शनिवार, 20 सितंबर 2014

जोशीले जीनियस 

 

ऐसे कई लोग हैं, जिनमें योग्यता की कमी नहीं है। साथ ही ऐसे लोगों की संख्या भी अधिक है, जिन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद भी अन्य प्रोफेशन में ऊंचा नाम हासिल किया। अपना शौक पूरा करने की धुन उन्हें इस मुकाम पर ले आई, जहां आज उनकी डिग्री के बारे में कोई बात भी नहीं करता। 
सपने वे नहीं होते, जो आपको रात में सोते समय नींद में आएं। बल्कि सपने वे होते हैं, जो रात में सोने न दें। ऐसी बुलंद सोच रखने वाले मिसाइल मैन, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारत रत्न से सम्मानित एपीजे अब्दुल कलाम ने जब देश के सर्वोच्च पद यानी 11वें राष्ट्रपति की शपथ ली तो हर वैज्ञानिक का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। मिसाइल मैन के नाम से जाने जाने वाले कलाम भारतीय मिसाइल प्रोग्राम के जनक कहे जाते हैं। एयरोनॉटिकल इंजीनियर कलाम अपनी पांचवीं कक्षा के अध्यापक सुब्रह्मण्यम अय्यर से प्रभावित थे।
राजनैतिक अखाड़े में चाणक्य कहे जाने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पटना से अभियांत्रिकी में स्नातक की डिग्री ली। अन्य राजनीतिक पार्टियां जहां जातपांत की रोटी सेंकने में व्यस्त रहीं, वहीं सोशल इंजीनियरिंग के जादूगर नीतीश कुमार के राजनैतिक दांवपेंच किसी से छिपे हुए नहीं हैं।
सुपरमॉडल सिंडी क्राफोर्ड को मॉडलिंग की दुनिया इतनी रास आई, जिसके चलते उन्होंने अपनी पढ़ाई से किनारा कर लिया। सिंडी ने नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग में एडमीशन लिया। कॉलेज में उन्होंने कुछ सेमेस्टर भी अटैंड किए, लेकिन मॉडलिंग के लिए अवसर मिलते ही उन्होंने इंजीनिरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और माडलिंग जगत में अपनी वो पहचान बनाई, जिसके चलते उम्र के पचास साल पूरे होने के बाद भी वे सुपर मॉडल के तौर पर छाई हुई हैं। इन हस्तियों ने पढ़ाई के शुरुआती दिनों में कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन अपनी डिग्री से अलग वे देश-दुनिया में शोहरत हासिल करेंगे।  चेतन भगत ने 1991-95 में मैकेनिकल इंजीनिरिंग की डिग्री दिल्ली से ली थी। कौन जानता था कि इस क्षेत्र से अलग चेतन एक लेखक के रूप में सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के युवाओं के प्रेरणास्रोत साबित होंगे। उनके उपन्यास द थ्री मिस्टेक्स ऑफ माय लाइफ और फाइव पॉइंट समवन से वे दुनिया में छा गए। आज हालत यह है कि बाजार में आने से पहले ही उनकी नई किताब का लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इन दिनों यही उत्सुकता उनकी दो महीने बाद प्रकाशित होने वाली किताब हाफ गर्लफें्रड को लेकर बनी हुई है।
चर्चित टीवी धारावाहिक 'पवित्र रिश्ताÓ में मानव के किरदार ने सुशांत राजपूत को हर घर में लोकप्रियता दिलाई, लेकिन उन्होंने छोटे पर्दे को अलविदा कह अभिषेक कपूर की फिल्म से बॉलीवुड में पदार्पण किया। अभिनय का चस्का सुशांत पर इतना हावी था, जिसके चलते उन्होंने अपने शानदार कॅरियर को छोड़ दिया। सुशांत ने आल इंडिया इंजीनियरिंग इंट्रेंस एक्जाम में सातवीं रैंक हासिल की और दिल्ली के कॉलेज में एडमीशन लिया। फिजिक्स में वे नेशनल ओलंपियाड विनर रहे हैं। सुशांत ने 11 नेशनल इंजीनियरिंग एक्जाम क्लीयर किए, जिसमें धनबाद का नेशनल माइंस भी शामिल है। लेकिन एक हीरो के रूप में छा जाने की धुन के चलते उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। खुद सुशांत के शब्दों में फिल्मों में आने की मेरी पहले से कोई योजना नहीं थी और न ही मैं यहां पैसा या फिर लोकप्रियता के लिए आया हूं। मुझे स्टारडम समझ नहीं आता और न ही मैं स्टार बनना चाहता हूं। हां, मैं नंबर एक अभिनेता जरूर बनना चाहता हूं। मेरा मकसद हमेशा खुद को एक अभिनेता के तौर पर उभारना है। सुशांत खुद भी मानते हैं कि उनके जीवन का ये बहुत ही रोमांचक दौर है। पिछले कुछ सालों से राजनैतिक गलियारों में चर्चित अरविंद केजरीवाल ने आईआईटी खडग़पुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और वे 1992 में भारतीय राजस्व सेवा में शामिल हुए। 2006 में जब वे आयकर विभाग में संयुक्त आयुक्त थे, तब उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी। केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सूचना का अधिकार देने का कानून बनवाया। वे एक एनजीओ (साथी) से भी जुड़े हुए हैं। केजरीवाल ने पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन नाम का एक गैर-सरकारी संगठन भी बनाया है। उन्होंने जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे के साथ मिलकर अनशन किया और धरनों, प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। नवंबर, 2012 में उन्होंने आम आदमी पार्टी की शुरुआत की, जो आज भी राजनीति में सक्रिय है।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं। अखिलेश ने इंजीनियरिंग करने के बाद मैसूर यूनिवर्सिटी से एन्वॉयरमेंट इंजीनियरिंग की मास्टर्स डिग्री ली। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी से भी इसी विषय में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है।
इंजीनियर्स ने अपने हुनर खेल के मैदान में भी बखूबी दिखाए। भारत की ओर से पांच सौ विकेट लेने वाले पहले खिलाड़ी अनिल कुंबले ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इंजीनियर्स की फेहरिस्त में श्रीसंत भी शामिल हैं। आखिरी ओवरों में पसीने से तर-बतर गेंदों पर नियंत्रण करने की कोशिश करने वाले श्रीसंत सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। ये वही श्रीसंत हैं, जो आखिरी मौके तक दम लगा देने वाले खिलाड़ी के तौर पर जाने जाते हैं। 
मेरा सहारा तू ही तू

दुनिया में जब सारे सहारे दूर हो जाते हैं, तब आध्यात्म ही वह सहारा होता है, जो संबल बनकर हमारे साथ रहता है। इसके महत्व को जानते हुए हमारे देश के अलावा विदेशियों ने भी ये मान लिया है कि आध्यात्म ही हर समस्या का समाधान है।


