प्राप्त है। वे वल्र्ड इकोनोमिक फोरम फाउंडेशन और बॉम्बे हेरिटेज फंड के लिए सलाहकार के रूप में भी कार्य करते हैं। उनकी पत्नी रोहिनी निलकेणी पब्लिक चैरिटेबल फाउंडेशन आघर््यम की चैयरपर्सन हैं। वे 2001 से गंदी बस्तियों में पानी और साफ-सफाई की स्थिति सुधारने की दिशा में कार्य कर रही हैं। रोहिणी कई सालों से एक पत्रकार, लेखक और समाज सेविका के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। वे प्रथम बुक्स की सह संस्थापक है जो ब"ाों को अलग-अलग भाषाओं में कम कीमत पर किताबें उपलब्ध कराने में मदद करती है। वह प्रथम इंडिया एजुकेशन इनिशिएटिव और संघमित्रा रूरल फायनेंशियल सर्विस की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स भी हैं।
उनकी संस्था माइक्रोक्रेडिट कार्यक्रम के अंतर्गत गरीबों के लिए फंड एकत्रित करती है। वे जुलाई 2002 से जुलाई 2008 तक अक्षरा फाउंडेशन की चैयरपर्सन थी। नुस्ली वाडिया एक उद्योगपति, टेक्सटाइल मैग्रेट के नाम से जाने जाते हैं। नुस्ली वाडिया रियल स्टेट के बिजनेस में जाना-माना नाम है। वे बॉम्बे डाइंग के चैयरमेन हैं। उनकी पत्नी मौरीन वाडिया हैं। मौरीन की मुलाकात नुस्ली से एयर इंडिया विमान में हुई और जल्दी ही उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया। मौरीन कंपनी के ब्रांड प्रमोशन में योगदान देती हैं। वह फेमिना मिस इंडिया की प्रायोजक  के तौर पर पहचानी जाती हैं और ऐसे कई इवेंट्स में संलग्र रहती हैं जिससे उनके ब्रांड को पहचान मिल सके। ग्लैमर की दुनिया में छाए रहने का मौरीन को बेहद शौक है और अपने इस शौक को वे बखूबी पूरा भी करती हैं। वह फैशन और स्टाइल मैगजीन ग्लेडरेग्स की संपादक है। वे वार्षिक ग्लेडरेग्स मॉडल ऑफ द ईयर और मिसेज इंडिया कांटेस्ट की प्रायोजककर्ता भी हैं।


































































































































































































शनिवार, 17 नवंबर 2012

जब दिल किसी का टूटे
माता-पिता के रिश्तों में जब दरार आती है तो इसका असर उनके बच्चों की परवरिश पर भी पूरी तरह होता है। कई बार वे विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भी आगे बढ़ते जाते हैं और कई बार ये भी होता है कि ऐसे हालात उनकी बर्बादी की वजह बनकर सामने आते हैं। इस के माध्यम से रिश्तों के बिगड़ते ताने-बाने का असर आम जन को प्रभावित करने वाले सेलेब्स के बच्चों के जीवन को किस तरह से प्रभावित करता है, ये दर्शाने का प्रयास किया गया है...

