सोमवार, 16 सितंबर 2013

रंगों में बिखरी रंगकर्म की छाप
जवा मेहता

संस्थापक जवा जोशी क्रिएटिव आट्र्स,
क्रिएटिव हेड, क्रिएटिव एप्रोच, लेेंक्सिंगटन, मास, बोस्टन



वरिष्ठ रंगकर्मी सतीश मेहता की बेटी जवा मेहता पिछले चौदह सालों से रंगकर्म के साथ ही पेंटिंग की दुनिया में उनके होम टाउन लेंक्सिंगटन में अपनी क्रिएटिव कंपनी का संचालन कर रही हैं। इस साल उन्हें कला जगत में विशेष योगदान के लिए बोस्टन में वुमेन ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। अब तक उन्होंने 250 नाटकों और 15 लघु फिल्मों में अभिनय किया है।   एक मुलाकात देश का नाम विदेशों में रोशन करने वाली जवा के साथ....

जवा एब्सट्रेक्ट और लैंडस्केप दोनों तरह की पेंटिंग बनाती हैं। वे गहरे रंगों का इस्तेमाल करना पसंद करती हैं। पिछले साल जवा ने विभिन्न प्रदर्शनी के दौरान भारतीय गांवों को अपने चित्रों द्वारा दर्शाया था और इस साल वे भारतीय लोक नृत्य पर आधारित पेंटिंग बना रही हैं। इसी साल जवा ने बोस्टन पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित एनप्लेन एयर आउटडोर पेंटिंग इवेंट्स के तहत वहां के प्रमुख सात पेंटरों के साथ लाइव पेंटिंग बनाई। रंगों की दुनिया में खास स्थान बना लेना जवा के लिए आसान नहीं था। उनके इस सफर की शुरुआत भोपाल से कुछ इस तरह से हुई।  जवा ने अपने घर में बचपन से रंगकर्म का माहौल देखा। उनके माता-पिता को लगता था कि जवा भी उन्हीं की तरह थियेटर की दुनिया में नाम कमाएंगी लेकिन जवा की रुचि पेंटिंग में थी। उन्होंने लक्ष्मीनारायण भारद्वाज से पेंटिंग की शिक्षा ली। महज तेरह साल की उम्र में जवा ने एब्सट्रेक्ट पेंटिंग बनाने की शुरुआत की। जवा ने फाइन आर्ट में पीएचडी किया और शादी के बाद वे बोस्टन चली गईं। पिछले साल पेरेलेक्स इंटरनेशनल आर्ट शो के दौरान उनके चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। वर्ष 2012 में लेंक्सिंगटन में ही जवा का सोलो आर्ट शो आयोजित हुआ था। वर्ष 2001 में इन्हें अटलांटा में गैलरी शो के दौरान सिल्वर अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा भोपाल, इंदौर, भिलाई, नागपुर और उज्जैन सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में जवा की पेंटिंग प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। जवा ने बोस्टन सहित अटलांटा में सीनियर वेब डिजाइनर साहित मल्टीमीडिया वेब डिजाइनर के तौर पर काम किया। इससे पहले वर्ष 1998 से मार्च 2000 तक भारत में सीनियर ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर काम किया। उनकी पेंटिंग में थियेटर की छाप दिखाई देती है। बोस्टन स्थित जवा के आर्ट स्कूल में हर साल लगभग 60-70 बच्चे पेंटिंग सीखते हैं। इन विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए चित्रों की प्रदर्शनी का वर्ष में दो बार आयोजन होता है। विदेश और अपने देश की कला संस्कृति में अंतर बताते हुए जवा कहती हैं कि हमारे देश में नए कलाकारों को बढ़ावा देने में लोग हिचकिचाते हैं लेकिन विदेशों में उन्हें प्रोत्साहित न करने वाले कला के कद्रदानों की कमी नहीं है। हालांकि कला के प्रति अब भारतवासियों का नजरिया तेजी से बदला है और वे श्रेष्ठ कलाकारों की अहमियत समझने लगे हैं। रंगों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को दर्शाने के साथ ही जवा ने बोस्टन में हिंदी मंच नाम की संस्था की स्थापना की। यह संस्था बच्चों को ड्रामा सिखाती है। इस काम में उनके पति हेतल जोशी का सहयोग सराहनीय है। जवा की सफलता का श्रेय हेतल सहित पिता सतीश मेहता और मां ज्योत्सना मेहता को है। जवा के अनुसार काम करने के लिए सबसे जरूरी इच्छाशक्ति का होना है। अगर इच्छाशक्ति प्रबल है तो काम के वक्त आने वाली हर मुश्किल से पार पाया जा सकता है। हाल ही में उनकी संस्था के विद्यार्थियों ने जिस नाटक का मंचन किया था जिसका नाम था पंडित और उसकी गाय। ये नाटक पंचतंत्र की कहानियों पर आधारित था। जवा चाहती हैं कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में विदेशियों को भी पता चले और वे इसकी कीमत समझें। विदेश में रहने वाले भारतीय जवा की इस कोशिश में पूरी तरह उनके साथ हैं। वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे अपने देश की संस्कृति से जुड़े रहें। जवा के अनुसार मेरे विद्यार्थियों में से कोई एक भी अगर इस कला को आगे बढ़ा सका तो उस दिन मेरी मेहनत सफल हो जाएगी।
बिंदास ब्वॉयज