रामभांड, यह नाम उस शख्स का है, जिसने आध्यात्म के लिए इंग्लैंड को छोड़कर भारत आना पसंद किया, वह भी उन परिस्थितियों में, जबकि परिवार इस फैसले में उनके साथ नहीं था। राम, किसी भी स्थापित आध्यात्मिक संत की तरह परिधान नहीं धारण करते, ना ही आध्यात्म उनके लिए एकांत या पहाड़ों में खोजने का ज्ञान है।
वे जिस आध्यात्म को जानते हैं, उसे पाने के लिए किसी भी तरह के त्याग की सलाह भी नहीं देते। मुंबई से प्रोडक्शन इंजीनियरिंग, फिर इंग्लैंड का सफर और फिर तेरह साल वहां रहने के बाद मात्र आध्यात्मिक सुख के लिए भारत की मिट्टी को अपनाने का विचार कोई विरला ही कर सकता है। खुद रामभांड के शब्दों में संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा मेरे मन में हमेशा रही, लेकिन इसे मैं आध्यात्म के प्रति रुचि होने का कारण कम मानता हूं। मैं अपने आध्यात्म के प्रति रुझान का पूरा श्रेय इसके सहारे सफलता मिलने को देता हूं।
स्प्रिचुअल्टी कैन ब्रिंग सोशल चेंजेज यानी अध्यात्म से सामाजिक बदलाव हो सकता है। यह कहना है, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का। उनके अनुसार महात्मा गांधी बड़े आध्यात्मिक व्यक्ति थे। वे रोज बैठकर सत्संग किया करते थे। सबको सम्मति दे भगवान वो गाते थे। उसकी वजह से ही लोग जगह-जगह उनसे जुडऩे लगे और एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया। आध्यात्म में वो शक्ति है, जो प्रेरणादायी बनकर हमारे साथ रहती है। आदित्य बिड़ला ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन फॉर एजूकेशन प्रोजेक्ट्स नीरजा बिड़ला के शब्दों में मैं अपने एक्सपीरियंस से यही कह सकती हूं कि आध्यात्म के सहारे हम अपने काम को मन लगाकर करते हैं और फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देते हैं। आज हर व्यक्ति की सफ लता के लिए आध्यात्म बेहतरीन जरिया साबित हो सकता है। मेरा मानना है कि हर काम में अपना बेस्ट दो और फिर भगवान पर छोड़ दो। आपकी मेहनत के अनुसार भगवान आपको फल जरूर देंगे।
आध्यात्म के मायने हर व्यक्ति के लिए अलग हैं। अगर कोई इसमें अपने काम की सफलता देखता है तो कोई इसे परमेशवर की भक्ति में लीन होना मानता है। संगीतकार एआर रहमान मानते हैं कि उनका संगीत आध्यात्म से जुड़ा है और सूफी शैली ने उन्हें बहुत प्रभावित किया है। उनके अनुसार सूफी शैली इस्लाम का एक आध्यात्मिक अंग है, जो अपार प्रेम और सर्वव्यापकता से जुड़ा है। वे इससे बहुत प्रभावित हैं। ऑस्कर पुरस्कार जीत चुके रहमान ने ऑस्कर समारोह में कहा था कि उनके पास प्यार और नफरत में से एक को चुनने का विकल्प था और उन्होंने प्यार को चुना। खुद उनके शब्दों में मेरे जीवन में बहुत नकारात्मक चीजें सामने आती रहती हैं, लेकिन मैंने फैसला किया है कि मैं सकारात्मक रवैया रखूंगा।
इतनी सफलता मिलने के बाद भी रहमान काफी नम्र दिखते हैं। इस तरह के व्यक्तित्व के पीछे कारण बताते हुए वे कहते हैं, मैं एक दक्षिण भारतीय हूं और दक्षिण भारतीय बहुत सीधे-सादे लोग होते हैं। फिर मैं सूफियाना शैली से भी बहुत प्रभावित हूं, जो प्रेम और करुणा पर आधारित है। दूसरों के प्रति प्रेम का भाव मुझे आध्यात्म से जोड़े रखता है। आध्यात्म की शक्ति को देखते हुए मनीषा कोइराला ने उन दिनों इस राह पर चलना स्वीकार किया, जब वे दांपत्य संबंध में मुश्किलों का सामना कर रही थीं। अपने गम को दूर करने के लिए पहले उन्होंने शराब का सहारा लिया, लेकिन जब इससे भी वो गम भुला नहीं पाईं तो उन्होंने आध्यात्म का सहारा लिया। उन्हें विंध्यांचल में विंध्वासिनी मंदिर में समय बिताते हुए देखा जाता है। उन्होंने चे न्नई से 80 किलोमीटर दूर आध्यात्म विश्वविद्यालय में कुछ समय भी बिताया है। परेशानियों से घिर जाने के बाद जब कोई हल सामने नहीं होता तो आम व्यक्ति ही क्या मशहूर हस्तियां भी ईश्वर के सामने नतमस्तक हो जाती हैं। ऐसा ही कुछ पॉप सिंगर ऊषा उथुप के साथ उस समय हुआ, जब एक अपार्टमेंट की लिफ्ट में फंस गई थीं। ऊषा ने बीस साल की उम्र से एक नाइट क्लब में गाने की शुरुआत की। वे कहती हैं, एक बार लिफ्ट का दरवाजा बंद तो हुआ, लेकिन लिफ्ट नहीं चली। मैंने सारे बटन दबाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तभी मेरे मन में बुरे-बुरे ख्याल आने लगे। मैं लिफ्ट में अकेली थी और बार-बार यह लग रहा था कि कहीं ये लिफ्ट मेरे सिर पर न गिर जाए। मैंने तुरंत भगवान को याद करना शुरू किया। कुछ देर बाद लिफ्ट चली और जब मैं लिफ्ट से बाहर निकली तो मैंने देखा वहां लोगों की भीड़ लगी थी और वे सभी मेरे लिए प्रार्थना कर रहे थे। तभी मुझे अहसास हुआ कि भगवान उस बुरे वक्त में मेरे साथ थे और उन्होंने मेरी मदद करके मुझे बचाया।
आध्यात्म को पहचानते हुए अब हमारे देश के अलावा विदेशी भी इस शक्ति के प्रति आकृष्ट हो रहे हैं। मॉडल, हॉलीवुड अभिनेत्री और फिल्म निर्माता डेमी मूर और उनके पति कचर छह साल के विवाह के बाद 2011 में एक-दूसरे से अलग हो गए। तब मूर ने अपने अन्दर की नकारात्मकता को खत्म करने और मानसिक शांति पाने के लिए मेक्सिको के ज्योतिष और परामर्शदाता पेद्दी मूर की मदद ली। मूर मानती हैं कि मन की शांति हर व्यक्ति के लिए सबसे जरूरी होती है और जहां भी हमें शांति मिलती है, हम वहीं रुक जाते हैं। ऐसा ही कुछ आध्यात्म के साथ भी है। इसे पाने के लिए ही श्रद्धालु पवित्र स्थानों में कभी नंगे पैर तो कभी भूखे-प्यासे शीष झुकाने के लिए पहुंच ही जाते हैं, जहां ईश्वर के सामने नतमस्तक होकर वह दुनिया की हर समस्या का समाधान पा जाते हैं।
युवाओं की प्रेरणा बना आध्यात्म विज्ञान
प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है एवं विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत पर आज भी खोज जारी है। सच तो यह है कि सदियों से चली आ रही साधु-संतों के अध्यात्म की ताकत विज्ञान भी पहचानने लगा है। वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि कई खोजें जो विज्ञान में अब तक हुई हैं, धर्म के अनुयाइयों ने सदियों पहले उनकी भविष्यवाणी कर दी थी। दरअसल आध्यात्म विज्ञान एक मूल विज्ञान है, जिसे पूर्ण ज्ञान माना जाता है, क्योंकि जब तक किसी कार्य या ज्ञान के माध्यम से हम ईश्वर तक न पहुंचें, तब तक ज्ञान अधूरा रहता है और अधूरा ज्ञान हमेशा घातक होता है। 

