शनिवार, 28 जुलाई 2012

कम हो रहा है मुशायरों का दौर
अंजुम रहबर
शायरा

मशहूर शायरा अंजुम रहबर को शायरी करते हुए 35 साल हो गए हैं। इस बीच उन्होंने विदेशों के कई मुल्कों में अपनी शायरी के बल पर विशेष पहचान बनाई है। अंजुम कुछ यूं बयां करती हैं अपने जज्बात.....

वहीं से हुई शुरुआत
 मेरे बाबा (वालिद) मरहूम एम एच रहबर अपने जमाने के मशहूर शायरों में से एक थे। घर में शायराना माहौल था। शायरों का आना-जाना और शेर पढ़कर एक-दूसरे को सुनाना मैंने अपने घर में सुना। उन्हीं को देखकर मैंने 17 साल की उम्र में मुशायरों में पढऩा शुरू किया। उस वक्त मैं अपने बाबा के लिखे शेर पढ़ती थी। धीरे-धीरे मैंने खुद शेर लिखना शुरू किए और फिर जो सिलसिला चला वो आज तक जारी है।
कुछ यूं था वो शेर
मैंने जब शायरी करना शुरू की तो कई बार मुझसे गलती भी हो जाती थी। मेरी सारी गलतियों को दुरुस्त करने का काम मेरे बाबा करते थे। शायरी करते हुए मुझे 35 साल हो गए। मेरा पहला शेर था-
जी रही हूं मैं गम उठाने को
ताकि बांटूं खुशी जमाने को।
तेरा नक्शेकदम जो मिल जाए
वो भी काफी है सिर झुकाने को।

अब तैयार हो रही सीडी
मैंने विदेशी मुल्कों में कई बार शिरकत की है और अपनी शायरी से श्रोताओं के दिलों में खास जगह बनाई है। एक जमाना वो भी था जब मैं सुबह दिल्ली में शेर पढ़ती थी तो रात को पाकिस्तान के मुशायरों में शामिल हो जाती थी। अपनी दो किताबों के पूरे हो जाने के बाद फिलहाल मैं अपनी गजलों की एक सीडी तैयार कर रही हूं। इंटरनेट के दौर में अपनी शायरी लोगों तक पहुंचाने का सबसे अच्छा जरिया यही है और इसी के माध्यम से मैं चाहती हूं कि मेरी शायरी युवा पढ़ेें। इसी सीडी की शुरुआत में जो गजल है, उसके बोल कुछ यूं हैं
खोलकर चाहतों का दरवाजा
राह तकना भी बंद कर देगा।
मेरे परदेसी लौट आ वरना
दिल धड़कना भी बंद कर देगा।

देखने को नहीं मिलता
मैं हिंदी और उर्दू दोनों मुशायरों में जाती हूं। जिस तरह से मुशायरों का दौर कम हो रहा है वो तो चिंता का विषय है ही, लेकिन इसके साथ ही  मुशायरों के गिरते स्तर को सुधारने के विषय में भी कदक उठाए जाने चाहिए। कहा जाता है कि तहजीब हर मुशायरे की जान होती है लेकिन अब पहले जैसी तहजीब भी मुशायरों में देखने को नहीं मिलती।

सारी जिंदगी याद रहते हैं
मेरे मनपसंद शायर वसीम बरेवली, राहत इंदौरी और मुनव्वर राना हैं। मैंने गुजरे जमाने के शायरों को भी काफी पढ़ा है और उनके कलाम दिल के करीब हैं। उनमें से किसी एक का नाम बताना मुश्किल है क्योंकि हर शायर का अंदाज दूसरे शायर से जुदा होता है। कभी-कभी ये भी होता है कि कोई शायर कई शेर कहने के बाद भी श्रोताओं को प्रभावित नहीं कर पाता तो कभी ये भी होता है कि किसी शायर के एक या दो शेर ही लोगों को सारी जिंदगी याद रहते हैं।

वो हैं मेरी प्रेरणा
जब मैं छोटी थी तो मेरी प्रेरणा मेरे बाबा थे। जब शादी हुई तो राहत इंदौरी और अब मेरा बेटा समीर राहत मेरे लिए प्रेरणा हैं। वह मेरी कमियों को बताता है तो अच्छाइयों की तारीफ भी करता है।