जब अभिभावकों का ब्रेकअप होता है तो विपरीत प्रभाव उनके बच्चों के जीवन को भी पूरी तरह प्रभावित करता है। ऐसे बच्चे किसी भी तरह का कमिटमेंट करने से डरते हैं, क्योंकि उनके मन में यह भावना हमेशा रहती है कि वे अपने माता-पिता की तरह किसी भी करार को पूरा नहीं कर पाएंगे। युवराज सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही है। जिस युवा क्रिकेटर की सारी दुनिया दीवानी है, वह अपने घर में कई बार मां-बाप के बीच आई दरार की वजह से परेशान होते देखे गए हैं। यही हाल शाहिद कपूर का भी है। उनके पिता पंकज कपूर और मां नीलिमा अजीम के अलग होने के बाद वे अपने जीवन में भी किसी से वादा करने में अक्सर डरते हैं। लोगों का यह भी कहना है कि करीना के साथ उनके संबंध भी इसी तरह की असुरक्षा के चलते टूटे। शाहिद को आज भी लगता है कि शादी करने से ज्यादा जरूरी अपने कैरियर पर ध्यान देना है इसीलिए वे शादी के बंधन में बंधने के बजाय अपने कैरियर में स्थायित्व का प्रयास करते नजर आते हैं। ऐसे कलाकारों में वे अकेले नहीं हैं, जबकि 40 की उम्र से आगे निकल चुकी तब्बू आज भी शादी की बात आने पर इस सवाल का जवाब देने से कतराती हैं। महेश भट्ट जब अपने पुत्र राहुल और उसकी मां को छोड़कर चले गए तो राहुल कई सालों तक इस सदमे से निकल नहीं पाए। मनोचिकित्सक डॉ. काकोली रॉय कहती हैं कि माता-पिता के अलग होने पर बच्चे में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है। इस भावना को दूर करके आगे बढऩे में उसे लंबा समय लगता है। वे माता-पिता जो बच्चे के सुरक्षित रहने की सबसे बड़ी वजह होते हैं, उनके न रहने पर उसका खुद को असहाय महसूस करना स्वाभाविक ही है। सच तो यह है कि बच्चों को बचपन से सिखाया जाता है कि माता-पिता के रिश्ते से बड़ा रिश्ता दुनिया में दूसरा नहीं है और जब यही अभिभावक अलग होते हैं तो बच्चे का रिश्तों पर से विश्वास उठने लगता है। ऐसे बच्चे आसानी से अपने लिए जीवनसाथी का चयन नहीं कर पाते। अगर कहीं ऐसे अभिभावकों के बच्चे संबंधों को स्वीकार कर भी लेते हैं तो उनके संंबंध बिगड़ते भी देर नहीं लगती। स्कॉटिश एक्टर गेरारर्ड बटलर मानते हैं कि मेरे पेरेंट्स जब अलग हो गए तो मेरे साथ एक अनजाना डर हमेशा रहने लगा। फिर भी मैं सोचता हूं कि उनके दरकते रिश्तों को ढोने से ज्यादा अच्छा है मैं स्वच्छंद जीवन जीने लगूं। मनोवैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि जब इन बच्चों को कहीं से आसरा नहीं मिलता तो वे अपनी आजादी को ही अपना सहारा समझकर जीने की कोशिश करने लगते हैं। धीरे-धीरे ये आजादी उन पर इतनी हावी होने लगती है कि परिवार के मायने वे भूल जाते हैं। उनके लिए बंदिशों में रहने वाले परिवार से दूर ऐसी आजादी सब कुछ हो जाती है। इन बच्चों के लिए अपनी शादीशुदा जिंदगी को निभा कर दिखाना भी किसी चुनौती से कम नहीं होता। जैसा कि फिलहाल करीना कपूर के लिए कहा जा रहा है। एक ज्योतिष द्वारा उनकी शादीशुदा जीवन की तबाही की भविष्यवाणी की जो प्रतिक्रिया करीना ने व्यक्त की वो उनके गुस्से को पूरी तरह प्रकट करती है। अपनी मां बबीता और पिता रणधीर कपूर के अलग होने के बाद उन्होंने न सिर्फ कामयाबी के शिखर को छुआ, बल्कि लोगों के सामने यह आदर्श भी स्थापित किया कि अभिनय की जो कला उन्हें विरासत में मिली उस पर वे खरी उतरने की योग्यता भी रखती हैं। कई बार यह भी देखा गया है कि जिन अभिभावकों का विवाह सफल नहीं होता, उनके बच्चे भी विवाह करने पर सामंजस्य स्थापित करने में असफल होते हैं। अभिनेत्री रेखा ने माता-पिता के तलाक होने के बाद घर के बुरे हालातों से तो सामना किया ही, लेकिन उनका खुद का वैवाहिक जीवन दो बार शादी करने के बाद भी कभी सुखमय नहीं रहा। प्रतिमा बेदी और कबीर बेदी के संबंधों की दरार उनके बच्चों को भी प्रभावित करती रही। उनकी बेटी पूजा बेदी ने कुछ ही फिल्मों में अपने अभिनय के जौहर दिखाने के बाद कैरियर को आगे बढ़ाने के बजाय वैवाहिक जीवन बिताना अधिक पसंद किया। 1990 में फरहान इब्राहिम फर्नीचरवाला से उनकी पहली मुलाकात हुई और जल्दी ही दोनों ने शादी कर ली। सन 2000 में उनका तलाक हो गया। अब वे अपने दो बच्चों के साथ अकेली रहती हैं। राहुल भट्ट ने अपने माता-पिता की जो हालत देखी है उससे सबक लेते हुए वे आज भी कहते हैं कि मेरे लिए अपनी पत्नी के साथ संबंधों को निभाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हमारे संबंधों का विपरीत प्रभाव बच्चों के जीवन को बर्बाद करने की वजह बने। कई बार यह भी होता है कि माता-पिता के संबंधों में दरार को देखते हुए बच्चे आदर्श स्थापित करने की पूरी कोशिश करते हैं और फिर उसमें सफल भी होते हैं। नीना गुप्ता और विवियन रिचड्र्स की बेटी मसाबा गुप्ता ऐसे ही बच्चों का एक जीवंत उदाहरण है। मसाबा कहती हैं, अगर माता-पिता अपने रिश्तों को निभा न सकें तो उनके बच्चों की जिम्मेदारी ऐसे में और भी बढ़ जाती है। कोशिश तो यह होना चाहिए कि वे अपने संबंधों की नींव ज्यादा समझदारी से रखें।
शक्ति दे मां