बुधवार, 19 मार्च 2014

देखो उड़ा रे गुलाल

रंग-बिरंगा हुआ भोपाल

रंग-रंगिली होली में तन और मन को रंगने की बात हर बार होती है लेकिन इस साल की होली में अगर शहर के विभिन्न स्थानों पर होली का रंग चढ़ा दिया जाए तो क्या हो। शहर के मशहूर चित्रकार होली के हर रंग को हमेशा अपने करीब पाते हैं। उनकी कोशिश होती है कि हर रंग से समाज में फैली बुराइयों के प्रति लोगों को जागरूक करें। फिर बात अगर होली की हो तो उनकी नजरों के सामने ऐसे कई स्थान उभर आते हैं जिन्हें वे अपनी कलाकारी से विशिष्ट रंग देने की तमन्ना रखते हैं.....क्षमा कुलश्रेष्ठ
 क्षमा को प्रभावित करती हैं शहर की वो सारी दीवारें जिन्हें चित्रकारी के माध्यम से जगह-जगह सजाया गया है। इससे दीवारों की खूबसूरती बढ़ती है। शाहपुरा झील के आसपास की दीवारों को शांत रंगों से सजाने की जरूरत है। इन चित्रों के माध्यम से ऐसे संदेश देने चाहिए जो लोगों को प्रकृति और पानी बचाने के प्रति जागरूक करें।
ऐसे रंग बिखेरो
होली पर सबसे बुरा तब लगता है जब जिसे होली खेलना पसंद नहीं है उन्हें भी रंग लगा दिया जाता है। इस त्योहार पर सबसे पहले लोगों की भावनाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए। जिंदगी को रंगीन बनाने के लिए अपनी आत्मा से नकारात्मकता को दूर करना सबसे पहला काम होना चाहिए। फिर देखिए हर दिन रंगीन हो जाएगा।
बिखेरना ही है तो मुस्कराहटों का रंग बिखेरो
फिर देखो सारा जीवन इंद्रधनुष हो जाएगा।।

रंजीत अरोड़ा
रंजीत एब्सेट्रेक्ट पेंटिंग बनाते हैं और मंतशा आर्ट सोसायटी के  अध्यक्ष हैं जिसके माध्यम से युवा चित्रकारों को नए अवसर प्रदान करते हैं। अगर उन्हें अवसर मिले तो वे वन विहार को अपनी चित्रकारी के माध्यम से सजाएंगे। वन विहार से झील का किनारा देखने में बहुत सुंदर लगता है। वे चाहते हैं कि यदि प्रशासन इजाजत दे तो यहां कैंप लगाकर अन्य चित्रकारों के साथ पेंटिंग करें।

गुलाब से होली का आनंद
भोपाल गंगा जमुनी तहजीब की पहचान है। यहां मनाया जाने वाला हर त्योहार खास होता है। उनके कुछ दोस्तों ने गुलाब की पत्तियों से होली खेलने की पहल की है। इससे पानी की बचत होगी और होली खेलने का आनंद भी बना रहेगा। ऐसा ही प्रयास सूखी होली या फूलों की होली के माध्यम से सभी को करना चाहिए।
साजिद प्रेमी

न्यू मार्केट में टॉप एन टाउन वाली लाइन में या वीआईपी रोड के सामने वाली दीवारों को साजिद अपनी चित्रकारी से नया रूप देना चाहते हैं। शहर के बाहर से आने वाले सभी वीआईपी जब यहां आते हैं तो इसी रोड से गुजरते हैं इसलिए यहां की दीवारों को सुंदर बनाने की जरूरत है। साथ ही गौहर महल में चित्रकारी का अपना मजा है तो ताजमहल एक ऐसी जगह है जहां पेंटर्स को काम करना चाहिए ताकि भोपाल की इस धरोहर के बारे में लोगों को पता चल सके।
सादगी से मनाएं
हर्ष और उल्लास के साथ होली का आनंद लें। सादगी के साथ इसे मनाने से त्योहार का मजा बढ़ जाता है।
देवीलाल पाटीदार
भोपाल की बड़ी झील में पानी के रूप में जीवन है। वहां लोग रहें या न रहें लेकिन झील हमेशा जीवित रहते हुए शहर की खूबसूरती बढ़ाती है। यंू तो इसे निखारने के लिए समय-समय पर काम किए जा रहे हैं लेकिन इसके आस-पास अगर चित्रकारी करने का मौका मिले तो इससे झील की सुंदरता में निखार आएगा। यहां ऐसी पेंटिंग की जानी चाहिए जिस पर मौसम का असर न हो जैसे म्यूरल्स। वाटर कलर से की गई पेंटिंग इस जगह के लिए उपयुक्त है।
स्रोत खराब न हो
होली ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसे मनाने के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत नहीं होती। होली पर पानी के स्रोत खराब न हों, इस बात का ध्यान सभी को रखना चाहिए।
मंजुषा गांगुली

चित्रकार का रंगों से गहरा नाता होता है जो उसे हर वक्त ताजगी और ऊर्जा प्रदान करते हैं। शहर की सुंदरता में चार चांद लगाने की बात हो तो पालीटेक्निक चौराहे के आस-पास की दीवारों पर जो चित्रकारी की गई है, वो अगर किसी चित्रकार से कराई जाए तो देखने में ज्यादा अच्छा लगेगा। इसके अलावा भारत भवन कला केंद्र के रूप में विख्यात है जिसे मंजुषा गांगुली अपने रंगों से सजाना चाहती हैं।

याद है कोलकाता की होली
कोलकाता में गुलाल से होली खेलने की परंपरा है। वहां पलाश के फूलों से रंग बनाए जाते हैं और उनसे होली खेली जाती है। रवींद्रनाथ टैगोर के गीतों पर ढोल मंजीरे के साथ किया जाने वाला नृत्य लोगों को हमेशा याद रहता है। गीले रंगों वाली होली खेलने से होने वाले नुकसान को देखते हुए सूखी होली खेलें और इस त्योहार का पूरा आनंद लें।
अर्चना यादव

अगर हम बीएचईएल की बात करें तो यहां के शांत माहौल में चित्रकारों को काम करना चाहिए। इस क्षेत्र की खूबसूरती को बढ़ाने में पेंटर्स की खास भूमिका होनी चाहिए। विशेष तौर से सारंगपाणी झील के आसपास चित्रकारी करने की तमन्ना अर्चना की भी है। उनके अनुसार यह एक ऐसी झील है जिसके बारे में शहरवासियों को कम ही मालूम है। यहां अगर चित्रकारी करने का मौका मिले तो वे वाल पेंटिंग और पार्ट पीसेस से दीवारों की सुंदरता बढ़ाना चाहेेंगी।

ऐसी घटनाएं न हों
होली के आस-पास अपराधों की संख्या बढ़ जाती है। खुशी के अवसर पर इस तरह की घटनाएं नहीं होना चाहिए।
अखिलेश
अखिलेश को लगता है कि सिर्फ पेंटिंग से नहीं बल्कि लैंडस्केपिंग के माध्यम से न्यू मार्केट की सुंदरता बढ़ाई जा सकती हैं। इसी तरह का काम मैं जुमेराती और गौहर महल में भी करना चाहता हूं।
आनंद लें
होली खुशियों और उम्मीदों का तैयार है इसका भरपूर आनंद सभी को लें।


मंगलवार, 4 मार्च 2014

दर्द-ए-मुफलिसी
मुफलिसी का दर्द क्या होता है, ये वही महसूस करते हैं जिन्होंने इस दर्द को सहा हो। ऐसे ही दर्द से गुजरे हैं समाज को सच का आईना दिखाने वाले वो साहित्यकार जिन्हें समाज की ढाल माना जाता है। पाठकों को सच का आईना दिखाने वाले इन लेखकों की दुर्दशा का पता इसी बात से चलता है कि दिन-रात कड़ी मेहनत करने के बाद जब पाठकों के समक्ष उनकी किताबें आती हैं तो उसके एवज में उन्हें इतना पैसा भी नहीं मिलता जिससे दो वक्त का गुजारा हो सके। इसी वजह से न चाहते हुए भी लेखन से अलग नौकरी करना उनकी जरूरत बन जाता है। इसी हफ्ते प्रसिद्ध साहित्यकार अमरकांत हमारे बीच में नहीं रहे। अमरकांत की तुलना गोर्की और प्रेमचंद से की जाती है। जी हां ये वही अमरकांत थे जिन्हें अपनी रचना के लिए साहित्य का वरिष्ठ सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में तो मिला लेकिन उम्र भर वे एक अच्छे घर के लिए तरसते रहे....

