मंगलवार, 4 मार्च 2014


हसरतें और भी हैं


फिलहाल हम अंतर्राष्ट्रीय महिला सप्ताह मना रहे हैं और इस अवसर पर ऐसी कई चुनौतियों की बात की जानी चाहिए जिनका सामना हर तरह से महिलाएं कर रही हैं। यहां यह समझना भी जरूरी है कि चंद महिलाओं की भलाई से पूरे नारी समाज का कल्याण नहीं हो सकता। अगर महिलाओं को सशक्त करना है तो पहले समाज को जागरूक करना होगा। जागरूकता के प्रति प्रशासनिक अधिकारी तो अपना काम कर ही रहे हैं लेकिन उनकी पत्नियां भी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां पूरी निष्ठा के साथ निभा रही हैं। समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की हसरतें ही इन्हें अन्य महिलाओं के लिए मिसाल साबित करती हैं। इस अंक की कवर स्टोरी ऐसी ही महिलाओं पर आधारित है जिनके योगदान से न सिर्फ महिलाओं को सीखने का मौका मिल रहा है, बल्कि वे पूरे आत्मविश्वास के साथ नई इबारत की नींव रख रही हैं....
सीमा रायजादा
सीमा रिटायर्ड इलेक्शन कमिश्नर अजीत रायजादा की पत्नी हैं। सरोजिनी नायडू कन्या महाविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर डॉ. सीमा रायजादा ने दो साल पहले क्लब लिटरेटी की शुरुआत की थी। इस क्लब के बारे में सीमा कहती हैं मैं कॉलेज में विद्यार्थियों को साहित्य पढ़ाती हूं। साहित्य के प्रति इन विद्यार्थियों के अलावा अन्य लोगों में जागरूकता पैदा हो, इस उद्देश्य से मैंने इस क्लब की शुरुआत की। ये क्लब साहित्यिक विचारों को मंच पर लाने का एक अवसर है जहां न सिर्फ भारतीय साहित्यकारों, बल्कि विश्व के प्रसिद्ध साहित्यकारों के विचार आम लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। इसके अलावा पैनल डिस्कशन, बुक रीडिंग और बुक रिव्यू के माध्यम से नए साहित्य के बारे में जानकारी तो दी ही जाती है, साथ ही स्कूल के बच्चों की प्रतिभा लोगों के सामने लाने का प्रयास भी होता है। क्लब ने पिछले दो साल में नौ इवेंट्स किए हैं।
आत्मविश्वास बढ़ाएं
महिलाओं में योग्यता की कमी नहीं है। अगर उन्हें प्रतिभा दिखाने का मौका मिले तो वे अपना लोहा मनवा सकती हैं। कामकाजी महिलाओं के अलावा घर में रहने वाली महिलाएं भी पूरे दिन मेहनत करती हैं लेकिन उन्हें सम्मान नहीं मिल पाता। जरूरत इस बात की है कि महिलाएं अपना आत्मविश्वास बढ़ाएं। साथ ही लड़कियों को परंपरा से हटकर नए क्षेत्र में कैरियर बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अपर्णा लाड़
इनके पति सुधीर लाड़ बैतूल में एसपी के पद पर कार्यरत हैं। अपर्णा ने एक साल पहले नर्मदा कॉलेज ऑफ फाइन आट्र्स की शुरुआत की है। अपर्णा कहती हैं, मेरे पति की पोस्टिंग जहां भी रही, वहां मैं बच्चों को फाइन आट्र्स सिखाती थी। बच्चों की कला के प्रति रुझान देखकर मैंने इस कॉलेज की स्थापना करने का विचार किया ताकि उन्हें इस कला को सीखने के बाद उसकी डिग्री भी मिल सके। उनके पास सर्टिफिकेट हो जिससे उन्हें रोजगार के अवसर मिलेें। किसी भी कला को सीखने के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं होता इसलिए उन्होंने अपने कॉलेज में यह प्रावधान रखा है कि हर उम्र के लोग यहां आकर पढ़ाई कर सकते हैं। अपर्णा मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्चों को भी अपने कॉलेज में फाइन आर्ट की शिक्षा देती हैं।
संस्कारों को न छोड़ेें