वो जल्दी थक जाते हैं
जो श्रोता मेरी शायरी पसंद करते हैं उनकी शुक्रगुजार हूं और जो युवा शायर अब अपनी शायरी से इस क्षेत्र में आगे आ रहे हैं उनसे कहना चाहूंगी कि शायरी को अपनी जिंदगी का एक हिस्सा मानकर उस पर काम करेें। धीरे-धीरे मंजिलों को पार करना सीखें। ये याद रखेें जो तेज चलते हैं वो जल्दी थक जाते हैं।
प्रस्तुति-शाहीन अंसारी
बोल इंग्लिश बोल

आप चाहे अंग्रेजी में बात करना न जानते हों लेकिन फिर भी अपना रौब जमाने के लिए इस भाषा में बात करना आपके लिए शान की बात है। कई बार इसी आदत के चलते आप हंसी का पात्र भी बन जाते हैं। ये परेशानी आपकी ही नहीं, बल्कि हमारे देश के अधिकांश उन लोगों की है जिनके लिए अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग अपनी इमेज को सुधारने का सबसे अच्छा माध्यम बन चुका है। हमारे फिल्मी सितारे भी फिल्मों में अंग्रेजी का जमकर बैंड बजाते हैं। सच तो यह है कि इन्हीं की देखा-देखी लोग टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करना गलत नहीं मानते। जरा सोचकर देखिए किसी भाषा का इस तरह मजाक बनाना क्या वाकई सही है......
  हमारे देश में रहने वाले अधिकांश लोग हिंदी भाषा का सही प्रयोग नहीं करते, वहीं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हर हिंदुस्तानी चाहे गलत ही सही लेकिन इंग्लिश बोलने का शौक भी रखता है। इंग्लिश को हमने अपनी दिनचर्या में कुछ इस तरह शामिल कर लिया है जिसके चलते ऑफिस से लेकर हर घर में इसे बोले बिना काम नहीं चलता। इंग्लिश ने हमारे देश में जो प्रभाव छोड़ा है वो अन्य कोई विदेशी भाषा नहीं छोड़ सकी। यहां तक कि अंग्रेजों द्वारा भारत छोडऩे के चार दशक बाद भी इसकी छाप भारतीयों पर ज्यों की त्यों है। इस भाषा के गलत प्रयोग को बढ़ावा देने का श्रेय बोल बच्चन जैसी फिल्मों को जाता है। इसमें अजय देवगन की कॉमेडी दर्शकों को खूब पसंद आई। अजय ने अंग्रेजी की टांग तोडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इस फिल्म का डायलॉग साले को कुत्ते की मौत मारूंगा को अजय कहते हैं ब्रदर इन लॉ विल डाई टॉमीस डेथ। इसी तरह का डायलॉग है मैं तुम्हें छटी का दूध याद दिला दूंगा को आई विल मेक यू रिमेम्बर मिल्क नंबर 6। ऐसी ही एक और जबरदस्त अंग्रेजी की लाइन है वेन एल्डर गेट कोजी, यंगर्स डोन्ट पुट देयर नोजी मतलब जब बड़े बात करते हैं तो बीच में टोका नहीं करते। कई हद तक इस फिल्म के हिट होने की वजह भी इसी तरह के डायलॉग थे। खुद अजय ये मानते हैं कि वे ऐसे कई परिचितों को जानते हैं जो इंग्लिश बोलकर अपनी छवि सुधारने के चक्कर में कई बार इंग्लिश के गलत शब्दों का प्रयोग करते हैं।
हमारे देश की यह विडंबना ही है कि लोग उन्हें ही पढ़ा-लिखा मानते हैं जो अच्छी अंगे्रजी में बात कर सकते हैं इसीलिए लोग दूसरों के सामने खुद को पढ़ा-लिखा साबित करने के लिए टूटी-फूटी ही सही लेकिन इसी भाषा में बात करने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग अंग्रेजी के शब्दों का ऐसा उच्चारण करते हैं कि अर्थ का अनर्थ हो जाता है। हालांकि सच तो यह है कि हमारे यहां बनने वाली फिल्मों में ऐसे वाक्यों की संख्या बढ़ती जा रही है जो दर्शकों का मनोरजंन करने के लिए अंग्रेजी को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। देखा जाए तो हिंदी फिल्मों में अंग्रेजी शब्दों के गलत प्रयोग करने का सिलसिला अमिताभ बच्चन द्वारा अपनी सुपर हिट फिल्मों जैसे चुपके-चुपके, नमक हराम या अमर, अकबर एंथोनी से हुआ। अमिताभ यह मानते हैं कि दर्शकों के मनोरंजन के लिए उन्होंने हर फिल्म में अंग्रेजी को नए-नए स्टाइल में बोलना शुरू किया। जैसे उन्होंने फिल्म नमक हलाल में डायलॉग बोला था आई कैन टॉक इंग्लिश, आई कैन वॉक इंग्लिश, आई कैन लाफ इंग्लिश बिकॉज इंग्लिश इज ए फनी लैंग्वेज। अमिताभ कहते हैं कि फिल्मों में बोली जाने वाली टूटी-फूटी अंग्रेजी दर्शकों को लुभाती है, क्योंकि हम हिंदी भाषी हैं और यहां सही अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या बहुत कम है। शायद यही वजह है कि लोगों को टूटी-फूटी अंग्रेजी पसंद आती है। बीएसएस कॉलेज के विद्यार्थी निखिल वर्मा मानते हैं कि अगर अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को मनोरंजन का माध्यम बनाकर पेश किया जाता है तो इसमें गलत क्या है। लोगों को ऐसी अंग्रेजी खूब भाती है। ये कहना सिर्फ निखिल का ही नहीं, बल्कि ऐसे कई लोगों का है जो इसे 'फनी लैंग्वेजÓ कहना ज्यादा पसंद करते हैं।