एक वो थे जो खुशी की तलाश में मर जाते थे, एक हम हैं जो गम-ए-जिंदगी में जिये जा रहे हैं।
मिर्जा गालिब के इस शेर ने जिंदगी में मिलने वाले हर गम को अपनी कलम के माध्यम से बयां किया। गालिब के पिता अब्दुल्ला बेग युद्ध में मारे गए। उस वक्त गालिब की उम्र पांच साल थी।
13 साल की उम्र में उनकी शादी उमराव बेगम से हुई और सात बच्चे भी पैदा हुए लेकिन उनमें से एक भी जीवित नहीं रहा। बाद में उन्होंने अपने भतीजे को गोद लिया लेकिन वो भी कम उम्र में चल बसा। उसके बाद गालिब का पीछा न कभी शराब ने छोड़ा और न ही गरीबी और बीमारी ने। जिंदगी की परेशानियां लेखक के दिल की जुबां बनकर उसके लेखन से पता चलती है। अपने लेखन में आम आदमी के संघर्ष को भाषा व अभिव्यक्ति देने वाले कथाकार अमरकांत ने अपने साहित्य में मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की समस्याओं को व्यक्त किया है। इन समस्याओं को बयां करना उनके लिए शायद इसी वजह से आसान रहा होगा क्योंकि उन्होंने खुद जिंदगी भर ऐसी ही परेशानियों का सामना किया था। अमरकांत के स्वभाव के संबंध में रवींद्र कालिया लिखते हैं- वे अत्यन्त संकोची व्यक्ति हैं। अपना हक मांंगने में भी संकोच कर जाते हैं। उनकी प्रारम्भिक पुस्तकें उनके दोस्तों ने ही प्रकाशित की थीं।...एक बार बेकारी के दिनों में उन्हें पैसे की सख्त जरूरत थी, पत्नी मरणासन्न पड़ी थीं। ऐसी विषम परिस्थिति में प्रकाशक से ही सहायता की अपेक्षा की जा सकती थी। बच्चे छोटे थे। अमरकान्त ने अत्यन्त संकोच, मजबूरी और असमर्थता में मित्र प्रकाशक से रॉयल्टी के कुछ रुपये मांगे, मगर उन्हें दो टूक जवाब मिल गया,  पैसे नहीं हैं। अमरकान्तजी ने सब्र कर लिया और एक बेसहारा मनुष्य जितनी मुसीबतें झेल सकता था, चुपचाप झेल लीं। सन् 1954 में अमरकान्त को हृदय रोग हो गया था। तब से वह एक जबरदस्त अनुशासन में जीने लगे। अपनी लडख़ड़ाती हुई जिन्दगी में अनियमितता नहीं आने दी। लडख़ड़ाती जिंदगी जीना देश के कई दिग्गज साहित्यकारों का नबीस ही रहा है। कहानी सम्राट प्रेमचंद के पिता पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे। कम उम्र में ही माता-पिता चल बसे और सौतेली मां व उनके बच्चे की जिम्मेदारी प्रेमचंद पर आ गई। जिस लड़की से शादी की उनसे उनकी अनबन ही रही, आखिर में तंग आकर 1899 में उन्होंने तलाक ले लिया। 1906 में शिवरानी देवी से उन्होंने विवाह किया। 1899 में गांव छोड़कर चूनार के स्कूल में स्कूल मास्टर बन गए।
इस छोटे से गांव में नौकरी करते हुए जो थोड़ा बहुत पैसा मिलता था उससे सौतेली मां, उनके बच्चों और खुद अपने परिवार का पालन-पोषण करना उनके लिए बहुत मुश्किल था। पैसों की तंगी उस वक्त भी रही जब उन्होंने परेशानियों से तंग आकर चूनार गांव छोड़ दिया और रही सही नौकरी भी गई। प्रेमचंद ने 1936 में पहली आल इंडिया कांफ्रेंस लेखक संघ के रूप में प्रारंभ की थी। हर चुनौती को स्वीकार करते हुए भी जीवन के अंतिम समय तक उन्होंने लिखना जारी रखा। उनके द्वारा लिखित उपन्यास मंगलसूत्र अधूरा ही रहा क्योंकि उसी दौरान 8 अक्टूबर 1936 को वे दुनिया से चले गए। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के बिना हिंदी कविता ही नहीं, बल्कि भारतीय कविता की यात्रा भी अधूरी है। गालिब के बाद निराला भारतीय कविता के सबसे महत्वपूर्ण कवि हैं।   पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को बचपन में ही हो गया। उन्होंने दलित-शोषित किसानों के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। उनका आखिरी समय इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मोहल्ले में स्थित  एक कमरे के घर में उनकी मृत्यु हुई। समाज को सच का आइना दिखाने वाले अधिकांश साहित्यकारों के सितारे गॢदश में ही रहते हैं। होशंगाबाद में जन्मे हरिशंकर परसाई ने अपनी रचनाओं से समाज की उन कमजोरियों और विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्टï किया जिनका सामना पैसों की तंगी और छोटी सी नौकरी के चलते उन्हें हमेशा करना पड़ा।


हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी लेखकों को इतनी रॉयल्टी मिलती है उसी के बल पर वे अपनी आजीविका चला सकते हैं लेकिन एक हिंदी लेखक ये कभी नहीं सोच सकता कि सिर्फ लेखन के माध्यम से वे परिवार के साथ बिना नौकरी किए रह सकता है। वो भी तब जब लेखकों के लेखन स्तर में कहीं कमी नहीं आई है लेकिन आर्थिक दृष्टि से लेखकों के लिए आज भी वही दयनीय स्थिति बनी हुई है जो निराला, मुक्तिबोध जैसे महान लेखकों के साथ थी। कई बार न चाहते हुए भी साहित्यकारों को लेखन से अलग नौकरी करना पड़ती है ताकि परिवार का खर्च चल सकें।
उद्यन वाजपेयी

लेखकों को न तो प्रकाशक रॉयल्टी देते हैं और न ही किताबें इतनी संख्या में बिकती हैं जिससे अच्छी कमाई की उम्मीद हो। जो पैसा मिलता है, वो टाइपिंग में चला जाता है। सरकार की ओर से लेखकों के लिए कोई योजना नहीं है। जो वरिष्ठ सम्मान उन्हें मिलते भी हैं तो वह तब मिलते हैं जब उनकी उम्र साठ-सत्तर के करीब होती है। ऐसे कितने लेखक हैं जिन्हें अनुदान राशि मिलती है?
उर्मिला शिरीष
अमरकांत जैसे देश के महान साहित्यकार अपने जीवन के अंतिम समय तक मित्र प्रकाशन में बहुत कम तनख्वाह में नौकरी करते रहे। भारत में स्वतंत्र लेखन करने वाले लेखकों के लिए परिवार की जिम्मेदारी उठाना मुश्किल है। आज जरूरत इस बात की है कि लेखकों को रॉयल्टी मिलने के नियम बनाए जाएं। कई कॉलेज की किताबों में उनकी रचनाएं प्रकाशित हैं लेकिन इन रचनाओं का पैसा रचनाकारों को कभी नहीं मिलता। हमारे देश में सांस्कृतिक केंद्रों की कमी नहीं है लेकिन कहीं भी बुक कार्नर नहीं है। जबकि हर सांस्कृतिक केंद्र में कम से कम एक बुक कॉर्नर हो जहां से साहित्य प्रेमी अपनी मनपसंद किताब खरीद सकें।
राजेश जोशी

