शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

मोहब्बत किसको कहते हैं


मोहब्बत क्या है, कोई इसे वफा का दूसरा नाम मानता है तो कोई मोहब्बत के नाम पर मर मिटने की बात करता है। मोहब्बत में डूबे दो दिल मर कर भी अमर हो जाते हैं। सदियों से चले आ रहे रिश्तों में सबसे खास रिश्ता है मोहब्बत का जिसे  प्रसिद्ध लेखकों ने अपनी कलम के माध्यम से बेहद खूबसूरती के साथ कागज पर उतारा है। वेलेंटाइन वीक बना है प्यार करने वालों के लिए। इस वीक का हर दिन खास होता है। पेश है इस मौके पर मोहब्बत को जिंदगी मानने वाले मशहूर साहित्यकारों के दिल की बात जो उन्होंने चंद लाइनों में उतारने की कोशिश की है...

प्रसिद्ध कवि और लेखक कुमार अंबुज ने कविता के माध्यम से लोगों को सोचने का नया और वास्तविक नजरिया दिया है। प्रेम के प्रति उनके विचार कुछ इस तरह सामने आते हैं।
निकट पारिवारिक संबंधों केे अलावा बाकी सारे प्रेम दैहिक आकांक्षा से प्रेरित होते हैं।
वैसे हर तरह का प्रेम एक स्थगित अवसाद है।
प्रेम यदि सहचर्य में बदल जाए तो उपलब्धि है।
वह एक अविस्मरणीय अनुभव तो है ही।
प्रेम को प्रस्तुत करने वाली कविता की चंद पंक्तियां वे कुछ इस तरह बताते हैं-
यह सूर्यास्त की तस्वीर है
देखने वाला इसे सूर्योदय भी समझ सकता है
प्रेम के वर्तुल हैं सब तरफ
इनका कोई पहला और आखिरी सिरा नहीं
जहां से थाम लो वही शुरुआत, जहां छोड़ दो वही अंत
रेत की रात के अछोर आकाश में ये तारे
चुंबनों की तरह टिमटिमाते हैं
और आकाशगंगा मादक मद्धिम चीख की तरह
इस छोर से उस छोर तक फैली है
रात के अंतिम पहर में यह किस पक्षी की व्याकुलता है
किस कीड़े की किर्र किर्र चीं चिट
हर कोई इसी जनम में अपना प्रेम चाहता है
कई बार तो बिल्कुल अभी, ठीक इसी क्षण
आविष्कृत हैं इसीलिए सारी चेष्टाएं, संकेत और भाषाएं
चारों तरफ चंचल हवा है वानस्पतिक गंध से भरी
प्रेम की स्मृति में ठहरा पानी चांदनी की तरह चमकता है
और प्यास का वर्तमान पसरा है क्षितिज तक
तारों को देखते हुए आता है याद कि जो छूट गया
जो दूर है, अलभ्य है जो, वह भी प्रेम है
दूरी चीजों को टिमटिमाते नक्षत्रों में बदल देती है॥
गजलों की दुनिया में राहत इंदौरी वो नाम है जिसने फिल्म जगत में अपने गीतों की धूम तो मचाई ही लेकिन शेरों शायरी की दुनिया में भी एक अलग अंदाज से पेश होकर अलग मुकाम बनाया। मुशायरों की शान कहे जाने वाले राहत इंदौरी की नजरों में मोहब्बत जिंदगी है जिसके बिना जिंदगी का तसव्वुर नहीं है। हर मजहब में मोहब्बत को जीवन का आधार इसकी अहमियत को समझते हुए ही बनाया गया है। राहत जिंदगी का अव्वल और आखिर मोहब्बत को ही मानते हैं। उनके कुछ शेर इस तरह हैं-
न जाने कौन सी मजबूरियों का कैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफा न कहो।

मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यंू है।

नीलेश रघुवंशी की कविताएं गहरे अंधेरे के बीच से रोशनी की तरह बिखरती कविताओं के रूप में पहचानी जाती हैं। प्रेम के प्रति अपने विचार व्यक्त करते हुए नीलेश कहती हैं दो प्रेम करने वालों के बीच आपसी समझ और खुशी होना जरूरी है। प्रेम सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए न हो, बल्कि उसमें दूसरों की खुशी का भी उतना ही ख्याल रखा जाए। इस विषय पर शमशेर बहादुर सिंह की कविता उन्हें प्रभावित करती है-
रूप नहीं मेरे पास
द्रव्य नहीं मेरे पास
फिर भी मैं करता हूं प्यार।
नीलेश रघुवंशी द्वारा लिखित कविता प्रेम का प्रदर्शन इस अंदाज में करती है-
मुझे प्रेम चाहिए घनघोर बारिश सा
कड़कती धूप में, घनी छांव सा
ठिठुरती ठंड में, अलाव सा प्रेम चाहिए
मुझे अलाव सा प्रेम चाहिए, सारी दुनिया रहती हो जिसमें॥
नीलेश के शब्दों में जिस तरह युवा पीढ़ी के लिए वेलेंटाइन डे प्रेम का प्रतीक है उसी तरह हमारे देश में बसंत ऋतु को प्रेम का पर्याय माना जाता है। पे्रम में स्वतंत्रता मायने रखती है। एक-दूसरे को आजादी देते हुए, उस पर विश्वास बनाए रखते हुए परस्पर साथ निभाना सच्चे प्यार की निशानी है। शायरों की नजरों में प्यार के अनेक रूप हैं जो अलग-अलग अंदाज में उनकी कलम से कागज पर उतरते रहते हैं। उर्दू के मशहूर शायर मंजर भोपाली की नजरों में सारी कायनात मोहब्बत के लिए बनी है। वह हर चीज जिसमें रूह है उसे प्यार करने का हक है इसीलिए सिर्फ इंसान ही क्या, बल्कि परिंदे भी प्यार करते हैं। पहले प्यार का रूप अलग था और आज इंटरनेट के दौर में प्यार करने वालों की सोच और अंदाज बदले हैं। इन सबके बीच प्यार का विरोध करने वालों की कोई जगह नहीं होना चाहिए।
दिल के कागज पर आज प्यार लिखे
एक ही लफ्ज बार-बार लिखे
चांदनी इस जमीं पर बिखराएं
आइए प्यार हम भी अपनाएं
आज कांटे बिछाने वालों को
प्यार का हम सबक सिखाएंगे
आओ हम प्यार की कसम खाएं
एक दूजे के आज हो जाएं।
शायरी की दुनिया में एक ऐसा नाम जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। वो है अंजुम रहबर। अंजुम के लफ्जों में मोहब्बत का जिक्र करें तो  बेशक मोहब्बत के  सफर में उतार चढ़ाव आते हैं। जिंदगी बनती या बिगड़ती है। वो जमाना और था जब लोग मोहब्बत के मायने समझते थे। मोहब्बत भरी लाखों चिट्ठियों को प्यार भरे दिल हमेशा संभालकर रखते थे और उन्हेें बार-बार पढ़कर अपने मेहबूब को याद करते थे। आज की पीढ़ी मोहब्बत का इजहार करने के लिए गुलाब देती है, जबकि मेरी नजरों में शाख से गुलाब तोडऩा भी उसका दिल तोडऩा ही है।
फूल उसने भेजे हैं
फूल सूख जाएंगे
साफ ये इशारा है
इंतजार मत करना।
प्यार में मजबूरियों का जिक्र करते हुए अंजुम लिखती हैं
मजबूरियों के नाम पर सब छोडऩा पड़ा
दिल तोडऩा कठिन था।
मगर तोडऩा पड़ा
मेरी पसंद और थी
सबकी पसंद और
इतनी जरा सी बात पर घर छोडऩा पड़ा।
प्यार के नाम पर अंजुम कहती हैं
ये किसी धाम का नहीं होता
ये किसी काम का नहीं होता
प्यार में जब तलक नहीं टूटे
दिल किसी काम का नहीं होता।
प्यार के दुश्मन जमाने में कम नहीं हैं। कभी धर्म के नाम पर तो कभी अमीरी गरीबी के फासले प्यार करने वालों को जुदा कर देते हैं
दफना दिया गया मुझे चांदी की कब्र में
मैं जिसको चाहती थी वो लड़का गरीब था।

मिलना था इत्तेफाक बिछडऩा नसीब था
वो इतनी दूर हो गया जितना करीब था।

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014


मैं नास्तिक हूं



मैं धर्म में विश्वास नहीं करता, ईश्वर के अस्तित्व में मेरा यकीन नहीं है और न ही ईश्वर की भक्ति में जीवन समर्पित कर देने से जीवन सार्थक होता है। ये विचार हर उस नास्तिक व्यक्ति के हैं जो ईश्वर के अस्तित्व से इंकार करता है। अगर विश्व स्तर पर बात की जाए तो यहां अनेक धर्मावलंबी रहते हैं। धर्म के नाम पर कुछ भी कर गुजरने की श्रद्धा लोगों में कूट-कूट कर भरी है। ऐसे ही लोगों के बीच में वे भी हैं जो आम लोगों की नजरों में छाए रहते हैं। उन्हें लोग अपनी प्रेरणा मानते हैं और उनके सिद्धांतों पर चलना चाहते हैं। यहां बात हो रही है उन सेलिब्रिटीज की, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते और नास्तिक कहलाते हैं....