एक नारी होने के नाते शक्ति की परीक्षा मां दुर्गा ने भी दी थी और आज भी महिलाएं अपनी शक्ति का परिचय देकर लोगों के सामने मिसाल कायम करने का दम रखती हैं।  बात करें उन महिला प्रशासनिक अधिकारियों की, जिन्होंने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए नारी शक्ति का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया है....

मोनिका शुक्ला
एडिशनल एस पी, ट्रैफिक पुलिस
न्यू मार्केट में सोने के गहनों की चोरी का मामला मुझे याद है। ईव्स मिरेकल से सात-आठ किलो सोना चोरी हुआ था। जिस संदिग्ध व्यक्ति पर हमें शक था उसे बुलाकर पूछताछ की गई लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। बाद में उसके फोन की डिटेलिंग से पता चला कि उसी व्यक्ति ने बार-बार उस क्षेत्र में फोन किया था। उस व्यक्ति ने पूछताछ के बाद अपना अपराध स्वीकार किया और बताया कि उसके घर में स्थित कुएं के अंदर लगी मोटर में उसने सोना छिपाया था। वो सारा सोना हमने उस कुएं से बरामद किया था। जब मैं शाहजहांनाबाद में सीएसपी थी, तो काजी कैंप में ट्रक से टकराने पर एक बच्ची की मृत्यु हो गई थी। गुस्से में आकर लोगों ने तोडफ़ोड़ करना शुरू की। मैंने अपनी टीम के साथ फायरिंग करके भीड़ को नियंत्रित किया।
आत्मविश्वास बढ़ेगा
अपने फैसले खुद लेना सीखें। परिवार की सलाह से फैसले करना अच्छी बात है लेकिन अंतिम निर्णय आपका अपना होना चाहिए। इससे आपमें आत्मविश्वास बढ़ेगा।
अरुणा मोहन राव

एडीजी महिला सेल
1989 में जब मैं परिवेक्षक अधिकारी थी तो रायपुर में रेल लाइट एरिया से लगातार शिकायत मिल रही थी। वहां की पहली लेडी पुलिस ऑफिसर होने की वजह से मुझे वहां जाकर जांच करने को कहा गया। इस केस में वहां पदस्थ कमिश्नर और कलेक्टर ने भी हमारी बहुत मदद की और वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं के व्यवस्थापन की व्यवस्था की गई। मुझे ये संतुष्टि थी कि हमारे प्रयासों से उन महिलाओं की जिंदगी सुधर गई। मुझे वो केस भी याद है जब मैं धमतरी में एसडीओपी थी और वहां एक लड़की की मृत्यु हो गई थी। कुछ लोगों ने शिकायत की कि उसकी हत्या की गई है। जांच के बाद पता चला कि वह जिस घर में नौकरानी थी उसी घर के मालिक ने उसका शारीरिक शोषण किया था। जब वह गर्भवती हो गई तो उसका गर्भपात करवाया गया और उसी दौरान उसकी मृत्यु हो गई। मैंने वहां के एसडीएम की मदद लेकर उस लड़की की लाश को खुदवाया और जब उसका पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि सारी बात सच थी। बाद में उस डॉक्टर को जिसने उस लड़की का गर्भपात किया था और उस व्यक्ति को जिसने लड़की का शारीरिक शोषण किया था, सजा सुनाई गई।
आत्मनिर्भर बनें
आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनें ताकि आप अपनी जरूरतों के लिए किसी पर निर्भर न रहें। अपने अधिकारों के लिए लडऩा सीखें। अगर आपके साथ अन्याय होता है तो उसके खिलाफ कदम उठाने की हिम्मत रखें।
रुचि वर्धन मिश्र
एसपी राजगढ़