हसरतें और भी हैं


फिलहाल हम अंतर्राष्ट्रीय महिला सप्ताह मना रहे हैं और इस अवसर पर ऐसी कई चुनौतियों की बात की जानी चाहिए जिनका सामना हर तरह से महिलाएं कर रही हैं। यहां यह समझना भी जरूरी है कि चंद महिलाओं की भलाई से पूरे नारी समाज का कल्याण नहीं हो सकता। अगर महिलाओं को सशक्त करना है तो पहले समाज को जागरूक करना होगा। जागरूकता के प्रति प्रशासनिक अधिकारी तो अपना काम कर ही रहे हैं लेकिन उनकी पत्नियां भी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां पूरी निष्ठा के साथ निभा रही हैं। समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की हसरतें ही इन्हें अन्य महिलाओं के लिए मिसाल साबित करती हैं। इस अंक की कवर स्टोरी ऐसी ही महिलाओं पर आधारित है जिनके योगदान से न सिर्फ महिलाओं को सीखने का मौका मिल रहा है, बल्कि वे पूरे आत्मविश्वास के साथ नई इबारत की नींव रख रही हैं....
सीमा रायजादा
सीमा रिटायर्ड इलेक्शन कमिश्नर अजीत रायजादा की पत्नी हैं। सरोजिनी नायडू कन्या महाविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर डॉ. सीमा रायजादा ने दो साल पहले क्लब लिटरेटी की शुरुआत की थी। इस क्लब के बारे में सीमा कहती हैं मैं कॉलेज में विद्यार्थियों को साहित्य पढ़ाती हूं। साहित्य के प्रति इन विद्यार्थियों के अलावा अन्य लोगों में जागरूकता पैदा हो, इस उद्देश्य से मैंने इस क्लब की शुरुआत की। ये क्लब साहित्यिक विचारों को मंच पर लाने का एक अवसर है जहां न सिर्फ भारतीय साहित्यकारों, बल्कि विश्व के प्रसिद्ध साहित्यकारों के विचार आम लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। इसके अलावा पैनल डिस्कशन, बुक रीडिंग और बुक रिव्यू के माध्यम से नए साहित्य के बारे में जानकारी तो दी ही जाती है, साथ ही स्कूल के बच्चों की प्रतिभा लोगों के सामने लाने का प्रयास भी होता है। क्लब ने पिछले दो साल में नौ इवेंट्स किए हैं।
आत्मविश्वास बढ़ाएं
महिलाओं में योग्यता की कमी नहीं है। अगर उन्हें प्रतिभा दिखाने का मौका मिले तो वे अपना लोहा मनवा सकती हैं। कामकाजी महिलाओं के अलावा घर में रहने वाली महिलाएं भी पूरे दिन मेहनत करती हैं लेकिन उन्हें सम्मान नहीं मिल पाता। जरूरत इस बात की है कि महिलाएं अपना आत्मविश्वास बढ़ाएं। साथ ही लड़कियों को परंपरा से हटकर नए क्षेत्र में कैरियर बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अपर्णा लाड़
इनके पति सुधीर लाड़ बैतूल में एसपी के पद पर कार्यरत हैं। अपर्णा ने एक साल पहले नर्मदा कॉलेज ऑफ फाइन आट्र्स की शुरुआत की है। अपर्णा कहती हैं, मेरे पति की पोस्टिंग जहां भी रही, वहां मैं बच्चों को फाइन आट्र्स सिखाती थी। बच्चों की कला के प्रति रुझान देखकर मैंने इस कॉलेज की स्थापना करने का विचार किया ताकि उन्हें इस कला को सीखने के बाद उसकी डिग्री भी मिल सके। उनके पास सर्टिफिकेट हो जिससे उन्हें रोजगार के अवसर मिलेें। किसी भी कला को सीखने के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं होता इसलिए उन्होंने अपने कॉलेज में यह प्रावधान रखा है कि हर उम्र के लोग यहां आकर पढ़ाई कर सकते हैं। अपर्णा मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्चों को भी अपने कॉलेज में फाइन आर्ट की शिक्षा देती हैं।
संस्कारों को न छोड़ेें
अपने संस्कारों को हमेशा याद रखेें। यह सोच अगर अभिभावकों में होगी तो बच्चे स्वयं अच्छे संस्कारों को अपनाएंगे। रही बात नारी स्वतंत्रता की तो इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने से बचें। महिलाओं के लिए जितना जरूरी हमारी परंपराओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना और उन्हें बनाए रखना है, उतना ही जरूरी उनके लिए संस्कारों की रक्षा करना भी है।
शिल्पी अगनानी
शिल्पी मनोहर अगनानी की पत्नी हैं। मनोहर  कमिश्नर फूड एंड सिविल सप्लाइज के पद पर  हैं।
जिस परिवार में एक बेटी है, उन परिवारों के लिए बिटिया संस्था की शुरुआत की गई है। चार साल पहले स्थापित इस संस्था की शाखाएं भोपाल के अलावा ग्वालियर और जबलपुर में हैं। इस संस्था को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं शिल्पी अगनानी। शिल्पी के शब्दों में, हमारे समाज में लड़का-लड़की के बीच आज भी भेदभाव किया जाता है। जिन परिवारों में पहला बच्चा लड़की हो और वे दूसरा बच्चा न चाहते हों, उन परिवारों को प्रोत्साहित करने के लिए इस संस्था की स्थापना की गई है। इस संस्था द्वारा समय-समय पर ऐसे कार्यक्रम किए जाते हैं जिससे बेटी के माता-पिता उन्हें लड़कों के समान अवसर देें और अच्छी परवरिश कर सकें। इसके अलावा यह संस्था कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ काम करती है।
सम्मान करना सीखें
अगर हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं तो सबसे पहले महिलाओं को अपना सम्मान खुद करना सीखना होगा। कई महिलाएं परिवार में सबका ध्यान रखती हैं लेकिन जब बात खुद उनका ख्याल रखने की हो तो वे लापरवाह हो जाती हैं। जितना जरूरी औरत के लिए अपना सम्मान करना है, उतना ही हर औरत का सम्मान करना भी। बुरा तो तब लगता है जब एक औरत दूसरी औरत के लिए द्वेष की भावना रखती है। अगर महिलाएं काम करने से पहले ही यह सोच लें कि कुछ नहीं कर सकती तो कुछ भी नहीं होगा। सबसे पहले अपनी शक्ति को पहचानें और फिर काम पूरा करने में जुट जाएं।
बंदिता श्रीवास्तव
जनसंपर्क कार्यालय के कमिश्नर राकेश कुमार श्रीवास्तव की पत्नी हैं बंदिता श्रीवास्तव। लोक चित्रकला और ट्राइबल आर्ट को रंगबिरंगे रंगों द्वारा कैनवास पर उतारने की कला में निपुण हैं बंदिता। वे पिछले पंद्रह सालों से इन कलाओं के प्रति समर्पित हैं। बंदिता के अनुसार मैंने पंद्रह साल पहले ग्वालियर में रहते हुए इस कला को सीखने की शुरुआत की थी। इस दिशा में काम करते हुए बंदिता ने स्टोन पर काम करने वाले कई कलाकारों को लोक कलाओं की शिक्षा दी। आज उन कलाकारों की आजीविका का प्रमुख साधन यही कला है। बंदिता को इस बात की खुशी है कि उनके प्रयासों से इन कलाकारों को रोजगार मिला। वे चाहती हैं लोक कलाओं के प्रति लोगों को प्रोत्साहन मिलना जरूरी है। भारतीय पारंपरिक लोक कलाओं को सहेजने की जिम्मेदारी हमारी ही है। इसके प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
नैतिक शिक्षा जरूरी है
जीवन के संघर्ष में महिलाओं के लिए सबसे जरूरी है साहस के साथ उन परिस्थितियों का सामना करना। इन गुणों का विकास करने के लिए पारिवारिक पृष्ठभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिन परिवारों में लड़कियों को बचपन से हर हालात का हिम्मत से सामना करना सिखाया जाता है, वहां मुश्किलों से पार पाना वे खुद सीख जाती हैं।



शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

मोहब्बत किसको कहते हैं


मोहब्बत क्या है, कोई इसे वफा का दूसरा नाम मानता है तो कोई मोहब्बत के नाम पर मर मिटने की बात करता है। मोहब्बत में डूबे दो दिल मर कर भी अमर हो जाते हैं। सदियों से चले आ रहे रिश्तों में सबसे खास रिश्ता है मोहब्बत का जिसे  प्रसिद्ध लेखकों ने अपनी कलम के माध्यम से बेहद खूबसूरती के साथ कागज पर उतारा है। वेलेंटाइन वीक बना है प्यार करने वालों के लिए। इस वीक का हर दिन खास होता है। पेश है इस मौके पर मोहब्बत को जिंदगी मानने वाले मशहूर साहित्यकारों के दिल की बात जो उन्होंने चंद लाइनों में उतारने की कोशिश की है...