एक वक्त वो था जब शहर का एक आम लड़का अपनी सीधी-सादी इमेज में रहते हुए उन सारे लड़कों का प्रतिनिधित्व विभिन्न फिल्मों के माध्यम से करता था, जिसे परफेक्ट हीरो मान लिया जाता था। वक्त के साथ जिस तरह से आज के लड़के बदले हैं, वही बदलाव बॉलीवुड के हीरों की इमेज में भी दिखाई देता है। अब वह सीधा सादा और परफेक्ट नहीं, बल्कि अक्खड़, मुंहफट और बिंदास ब्वॉय के रूप में दर्शकों के सामने है। इन दिनों हिट हुई कई फिल्मों ने युवाओं की ऐसी ही इमेज को सबके बीच ला खड़ा किया है....

अगर ये कहा जाए कि एक फिल्म सिर्फ मनोरंजन की वजह से सफल होती है तो सही नहीं होगा क्योंकि फिल्म को मनोरंजन से कहीं ज्यादा इस बात के लिए याद किया जाता है कि सिनेमा हॉल के अंधेरे में कैद न रहकर वह आपकी-हमारी जिंदगी की उन खाली जगहों में दाखिल होती जाती है, जहां हम खुद को झांकते हैं। साथ ही उन  सच्चाई और सपनों के बीच हम कुछ सवाल भी  मन में जोड़ पाते हैं। इस साल बॉलीवुड में बनने वाली ऐसी ही फिल्मों में से एक है फुकरे।
फुकरे मतलब गुड फॉर नथिंग किस्म के युवा। जेब से कड़के, किसी काम के नहीं, लेकिन ऊंचेसपने। हमेशा जुगाड़ में लगे रहते हैं कि किस तरह से सपने पूरे हों और बुरे काम करने में भी हिचकते नहीं हैं। ऐसे ही चार फुकरों की कहानी में जान डाली है पुलकित सम्राट के किरदार ने।
सरकारी स्कूल में पढऩे वाले दो छात्र हनी (पुलकित सम्राट) और चूचा (वरुण शर्मा) ऊंचे कॉलेज में जाने के सपने देखते हैं ताकि लड़कियों को पटा सकें । एक ही क्लास पास करने में कई साल लगाने वाले इन छात्रों को पता है कि वे इतने नंबर नहीं ला पाएंगे कि उन्हें मनपसंद कॉलेज में एडमिशन मिल सके। गलत रास्तों पर चलते हुए वे जिस परेशानी से गुजरते हैं, उसे ही फकरे में बयां किया गया है। ये कहानी स्ट्रीट स्मार्ट फुकरे लोगों की है, इसलिए संवादों में उसी तरह के शब्दों को शामिल किया है, जैसी वे भाषा बोलते हैं। ंै
युवाओं के दिल की कहानी बताने में इस साल काई पो छे ने सफलता का परचम लहराया। फिल्म काई पो छे में सुशांत सिंह राजपूत ने ईशान के किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है। ईशान पर क्रिकेट का जुनून सवार है। वह स्वभाव से आक्रामक है और क्रिकेट के प्रति अपनी दीवानगी के चलते वह कोई भी चुनौती लेने को तैयार रहता है। ऊपर से वह गुस्सैल और असंवेदनशील लगता है लेकिन अंदर से नर्म दिल है। फिल्म में ईशान का किरदार मौजूदा सिस्टम के प्रति नाराजगी जाहिर करता है।