दोस्तोएवॉस्की ने कहा था कि अगर ईश्वर नहीं है, तो हमें उसका आविष्कार करना होगा, नहीं तो हर कोई हर कुछ करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा। इस महान रूसी लेखक की मृत्यु के 130 साल बाद भी नास्तिक इससे सहमत नहीं हो पाए हैं। बल्कि पिछले कुछ वर्षों से उनकी गतिविधियां कुछ तेज हुई हैं। इसके पीछे रिचर्ड डॉकिन्स की पुस्तक 'द गॉड डेल्यूजनÓ नाम की अत्यंत पठनीय किताब की भी कुछ भूमिका हो सकती है। यह किताब पहली बार 2006 में प्रकाशित हुई थी और तब से लगातार इंटरनेशनल बेस्टसेलर बनी हुई है। यह ईश्वर के अस्तित्व को आदमी की खामखयाली साबित करने वाली दर्जनों पुस्तकों की सिरमौर है। अलबर्ट आइंस्टीन ने जिस पत्र में ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाया था, उसे बेचे जाने के लिए इंटरनेट पर पेश किया गया है और इसके लिए बोली 30 लाख डॉलर से शुरू हुई है। आइंस्टीन ने वर्ष 1955 में अपनी मौत से एक साल पहले जर्मन भाषा में यह पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने ईश्वर, धर्म और जनजातीयता पर अपने विचार रखे थे। उन्होंने प्रिंसटन विश्वविद्यालय के लेटरहेड पर दार्शनिक एरिक गटकाइन्ड को यह पत्र तब लिखा, जब उन्होंने एरिक की किताब 'चूज लाइफ- द बिबलिकल कॉल टू रिवोल्टÓ पढ़ी। वर्ष 1921 में भौतिक विज्ञान के लिए नोबेल सम्मान पाने वाले आइंस्टीन के नास्तिक होने का पता उस पत्र से चलता है जिसमें उन्होंने लिखा था कि मेरे लिए 'ईश्वरÓ शब्द इंसानी कमजोरी की अभिव्यक्ति से अधिक कुछ भी नहीं है। गौरतलब है कि 4 लाख 4 हजार डॉलर में बिकने के बाद से इस पत्र की चर्चा जोरों पर रही।
एक एकेडमी, दो स्क्रिन एक्टर्स और तीन गोल्डन ग्लोब्स अवार्ड प्राप्त करने वाली एंजेलिना जोली से एक इंटरव्यू के दौरान जब यह पूछा गया कि क्या ईश्वर है? तो उनका जवाब था वे लोग जो ईश्वर में विश्वास करते हैं, उनके लिए वह है लेकिन मुझे ईश्वर की जरूरत नहीं है इसलिए उसका अस्तित्व भी मेरे लिए नहीं है। मैं ईश्वर को नहीं मानती। बीबीसी 2 और चैनल 4 पर नाइजेला लॉसन के कुकिंग शो की प्रसिद्धिा देश-विदेश में है। उनकी किताब हाउ टू ईट और हाउ टू बी ए डोमेस्टिक गॉडेस को पाठकों ने बहुत पसंद किया। उनका कहना है कि मैं खुद को नास्तिक मानती हूं और मुझे इसी रूप में देखा जाता है लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैंने नैतिकता के सिद्धांतों को नहीं माना हो। मैं सही और गलत को पूरी तरह मानती हूं और यह भी मानती हूं कि मैं जो भी करती हूं उस हर काम के लिए मुझे प्रभु ईशु मसीह की जरूरत है। सिर्फ ईश्वर की भक्ति में जीवन समर्पित कर देने से ज्यादा जरूरी भी कई काम हैं जो किए जाने चाहिए। ये कहना है बिल गेट्स का। उन्हें लगता है कि रोज सुबह पूजा पाठ में लग जाने से ज्यादा जरूरी दुनिया भर के ऐसे काम भी हैं जो पहले करना चाहिए। किसी व्यक्ति के नास्तिक होने का आभास कम उम्र से ही होता है। जॉन अब्राहम जब चार साल के थे तभी अपने पिता के साथ धार्मिक स्थानों पर जाने से मना करते थे। आज भी उन्होंने अध्यात्म को बिना किसी धार्मिक संस्थान के स्वीकार किया है। अमोल पालेकर ने कभी यह नहीं कहा कि वह नास्तिक हैं लेकिन जब भी धर्म से संबंधित बात होती है तो उनका कहना होता है कि वे ईश्वर में विश्वास नहीं करते।