ये फैशन बन गया है
अंग्रेजी में बात करना एक ऐसा फैशन बन गया है जिसे हर भारतीय अपनाना चाहता है लेकिन अंग्रेजी भाषा का पूरा ज्ञान न होने की वजह से सभी लोग इसे सही तरीके से बोलने में सक्षम नहीं होते। जब ऐसा नहीं हो पाता तो अपनी इमेज को बनाए रखने के लिए टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करने लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे अंग्रेजों द्वारा  हमारे देश छोडऩे के सदियों बाद भी हम उनकी मानसिकता से आजाद नहीं हुए।
अपराजिता शर्मा
प्रोफेसर, इंग्लिश
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय
बॉक्स में
 हमारी मजबूरी है
थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों में विज्ञान और चिकित्सा संबंधी विषय उन्हीं की मूल भाषा में पढ़ाए जाते हैं, लेकिन हमारे देश में स्कूलों से लेकर कॉलेजों में पढ़ाए जाने वाले अधिकांश विषय अंग्रेजी में होते हैं और इसीलिए विद्यार्थी बचपन से ही हिंदी की तरफ कम और अंग्रेजी की तरफ ज्यादा ध्यान देते हैं। हमारे देश में अंग्रेजी शक्ति की भाषा है ये इसी बात से साबित होता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत के स्वतंत्र होने पर सबसे पहले जो भाषण दिया था वो भी अंग्रेजी में ही था। तब से आज तक ये रिवाज कायम है। जो नेता हिंदी में बात करते हैं उन्हें कम पढ़ा-लिखा माना जाता है और जो अंग्रेजी में बोलते हैं उन्हें ही विद्वान माना जाता है। इस भाषा का प्रयोग करना हमारी मजबूरी हो गई है।
उद्यन वाजपेयी
साहित्यकार
भाषा की बात नहीं है
हिंदी सिनेमा में टूटी-फूटी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग आम लोगों को भी इस भाषा को इसी तरह से बोलने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे लोग खुद को स्मार्ट दिखाने के लिए अंग्रेजी के गलत शब्द या गलत उच्चारण का प्रयोग करते हैं। ये सिर्फ भाषा की बात नहीं है, बल्कि पश्चिमी सभ्यता को अपनाकर अपनी इज्जत बचाने की कोशिश हम सदियों से करते आ रहे हैं।
डॉ. काकोली रॉय
मनोचिकित्सक ---------------------------