अपने संस्कारों को हमेशा याद रखेें। यह सोच अगर अभिभावकों में होगी तो बच्चे स्वयं अच्छे संस्कारों को अपनाएंगे। रही बात नारी स्वतंत्रता की तो इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने से बचें। महिलाओं के लिए जितना जरूरी हमारी परंपराओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना और उन्हें बनाए रखना है, उतना ही जरूरी उनके लिए संस्कारों की रक्षा करना भी है।
शिल्पी अगनानी
शिल्पी मनोहर अगनानी की पत्नी हैं। मनोहर  कमिश्नर फूड एंड सिविल सप्लाइज के पद पर  हैं।
जिस परिवार में एक बेटी है, उन परिवारों के लिए बिटिया संस्था की शुरुआत की गई है। चार साल पहले स्थापित इस संस्था की शाखाएं भोपाल के अलावा ग्वालियर और जबलपुर में हैं। इस संस्था को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं शिल्पी अगनानी। शिल्पी के शब्दों में, हमारे समाज में लड़का-लड़की के बीच आज भी भेदभाव किया जाता है। जिन परिवारों में पहला बच्चा लड़की हो और वे दूसरा बच्चा न चाहते हों, उन परिवारों को प्रोत्साहित करने के लिए इस संस्था की स्थापना की गई है। इस संस्था द्वारा समय-समय पर ऐसे कार्यक्रम किए जाते हैं जिससे बेटी के माता-पिता उन्हें लड़कों के समान अवसर देें और अच्छी परवरिश कर सकें। इसके अलावा यह संस्था कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ काम करती है।
सम्मान करना सीखें
अगर हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं तो सबसे पहले महिलाओं को अपना सम्मान खुद करना सीखना होगा। कई महिलाएं परिवार में सबका ध्यान रखती हैं लेकिन जब बात खुद उनका ख्याल रखने की हो तो वे लापरवाह हो जाती हैं। जितना जरूरी औरत के लिए अपना सम्मान करना है, उतना ही हर औरत का सम्मान करना भी। बुरा तो तब लगता है जब एक औरत दूसरी औरत के लिए द्वेष की भावना रखती है। अगर महिलाएं काम करने से पहले ही यह सोच लें कि कुछ नहीं कर सकती तो कुछ भी नहीं होगा। सबसे पहले अपनी शक्ति को पहचानें और फिर काम पूरा करने में जुट जाएं।
बंदिता श्रीवास्तव
जनसंपर्क कार्यालय के कमिश्नर राकेश कुमार श्रीवास्तव की पत्नी हैं बंदिता श्रीवास्तव। लोक चित्रकला और ट्राइबल आर्ट को रंगबिरंगे रंगों द्वारा कैनवास पर उतारने की कला में निपुण हैं बंदिता। वे पिछले पंद्रह सालों से इन कलाओं के प्रति समर्पित हैं। बंदिता के अनुसार मैंने पंद्रह साल पहले ग्वालियर में रहते हुए इस कला को सीखने की शुरुआत की थी। इस दिशा में काम करते हुए बंदिता ने स्टोन पर काम करने वाले कई कलाकारों को लोक कलाओं की शिक्षा दी। आज उन कलाकारों की आजीविका का प्रमुख साधन यही कला है। बंदिता को इस बात की खुशी है कि उनके प्रयासों से इन कलाकारों को रोजगार मिला। वे चाहती हैं लोक कलाओं के प्रति लोगों को प्रोत्साहन मिलना जरूरी है। भारतीय पारंपरिक लोक कलाओं को सहेजने की जिम्मेदारी हमारी ही है। इसके प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
नैतिक शिक्षा जरूरी है
जीवन के संघर्ष में महिलाओं के लिए सबसे जरूरी है साहस के साथ उन परिस्थितियों का सामना करना। इन गुणों का विकास करने के लिए पारिवारिक पृष्ठभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिन परिवारों में लड़कियों को बचपन से हर हालात का हिम्मत से सामना करना सिखाया जाता है, वहां मुश्किलों से पार पाना वे खुद सीख जाती हैं।



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