जब मैं भोपाल में एडीशनल एसपी थी तो बेडिय़ा समाज की कई छोटी-छोटी लड़कियों के गायब होने का मामला सामने आया था। इन लड़कियों को कड़ी मेहनत के बाद अलग-अलग शहरों जैसे नागपुर, मुंबई और शिवपुरी आदि स्थानों से बरामद किया गया। इस केस में कई अपराधियों की गिरफ्तारी भी हुई। इसमें सबसे कम उम्र की जिस लड़की को बरामद किया था उसकी उम्र चार साल थी, जिन्हें वेश्यावृत्ति के लिए ले जाया जा रहा था।
संभव किया जा सकता है
अगर आप परेशान हैं तो पूरे विश्वास के साथ उस समस्या का समाधान ढंूढें। आजकल ऐसी कई संस्थाएं हैं जो आपकी मदद करने के लिए बनाई गई हैं। पारिवारिक सदस्यों की मदद से हर असंभव काम को संभव किया जा सकता है।


अनुराधा शंकर सिंह
आईजी, इंदौर
कई बार ऐसे केस सामने आते हैं जब लगता है कि इसे सुलझाना मुश्किल होगा लेकिन एक से एक कड़ी जुड़ती जाती है और मुश्किल आसान हो जाती है। जब मैं भोपाल में डीआईजी थी, उन दिनों वहां बंगलादेशी डकैतों का बहुत आतंक था। एक के बाद एक रोज ही डकैती के मामले सामने आते थे। डकैतों को पकडऩे के लिए एक टीम गठित की गई और जल्दी ही उन डकैतों को पकडऩे में हम कामयाब रहे। ऐसा ही एक केस उन दिनों का है जब मैं विदिशा में एसपी थी। वहां जगन्नाथ रथ यात्रा के समय मेला लगता है। उस मेले में एक साथ पांच लोगों की हत्या कर दी गई थी। तीन-चार महीनों तक जांच जारी रही और अंतत: अपराधी पकड़े गए।

भरोसा रखना सीखें
महिलाओं को सबसे पहले अपनी योग्यता पर भरोसा रखना सीखना चाहिए। हमेशा ईमानदारी के साथ प्रयास करके आगे बढ़ें।
सुफिया कुरैशी मुद्गल
उपनिरीक्षक, मध्यप्रदेश पुलिस

कुछ दिनों पहले ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग की चोरी हुई थी। इस प्रकरण में जांच तभी संभव थी जब ऑनलाइन शेयरिंग और इससे संबंधित तकनीकी ज्ञान की जानकारी हो। इस केस के लिए सारी जानकारी इक_ा करने और तकनीकी बातों को जानने में मेहनत भी खूब हुई और अच्छे परिणाम सामने आने पर संतुष्टि भी मिली। ये लगा कि मैं अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से निभा सकी।

आगे बढऩे का प्रयास करें
अपने कर्तव्यों को निभाने के साथ-साथ अपनी विशेषताओं को समझते हुए आगे बढऩे का प्रयास करें। सफलता उन्हें मिलती है जिनमें इसे पाने का जज्बा होता है।
कवर स्टोरी
जब हुई किताबों से दोस्ती

सारा संसार किताबों में समाया हुआ है। किताबों से अच्छा कोई दोस्त भी नहीं हो सकता। हम जो मुकाम हासिल करते हैं वो किताब की ही बदौलत मिलता है। दुनिया देखने के लिए नजरिया इन किताबों से ही मिलता है। हर व्यक्ति के संघर्ष के दिनों में किताबें उसका साथ देने और हौसला बढ़ाने का काम बखूबी करती हैं। प्रस्तुत हैं किताबों को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानने वाले चंद ऐसे लेखकों के विचार जिनके जीवन में किताबों का प्रभाव देखते ही बनता है...