फिल्म आशिकी 2 में आदित्य राय कपूर ने नशे में डूबे गायक और प्रेमी की भूमिका को पूरी तरह जिया है। फिल्म में आरोही शिरके एक बड़ी गायिका बनना चाहती है और उसकी मुलाकात जाने-माने गायक राहुल जयकर से होती है।  राहुल उसकी आवाज को सुनकर उसके कैरियर को एक मुकाम दिलाने में जुट जाता है लेकिन इस सारे चक्कर में उसका कैरियर अपने हाथ से फिसलने लगता है। राहुल शराब और हताशा के सागर में गुम हो जाता है। वह गुस्सैल, अपनी प्रेमिका की सफलता से जलने वाला, मर्जी का मालिक और अपने आसपास के लोगों से लड़ाई झगड़ा करने से न घबराने वाला है। आशिकी 2 ने आदित्य रॉय कपूर की बॉलीवुड में राह बदलने का काम बखूबी किया है। फिल्म ने चार दिन में 24.75 करोड़ रुपए का कारोबार किया। इन दिनों आम चेहरे वाले लड़के हीरो की भूमिका में खरे उतरते नजर आ रहे हैं। रांझणा फिल्म के नायक कुंदन के रूप में धनुष की दो चीजों के लिए दीवानगी देखते ही बनती है। पहला जोया जिससे वह बहुत प्यार करता है और दूसरा उसका शहर बनारस। छोटे शहरों में बसने वाले आम प्रेमी की कहानी रांझणा दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में पूरी तरह सफल रही। उसका एकतरफा प्यार एक बार फिर शाहरुख खान की फिल्म डर या अंजाम की याद दिलाता है। इरोस इंटरनेशनल की फिल्म इस फिल्म से कंपनी को पहले वीकेंड पर 31.5 करोड़ की कमाई हुई। इस साल की सुपर हिट फिल्म ये जवानी है दीवानी उन सारे युवाओं को खासा प्रभावित कर गई जो लाइफ इज एक पार्टी में यकीन करते हैं। फिल्म में नैना 'दीपिका पादुकोणÓ, बनी 'रणबीर कपूरÓ, अवि 'आदित्य रॉय कपूरÓ और अदिति 'कल्कि कोचलिनÓ चारों दोस्त हैं। सभी कॉलेज से पासआउट हुए हंसमुख समूह हैैं जो कि अपनी लाइफ हंसते-हंसते जीना चाहते हैं।
इनकी सोच तेजी से बदलती भावनाओं को बिल्कुल सही तरीके से पेश करती है। जो बताती है कि दोस्ती, प्यार और रिश्ते एक दूसरे को जोड़े रखते हैं। बनी मस्त जीवन जीने में विश्वास करता है जिसे तेज रफ्तार से जीना पसंद है और वो कहीं ठहरना नहीं चाहता। बनी का कमिटमेंट फोबिया उसे आज के युवाओं से जोड़ता है। नैना एक साधारण प्यार को सपनों की तरह जीने वाली पढऩे में तेज लड़की है। वहीं अवि और अदिति एक ऐसे अहसास के साथ जी रहे हैं जो आधुनिक समाज में समलैंगिकता को स्वीकार करने की छूट देता है। आम युवाओं को यह कहानी कहीं न कहीं अपने ही जीवन से जुड़ी हुई नजर आती है और फिल्म की यही बात इसे ब्लॉकबस्टर बनाने में सफल रही है।
हम दो
हमारे...



दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। एक वे जो ब"ो की चाहत में दिन-रात मन्नतें मांगते नहीं थकते और दूसरे वे जो ब"ाों के बिना आराम से जिंदगी गुजारने की ख्वाहिश रखते हैं। ऐशोआराम से भरपूर अपने जीवन में इन्हें ब"ाों की जरूरत कभी महसूस नहीं होती। क्या धीरे-धीरे हम उस परंपरा की तरफ बढ़ रहे हैं जब हम दो हमारे दो नहीं, बल्कि हम दो और हमारे कुछ भी नहीं तक परिवार सीमित होकर रह जाएगा....