कुछ सालों पहले मीडिया के सामने जावेद अख्तर ने कहा था कि विश्वास धर्म की बुनियाद है। इस विषय पर आप चर्चा नहीं कर सकते। इसके पीछे कोई तर्क या कारण भी नहीं होता।
विश्वास और मूर्खता में बहुत बड़ा अंतर है। अपने पिता की तरह फरहान अख्तर भी ईश्वर में विश्वास नहीं करते। उन्होंने अपने पिता के साथ बचपन से जो सीखा वही अपनाया भी, शायद इसलिए वे नास्तिक हैं। कुछ सितारों ने अपने काम को ही ईश्वर मान लिया है। इन्हीं में से एक हैं कमल हासन जिनके लिए फिल्में ही धर्म है। वे कहते हैं हर धर्म को अपनाने के लिए उस पर यकीन करने की जरूरत होती है। मेरा यकीन धर्म में नहीं, बल्कि फिल्मों में है। अभिनेता और निर्देशक रजत कपूर के अनुसार ईश्वर सिर्फ लोगों द्वारा बनाई गई धारणा है जिसके फायदे कम और नुकसान ज्यादा है। ईश्वर के नाम पर लोग एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं और दंगे करते हैं। यह हालात सदियों से बने हुए हैं। मेरा मानना है कि ईश्वर कहीं नहीं है। न स्वर्ग है और न ही नर्क। नास्तिकता के सिद्धांतों को अपनाते हुए इन्हें कभी धार्मिक स्थानों पर जाते हुए नहीं देखा गया। राजीव खंडेलवाल ईश्वर के विरोध में कभी कोई बात नहीं कहते, लेकिन धार्मिक स्थानों पर जाना वे पसंद नहीं करते और न ही धर्म के मामले में कुछ कहते  हुए उन्हें देखा गया है।
इस बारे में राहुल बोस का मत दूसरों से अलग है। वे खुद नास्तिक हैं लेकिन ये भी स्वीकार करते हैं कि दूसरों को ईश्वर में विश्वास करने से वह कभी मना नहीं करते। वे उन लोगों का सम्मान करते हैं जो ईश्वर में आस्था रखते हैं। भूत और वास्तु शास्त्र जैसी फिल्मों के निर्देशक राम गोपाल वर्मा भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। उन्होंने कभी ईश्वर को नहीं माना। आज भी उनके सिद्धांत विज्ञान पर आधारित हैं। धर्म की बात होने पर वे विज्ञान पर
आधारित तर्क देते हैं। किसी व्यक्ति का अचानक नास्तिक हो जाना भी दिलचस्प होता है। जॉली एलएलबी के निर्देशक सुभाष कपूर ने अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार को देखकर नास्तिकता के सिद्धांत को अपनाया, जिसमें अमिताभ भगवान से कहते हैं आज खुश तो बहुत होंगे तुम। नास्तिकों को समाज में स्वीकृति भी मिली है और आम नागरिकों की तरह अपनी बात कहने का हक भी। ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या को
समय-समय पर आयोजित अवसरों में आमंत्रित भी किया जाता है। ओबामा ने अपनी इनागरेशन स्पीच में नास्तिक सेलिब्रिटीज को भी आमंत्रित किया। उनका कहना था कि मैंने कभी ऐसे लोगों के विचार नहीं सुने जो ईश्वर के अस्तित्व से ही मना करते हों। उनकी बात सुनकर मुझे ये महसूस हुआ कि दुनिया एक नई दिशा में जा रही है, जबकि ओबामा के विपरीत जॉर्ज डब्ल्यू बुश नास्तिकता के हमेशा खिलाफ रहे। वे मानते हैं कि नास्तिक भी देशभक्त नहीं हो सकते इसीलिए मैं उन्हें अपने देश में कोई भी अधिकार देने के पक्ष में नहीं हूं।