प्रसिद्ध कवि और लेखक कुमार अंबुज ने कविता के माध्यम से लोगों को सोचने का नया और वास्तविक नजरिया दिया है। प्रेम के प्रति उनके विचार कुछ इस तरह सामने आते हैं।
निकट पारिवारिक संबंधों केे अलावा बाकी सारे प्रेम दैहिक आकांक्षा से प्रेरित होते हैं।
वैसे हर तरह का प्रेम एक स्थगित अवसाद है।
प्रेम यदि सहचर्य में बदल जाए तो उपलब्धि है।
वह एक अविस्मरणीय अनुभव तो है ही।
प्रेम को प्रस्तुत करने वाली कविता की चंद पंक्तियां वे कुछ इस तरह बताते हैं-
यह सूर्यास्त की तस्वीर है
देखने वाला इसे सूर्योदय भी समझ सकता है
प्रेम के वर्तुल हैं सब तरफ
इनका कोई पहला और आखिरी सिरा नहीं
जहां से थाम लो वही शुरुआत, जहां छोड़ दो वही अंत
रेत की रात के अछोर आकाश में ये तारे
चुंबनों की तरह टिमटिमाते हैं
और आकाशगंगा मादक मद्धिम चीख की तरह
इस छोर से उस छोर तक फैली है
रात के अंतिम पहर में यह किस पक्षी की व्याकुलता है
किस कीड़े की किर्र किर्र चीं चिट
हर कोई इसी जनम में अपना प्रेम चाहता है
कई बार तो बिल्कुल अभी, ठीक इसी क्षण
आविष्कृत हैं इसीलिए सारी चेष्टाएं, संकेत और भाषाएं
चारों तरफ चंचल हवा है वानस्पतिक गंध से भरी
प्रेम की स्मृति में ठहरा पानी चांदनी की तरह चमकता है
और प्यास का वर्तमान पसरा है क्षितिज तक
तारों को देखते हुए आता है याद कि जो छूट गया
जो दूर है, अलभ्य है जो, वह भी प्रेम है
दूरी चीजों को टिमटिमाते नक्षत्रों में बदल देती है॥
गजलों की दुनिया में राहत इंदौरी वो नाम है जिसने फिल्म जगत में अपने गीतों की धूम तो मचाई ही लेकिन शेरों शायरी की दुनिया में भी एक अलग अंदाज से पेश होकर अलग मुकाम बनाया। मुशायरों की शान कहे जाने वाले राहत इंदौरी की नजरों में मोहब्बत जिंदगी है जिसके बिना जिंदगी का तसव्वुर नहीं है। हर मजहब में मोहब्बत को जीवन का आधार इसकी अहमियत को समझते हुए ही बनाया गया है। राहत जिंदगी का अव्वल और आखिर मोहब्बत को ही मानते हैं। उनके कुछ शेर इस तरह हैं-
न जाने कौन सी मजबूरियों का कैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफा न कहो।

मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यंू है।

नीलेश रघुवंशी की कविताएं गहरे अंधेरे के बीच से रोशनी की तरह बिखरती कविताओं के रूप में पहचानी जाती हैं। प्रेम के प्रति अपने विचार व्यक्त करते हुए नीलेश कहती हैं दो प्रेम करने वालों के बीच आपसी समझ और खुशी होना जरूरी है। प्रेम सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए न हो, बल्कि उसमें दूसरों की खुशी का भी उतना ही ख्याल रखा जाए। इस विषय पर शमशेर बहादुर सिंह की कविता उन्हें प्रभावित करती है-
रूप नहीं मेरे पास
द्रव्य नहीं मेरे पास
फिर भी मैं करता हूं प्यार।
नीलेश रघुवंशी द्वारा लिखित कविता प्रेम का प्रदर्शन इस अंदाज में करती है-
मुझे प्रेम चाहिए घनघोर बारिश सा
कड़कती धूप में, घनी छांव सा
ठिठुरती ठंड में, अलाव सा प्रेम चाहिए
मुझे अलाव सा प्रेम चाहिए, सारी दुनिया रहती हो जिसमें॥
नीलेश के शब्दों में जिस तरह युवा पीढ़ी के लिए वेलेंटाइन डे प्रेम का प्रतीक है उसी तरह हमारे देश में बसंत ऋतु को प्रेम का पर्याय माना जाता है। पे्रम में स्वतंत्रता मायने रखती है। एक-दूसरे को आजादी देते हुए, उस पर विश्वास बनाए रखते हुए परस्पर साथ निभाना सच्चे प्यार की निशानी है। शायरों की नजरों में प्यार के अनेक रूप हैं जो अलग-अलग अंदाज में उनकी कलम से कागज पर उतरते रहते हैं। उर्दू के मशहूर शायर मंजर भोपाली की नजरों में सारी कायनात मोहब्बत के लिए बनी है। वह हर चीज जिसमें रूह है उसे प्यार करने का हक है इसीलिए सिर्फ इंसान ही क्या, बल्कि परिंदे भी प्यार करते हैं। पहले प्यार का रूप अलग था और आज इंटरनेट के दौर में प्यार करने वालों की सोच और अंदाज बदले हैं। इन सबके बीच प्यार का विरोध करने वालों की कोई जगह नहीं होना चाहिए।
दिल के कागज पर आज प्यार लिखे
एक ही लफ्ज बार-बार लिखे
चांदनी इस जमीं पर बिखराएं
आइए प्यार हम भी अपनाएं
आज कांटे बिछाने वालों को
प्यार का हम सबक सिखाएंगे
आओ हम प्यार की कसम खाएं
एक दूजे के आज हो जाएं।
शायरी की दुनिया में एक ऐसा नाम जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। वो है अंजुम रहबर। अंजुम के लफ्जों में मोहब्बत का जिक्र करें तो  बेशक मोहब्बत के  सफर में उतार चढ़ाव आते हैं। जिंदगी बनती या बिगड़ती है। वो जमाना और था जब लोग मोहब्बत के मायने समझते थे। मोहब्बत भरी लाखों चिट्ठियों को प्यार भरे दिल हमेशा संभालकर रखते थे और उन्हेें बार-बार पढ़कर अपने मेहबूब को याद करते थे। आज की पीढ़ी मोहब्बत का इजहार करने के लिए गुलाब देती है, जबकि मेरी नजरों में शाख से गुलाब तोडऩा भी उसका दिल तोडऩा ही है।
फूल उसने भेजे हैं
फूल सूख जाएंगे
साफ ये इशारा है
इंतजार मत करना।
प्यार में मजबूरियों का जिक्र करते हुए अंजुम लिखती हैं
मजबूरियों के नाम पर सब छोडऩा पड़ा
दिल तोडऩा कठिन था।
मगर तोडऩा पड़ा
मेरी पसंद और थी
सबकी पसंद और
इतनी जरा सी बात पर घर छोडऩा पड़ा।
प्यार के नाम पर अंजुम कहती हैं
ये किसी धाम का नहीं होता
ये किसी काम का नहीं होता
प्यार में जब तलक नहीं टूटे
दिल किसी काम का नहीं होता।
प्यार के दुश्मन जमाने में कम नहीं हैं। कभी धर्म के नाम पर तो कभी अमीरी गरीबी के फासले प्यार करने वालों को जुदा कर देते हैं
दफना दिया गया मुझे चांदी की कब्र में
मैं जिसको चाहती थी वो लड़का गरीब था।