ओपेरा विंफ्रे  और उनके पार्टनर स्टेडमेन ग्राहम एक दूसरे के साथ 1986 से रह रहे हैं। विंफ्रे ने कभी इस बात पर अफसोस नहीं किया कि उनके ब"ो नहीं हैं, बल्कि वे ये मानती हैं कि साउथ अफ्रीका के ओपेरा विंफ्रे लीडरशिप अकेडमी में शिक्षारत सभी लड़कियां उन्हीं की बेटियां हैं। वे कहती हैं ब"ो न होने की बात मैं कभी सोचती भी नहीं। इस अकेडमी में अभी 152 लड़कियां हैं। यह सोच सिर्फ विदेशी महिलाओं की ही नहीं है,  बल्कि हमारे देश में भी तेजी से बढ़ती भागदौड़ के बीच ब"ाों की जिम्मेदारी कुछ लोगों के लिए धीरे-धीरे बोझ बनती जा रही है। जॉर्ज क्लूनी ने हीट मैगजीन को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि एक दिन एक ब"ाा मेरे घर के पास आकर रुक गया। मुझे उस वक्त ये अहसास हुआ कि मैं किसी ब"ो का पिता बनकर नहीं रह सकता। मैं कई बार एंजेलिना जोली और ब्रेड पिट से कहता हूं कि वे कुछ दिन अपने ब"ाों के साथ मेरे घर आकर रहें ताकि मुझे ये महसूस हो कि जब घर में ब"ो रहते हैं तो कैसा लगता है। ऐसा नहीं है कि पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का ब'चों के प्रति रुझान कम हुआ है लेकिन ब"ाों को प्यार करने वाली महिलाएं भी खुद ब"ो नहीं चाहतीं। इवा मेंडिस कहती हैं मुझे ब"ाों से प्यार है लेकिन मैं ब"ो को जन्म देने की इ'छा नहीं रखती क्योंकि उनके साथ रात को जाग नहीं सकती। मुझे रात को नींद खराब करना बिल्कुल अ'छा नहीं लगता। यद्यपि रेखा ने ब"ाों की चाहत कई बार अपने इंटरव्यू में व्यक्त की है लेकिन हाल ही में दिए गए अपने इंटरव्यू में उन्होंने ये कहा कि एक ब"ो की परवरिश के लिए मां और पिता दोनों की जरूरत होती है लेकिन मेरे साथ पति के न रहने पर मुझे ये अहसास हुआ कि ब"ो नहीं हुए तो अ'छा ही हुआ। मेरे लिए ब"ाों की अकेले परवरिश करना मुश्किल था। आज महिलाएं अपने परिवार के लिए रोल मॉडल हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय काउंसिल द्वारा देश के चार बड़े शहरों में किए गए सर्वे के अनुसार 18 साल से अधिक उम्र की 7& प्रतिशत लड़कियां मानती हैं कि शादी के बाद ब"ो हो जाने पर उनकी आजादी खत्म हो जाएगी।
87 प्रतिशत लड़कियां शादी के बाद निकट भविष्य में ब"ाों को जन्म देना नहीं चाहतीं। शबाना आजमी ने जावेद अख्तर से शादी की। शबाना के ब"ो नहीं हैं। फरहान और जोया अख्तर जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी के ब"ो हैं। 29 वर्षीय कल्किी कोचलिन जब अपनी सहेलियों को उनके ब"ाों के साथ देखती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होता है कि उनकी जिंदगी में ब"ाों की जरूरत ही नहीं है क्योंकि वे शादी के बाद से ही दो ब"ाों की परवरिश कर रही हैं। उनके लिए कल्कि का पांच साल का भाई और अनुराग की पहली पत्नी की बारह साल की बेटी उनके अपने ही ब"ो हैं। कल्कि के ऐसे कई दोस्त हैं जो अपना ब"ाा नहीं चाहते। उनके पति अनुराग को भी ब"ो की ख्वाहिश नहीं है। कल्कि कहती हैं कि अब धीरे-धीरे हमारे समाज में ऐसा माहौल बढ़ता जा रहा है जहां ब"ाों से अधिक दूसरी प्राथमिकताओं की ओर लोग ध्यान दे रहे हैं। अन्य प्राथमिकताओं को महत्व देना कभी-कभी इतना जरूरी हो जाता है जिसके चलते ब"ाों की चाहत धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। ये कहना है प्रसिद्ध लेखिका अद्वैत काला का। &5 वर्षीय दिल्ली निवासी अद्वैत काला को लगता है कि अब महिलाओं की प्राथमिकताओं में ब"ो नहीं रहे। कई बार वे इस विषय पर भ्रम की स्थिति में रहती हैं, बल्कि कभी-कभी वे मेरी तरह अपनी राय स्पष्ट व्यक्त करती हैं। महिलाओं के पास अब नौ महीने तक ब"ाों को अपनी कोख में रखने और तकलीफ सहने का न तो समय है और न ही साहस। इस समय उन महिलाओं की भी कमी नहीं जो ये कहती हैं कि अगर भविष्य में कभी ब"ाों की जरूरत महसूस भी हो तो सरोगसी या अनाथ आश्रम से ब"ाों को गोद लेने जैसे विकल्पों को अपनाकर वे ब"ो की कमी को पूरा करना Óयादा पसंद करेंगी।