कविताओं में गहराई है
नीलेश रघुवंशी
मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखित मां, निर्मल वर्मा की कहानियां, अज्ञेय की शेखर एक जीवनी, विष्णु खरे का कविता संग्रह सबकी आवाज के परदे में, विनोद कुमार शुक्त, मुक्तिबोध, जयशंकर प्रसाद और नागार्जुन की कविताएं पढऩा मुझे पसंद है।  जयशंकर प्रसाद की कविताओं में गहराई है। मुक्तिबोध हिंदी के पहले विद्वान माने जाते हैं। उनकी विद्वता उनके साहित्य से पता चलती है। विष्णु खरे ने अपनी कविताओं के माध्यम से काव्य का पूरा ढांचा ही बदल दिया। मुझे लगता है कि इनकी किताबों से जीवन की दिशा ही बदली जा सकती है।
आज भी अच्छे साहित्यकारों की कमी नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि इतनी अधिक किताबें और पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जिनमें से अच्छी रचनाओं का चयन करना पाठकों के लिए मुश्किल हो जाता है। पाठकों की कमी होने के भी कई कारण हैं जिनमें सबसे पहला कारण लेखक और पाठक के बीच संवाद की कमी है। किताबें छपना आसान है लेकिन उसमें से अच्छी किताबों का चयन कर हर व्यक्ति को समय निकालकर उसका लाभ लेना चाहिए।
सोचने पर मजबूर कर दे
मंजूर एहतेशाम
प्रेमचंद की रचना गोदान और राही मासूम रजा द्वारा लिखित नया गांव पढ़कर उस समय के समाज और हालात का अंदाजा पूरी तरह लगाया जा सकता है। अगर नए लेखकों की बात करें तो नीलेश रघुवंशी ने एक कस्बे के नोट्स बहुत अच्छा लिखा है। इसी तरह अलका सराव ने कलिकथा की रचना बखूबी की है।
हर युग में लिखी गई किताबें उस वक्त के समाज और स्थितियों से अवगत कराती हैं। मुंशी प्रेमचंद ने गोदान के माध्यम से सदियों पहले किसानों के साथ होने वाले अत्याचारों का वर्णन बखूबी किया है। कृष्णा सोबती ने अपने उपन्यास जिंदगीनामा के माध्यम से जिंदगी की हकीकत को प्रदर्शित किया है।
एक महान रचना वो होती है जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर दे। महुआ मांझी का उपन्यास मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ, में उन्होंने आदिवासियों की परेशानियों को इतनी सजीवता के साथ प्रस्तुत किया है, जिसे पढ़कर उनकी समस्याओं का ज्ञान होता है और उनके लिए हमदर्दी होने लगती है। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा ही साहित्य समाज की दिशा बदलने का काम करता है।
दायरा सिमट रहा है
मालती जोशी
मैं जब स्कूल में थी तो मैंने शरतचंद्र चटोपाध्याय की महान रचना शरद साहित्य पढ़ी थी। उनकी इस रचना का प्रभाव मेरी कहानियों के रूप में भी दिखाई देता है। उन्होंने पुरुष होते हुए भी नारीमन की संवेदनाओं का सजीव चित्रण किया है।
अच्छी किताबें पढऩे वाले पाठकों की संख्या लगातार कम हो रही है। इसकी बहुत बड़ी वजह टीवी और मोबाइल के प्रति लोगों की गहरी रुचि भी है। लंबी कहानी पढऩे में पाठकों की रुचि दिखाई नहीं देती। साहित्य के लिए उनके पास समय नहीं है जिसके चलते साहित्य का दायरा सिमटता जा रहा है। आज जरूरत ऐसे साहित्य की रचना करने की है जिसे सरल भाषा और सीमित शब्दों में लिखा जाए ताकि कम समय में भी पाठक उसका लाभ ले सकें।

उर्मिला शिरीष
पढऩे की लगन खत्म हो गई
लियो टॉलस्टाय द्वारा लिखित अन्ना कारेनिना और प्रेमचंद का गोदान मानवीय मूल्यों, संबंधों और उस वक्त के समाज को प्रकट करती हैं। किताबें हमारी सोच को बदलने का काम बखूबी करती हैं। मैंने एक वो दौर देखा है जब लोगों को दिन-रात किताबों के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था, लेकिन आज पढऩे की लगन खत्म हो गई है। युवा पीढ़ी द्वारा किताबों के महत्व को समझने की सख्त जरूरत है।
लेखन दोयम दर्जे का है
राजेश जोशी
डॉ. तुलसी राम द्वारा लिखित मुर्दहिया, अरुण कमल का काव्य संग्रह मैं शंख महाशंख के अलावा किताब घर ने दूसरी बार दस कवियों के कविता संग्रह का प्रकाशन किया है, जो मुझे अच्छा लगा। रूसी लेखक रसूल हम्जौतौव की रचना मेरा दागिस्तान विशिष्टï शैली में लिखी गई है। मनोहर श्याम जोशी ने कुरू: कुरू: स्वाहा इतने रोचक अंदाज में लिखा है जिसे हर पाठक पढऩा चाहता है। भारतीय इंग्लिश लेखन दोयम दर्जे का है जिसके पाठक हमारे देश में अधिक हैं। इन किताबों के प्रति उनका आकर्षण हिंदी साहित्य की किताबों से अधिक दिखाई देता है।