मिलना था इत्तेफाक बिछडऩा नसीब था
वो इतनी दूर हो गया जितना करीब था।

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014


मैं नास्तिक हूं



मैं धर्म में विश्वास नहीं करता, ईश्वर के अस्तित्व में मेरा यकीन नहीं है और न ही ईश्वर की भक्ति में जीवन समर्पित कर देने से जीवन सार्थक होता है। ये विचार हर उस नास्तिक व्यक्ति के हैं जो ईश्वर के अस्तित्व से इंकार करता है। अगर विश्व स्तर पर बात की जाए तो यहां अनेक धर्मावलंबी रहते हैं। धर्म के नाम पर कुछ भी कर गुजरने की श्रद्धा लोगों में कूट-कूट कर भरी है। ऐसे ही लोगों के बीच में वे भी हैं जो आम लोगों की नजरों में छाए रहते हैं। उन्हें लोग अपनी प्रेरणा मानते हैं और उनके सिद्धांतों पर चलना चाहते हैं। यहां बात हो रही है उन सेलिब्रिटीज की, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते और नास्तिक कहलाते हैं....

दोस्तोएवॉस्की ने कहा था कि अगर ईश्वर नहीं है, तो हमें उसका आविष्कार करना होगा, नहीं तो हर कोई हर कुछ करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा। इस महान रूसी लेखक की मृत्यु के 130 साल बाद भी नास्तिक इससे सहमत नहीं हो पाए हैं। बल्कि पिछले कुछ वर्षों से उनकी गतिविधियां कुछ तेज हुई हैं। इसके पीछे रिचर्ड डॉकिन्स की पुस्तक 'द गॉड डेल्यूजनÓ नाम की अत्यंत पठनीय किताब की भी कुछ भूमिका हो सकती है। यह किताब पहली बार 2006 में प्रकाशित हुई थी और तब से लगातार इंटरनेशनल बेस्टसेलर बनी हुई है। यह ईश्वर के अस्तित्व को आदमी की खामखयाली साबित करने वाली दर्जनों पुस्तकों की सिरमौर है। अलबर्ट आइंस्टीन ने जिस पत्र में ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाया था, उसे बेचे जाने के लिए इंटरनेट पर पेश किया गया है और इसके लिए बोली 30 लाख डॉलर से शुरू हुई है। आइंस्टीन ने वर्ष 1955 में अपनी मौत से एक साल पहले जर्मन भाषा में यह पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने ईश्वर, धर्म और जनजातीयता पर अपने विचार रखे थे। उन्होंने प्रिंसटन विश्वविद्यालय के लेटरहेड पर दार्शनिक एरिक गटकाइन्ड को यह पत्र तब लिखा, जब उन्होंने एरिक की किताब 'चूज लाइफ- द बिबलिकल कॉल टू रिवोल्टÓ पढ़ी। वर्ष 1921 में भौतिक विज्ञान के लिए नोबेल सम्मान पाने वाले आइंस्टीन के नास्तिक होने का पता उस पत्र से चलता है जिसमें उन्होंने लिखा था कि मेरे लिए 'ईश्वरÓ शब्द इंसानी कमजोरी की अभिव्यक्ति से अधिक कुछ भी नहीं है। गौरतलब है कि 4 लाख 4 हजार डॉलर में बिकने के बाद से इस पत्र की चर्चा जोरों पर रही।
एक एकेडमी, दो स्क्रिन एक्टर्स और तीन गोल्डन ग्लोब्स अवार्ड प्राप्त करने वाली एंजेलिना जोली से एक इंटरव्यू के दौरान जब यह पूछा गया कि क्या ईश्वर है? तो उनका जवाब था वे लोग जो ईश्वर में विश्वास करते हैं, उनके लिए वह है लेकिन मुझे ईश्वर की जरूरत नहीं है इसलिए उसका अस्तित्व भी मेरे लिए नहीं है। मैं ईश्वर को नहीं मानती। बीबीसी 2 और चैनल 4 पर नाइजेला लॉसन के कुकिंग शो की प्रसिद्धिा देश-विदेश में है। उनकी किताब हाउ टू ईट और हाउ टू बी ए डोमेस्टिक गॉडेस को पाठकों ने बहुत पसंद किया। उनका कहना है कि मैं खुद को नास्तिक मानती हूं और मुझे इसी रूप में देखा जाता है लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैंने नैतिकता के सिद्धांतों को नहीं माना हो। मैं सही और गलत को पूरी तरह मानती हूं और यह भी मानती हूं कि मैं जो भी करती हूं उस हर काम के लिए मुझे प्रभु ईशु मसीह की जरूरत है। सिर्फ ईश्वर की भक्ति में जीवन समर्पित कर देने से ज्यादा जरूरी भी कई काम हैं जो किए जाने चाहिए। ये कहना है बिल गेट्स का। उन्हें लगता है कि रोज सुबह पूजा पाठ में लग जाने से ज्यादा जरूरी दुनिया भर के ऐसे काम भी हैं जो पहले करना चाहिए। किसी व्यक्ति के नास्तिक होने का आभास कम उम्र से ही होता है। जॉन अब्राहम जब चार साल के थे तभी अपने पिता के साथ धार्मिक स्थानों पर जाने से मना करते थे। आज भी उन्होंने अध्यात्म को बिना किसी धार्मिक संस्थान के स्वीकार किया है। अमोल पालेकर ने कभी यह नहीं कहा कि वह नास्तिक हैं लेकिन जब भी धर्म से संबंधित बात होती है तो उनका कहना होता है कि वे ईश्वर में विश्वास नहीं करते।
कुछ सालों पहले मीडिया के सामने जावेद अख्तर ने कहा था कि विश्वास धर्म की बुनियाद है। इस विषय पर आप चर्चा नहीं कर सकते। इसके पीछे कोई तर्क या कारण भी नहीं होता।
विश्वास और मूर्खता में बहुत बड़ा अंतर है। अपने पिता की तरह फरहान अख्तर भी ईश्वर में विश्वास नहीं करते। उन्होंने अपने पिता के साथ बचपन से जो सीखा वही अपनाया भी, शायद इसलिए वे नास्तिक हैं। कुछ सितारों ने अपने काम को ही ईश्वर मान लिया है। इन्हीं में से एक हैं कमल हासन जिनके लिए फिल्में ही धर्म है। वे कहते हैं हर धर्म को अपनाने के लिए उस पर यकीन करने की जरूरत होती है। मेरा यकीन धर्म में नहीं, बल्कि फिल्मों में है। अभिनेता और निर्देशक रजत कपूर के अनुसार ईश्वर सिर्फ लोगों द्वारा बनाई गई धारणा है जिसके फायदे कम और नुकसान ज्यादा है। ईश्वर के नाम पर लोग एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं और दंगे करते हैं। यह हालात सदियों से बने हुए हैं। मेरा मानना है कि ईश्वर कहीं नहीं है। न स्वर्ग है और न ही नर्क। नास्तिकता के सिद्धांतों को अपनाते हुए इन्हें कभी धार्मिक स्थानों पर जाते हुए नहीं देखा गया। राजीव खंडेलवाल ईश्वर के विरोध में कभी कोई बात नहीं कहते, लेकिन धार्मिक स्थानों पर जाना वे पसंद नहीं करते और न ही धर्म के मामले में कुछ कहते  हुए उन्हें देखा गया है।
इस बारे में राहुल बोस का मत दूसरों से अलग है। वे खुद नास्तिक हैं लेकिन ये भी स्वीकार करते हैं कि दूसरों को ईश्वर में विश्वास करने से वह कभी मना नहीं करते। वे उन लोगों का सम्मान करते हैं जो ईश्वर में आस्था रखते हैं। भूत और वास्तु शास्त्र जैसी फिल्मों के निर्देशक राम गोपाल वर्मा भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। उन्होंने कभी ईश्वर को नहीं माना। आज भी उनके सिद्धांत विज्ञान पर आधारित हैं। धर्म की बात होने पर वे विज्ञान पर
आधारित तर्क देते हैं। किसी व्यक्ति का अचानक नास्तिक हो जाना भी दिलचस्प होता है। जॉली एलएलबी के निर्देशक सुभाष कपूर ने अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार को देखकर नास्तिकता के सिद्धांत को अपनाया, जिसमें अमिताभ भगवान से कहते हैं आज खुश तो बहुत होंगे तुम। नास्तिकों को समाज में स्वीकृति भी मिली है और आम नागरिकों की तरह अपनी बात कहने का हक भी। ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या को
समय-समय पर आयोजित अवसरों में आमंत्रित भी किया जाता है। ओबामा ने अपनी इनागरेशन स्पीच में नास्तिक सेलिब्रिटीज को भी आमंत्रित किया। उनका कहना था कि मैंने कभी ऐसे लोगों के विचार नहीं सुने जो ईश्वर के अस्तित्व से ही मना करते हों। उनकी बात सुनकर मुझे ये महसूस हुआ कि दुनिया एक नई दिशा में जा रही है, जबकि ओबामा के विपरीत जॉर्ज डब्ल्यू बुश नास्तिकता के हमेशा खिलाफ रहे। वे मानते हैं कि नास्तिक भी देशभक्त नहीं हो सकते इसीलिए मैं उन्हें अपने देश में कोई भी अधिकार देने के पक्ष में नहीं हूं।

























बुधवार, 8 जनवरी 2014


इंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा 

इंटरटेनमेंट की दुनिया में छाए रहने वाले सितारे दर्शकों का मनोरंजन करने में कोई कमी बाकी नहीं रहने देते। फिर बात जब उनके इंटरटेनमेंट की आती है तब भी वे अपने घर में सारे साधन मौजूद रखते हैं जिनसे उनकी शानो शौकत बढ़ती हो। ऐसे ही साधनों में से एक है होम थियेटर। पिछले कुछ सालों में होम थियेटर का ट्रेंड इन सितारों के बीच इतना हावी है जिसके चलते वे अपने घर में होम थियेटर को विशेष महत्व देने लगे हैं। नया घर खरीदते समय भी होम थियेटर के लिए विशेष स्थान का प्रबंध करना वे नहीं भूलते आखिर सवाल उनके इंटरटेनमेंट का जो होता है....

पॉप प्रिंसेस ब्रिटनी स्पीयर्स के फैशन सेंस की आलोचना मीडिया जगत में चलती रहती है लेकिन घर में होम थियेटर स्थापित करने में ब्रिटनी ने खासी मेहनत की है। कैलिफोर्निया के कलाबासा में स्थित उनके होम थियेटर को चातो सुपेरियोस नाम दिया गया है जिसका अर्थ होता है सपनों का घर। ब्रिटनी ने इस थियेटर को टेक्सचर्ड वाल से सजाया है। यहां वाल स्पीकर और कई लोगों के बैठने की व्यवस्था है। अपने लिए होम थियेटर को डिजाइन करने वाले सेलिब्रिटीज में क्रिकेटर भी पीछे नहीं हैं। सचिन तेंदुलकर ने मुंबई के बांद्रा स्थित अपने घर में 15-20 सीटर प्रायवेट थियेटर को डिजाइन किया है। आईपीएल 4 के अंतिम दिनों में उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के साथ इस थियेटर का उद्घाटन किया। सचिन के घर में बने इस होम थियेटर का आनंद लेने में वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर की विशेष रुचि रहती है। सचिन की तरह शाहरुख खान और अजय देवगन सहित कई जाने माने उद्योगपति जैसे हर्ष गोयनका, अमित बर्मन और छगन भुजबल ने अपने घर में थियेटर स्थापित किए हैं जहां वे अपने दोस्तों और परिवार के साथ फस्र्ट डे फस्र्ट शो में फिल्म देखना पसंद करते हैं। फिर इसके लिए उन्हें फिल्म के प्रोड्यूसर को कितनी ही रकम क्यों न देना पड़े। परिवार के साथ फिल्में देखने के शौकीन मुकेश अंबानी ने एंटीलिया की आठवीं मंजिल पर पचास सीट युक्त थियेटर स्थापित किया है। उद्योगपति और राजनेता के रूप में प्रसिद्ध नवीन जिंदल 150 करोड़ के बंगले लुटियंस के मालिक हैं जिसमें  पचास सीट युक्त मूवी थियेटर है। उनके रहने से पहले इस घर को पटनी हाउस के नाम से जाना जाता था। भारत के सबसे महंगे घरों में शामिल नवीन जिंदल के घर को हेरिटेज लिस्ट में रखा गया है। आलीशान जिंदगी के शौकीन विजय माल्या का यूबी सिटी बैंगलोर स्थित घर लक्जरी की पहचान के रूप मेें जाना जाता है।
इस पेंटहाउस में लक्जरी जैसे जिम, इंडोर हीटेड पूल, स्पा, आउटडोर इंफिनिटी पूल और हेलीपेड के सारे इंतजाम हैं। उन्होंने अपने इसी घर में पचास सीट युक्त होम थियेटर बना रखा है। महंगे घर खरीदना बिलियोनेयर की शान शौकत में चार चांद लगाने जैसा होता है। तमाम साज-सज्जा से युक्त जेके हाउस में गौतम सिंघानिया रहते हैं। गौतम सिंघानिया के लिए यहां तीन हेलीपेड, हेल्थ स्पा, बालरूम और पचास सीट वाले मूवी थियेटर का निर्माण किया गया है। ओपेरा विन्फ्रे के कैलिफोर्निया स्थित घर की कीमत 50 मिलियन डॉलर है। 2001 में इस घर में रहने के लिए जाने से पहले ओपेरा ने अपने खास मेहमानों के लिए होम थियेटर बनवाया था। लक्जरी के शौकीन जॉन अब्राहम के घर में ग्लास वर्क हर जगह देखने को मिलता है। यहां तक कि उनके बाथरूम को जकूजी वाले खूबसूरत ग्लास वर्क से सजाया गया है। यहां उन्होंने 130 इंच स्क्रीन लगवाई है ताकि जकूजी के साथ वे फिल्मों और क्रिकेट मैच का मजा ले सकें। बैंगलोर स्थित किरण मजूमदार शॉ के आवास ग्लैनमोर में होम थियेटर को आधुनिक तरीके से सजाया गया है।
सेलिब्रिटी जिन घरों में रहते हैं, वे हमेशा आम लोगों के बीच चर्चा का विषय होते हैं और इसी तरह उनके होम थियेटर किसी सपने के सच होने की तरह ही हैं।
इन्हीं में से एक है व्हाइट हाउस का रेट्रो थियेटर जिसकी शान देखते ही बनती है। अभिनेत्री खुशबू पिछले सात सालों से नए साल की किसी पार्टी में शामिल होने के बजाय दोनों बेटियों अवंतिका और आनंदिता के साथ अपने घर में स्थित थियेटर में रात भर फिल्में देखना पसंद करती हैं।  इस बार उन्होंने नए साल को ध्यान में रखते हुए दिसंबर से पहले ही अपने होम थियेटर का मेकओवर किया था।